5. परमेश्वर कैसे पूरे ब्रह्मांड पर प्रभुत्व रखता है और प्रशासन करता है
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
इस विशाल ब्रह्मांड में ऐसे कितने प्राणी हैं जो सृष्टि के नियम का बार-बार पालन करते हुए, एक ही निरंतर नियम पर चल रहे हैं और प्रजनन कार्य में लगे हैं। जो लोग मर जाते हैं वे जीवितों की कहानियों को अपने साथ ले जाते हैं और जो जीवित हैं वे मरे हुओं के वही त्रासदीपूर्ण इतिहास को दोहराते रहते हैं। मानवजाति बेबसी में स्वयं से पूछती हैः हम क्यों जीवित हैं? और हमें करना क्यों पडता है? यह संसार किसके आदेश पर चलता है? मानवजाति को किसने रचा है? क्या वास्तव में मानवजाति प्रकृति के द्वारा ही रची गई है? क्या मानवजाति वास्तव में स्वयं के भाग्य के नियंत्रण में है? ... मनुष्य नहीं जानता कि ब्रह्मांड की सत्ता किसके पास है, मानवजाति की उत्पत्ति और भविष्य तो वह बिल्कुल नहीं जानता। मानवजाति सिर्फ मजबूरन इन नियमों के अधीन रहती है। न तो इससे कोई बच सकता है और न ही कोई इसे बदल सकता है, क्योंकि इन सबके मध्य और स्वर्ग में केवल एक ही शाश्वत सत्ता है जो सभी पर अपनी सम्प्रभुता रखती है। और ये वह है जिसे कभी भी मनुष्य ने देखा नहीं है, जिसे मानवजाति ने कभी जाना नहीं है, जिसके अस्तित्व में मनुष्य ने कभी भी विश्वास नहीं किया, फिर भी वही एक है जिसने मानवजाति के पूर्वजों को श्वास दी और मानवजाति को जीवन प्रदान किया। वही मानवजाति के अस्तित्व के लिए आपूर्ति और पोषण प्रदान करता है, और आज तक मानवजाति को मार्गदर्शन प्रदान करता आया है। इसके अलावा, उसी और सिर्फ़ उसी पर मानवजाति अपने अस्तित्व के लिए निर्भर करती है। इस ब्रह्माण्ड में उसी की सत्ता है और हर प्राणी पर उसी का शासन है। वह चारों मौसमों पर उसी का अधिकार है और वही वायु, शीत, बर्फ और बरसात संचालित करता है। वही मानवजाति को धूप प्रदान करता है और रात्रि लेकर आता है। उसी ने स्वर्ग और पृथ्वी की नींव डाली, मनुष्य को पहाड़, झील और नदियां तथा उसमें जीवित प्राणी उपलब्ध कराए। उसके कार्य सभी जगह हैं, उसकी सामर्थ्य सभी जगह है, उसका ज्ञान चारों ओर है, और उसका अधिकार भी सभी जगह है। प्रत्येक नियम और व्यवस्था उसी के कार्य का मूर्त रूप है, और उनमें से प्रत्येक उसकी बुद्धि और अधिकार प्रगट करता है। कौन है जो उसके प्रभुत्व से बच सकता है? कौन है जो उसकी रूपरेखा से मुक्त रह सकता है? प्रत्येक चीज़ उसकी निगाह में है और सभी कुछ उसकी अधीनता में है उसके कार्य और शक्ति मनुष्य के पास सिवाय यह मानने के और कोई विकल्प नहीं छोड़ते कि वास्तव में उसका अस्तित्व है और हर चीज़ पर उसी का अधिकार है। उसके अलावा कोई और ब्रह्मांड को नियंत्रित नहीं कर सकता, उसके अलावा कोई और तो मानवजाति को अथक पोषण तो प्रदान कर ही नहीं कर सकता।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" से
जीवन का मार्ग कोई साधारण चीज़ नहीं है जो चाहे कोई भी प्राप्त कर ले, न ही इसे सभी के द्वारा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह इसलिए कि जीवन केवल परमेश्वर से ही आता है, कहने का अर्थ है कि केवल स्वयं परमेश्वर ही जीवन के तत्व का अधिकारी है, स्वयं परमेश्वर के बिना जीवन का मार्ग नहीं है, और इसलिए केवल परमेश्वर ही जीवन का स्रोत है, और जीवन के जल का सदा बहने वाला सोता है। जब से उसने संसार को रचा है, परमेश्वर ने बहुत सा कार्य जीवन को महत्वपूर्ण बनाने के लिये किया है, बहुत सारा कार्य मनुष्य को जीवन प्रदान करने के लिए किया है और बहुत अधिक मूल्य चुकाया है ताकि मनुष्य जीवन को प्राप्त करे, क्योंकि परमेश्वर स्वयं ही अनन्त जीवन है, और वह स्वयं ही वह मार्ग है जिससे मनुष्य नया जन्म लेता है। … परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी शक्ति पर प्रभुत्व कर सकती है; इसके अलावा, वह किसी भी शक्ति से अधिक है। उसका जीवन अनन्त काल का है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसके जीवन की शक्ति आसानी से किसी भी प्राणी या शत्रु की शक्ति से पराजित नहीं हो सकती। परमेश्वर की जीवन-शक्ति का अस्तित्व है, और अपनी शानदार चमक से चमकती है, चाहे वह कोई भी समय या स्थान क्यों न हो। परमेश्वर का जीवन सम्पूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी की उथल-पुथल के मध्य हमेशा के लिए अपरिवर्तित रहता है। हर चीज़ का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा, परन्तु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा। क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत है, और उनके अस्तित्व का मूल है। मनुष्य का जीवन परमेश्वर से निकलता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व भी परमेश्वर की जीवन शक्ति से ही उद्भूत होता है। कोई वस्तु कितनी भी महत्वपूर्ण हो, परमेश्वर के प्रभुत्व से बढ़कर श्रेष्ठ नहीं हो सकती। और कोई भी वस्तु शक्ति के साथ परमेश्वर के अधिकार की सीमा को तोड़ नहीं सकती है। इस प्रकार से, चाहे वे कोई भी क्यों न हों, सभी को परमेश्वर के अधिकार के अधीन ही समर्पित होना होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा में रहना होगा, और कोई भी उसके नियंत्रण से बच कर नहीं जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है" से
मानवता के अस्तित्व में आने से पहले, विश्व-सभी ग्रह, आकाश के सभी सितारे-पहले से ही अस्तित्व में थे। दीर्घ स्तर पर, ये खगोलीय पिंड परमेश्वर के नियन्त्रण के अधीन नियमित रूप से अपनी कक्षा में परिक्रमा करते रहे हैं, अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के दौरान चाहे इसे जितने भी वर्ष हो गए हों। कौन सा ग्रह कौन से निश्चित समय में कहाँ जाता है; कौन सा ग्रह कौन सा कार्य करता है, और कब करता है; कौन सा ग्रह कौन सी कक्षा में चक्कर लगाता है, और वह कब अदृश्य हो जाता है या कब उसका स्थान बदल दिया जाता है-ये सभी चीज़ें थोड़ी सी भी ग़लती के बगैर आगे बढ़ती रहती हैं। ग्रहों की स्थिति और उनके बीच की दूरियां सभी सख्त नमूनों का अनुसरण करती हैं, उन में से सभी का वर्णन सटीक आंकड़ों के द्वारा किया जा सकता है; वे पथ जिस पर वे परिभ्रमण करते हैं, उनकी कक्षाओं की गति एवं नमूने, वे समय जब वे विभिन्न स्थितियों में होते हैं उन्हें विशेष नियमों के द्वारा परिमाणित किया जा सकता है और उनकी व्याख्या की जा सकती है। युगों से ग्रहों ने इन नियमों का पालन किया है, और ज़रा सा भी विचलन नहीं किया है। कोई भी शक्ति उनकी कक्षाओं या नमूनों को बदल नहीं सकती है या उनको बाधित नहीं कर सकती है जिनका वे अनुसरण करते हैं। क्योंकि वे विशेष नियम जो उनकी गति को नियन्त्रित करते हैं और वह सटीक आंकड़ा जो उनका वर्णन करता है उन्हें सृष्टिकर्ता के अधिकार के द्वारा पूर्वनिर्धारित किया गया है, वे स्वयं ही सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और नियन्त्रण के अधीन इन नियमों का पालन करते हैं। दीर्घ स्तर पर, कुछ नमूनों, कुछ आंकड़ों, साथ ही साथ कुछ अजीब और अवर्णनीय नियमों या घटनाओं का पता लगाना मनुष्य के लिए कठिन नहीं है। हालाँकि मानवता यह नहीं मानती है कि परमेश्वर अस्तित्व में है, इस सत्य को स्वीकार नहीं करती है कि सृष्टिकर्ता ने हर एक चीज़ को बनाया है और हर एक चीज़ पर प्रभुता करता है, और इसके अतिरिक्त सृष्टिकर्ता के अधिकार के अस्तित्व को नहीं पहचानती है, फिर भी मानव वैज्ञानिक, खगोलशास्त्री, और भौतिक विज्ञानी और भी अधिक खोज कर रहे हैं कि इस विश्व में सभी चीज़ों का अस्तित्व, और वे सिद्धान्त और नमूने जो उनकी गतिविधियों का आदेश देते हैं, उन सभी पर एक विशाल और अदृश्य अंधकारमय ऊर्जा के द्वारा शासन और नियंत्रित किया जाता है। यह सत्य मनुष्य को बाध्य करता है कि वह इस बात का सामना करे और स्वीकार करे कि इन गतिविधियों के नमूनों के मध्य एक सामर्थी परमेश्वर है, जो हर एक चीज़ का आयोजन करता है। उसका सामर्थ्य असाधारण है, और हालाँकि कोई उसके असली चेहरे को नहीं देख सकता है, फिर भी वह प्रत्येक क्षण हर एक चीज़ पर शासन और नियन्त्रण करता है। कोई भी व्यक्ति या ताकत उसकी संप्रभुता से परे नहीं जा सकती है। इस सत्य का सामना करते हुए, मनुष्य को यह पहचानना चाहिए कि वे नियम जो सभी चीज़ों के अस्तित्व पर शासन करते हैं उन्हें मनुष्यों के द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है, किसी के द्वारा बदला नहीं जा सकता है; और उसी समय मनुष्य को मानना चाहिए कि मानव इन नियमों को पूरी तरह से समझ नहीं सकते हैं। और वे प्राकृतिक रूप से घटित नहीं होते हैं, बल्कि एक प्रभु और मालिक के द्वारा नियन्त्रित किए जाते हैं। ये सब परमेश्वर के अधिकारों की अभिव्यक्तियां हैं जिनका एहसास मानवजाति दीर्घ स्तर पर कर सकती है।
सूक्ष्म स्तर पर, सभी पहाड़ियाँ, नदियाँ, झीलें, समुद्र और भू-भाग जिन्हें मनुष्य पृथ्वी पर देखता है, सभी मौसम जिन्हें वह अनुभव करता है, सभी चीज़ें जो पृथ्वी पर पाई जाती हैं, जिनमें पेड़-पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव और मनुष्य शामिल हैं, ये सभी परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं, और उन्हें परमेश्वर के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। परमेश्वर की संप्रभुता और नियन्त्रण के अधीन, सभी चीज़ें उसके विचारों की अनुरूपता में अस्तित्व में आती हैं या अदृश्य हो जाती हैं, उन सब के जीवन पर कुछ नियमों के द्वारा शासन किया जाता है, और वे उनके साथ बने रहते हुए बढ़ते हैं और बहुगुणित होते हैं। कोई भी मनुष्य या चीज इन नियमों के ऊपर नहीं है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III" से
जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया, तो उसने पहाड़ों, मैदानों, रेगिस्तानों, पहाड़ियों, नदियों और झीलों के लिए सीमाएं बनाईं। पृथ्वी पर पर्वत, मैदान, मरूस्थल, पहाड़ियां और जल के विभिन्न स्रोत हैं-ये सभी क्या हैं? क्या ये विभिन्न भूभाग नहीं हैं? परमेश्वर ने इन सभी विभिन्न भूभागों के बीच में सीमाओं को खींचा था। जब हम सीमाएं बनाने की बात करते हैं, तो उसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि पर्वतों की अपनी सीमा रेखाएं हैं, मैदानों की अपनी स्वयं की सीमा रेखाएं हैं, मरुस्थलों का एक निश्चित दायरा है, पहाड़ों का अपना एक स्थायी क्षेत्रफल है। साथ ही जल के स्रोत की भी एक स्थिर मात्रा है जैसे नदियां और झीलें। अर्थात्, जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की तब उसने हर चीज़ को बहुत स्पष्टता से बांट दिया था। … परमेश्वर द्वारा सृजे गए इन सभी विभिन्न भूभागों और भौगोलिक वातावरण के अंतर्गत, वह एक योजनाबद्ध और सुव्यवस्थित तरीके से हर चीज़ का प्रबंधन कर रहा है। अतः कई हज़ार वर्षों से, और परमेश्वर द्वारा सृजे जाने के पश्चात् दस हज़ार वर्षों से ये सभी भौगोलिक पर्यावरण अभी भी अस्तित्व में हैं। वे अभी भी अपनी अपनी भूमिकाओं को निभा रहे हैं। हालांकि निश्चित समय अवधियों के दौरान ज्वालामुखी फटते हैं, निश्चित समय अवधियों के दौरान भूकंप आते हैं, और बड़े पैमाने पर भूमि की स्थितियां बदलती हैं, फिर भी परमेश्वर किसी भी प्रकार के भू-भाग को अपने मूल कार्य को छोड़ने की अनुमति बिलकुल भी नहीं देगा। यह केवल परमेश्वर के द्वारा किए गए इस प्रबंधन, और इन नियमों के ऊपर उसके शासन और इन नियमों के प्रति उसकी समझ के कारण है, कि इस में से सब कुछ-इस में से सब कुछ का आनन्द मानवजाति के द्वारा लिया जाता है और उन्हें मानवजाति के द्वारा देखा जाता है-सुव्यवस्थित तरीके से पृथ्वी पर जीवित रह सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX" से
यह तुम सबको समझाने के लिए है कि सभी प्राणियों को परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था-इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे एक ही स्थान में स्थायी हैं या उनमें श्वास है और वे चल सकते हैं-उन सब के पास जीवित रहने के लिए उनके नियम हैं। परमेश्वर ने इन प्राणियों को बनाया उससे बहुत पहले ही उसने उनके लिये उनके निवासस्थानों, और जीवित रहने के लिए उनका स्वयं का वातावरण बनाया था। इन जीवित प्राणियों के पास जीवित रहने के लिए उनके स्वयं के स्थायी वातावरण, उनका स्वयं का भोजन, उनके स्वयं के निवासस्थान, उनके जीवित रहने के लिए उपयुक्त उनके स्वयं के स्थायी स्थान, और उनके जीवित रहने के लिए उपयुक्त तापमानों से युक्त जगहें थीं। इस तरह वे इधर-उधर नहीं भटकते या मानवजाति की अतिजीविता को दुर्बल या नष्ट नहीं करते या उनके जीवन को प्रभावित नहीं करते। इस तरह से परमेश्वर सभी प्राणियों का प्रबंधन करता है। यह मानवजाति के जीवत रहने हेतु उत्तम वातावरण प्रदान करने के लिए है। सभी प्राणियों के अंतर्गत जीवित प्राणियों में से प्रत्येक के पास जीवित रहने हेतु उनके वातावरण के भीतर जीवन को बनाए रखने वाला भोजन है। उस भोजन के साथ, वे जीवत रहने के लिए अपने पैदाइशी वातावरण के अंतर्गत स्थिर हैं; वे उस वातावरण में स्थिर हैं। उस प्रकार के वातावरण में, वे उन नियमों के अनुसार अभी भी जीवित बचे हुए हैं, बहुगुणित हो रहे हैं, और निरन्तर बढ़ रहे हैं जिन्हें परमेश्वर ने उनके लिए स्थापित किया है। इस प्रकार के नियमों के कारण, और परमेश्वर के पूर्वनिर्धारण के कारण, सभी प्राणी मानवजाति के साथ एक स्वर में परस्पर व्यवहार करते हैं, और मानवजाति एवं सभी प्राणी एक दूसरे पर आश्रित हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX" से
जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की, तब उसने उन्हें सन्तुलित करने के लिए, पहाड़ों और झीलों की जीवित दशाओं को सन्तुलित करने के लिए, पौधों और सभी प्रकार के पशुओं, पक्षियों, कीड़ों-मकोड़ों की जीवित दशाओं को सन्तुलित करने के लिए सभी प्रकार की पद्धतियों और तरीकों का उपयोग किया-उसका लक्ष्य था सभी प्रकार के जीवित प्राणियों को उन नियमों के अंतर्गत जीने और बहुगुणित होने की अनुमति दे जिन्हें उसने स्थापित किया था। सभी प्राणी इन नियमों के बाहर नहीं जा सकते हैं और न वे उन्हें तोड़ सकते हैं। केवल इस प्रकार के मूल वातावरण के अंतर्गत ही मनुष्य पीढ़ी दर पीढ़ी सकुशल जीवित रह सकते हैं और बहुगुणित हो सकते हैं। यदि कोई जीवित प्राणी परमेश्वर के द्वारा स्थापित मात्रा या दायरे से बाहर चला जाता है, या यदि वह उसके शासन के अधीन उस वृद्धि दर, आवृत्ति, या संख्या से अधिक बढ़ जाता है, तो जीवित रहने के लिए मानवजाति का वातावरण विनाश के भिन्न भिन्न मात्राओं को सहेगा। और उसी समय, मानवजाति का जीवित रहना खतरे में पड़ जाएगा। यदि एक प्रकार का जीवित प्राणी संख्या में बहुत अधिक है, तो यह लोगों के भोजन को छीन लेगा, लोगों के जल के स्रोत को नष्ट कर देगा, और उनके निवास स्थान को बर्बाद कर देगा। उस तरह से, मनुष्य का प्रजनन या जीवित रहने की दशा तुरन्त प्रभावित होगी।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX" से
जब से परमेश्वर ने उन्हें सृजा, उन नियमों के आधार पर जिन्हें उसने निर्धारित किया था, तब से सभी चीज़ें नियमित रूप से संचालित हो रही हैं और निरन्तर विकसित हो रही हैं। उसकी टकटकी लगाती हुई निगाहों के अधीन, और उसके शासन के अधीन, सभी चीज़ें मनुष्यों के जीवित रहने के साथ-साथ नियमित रूप से विकसित हो रही हैं। कोई भी चीज़ इन विधियों को बदलने में सक्षम नहीं है, और न ही कोई भी चीज़ इन विधियों को नष्ट कर सकती है। यह परमेश्वर के शासन के कारण है कि सभी प्राणी बहुगुणित हो सकते हैं, और उसके शासन और प्रबंधन के कारण सभी प्राणी जीवित रह सकते हैं। कहने का तात्पर्य है कि परमेश्वर के शासन के अधीन, सभी प्राणी अस्तित्व में आते हैं, पनपते हैं, लुप्त हो जाते हैं, और एक सुव्यवस्थित विधि से फिर से शरीर में आते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX" से
परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इसके अलावा वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव सभ्यता का वास्तुकार था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की सम्प्रभुता से अवियोज्य है और मानवजाति का इतिहास और भविष्य परमेश्वर की योजनाओं में जटिल है। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चय ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजना के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति के जीवन के ढंग को नियंत्रित करता है। यदि मानवजाति अच्छा भाग्य पाना चाहती है, यदि कोई देश अच्छा भाग्य पाना चाहता है, तो मनुष्य को अवश्य परमेश्वर की आराधना में झुकना चाहिए, पश्चाताप करना चाहिए और परमेश्वर के सामने अपने पापों की स्वीकार करना चाहिए, अन्यथा मनुष्य का भाग्य और मंज़िल अपरिहार्य रूप से तबाह हो कर समाप्त हो जाएँगे।
…………
परमेश्वर मनुष्य की राजनीति में भाग नहीं लेता है, फिर भी देश या राष्ट्र का भाग्य परमेश्वर के द्वारा नियंत्रित होता है। परमेश्वर इस संसार को और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करता है। मनुष्य का भाग्य और परमेश्वर की योजना बहुत ही घनिष्ठता से जुड़ी हुई हैं, और कोई भी मनुष्य, देश या राष्ट्र परमेश्वर की सम्प्रभुता से मुक्त नहीं है। यदि मनुष्य अपने भाग्य को जानना चाहता है, तो उसे अवश्य परमेश्वर के सामने आना चाहिए। परमेश्वर उन लोगों को समृद्ध करवाएगा है जो उसका अनुसरण करते और उसकी आराधना करते हैं, और उनका पतन और विनाश करेगा जो उसका विरोध करते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है" से
"परमेश्वर के प्रभुत्व" में कौन कौन सी "सारी वस्तुएं" सम्मिलित हैं? उनमें केवल वे ही वस्तुएं नहीं हैं जिन्हें लोग देख सकते हैं और छू सकते हैं, बल्कि वे भी जो अदृश्य और अस्पर्शनीय हैं। ये सभी वस्तुओं पर परमेश्वर के प्रभुत्व का असली अर्थ है। यद्यपि ये चीज़ें लोगों के लिए अदृश्य और अस्पर्शनीय हैं, ये ऐसे तथ्य हैं जिनका अस्तित्व है। परमेश्वर के लिये जहां तक वे उसकी आंखों से देखी जा सकती हैं और उसके प्रभुत्व के दायरे में हैं, वे वास्तविक रुप में अस्तित्व में हैं। हालांकि, लोगों के लिए वे अमूर्त और अकल्पनीय हैं - हालांकि, वे अदृश्य और अस्पर्शनीय हैं - परमेश्वर के लिए उनका अस्तित्व है। उन सभी वस्तुओं का जिन पर परमेश्वर का अधिपत्य है ऐसा संसार है और यह उन सभी वस्तुओं के क्षेत्र का दूसरा भाग है जिसके ऊपर परमेश्वर का शासन है। … किस प्रकार परमेश्वर आत्मिक संसार पर शासन और प्रबंध करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "परमेश्वर स्वयं, अद्वितीय X" से
आत्मिक संसार का अस्तित्व मनुष्य के भौतिक संसार से अभिन्न रूप से जुड़ा है। सब वस्तुओं के ऊपर परमेश्वर के प्रभुत्व में वह मनुष्य जीवन और मृत्यु चक्र में एक बड़ी भूमिका निभाता है; यह इसकी भूमिका है, और एक कारण यह भी है कि क्यों इसका अस्तित्व में होना महत्वपूर्ण है। यह इसका एक कारण है। … एक संसार में जैसा कि यह है - जो लोगों के लिए अदृश्य है - इसकी प्रत्येक स्वर्गीय आज्ञा, आदेश और प्रशासनिक रीति भौतिक संसार के किसी भी देश के कानून और रीति से कहीं उच्च है और संसार में रहने वाला कोई भी प्राणी उनका उल्लंघन करने या झूठा दावा करने का साहस नहीं करेगा। क्या यह परमेश्वर की प्रभुता और प्रशासन से संबंधित है? इस संसार में, स्पष्ट प्रशासनिक आदेश, स्पष्ट स्वर्गीय आज्ञाएं और स्पष्ट नियम हैं। विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न क्षेत्रों में, दूत पूर्णरुप से अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं, और कायदे कानून का पालन करते है, क्योंकि एक स्वर्गीय आज्ञा के उल्लंघन का परिणाम क्या होता है, इसे वे भली-भांति जानते हैं। वे भली-भांति जानते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर दुष्टों को दण्ड और भले लोगों को इनाम देता है, और वह किस प्रकार चीज़ पर शासन करता है, वह किस प्रकार हर चीज़ पर अधिकार रखता है। और, इसके अतिरिक्त, वे स्पष्ट रुप से देखते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर अपने स्वर्गीय आदेशों और नियमों का पालन कराता है। … इसका अस्तित्व भौतिक संसार के साथ-साथ है, साथ ही परमेश्वर और प्रशासन के अधीन है। भौतिक संसार की अपेक्षा इस संसार के लिये परमेश्वर का प्रशासन और प्रभुत्व बहुत सख्त है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "परमेश्वर स्वयं, अद्वितीय X" से
मानवता एवं विश्व की नियति सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के साथ घनिष्ठता से गुथी हुई हैं, और सृष्टिकर्ता के आयोजनों से अविभाज्य रूप से बंधी हुई हैं; अंत में, उन्हें सृष्टिकर्ता के अधिकार से धुनकर अलग नहीं किया जा सकता है। सभी चीज़ों के नियमों के माध्यम से मनुष्य सृष्टिकर्ता के आयोजनों एवं उसकी संप्रभुता को समझ पाता है; जीवित बचे रहने के नियमों के माध्यम से वह सृष्टिकर्ता के शासन का एहसास करता है; सभी चीज़ों की नियति से वह उन तरीकों के विषय में निष्कर्ष निकालता है जिनसे सृष्टिकर्ता अपनी संप्रभुता का इस्तेमाल करता है और उन पर नियन्त्रण करता है; और मानव प्राणियों एवं सभी चीज़ों के जीवन चक्रों में मनुष्य सचमुच में सभी चीज़ों के लिए सृष्टिकर्ता के आयोजनों और इंतज़ामों का अनुभव करता है और सचमुच में इस बात का साक्षी बनता है कि किस प्रकार वे आयोजन और इंतज़ाम सभी सांसारिक विधियों, नियमों, और संस्थानों, तथा सभी शक्तियों और ताकतों का स्थान ले लेते हैं। इसके प्रकाश में, मानवजाति को यह पहचानने के लिए बाध्य किया गया है कि किसी भी सृजे गए जीव के द्वारा सृष्टिकर्ता की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है, और यह कि सृष्टिकर्ता के द्वारा पूर्व निर्धारित की गई घटनाओं और चीज़ों के साथ कोई भी शक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकती है या उन्हें बदल नहीं सकती है। यह इन अलौकिक विधियों और नियमों के अधीन है कि मनुष्य एवं सभी चीज़ें पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन बिताती हैं और बढ़ती हैं। क्या यह सृष्टिकर्ता के अधिकार का असली जीता जागता नमूना नहीं है?
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III" से
परमेश्वर वह है जो सभी चीज़ों पर राज्य करता है, और सभी चीज़ों का प्रबंधन करता है। जो कुछ है वह उसी ने रचा है, जो कुछ है उसकी व्यवस्था वही करता है और जो कुछ है उस पर वही राज्य करता है और सभी चीज़ें उसी के द्वारा पोषित होती हैं। यह परमेश्वर का पद और पहचान है। सभी चीजों के लिए और सब कुछ जो है, परमेश्वर की असली पहचान सृष्टिकर्ता की है, और वह सभी चीज़ों का शासक है। इस प्रकार की पहचान परमेश्वर की है और वह सभी बातों में अद्वितीय है। परमेश्वर की कोई भी रचना - चाहे वह मनुष्य के मध्य हो या आत्मिक दुनिया में होः किसी भी साधन या बहाने का उपयोग करके परमेश्वर की पहचान और पद को परमेश्वर का वेष धारण करने या हटाने के लिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि सभी बातों में वह ही एक है जो इस पहचान, शक्ति, अधिकार, और सभी बातों पर राज्य करने की योग्यता को अपने अधीन रखता है: हमारा अद्वितीय परमेश्वर स्वयं। वह सभी वस्तुओं के बीच में रहता और चलता है, वह सभी चीज़ों के ऊपर सर्वोच्च स्थान तक उठ सकता है, वह मनुष्य बनकर अपने आपको को लघु कर सकता है, जो मांस और लहू के हैं उनके मध्य उनके जैसा बन सकता है, लोगों से रूबरू होकर उनके सुख-दुख बांट सकता है, साथ ही जो कुछ है सब उसी की आज्ञा के अधीन है और सभी चीजें का भाग्य भी वही निश्चित करता है और किस दिशा में इसे जाना है और इसके अलावा, वह सभी मनुष्यों के भाग्य का पथ और उसकी दिशा भी वही निर्धारित करता है। ऐसे परमेश्वर की आराधना, आज्ञा पालन होना चाहिए और सभी प्राणियों को उसे जानना चाहिये। और इसलिए, इस बात की परवाह किये बगैर कि तुम किस समूह और किस प्रकार के मनुष्यों से सम्बन्ध रखते हो, अपने प्रारब्ध के लिए परमेश्वर में विश्वास करना, परमेश्वर का अनुसरण करना, परमेश्वर का आदर करना, परमेश्वर के शासन को स्वीकार करना, और परमेश्वर की व्यवस्था को स्वीकार करना ही किसी भी इंसान के लिए, मानव-मात्र के लिए एक मात्र विकल्प है, और आवश्यक विकल्प है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "परमेश्वर स्वयं, अद्वितीय X" से
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