प्रश्न 15: तुम कहते हो कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर के अंतिम दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार करना चाहिए और उसके बाद ही उनके भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो सकते हैं और स्वयं वे परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। परन्तु हम, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार, नम्रता और धैर्य का अभ्यास करते हैं, हमारे दुश्मनों से प्रेम करते हैं, हमारे क्रूसों को उठाते हैं, संसार की चीजों को त्याग देते हैं, और हम परमेश्वर के लिए काम करते हैं और प्रचार करते हैं, इत्यादि। तो क्या ये सभी हमारे बदलाव नहीं हैं? हमने हमेशा इस तरह से चाह की है, तो क्या हम भी शुद्धि तथा स्वर्गारोहण को प्राप्त नहीं कर सकते और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते?
उत्तर:
प्रभु यीशु ने अभी-अभी छुटकारे का कार्य किया है। इसलिये, पूरी कोशिश करने और बाइबल पढ़ने के बावजूद अनुग्रह के युग में इंसान पापों से मुक्त होकर अच्छा इंसान नहीं बन सका। अपनी प्रबंधन योजना के चरणों के मुताबिक, परमेश्वर अंत के दिनों में, अपने धाम से न्याय का कार्य शुरू करते हैं। इस कार्य के ज़रिये, वो इंसान को निर्मल करेंगे, उसे बदलेंगे, ताकि इंसान अपने पापों से मुक्त होकर पवित्र हो जाए। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया है, उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे के कार्य को पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना, मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। शैतान के प्रभाव से मनुष्य को पूरी तरह बचाने के लिये यीशु को न केवल पाप-बलि के रूप में मनुष्यों के पापों को लेना आवश्यक था, बल्कि मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव, जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था, से पूरी तरह मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़े कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिए जाने के बाद, एक नये युग में मनुष्य की अगुवाई करने के लिए परमेश्वर वापस देह में लौटा, और उसने ताड़ना एवं न्याय के कार्य को आरंभ किया, और इस कार्य ने मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में पहुँचा दिया। वे सब जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़ी आशीषें प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे, और सत्य, मार्ग और जीवन को प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" से)। "पापबलि के माध्यम से, मनुष्य के पापों को क्षमा किया गया है, क्योंकि सलीब पर चढ़ने का कार्य पहले से ही पूरा हो चुका है और परमेश्वर ने शैतान को जीत लिया है। परन्तु मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव अभी भी उनके भीतर बना हुआ है और मनुष्य अभी भी पाप कर सकता है और परमेश्वर का प्रतिरोध कर सकता है; परमेश्वर ने मानवजाति को प्राप्त नहीं किया है। इसीलिए कार्य के इस चरण में परमेश्वर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करने के लिए वचन का उपयोग करता है और मनुष्य से सही मार्ग के अनुसार अभ्यास करने के लिए कहता है। यह चरण पिछले चरण की अपेक्षा अधिक अर्थपूर्ण और साथ ही अधिक लाभदायक भी है, क्योंकि अब वचन ही है जो सीधे तौर पर मनुष्य के जीवन की आपूर्ति करता है और मनुष्य के स्वभाव को पूरी तरह से नया बनाए जाने में सक्षम बनाता है; यह कार्य का ऐसा चरण है जो अधिक विस्तृत है। इसलिए, अंत के दिनों में देहधारण ने परमेश्वर के देहधारण के महत्व को पूरा किया है और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना का पूर्णतः समापन किया है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (4)" से)। परमेश्वर के वचनों से हम समझ सकते हैं कि प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य ने, अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार-कार्य की नींव डाली और अंत के दिनों में, न्याय का कार्य परमेश्वर के उद्धार-कार्य का मूल और केंद्र-बिंदु है। ये इंसान के उद्धार की चाभी, सबसे अहम हिस्सा है। अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य के अनुभव के ज़रिये, हमारे पापों को क्षमा कर दिया जाता है, लेकिन हमें उनसे मुक्त नहीं किया जा सकता और न ही हम पवित्र हो सकते हैं। केवल अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य ही इंसानों में ज़रूरी सत्य का कार्य कर सकता है, जिसके ज़रिये इंसान परमेश्वर को जान सकता है और अपना स्वभाव बदल सकता है उनकी आराधना कर सकता है, उनके दिल तक पहुँच सकता है। और इस तरह से इंसान को बचाने के लिये, परमेश्वर अपनी प्रबंधन योजना को पूरा करते हैं।
"राज्य के सुसमाचार पर उत्कृष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से
यदि इंसान केवल प्रभु यीशु के अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करे, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकार न करे, तो फिर वो अपने पापों से मुक्त नहीं हो पाएगा, स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा नहीं कर पाएगा और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएगा। इसमें कोई शक नहीं है! क्योंकि अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने अपना छुटकारे का कार्य किया था। उस समय लोगों के स्तर को देखते हुए, प्रभु यीशु ने उन्हें केवल पश्चाताप का मार्ग दिया, और लोगों से बस कुछ प्राथमिक सच्चाइयों को समझने और पथ पर चलने के लिये कहा। मिसाल के तौर पर: उन्होंने लोगों से कहा कि वो अपने पापों को स्वीकार करें, पश्चाताप करें और क्रूस धारण करें। उन्होंने लोगों को दीनता, संयम, प्रेम, उपवास और बपतिस्मा वगैरह सिखाया। इन्हीं कुछ सीमित सच्चाइयों को उस ज़माने के लोग समझ और हासिल कर सकते थे। प्रभु यीशु ने उनके सामने कभी भी ऐसी सच्चाई नहीं कही, जिनका संबंध जीवन स्वभाव को बदलने, बचाए जाने, निर्मल होने और पूर्ण होने से था, क्योंकि उस ज़माने में लोगों का स्तर ऐसा नहीं था कि वो उन सच्चाइयों को धारण कर पाते। इंसान को तब तक इंतज़ार करना चाहिये जब तक प्रभु यीशु अंत के दिनों में अपना कार्य करने के लिये लौटकर नहीं आते। वो दूषित इंसान को बचाने और उसे पूर्ण बनाने के लिये वो सारी सच्चाइयां प्रदान करेंगे, जो इंसान को बचाने और दूषित इंसान की ज़रूरतों के लिये परमेश्वर की प्रबंधन योजना के अनुसार हैं। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रभु यीशु के वचन बहुत स्पष्ट हैं। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने दूषित लोगों को उन्हें बचाए जाने के लिये आवश्यक सत्य कभी नहीं बताए। अभी भी बहुत-सी गहरे और ऊंचे सत्य हैं, यानी प्रभु यीशु ने ऐसे बहुत-से सत्य इंसान को नहीं बताए जिनसे इंसान अपने शैतानी स्वभाव से मुक्त हो सकता है और पवित्रता हासिल कर सकता है, और ऐसे सत्य परमेश्वर को जानने के लिये इंसान को जिनका पालन करना ज़रूरी है। इसलिये, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में वो सारे सत्य व्यक्त कर देते हैं, जो इंसान को बचाने के लिये ज़रूरी हैं। जो लोग अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करते हैं, वे उनके न्याय, ताड़ना और निर्मलता के लिये इन सत्य का प्रयोग करते हैं। अंत में इन लोगों को पूर्ण बना दिया जाएगा और परमेश्वर के राज्य में ले जाया जाएगा। और इस तरह से इंसान को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना पूरी हो जाएगी। अगर लोग केवल प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करते हैं, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करते, तो वे कभी भी न तो सत्य को पा सकेंगे और न ही अपने स्वभाव को बदल पाएंगे। वे कभी भी परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने वाले नहीं बन पाएंगे और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने योग्य नहीं बन पाएंगे।
अंत के दिनों के लोगों को शैतान ने बुरी तरह से दूषित कर दिया है; उनमें शैतान का ज़हर भरा है। उनका नज़रिया, जीने के सिद्धांत, जीवन के प्रति दृष्टिकोण वगैरह, सब सत्य के विरुद्ध और परमेश्वर से बैर रखने वाले हैं। सभी लोग बुराई को पूजते हैं और परमेश्वर के दुश्मन बन गए हैं। अगर लोग पूरी तरह से दूषित शैतानी स्वभाव के हैं, और वचनों के ज़रिये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय, ताड़ना, ताप और निर्मलता की अनुभूति नहीं करते है, तो वो शैतान से विद्रोह करके उनके प्रभाव से खुद को आज़ाद कैसे करेंगे? वो परमेश्वर को कैसे पूज सकते हैं, बुराई से कैसे दूर रह सकते हैं और परमेश्वर की इच्छा को कैसे पूरा कर सकते हैं? हमने देखा है कि बहुत से लोग प्रभु यीशु में बरसों से भरोसा करते आ रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कि वो लोग पूरी गर्मजोशी से यीशु की गवाही देते हैं वो उद्धारक है और बरसों से मेहनत भी कर रहे हैं, लेकिन वो परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को नहीं जान पाए और न ही उन्हें पूज पाए, जिस कारण वो अभी भी परमेश्वर के कार्य को जाँचते हैं, निंदा करते हैं, नकारते हैं और जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपना कार्य करते हैं तो वे परमेश्वर के लौटने को नामंज़ूर कर देते हैं। वे तो अंत के दिनों में मसीह के लौटने पर उन्हें फिर से सूली पर चढ़ा देते हैं। इससे ये पता चलता है कि अगर इंसान सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकार नहीं करता है तो, इंसान के पापों और शैतानी स्वभाव को कभी भी सुधारा नहीं जा सकेगा। परमेश्वर के प्रति उनका विरोध उन्हें बर्बाद कर देगा। इस सच्चाई को कोई नहीं झुठला सकता! विश्वासियों में से जो लोग ईमानदारी से अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करेंगे, केवल वे ही लोग जीवन की तरह सत्य को पाएंगे, स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करने वाले बनेंगे, परमेश्वर को जानने वाले बनेंगे और परमेश्वर के साथ उनका तालमेल होगा। वही परमेश्वर की प्रतिज्ञा को साझा करने के काबिल होंगे और उनके राज्य में ले जाए जाएंगे।
"राज्य के सुसमाचार पर उत्कृष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से
क्या यह पवित्रता जिसके बारे में धर्म के लोग बोलते हैं, और वह पवित्रता जिसकी परमेश्वर माँग करता है, एक ही हैं? वे एक ही नहीं हैं, इसलिए जिस पवित्रता की बात मनुष्य करता है, वह वास्तविक पवित्रता नहीं है। अगर यीशु पर विश्वास करने में तुम सचमुच पवित्र हो, तो क्या अब भी परमेश्वर को आखिरी दिनों का कार्य करने की आवश्यकता है? तुमने कई सालों तक यीशु पर विश्वास नहीं किया है, लेकिन अब तुम कहते हो कि तुम बदल गए हो; तो तुम सभी पादरियों पर नज़र डालो जो यीशु पर विश्वास करते हैं, और उन ईसाइयों पर जिन्होंने आजीवन परमेश्वर पर विश्वास किया है, क्या वे पवित्र हैं? उनमें से कौन पवित्र है? उनमें से कौन यह कहने की हिम्मत रखता है कि अपने समूचे जीवन में परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद, वह पवित्र है, और पूरी तरह से बचाया गया है? तुमको इस तरह का एक भी व्यक्ति नहीं मिलेगा। इन लोगों ने अपने पूरे जीवन भर परमेश्वर पर विश्वास किया है और फिर भी वे यह नहीं कह सकते कि वे पवित्र हैं। क्या यह कहने का कोई अर्थ है कि थोड़े समय के लिए ही परमेश्वर पर विश्वास करने से तुम पवित्रता प्राप्त कर चुके हो? अगर कोई बेटा या बेटी यह कहे कि "समाज में कई साल रहकर मैंने समाज को अच्छी तरह देख और जान लिया है," तो क्या यह भोलापन नहीं होगा? तुम अपने माता-पिता से और जो तुम से ज़्यादा बड़े हैं, उनसे पूछ सकते हो, कि क्या उन्होंने समाज को पूरी तरह देखा और जाना है? अगर उनमें से किसी ने भी समाज को पूरी तरह नहीं जाना है, तो क्या तुम इसे पूरा जान सकते हो? इसलिए, मनुष्य सच्चाई को नहीं समझता है, और नहीं जानता कि वास्तविक पवित्रता क्या है। उसका मानना है कि वह इने-गिने मामलों में अच्छे तरीके से व्यवहार करता है, वह परमेश्वर पर विश्वास करता है और लड़ाई-झगड़े में नहीं पड़ता, वह चीज़ों को नहीं चुराता, वह लोगों को शाप नहीं देता, वह शराब नहीं पीता है, और इसलिए वह पवित्र है। यह पवित्रता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। वास्तविक पवित्रता का सम्बन्ध किससे है? इसमें भी एक सच शामिल है। सच्ची पवित्रता का अर्थ शैतान के विषों से मुक्त होना है। मनुष्यों के दिल में शैतान का तर्क, शैतान का दर्शन, शैतान की सभी प्रकार की भ्रांतियाँ, मनुष्य के जीवन के लिए शैतान के नियम, जीवन के प्रति और जीवन के मूल्यों के प्रति शैतानी दृष्टिकोण, क्या ये शैतान के विष नहीं हैं? मनुष्य के पाप और परमेश्वर के खिलाफ उसके प्रतिरोध को क्या नियंत्रित करता है? यह मनुष्य के भीतर रहे शैतान के विष ही हैं जो मनुष्य को पाप करने के लिए उत्तेजित करते हैं, और दूसरों का न्याय करने, गलत समझने, और अवज्ञा करने के लिए उकसाते हैं। मनुष्य के पाप का स्रोत मनुष्य के भीतर रही शैतान की प्रकृति है। परमेश्वर की दृष्टि में शैतान से संबंधित सभी चीज़ें गन्दी और बुरी हैं, और इसलिए मनुष्य जिसके भीतर शैतान के सभी प्रकार के जहर हैं, एक गंदा और बुरा पतित व्यक्ति बन गया है। शैतान के ये जहर मनुष्य के अंदर जड़ फैला चुके हैं, फल-फूल पैदा कर चुके हैं, और ये मनुष्य अब एक भ्रष्ट मानव जाति, एक गन्दी मानव जाति, और एक बुरी मानव जाति बन गए हैं। इसलिए यह एक तथ्य है कि मानव जाति परमेश्वर का विरोध करती है और परमेश्वर की एक शत्रु है। इस तथ्य के मुताबिक, हम किस समस्या को देखते हैं जिसका हल मनुष्य को करना चाहिए ताकि उसमें असली पवित्रता आ सके? उसे शैतान के विषों का समाधान करने की जरूरत है, उसे शैतान के जीवन के दृष्टिकोण और जीवन के मूल्यों का, शैतान के तर्क का, शैतान के नियमों का, शैतान की सभी प्रकार की भ्रांतियों का समाधान करना होगा। यदि इन चीजों को मनुष्यों के दिलों से पूरी तरह से हटा दिया जाता है, तो यह सचमुच शुद्ध होना है। अगर इन बातों को मनुष्यों के दिलों से निष्कासित नहीं किया जाता है, तो मनुष्य फिर भी परमेश्वर का विरोध करने, परमेश्वर का न्याय करने, परमेश्वर का शत्रु बनने और परमेश्वर को धोखा देने में सक्षम रहेगा। इसलिए, मानव जाति को केवल तभी एक सचमुच पवित्र मानव जाति माना जा सकता है, जब शैतान की चीज़ों से छुटकारा मिल जाता है, और उन्हें सुलझा दिया जाता है। अच्छा, तो क्या यीशु पर विश्वास करके शैतान के विषाक्त पदार्थों का समाधान करना संभव है? क्या यीशु में विश्वास जीवन के प्रति मनुष्य के दृष्टिकोण को और जीवन के मूल्यों को बदल सकता है? क्या यह परमेश्वर का अनुसरण करने और परमेश्वर का विरोध न करने के लिए मनुष्य की अगुआई कर सकता है? क्या यह परमेश्वर को सचमुच जानने और परमेश्वर की उपासना करने में मनुष्य का नेतृत्व कर सकता है? यीशु में विश्वास करके तुम केवल अपने पापों को क्षमा करा चुके हो; मनुष्य की भ्रष्टता के वास्तविक समाधान पर पहुँचने और पवित्र बनने के लिए, मनुष्य को आखिरी दिनों में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य की ज़रूरत होती है। आखिरी दिनों के कार्य के बिना, भ्रष्ट मानव जाति शुद्धि प्राप्त नहीं कर सकती है। शुद्धि सिर्फ पाप की माफी के माध्यम से प्राप्त नहीं होती है, बल्कि सच्ची शुद्धि न्याय और ताड़ना द्वारा मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त करने के माध्यम से प्राप्त की जाती है। जब मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का समाधान हो जाता है, तो वह अब परमेश्वर का और विरोध नहीं करता, वह परमेश्वर का अनुसरण करने में सक्षम हो जाता है, वह अपने दिल में परमेश्वर से प्रेम कर सकता है, और वह सच्चाई को प्यार करने में सक्षम होता है; केवल इस प्रकार के मनुष्य पवित्र मानव जाति हैं। कुछ लोग पवित्रता किसे कहा जाता है यह समझने में विफल रहते हैं, वे मानते हैं कि पवित्र होने का मतलब चोरी नहीं करना, लूट-पाट नहीं करना, तोड़-फोड़ नहीं करना है, और पवित्रता का अर्थ है दूसरों को नहीं मारना और दूसरों को शाप नहीं देना, क्या ये सही है? यह निशाने से, अर्थात उद्देश्य से, बहुत दूर है और वे समस्या को केवल उसके बाहरी स्वरूप से देख रहे हैं। क्योंकि धर्म के लोगों के पास सच्चाई नहीं होती है, वे सभी इसी दिशा में सोचते हैं। वे चीजों के प्रति बहुत एकपक्षीय दृष्टिकोण रखते हैं, वे स्रोत को नहीं देखते हैं, वे तत्व को नहीं देखते हैं; इसलिए, यह आश्चर्यजनक नहीं है कि ये लोग इस तरह से सोच सकते थे। कुछ लोग कहते हैं कि "प्रभु यीशु अभी तक नहीं लौटा है, अब भी पवित्रता का अनुसरण करने का समय है," क्या ऐसी बात मान्य है या नहीं? उनसे पूछो: "यदि तुम्हारे पास पवित्रता का अनुसरण करने का समय है, तो तुम्हारे अपने अनुमान के आधार पर पवित्रता तक पहुँचने से पहले तुम्हें लगभग और कितना समय चाहिए? क्या तुम एक अनुमान दे सकते हो?" तुम उनसे आगे पूछ सकते हो: "अगर प्रभु यीशु पांच साल में नहीं आता है, तो क्या तुम पवित्र हो सकोगे" "पांच साल नहीं चलेंगे।" "अगर वह दस साल में भी न आए, तो क्या तुम पवित्र हो सकते हो?" "दस साल, शायद नहीं।" "बीस वर्षों के बारे में क्या ख्याल है?" "यह काफी पर्याप्त समय लगता है।" "अहा, क्या तुम देख सकते हो कि जिन लोगों के पास तुमसे बेहतर विश्वास है, वे पवित्र हैं या नहीं? क्या वे जिन्होंने आजीवन परमेश्वर पर विश्वास किया है, वे पवित्र हैं या नहीं? क्या तुम तथ्यों के आधार पर, न कि अपनी कल्पना के आधार पर, बात कर सकते हो?" क्या इस तरह से बोलना सही है?
"सुसमाचार फैलाने के बारे में विभिन्न स्थानों से प्रश्नों के उत्तर" केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास के द्वारा ही कोई बचाया जा सकता है में
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