प्रभु यीशु मसीह के करोड़ों अनुयायियों के समान हम बाइबल की व्यवस्थाओं और आज्ञाओं का पालन करते हैं, प्रभु यीशु मसीह के विपुल अनुग्रह का आनंद लेते हैं, और प्रभु यीशु मसीह के नाम पर एक साथ इकट्ठे होते हैं, प्रार्थना, प्रशंसा और सेवा करते हैं—और यह सब हम प्रभु की देखभाल और सुरक्षा के अधीन करते हैं। हम कई बार निर्बल, और कई बार बलवान होते हैं। हम विश्वास करते हैं कि हमारे सभी कार्य प्रभु की शिक्षाओं के अनुसार हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं, कि तब, हम स्वयं भी स्वर्ग में पिता की इच्छा के अनुसार आज्ञाकारिता के मार्ग पर चलने में विश्वास करते हैं। हम प्रभु यीशु के लौटने की, प्रभु यीशु के महिमामय आगमन की, पृथ्वी पर हमारे जीवन के अंत की, परमेश्वर के राज्य के प्रकट होने की, और उन सब बातों की अभिलाषा करते हैं जिनकी प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में भविष्यवाणी की गई थी: प्रभु आता है, आपदा लाता है, भलों को पुरस्कार और दुष्टों को दण्ड देता है, एवं उन सभी को जो उनका अनुसरण करते हैं और उनकी वापसी का स्वागत करते हैं, प्रभु से मिलने के लिए हवा में ले जाता है। हर बार जब हम इस बारे में सोचते हैं, तो हम भावनाओं से अभिभूत हो जाते हैं। हम आभारी हैं कि हम अंत के दिनों में जन्मे हैं, और प्रभु के आगमन के गवाह बनने के लिए बहुत सौभाग्यशाली हैं। यद्यपि हमने उत्पीड़न सहा है, परन्तु वह "बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा" के बदले में है; यह कितना बढ़िया आशीष है! यह समस्त अभिलाषा और प्रभु द्वारा प्रदान किया गया अनुग्रह, हमें प्रार्थना में अक्सर शांत बनाता है, और अक्सर हमें एक साथ लाता है। शायद अगले वर्ष, शायद कल, या शायद उससे भी पहले, जब लोग उसकी आशा नहीं करते हैं; प्रभु अचानक आएगा, और लोगों के उस समूह के बीच प्रकट होगा जो मनोयोग पूर्वक उनकी प्रतीक्षा करता आ रहा है। प्रभु के प्रकटन को देखने वाला प्रथम समूह बनने, कोई पीछे न रहना चाहते हुए, उनमें से एक बनने के लिए जिन्हें स्वर्गारोहण किया जाएगा, हम सब एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इस दिन के आगमन के लिए हमने, लागत की परवाह किए बिना, सब कुछ दे दिया है। कुछ ने अपनी नौकरियाँ त्याग दी हैं, कुछ ने अपने परिवारों का परित्याग कर दिया है, कुछ ने विवाह नहीं किया है, और यहाँ तक कि कुछ ने अपनी सारी बचत दान कर दी है। कैसी निःस्वार्थ भक्ति है! ऐसी ईमानदारी और निष्ठा तो अवश्य बीते युगों के संतों से भी बढ़कर होनी चाहिए! जिस प्रकार प्रभु जिसे चाहे अनुग्रह प्रदान करता है, एवं जिस पर चाहे, उस पर दया करता है; वैसे ही हमारा विश्वास है कि हमारी भक्ति और लागत, पहले ही प्रभु की दृष्टि द्वारा देखे जा चुके हैं। इसी प्रकार, हमारे हृदयों से निकली प्रार्थनाएँ भी उनके कानों तक पहुँच चुकी हैं, और हमें भरोसा है कि प्रभु हमारी भक्ति के लिये हमें पुरस्कार देगा। इसके अलावा, परमेश्वर सृष्टि की रचना करने से पहले हमारे लिए अनुग्रहकारी थे और परमेश्वर के हमें दिए गए आशीषों और वादों को हमसे कोई नहीं छीनेगा। हम सब भविष्य की योजना बना रहे हैं, और यह मानकर चलते हैं कि हमारी भक्ति और खर्च प्रभु से मिलने हेतु हमारे हवा में स्वर्गारोहण के लिए सौदेबाजी के चिप्स या स्टॉक हैं। इतना ही नहीं, जरा सी भी हिचक के बिना, हम सभी राष्ट्रों, और सभी लोगों की अध्यक्षता करते हुए, या राजाओं के रूप में शासन करते हुए स्वयं को भविष्य के सिंहासन पर रखते हैं। हम मानकर चलते हैं कि यह सब दिया जा चुका है, कुछ ऐसा जिसकी अपेक्षा करनी चाहिए।
हम उन सबसे घृणा करते हैं जो प्रभु यीशु के विरूद्ध हैं, अंत में, उन सब का सत्यानाश होगा। प्रभु यीशु के उद्धारकर्ता होने पर विश्वास न करने के लिए उनसे किसने कहा? निस्संदेह, ऐसे अवसर आते हैं जब हम प्रभु यीशु से सीखते हैं, और संसार के प्रति करुणा का भाव रखते हैं, क्योंकि वे नहीं समझते हैं, और हमें उनके प्रति सहिष्णु और क्षमावान होना चाहिए। हर चीज जो हम करते हैं, वह बाइबल के वचनों के अनुसार है, क्योंकि प्रत्येक वह चीज जो बाइबल के अनुसार नहीं है, वह विधर्म है और दुष्ट संप्रदाय है। ऐसा विश्वास हम में से प्रत्येक के मन में गहराई से अंतःस्थापित है। हमारा प्रभु बाइबल में है, और यदि हम बाइबल से नहीं भटकते हैं, तो हम प्रभु से भी नहीं भटकेंगे। यदि हम इस सिद्धांत का पालन करते हैं, तो हम बचा लिए जाएँगे। हम जब भी एक दूसरे को प्रेरित करते और सहारा देते हैं और हर बार जब हम एक साथ इकट्ठा होते हैं, तो हम आशा करते हैं कि हर बात जो हम कहते हैं, और हर काम जो हम करते हैं वह प्रभु की इच्छा के अनुसार हो, और जिसे प्रभु के द्वारा स्वीकार किया जा सकता हो। हमारे माहौल की गंभीर शत्रुता के बावजूद, हमारे हृदय आनंद से भरे हुए हैं। जब हम उन आशीषों के बारे में सोचते हैं जो आसानी से हमारी पहुँच में हैं, तो क्या ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका हम परित्याग नहीं कर सकते हैं? क्या ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे अलग होना हम सहन नहीं कर सकते हैं? ये सब अंतर्निहित है, और यह सब प्रभु की आँखों से देखा जाता है। हम जो मुट्ठी भर जरूरतमंद हैं, जिन्हें गोबर के ढेर से उठाया गया है, वैसे ही हैं जैसे कि प्रभु यीशु के सभी सामान्य अनुयायी हैं: हम स्वर्गारोहण का, और धन्य होने का, और सभी राष्ट्रों पर शासन करने का स्वप्न देखते हैं। हमारा भ्रष्ट आचरण परमेश्वर की दृष्टि में अनावृत हो जाता है, हमारी अभिलाषाएँ और हमारा लोभ परमेश्वर की दृष्टि में भर्त्सना के योग्य हैं। परन्तु तब भी यह सब इतने साधारण ढंग से, इतने तर्कपूर्ण ढंग से होता है, कि हम में से कोई सोचता भी नहीं है कि हमारी लालसा सही है या गलत, और वह सब जिसे हम पकड़े रहते हैं उसकी परिशुद्धता पर तो हम में से किसी को भी और भी कम संदेह होता है। परमेश्वर की इच्छा को कौन जान सकता है? हम उस मार्ग को खोजना, या पता लगाना, और यहाँ तक कि उस मार्ग के साथ स्वयं को संबंधित करना भी नहीं जानते हैं जिस पर मनुष्य चलता है। क्योंकि हमें केवल इस बात की चिंता रहती है कि क्या हमारा स्वर्गारोहण किया जाएगा, क्या हम धन्य हो सकते हैं, क्या स्वर्ग के राज्य में हमारे लिये कोई स्थान है, और क्या जीवन की नदी के जल में या जीवन के वृक्ष के फल में हमारा कोई भाग होगा या नहीं। क्या इन चीजों को प्राप्त करने के लिए, हम प्रभु पर विश्वास नहीं करते हैं, और क्या हम प्रभु के अनुयायी नहीं हैं? हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, हमने पश्चाताप किया है और हमने मदिरा का कड़वा प्याला पिया है, और हमने अपनी पीठ पर सलीब को रखा है। कौन कह सकता है कि हमने जो कीमत अदा की है, वह प्रभु के द्वारा स्वीकार नहीं की जाएगी? कौन कह सकता है कि हमने पर्याप्त तेल तैयार नहीं किया है? हम वे मूर्ख कुँवारियाँ, या उनमें से एक नहीं बनना चाहते हैं जिन्हें त्याग दिया गया है। इसके अलावा, हम प्रायः प्रार्थना करते हैं और झूठे मसीहों से हमें धोखा खाने से बचाकर रखने के लिए प्रभु से कहते हैं क्योंकि बाइबल में यह कहा गया है, कि "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें।" (मत्ती 24:23-24) हम सभी ने बाइबल के इन छंदों को स्मृति में संजो कर रखा है, हम उन्हें आरंभ से अंत तक जानते हैं, और हम उन्हें, जीवन के समान, अमूल्य ख़जाना, और अपने स्वर्गारोहण और उद्धार के लिए परिचय-पत्र के रूप में देखते हैं...
हजारों वर्ष हो गए, जो जीवित थे, वे अपनी अभिलाषाएँ और स्वप्न ले कर मर चुके हैं, और वास्तव में कोई नहीं जानता है कि वे स्वर्ग के राज्य में चले गए हैं या नहीं। मृतक लौटते हैं, परंतु वे उन सभी कहानियों को भूल जाते हैं जो कभी घटित हुई, और अब भी अपने पूर्वजों की शिक्षाओं और मार्गों का अनुसरण करते हैं। और इसलिए, जैसे-जैसे वर्ष बीतते हैं और दिन गुजरते हैं, कोई नहीं जानता कि हमारे प्रभु यीशु, हमारे परमेश्वर, हम जो करते हैं, उसे वास्तव में स्वीकार करते हैं या नहीं। हम केवल उस परिणाम की आशा करते और अनुमान लगाते हैं जो कि होगा। मगर परमेश्वर ने आरंभ से अब तक मौन रखा है, कभी भी हमारे सामने प्रकट नहीं हुए, या हमसे बातचीत नहीं की। और इसलिए, हम बाइबल और चिह्नों के आधार पर परमेश्वर की इच्छा और स्वभाव पर राय बनाते हैं और समझने का प्रयत्न करते हैं। हम परमेश्वर के मौन के आदी हो चुके हैं; हम सोचने के अपने तरीके का उपयोग करके सही और गलत को समझने और मापने के आदी हो चुके हैं; हम परमेश्वर की हमसे माँग के स्थान पर अपने ज्ञान, अवधारणाओं और नैतिक आचरणों का उपयोग करने के आदी हो चुके हैं; हम परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेने के आदी हो चुके हैं; हम आदी हो चुके हैं कि जब भी हमें आवश्यकता होती है परमेश्वर सहायता प्रदान करते हैं; हम सब बातों के लिये परमेश्वर के सामने हाथ फैलाने और उनके बारे में परमेश्वर को आज्ञा देने के आदी हो गये हैं; पवित्र आत्मा हमारी किस प्रकार से अगुवाई करता है इस बात पर ध्यान न देते हुए हम सिद्धांतों का अनुसरण करने के आदी हो चुके हैं; इसके अलावा, हम उन दिनों के आदी हो चुके हैं जब हम अपने मालिक होते थे। हम उस तरह के किसी परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, जिससे हम कभी नहीं मिले हैं। इस प्रकार के प्रश्न कि उसका स्वभाव किसके जैसा है, उसकी सम्पत्ति और व्यक्तित्व कैसे हैं, उसकी छवि किसके जैसी है, जब वह आएगा तब हम उसे जान जाएँगे या नहीं इत्यादि—इनमें से कोई भी महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि वह हमारे हृदयों में है, कि हम सब उसकी प्रतीक्षा करते हैं, और यह कि हम कल्पना कर पाते हैं कि वह किसके जैसा है। हम अपनी आस्था की सराहना करते हैं, और अपनी आध्यात्मिकता को संजो कर रखते हैं। हम सब बातों को कूड़ा-करकट समझते हैं, और उन सबको अपने पाँवों से कुचलते हैं। क्योंकि हम महिमामय प्रभु के अनुयायी हैं, इस बात से फर्क नहीं नहीं पड़ता है कि हमारी यात्रा कितनी लंबी और श्रमसाध्य है, इस बात से फर्क नहीं नहीं पड़ता है कि हम पर कितनी कठिनाईयाँ और खतरे पड़ते हैं, हमारे कदमों को कोई चीज नहीं रोक सकती है क्योंकि हम प्रभु का अनुसरण करते हैं। "फिर उसने मुझे बिल्लौर की सी झलकती हुई, जीवन के जल की नदी दिखाई, जो परमेश्वर और मेम्ने के सिंहासन से निकलकर उस नगर की सड़क के बीचों बीच बहती थी। नदी के इस पार और उस पार जीवन का वृक्ष था; उसमें बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता था; और उस वृक्ष के पत्तों से जाति-जाति के लोग चंगे होते थे। फिर श्राप न होगा, और परमेश्वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा और उसके दास उसकी सेवा करेंगे: वे उसका मुँह देखेंगे; और उसका नाम उनके माथों पर लिखा हुआ होगा। फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले की अवश्यकता न होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उन्हें उजियाला देगा, और वे युगानुयुग राज्य करेंगे।" (प्रकाशितवाक्य 22:1-5)। हर बार जब हम इन वचनों को गाते हैं, हमारे हृदय आनंद और संतुष्टि से लबालब भर जाते हैं, और हमारी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है। हमें चुनने के लिए प्रभु का धन्यवाद, प्रभु के अनुग्रह के लिए उसका धन्यवाद। उसने अभी हमे सौ गुना दिया है, और आने वाले जगत में शाश्वत जीवन दिया है, और यदि वह आज हमसे मरने के लिए कहे, तो हम लेशमात्र शिकायत के बिना ऐसा कर देंगे। प्रभु! कृपया शीघ्र आओ! एक मिनट की भी और देरी न करो, क्योंकि हम तुम्हारे लिए बहुत उत्साहित हैं, और हमने तुम्हारे लिए सब कुछ त्याग दिया है।
परमेश्वर मौन है, और हमारे सामने कभी प्रकट नहीं हुआ, फिर भी उसका काम कभी नहीं रूका है। वह सभी भूमियों पर देखता है, सभी का नियंत्रण करता है, और मनुष्य के सभी वचनों और कर्मों को देखता है। उसका प्रबंधन चरणबद्ध है और उसकी योजना के अनुसार है। यह चुपचाप, नाटकीय प्रभाव के बिना आगे बढ़ता है, मगर उसके चरण मनुष्यों के निकटतम बढ़ते रहते हैं, और उसका न्याय का आसन बिजली की रफ्तार से ब्रह्माण्ड में तैनात होता है, और उसके तुरंत बाद हमारे बीच उसके सिंहासन का अवरोहण होता है। वह कैसा आलीशान दृश्य है, कितनी भव्य और गंभीर झाँकी! कपोत के समान, गरजते हुए सिंह के समान, पवित्र आत्मा हम सब के बीच में पहुँचता है। वह बुद्धिमान है, वह धर्मी और आलीशान है, वह अधिकार से युक्त और प्रेम एवं करुणा से भरा हुआ, चुपचाप हमारे बीच में पहुँचता है। कोई उसके आगमन के बारे में नही जानता है, उसके आगमन का स्वागत नहीं करता है, और इसके अलावा, कोई नहीं जानता है कि वह सब क्या करेगा। मनुष्य का जीवन अपरिवर्तित रहता है; उसका हृदय भिन्न नहीं हो जाता है, और दिन सामान्य दिनों के समान बीतते जाते हैं। परमेश्वर हमारे बीच एक साधारण मानव के समान, एक अत्यधिक महत्वहीन अनुयायी और एक साधारण विश्वासी के रूप में रहता है। उसके अपने काम हैं, उसके अपने लक्ष्य हैं, और इससे बढ़कर, उसमें ईश्वरत्व है जो साधारण मनुष्यों में नहीं है। किसी ने भी उसके ईश्वरत्व के अस्तित्व पर ध्यान नहीं दिया, और कोई भी उसके सार और मनुष्य के सार के बीच का अंतर नहीं समझा है। हम उसके साथ, बिना किसी बंधन और भय के, एक साथ रहते हैं, क्योंकि हम उसे एक महत्वहीन विश्वासी से अधिक नही समझते हैं। वह हमारी प्रत्येक गति को देखता है, और हमारे सभी विचार और अवधारणाएँ उसके सामने बेपर्दा हैं। उसके अस्तित्व में कोई रूचि नहीं लेता है, किसी को भी उसके कार्य के बारे में कोई कल्पना नहीं हैं, और इससे भी बढ़कर, किसी को उसके बारे में संदेह भी नहीं है कि वह कौन है। हम केवल अपने-अपने काम में लगे रहते हैं मानो उसे हमसे कुछ लेना देना नहीं है....
संयोगवश, पवित्र आत्मा उसके "माध्यम से" कुछ वचनों का एक अंश व्यक्त करता है, और यद्यपि यह अनपेक्षित महसूस हो, तब भी हम समझ जाते हैं कि यह परमेश्वर का कथन है, और हम तुरन्त उसे परमेश्वर की ओर से मानकर स्वीकार कर लेते हैं। ऐसा इसलिये हैं क्योंकि इस बात की परवाह किए बिना कि कौन इन वचनों को व्यक्त करता है, जब ये वचन पवित्र आत्मा से आते हैं, तो हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए, हम उन्हें इनकार नहीं कर सकते हैं। अगला कथन मेरे माध्यम से हो सकता है, यह तुम्हारे माध्यम से हो सकता है, या यह उसके माध्यम से हो सकता है। इस बात की परवाह किए बिना कि यह कौन है, सब परमेश्वर का अनुग्रह है। परन्तु बोलने वाला व्यक्ति चाहे जो भी हो, हमें उसकी आराधना नहीं करनी चाहिए क्योंकि चाहे और कोई भी चीज हो, वह संभवतः परमेश्वर नहीं हो सकता है; हम किसी भी तरह से ऐसे किसी साधारण मनुष्य को अपना परमेश्वर नहीं चुन सकते। हमारा परमेश्वर बहुत महान और सम्माननीय है; उसका किसी ऐसे महत्वहीन व्यक्ति द्वारा प्रतिनिधित्व नही किया जा सकता है? इससे ज्यादा और क्या, कि हमें वापस स्वर्ग के राज्य में ले जाए जाने के लिए हम सब परमेश्वर के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिये कोई भी ऐसा महत्वहीन व्यक्ति कैसे इतने महत्वपूर्ण और कठिन कार्य को करने के योग्य हो सकता है? यदि प्रभु दोबारा आता है, तो उन्हें, सबको दिखाई देते हुए, श्वेत बादलों पर अवश्य आना चाहिए। वह कितना महिमामय होगा! वह कैसे चुपचाप साधारण मनुष्यों के समूह में छिप सकता है?
और तब भी यही वह साधारण मनुष्य है जो लोगों के बीच में छुपा हुआ है जो हमें बचाने के नये काम को कर रहा है। वह हमें कोई सफाई नहीं देता है, और न बताता है कि वह क्यों आया है। वह केवल उस काम को करता है जिसे वह चरणों में, और अपनी योजना के अनुसार, करने का इरादा रखता है। उनके वचन और कथन अब बार-बार सुनाई देते हैं। सांत्वना देने, उत्साह बढ़ाने, स्मरण कराने, चेतावनी देने, से लेकर डॉटने-फटकारने, और अनुशासित करने तक; ऐसे स्वर जो नरम और दयालु हैं से ले कर, ऐसे वचनों तक जो भयंकर और राजसी हैं—वे सब मनुष्य में तरस और कँपकँपी दोनों भरते हैं। हर बात जो वह कहते हैं हमारे अंदर गहरे छिपे रहस्यों पर सीधे चोट करती है, उसके वचन हमारे हृदयों में डंक मारते हैं, हमारी आत्माओं पर डंक मारते हैं, हमें लज्जित और अपमानित कर देते हैं। हम सोचने लगते हैं कि इस व्यक्ति के हृदय का परमेश्वर हमसे वास्तव में प्रेम करता है या नहीं, और वह वास्तव में क्या करने का इरादा रखता है। शायद केवल ऐसी पीड़ा सहने के बाद ही हमारा स्वर्गारोहण किया जा सकता है? हम अपने मस्तिष्क में गणनाएँ कर रहे हैं.... आने वाली मंजिल की, और अपनी भविष्य की नियति की। तब भी हममें से कोई विश्वास नहीं करता कि परमेश्वर ने देहधारण कर लिया है और हमारे बीच में कार्य करता है। भले ही वह बहुत लंबे समय तक हमारे बीच में रहा है, भले ही उसने हमें आमने-सामने पहले ही कितने वचन बोले हैं, तब भी हम इतने साधारण व्यक्ति को अपने भविष्य का परमेश्वर स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, और ऐसे किसी महत्वहीन व्यक्ति को हम अपने भविष्य का नियंत्रण और नियति सौंपने को तो बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। उससे हम अंतहीन जीवन के जल की आपूर्ति का आनंद लेते हैं, और उसके कारण हम परमेश्वर के आमने-सामने बने रहते हैं। हम केवल स्वर्ग में प्रभु यीशु के अनुग्रह के लिए धन्यवाद देते हैं, और हमने कभी भी इस साधारण व्यक्ति की भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया जो ईश्वरत्व से युक्त है। वह तब भी अपने हृदय की आवाज व्यक्त करते हुए, मनुष्य जाति के उसके अस्वीकरण से बेसुध प्रतीत होते हुए, मनुष्य के बचपने और अज्ञानता को प्रत्यक्ष रूप से अनंतकाल के लिए क्षमा करते हुए, देह में छिपे रह कर अपने काम को विनम्रतापूर्वक करता है, और मनुष्य के उसके प्रति अनादर के बारे में सदैव सहिष्णु रहता है।
हमारी जानकारी के बिना, इस महत्वहीन व्यक्ति ने, परमेश्वर के कार्य में एक के बाद एक कदम में हमारी अगुवाई की है। हम अनगिनत परीक्षाओं से गुजरते हैं, अनगिनत ताड़नाओं के अधीन किये जाते हैं और मृत्यु द्वारा हमारी परीक्षा ली जाती है। हम परमेश्वर के धर्मी और आलीशान स्वभाव के बारे में सीखते हैं, उसके प्रेम और करुणा का आनंद भी लेते हैं; परमेश्वर के महान सामर्थ्य और विवेक की सराहना करते हैं, परमेश्वर की सुंदरता के गवाह बनते हैं, और मनुष्य को बचाने की परमेश्वर की उत्कट इच्छा को देखते हैं। इस साधारण मनुष्य के वचनों में, हमें परमेश्वर का स्वभाव और सार ज्ञात हो जाता है; परमेश्वर की इच्छा समझ जाते है, मनुष्य की प्रकृति और उसका सार ज्ञात हो जाता है, हम उद्धार और पूर्ण होने का मार्ग जान जाते हैँ। उसके वचन हमारी मृत्यु का कारण बनते हैं, और हमारे पुनर्जन्म का कारण बनते हैं; उसके वचन हमें राहत देते हैं, मगर हमें ग्लानि और कृतज्ञता की भावना के साथ नष्ट हुआ भी छोड़ देते हैं; उसके वचन हमें आनंद और शांति देते हैं, परंतु बड़ी पीड़ा भी देते हैं। कभी-कभी हम उसके हाथों में वध हेतु मेम्नों के समान होते हैं, कभी-कभी उसकी आँख के तारे के समान होते हैं, और उसके प्रेम एवं स्नेह का आनंद उठाते हैं; कभी-कभी हम उसके शत्रु के समान होते हैं, उसकी आँखों में उसके क्रोध द्वारा भस्म हो जाते हैं। हम उसके द्वारा बचायी गई मानव जाति हैं, हम उसकी दृष्टि में भुनगे हैं, और हम खोई हुई भेड़ें हैं जिन्हें ढूँढने में वह दिन और रात लगा रहता है। वह हम पर दया करता है, वह हमें तुच्छ जानता है, वह हमें ऊपर उठाता है, वह हमें आराम देता है और प्रोत्साहित करता है, वह हमारा मार्गदर्शन करता है, वह हमें प्रबुद्ध करता है, वह हमारी ताड़ना करता है और हमें अनुशासित करता है, और यहाँ तक कि वे हमें श्राप भी देता है। वह रात-दिन हमारी चिंता करता है, वह रात-दिन हमारी सुरक्षा और परवाह करता है, वह हमारा पक्ष कभी नहीं छोड़ता है, और वह अपनी सारी देखभाल हमारे लिए लगा देता है और हमारे लिए किसी भी कीमत का भुगतान करता है। इस छोटी और साधारण सी देह के वचनों में, हमने परमेश्वर की संपूर्णता का आनंद लिया है, और उस मंजिल को देखते हैं जो परमेश्वर ने हमें प्रदान की है। इसके बावजूद, थोथा घमंड अभी भी हमारे दिलों के अंदर पीछा करता है, और हम तब भी ऐसे किसी व्यक्ति को अपने परमेश्वर के रूप में स्वीकार करने के लिए सक्रिय रूप से तैयार नहीं हैं। यद्यपि उसने हमें बहुत अधिक दिव्य-भोजन (मन्ना), बहुत अधिक आनंद दिया है, किंतु इनमें से कोई भी हमारे हृदय से प्रभु के स्थान को नहीं हड़प सकता है। हम इस व्यक्ति की विशिष्ट पहचान और हैसियत का केवल बड़ी अनिच्छा के साथ आदर करते हैं। यदि वह हमसे, यह अभिस्वीकृत करवाने के लिए कि वे परमेश्वर है, बात नहीं करता है, तो हम उसे ऐसे परमेश्वर के रूप में अभिस्वीकृत करना अपने ऊपर कभी नहीं लेंगे जो कि शीघ्र आने वाला है मगर हमारे बीच में बहुत लंबे समय से काम करता आ रहा है।
परमेश्वर के कथन लगातार चल रहे हैं और वह विभिन्न तरीकों और परिप्रेक्ष्यों का उपयोग करके हमें चेतावनी देता है कि हम क्या करें और अपने हृदय की आवाज को अभिव्यक्त करता है। उसके वचनों में जीवन की सामर्थ्य है, और उसके शब्द हमें वह मार्ग दिखाते हैं जिन पर हमें चलना चाहिए, और हमें समझने देते हैं कि सत्य क्या है। हम उसके वचनों की ओर खिंचना शुरू कर देते हैं, हम उसके लहजे और तरीके पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं और अवचेतन मन में इस साधारण व्यक्ति के हृदय की आवाज में रुचि लेना आरंभ कर देते हैं। हमारी मंज़िल और उद्धार के लिए, वह हमारे लिए श्रमसाध्य प्रयास करता है, नींद और भोजन गँवा देता है, हमारे लिए रोता है, हमारे लिए आँहें भरता है, हमारे लिए बीमारी में कराहता है, अपमान सहता है, और हमारी संवेदनहीनता और विद्रोहीपन के कारण उसका हृदय लहूलुहान होता है और आँसू बहाता है; उसका यह व्यक्तित्व और आधिपत्य एक साधारण मनुष्य से बढ़ कर है, और कोई भी भ्रष्ट मनुष्य उन्हें धारण कर या पा नहीं सकता है। उसमें जो सहनशीलता और धैर्य है, वह किसी साधारण मनुष्य में नहीं हो सकता है, और उसके जैसा प्रेम किसी सृजित प्राणी में नहीं हो सकता है। उसके अलावा अन्य कोई भी हमारे सभी विचारों को नहीं जान सकता है, या हमारे स्वभाव और सार को नहीं समझ सकता है, या मानवजाति के विद्रोहीपन और भ्रष्टता का न्याय कर सकता है, या स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से हमसे बातचीत या हमारे बीच में कार्य कर सकता है। उसके अलावा अन्य कोई परमेश्वर के अधिकार, विवेक और प्रतिष्ठा को धारण नहीं कर सकता है; परमेश्वर का स्वभाव और उसके पास क्या है और जो वह है, अपनी संपूर्णता में, प्रवाहित होते हैं। उसके अलावा कोई अन्य हमें मार्ग दिखा या प्रकाश तक ले जा नहीं सकता है। उसके अलावा कोई अन्य परमेश्वर के उन रहस्यों को प्रकट नहीं कर सकता है जिन्हें परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ से अब तक प्रकट नहीं किया है। उसके अलावा कोई अन्य हमें शैतान के बंधन और हमारे भ्रष्ट स्वभाव से बचा नहीं सकता है। वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और परमेश्वर के हृदय की आवाज़, परमेश्वर के सभी प्रोत्साहनों, और मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर के न्याय के सभी वचनों को व्यक्त करता है। उसने एक नया युग, एक नया काल आरंभ किया है, और वह एक नया स्वर्ग और पृथ्वी, नया काम लाया है, और वह हमारे लिए नई आशा लाया है, और हमारे उस जीवन का अंत किया है जिसे हम अस्पष्टता में जी रहे थे, और हमें उद्धार के मार्ग को पूर्ण रूप से देखने दिया है। उसने हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व को जीता है, हमारे हृदयों को जीता है। उस क्षण के बाद से, हमारे मन सचेत हो गए हैं, और हमारी आत्माएँ पुर्नजीवित होती हुई प्रतीत होने लगी हैं: यह साधारण, महत्वहीन व्यक्ति, जो हमारे बीच में रहता है, जिसे हमने लंबे समय तक तिरस्कृत किया है—क्या वह प्रभु यीशु नहीं हैं; जो सदैव हमारे विचारों में हैं और जिसके लिए हम रात-दिन लालायित रहते हैं? यह वही है! यह वास्तव में वही है! वह हमारा परमेश्वर है! वह सत्य, मार्ग, और जीवन है! उसने ही हमें फिर से जीने की, ज्योति देखने की अनुमति दी है, और हमारे हृदयों को भटकने से रोका है। हम परमेश्वर के घर में लौट आए हैं, हम उसके सिंहासन के सामने लौट आए हैं, हम उसके आमने-सामने हैं, हमने उसका मुखमंडल देखा है, और आगे का मार्ग देखा है। इस समय हमारे हृदयों को परमेश्वर ने पूरी तरह से जीत लिया है, हमें अब और संदेह नहीं कि वह कौन है, और हम उसके कार्य और वचन का अब और विरोध नहीं करते हैं, और हम उसके सामने पूरी तरह से नतमस्तक हो गए हैं। बस अपने शेष जीवन भर परमेश्वर के पद चिन्हों का अनुसरण करने, और उसके द्वारा पूर्ण किए जाने, उसके अनुग्रह का बदला चुकाने, और हमारे प्रति उसके प्रेम का बदला चुकाने, और उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करने और उसके कार्य में सहयोग करने, और वह सब करने जो उसके द्वारा हमें सौंपे गए कार्य को पूरा करने के लिए हम कर सकते हैं, के सिवाय हमारी और कोई चाह नहीं है।
परमेश्वर के द्वारा जीता जाना मार्शल आर्ट की प्रतिस्पर्धा के समान है।
परमेश्वर का प्रत्येक वचन हमारे मर्मस्थल पर चोट करता है, और हमें दुःखी एवं भयभीत कर देता है। वह हमारे विचारों को प्रकट करता है, हमारी कल्पनाओं को प्रकट करता है, और हमारे भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करता है। वह सब जो हम कहते और करते हैं, और हमारे प्रत्येक विचार और सोच, हमारा स्वभाव और सार उसके वचनों के द्वारा प्रकट होता है, हमें अपमानित करता हुआ और भय से काँपता हुआ छोड़ देता है। हमें यह महसूस कराते हुए कि हम पूरी तरह उजागर कर दिए गए हैं, और यहाँ तक कि पूरी तरह से राजी महसूस कर करवाते हुए, वह हमें हमारे सभी कार्यों, हमारे लक्ष्यों और अभिप्रायों को, और यहाँ तक कि हमारे भ्रष्ट स्वभाव जिसे हमने कभी खोजा नहीं है, के बारे में भी बताता है। परमेश्वर अपने प्रति हमारे विरोध के लिए हमारा न्याय करता है, अपनी ईशनिंदा और तिरस्कार के कारण हमारी ताड़ना करता है, और हमें यह अनुभव करवाता है कि उसकी दृष्टि में हम मूल्यहीन हैं, और हम ही जीवित शैतान हैं। हमारी आशाएँ चूर-चूर हो जाती हैं, हम उससे अविवेकपूर्ण माँगें करने और उसके सामने ऐसा प्रयास करने का साहस अब और नहीं करते हैं, और यहाँ तक कि रात भर में हमारे स्वप्न गायब हो जाते हैं। यह ऐसा तथ्य है जिसकी कल्पना हममें से कोई नहीं कर सकता है और जिसे हममें से कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता है। एक क्षण के लिए, हमारे मन असंतुलित हो जाते हैं, और हम नहीं जानते हैं कि मार्ग पर आगे कैसे बढ़ें, नहीं जानते हैं कि अपना विश्वास कैसे जारी रखें। ऐसा लगता है कि हमारा विश्वास जहाँ था वहीं वापस लौट गया है, और यह कि हम कभी प्रभु यीशु से मिले और परिचित हुए नहीं हैं। हमारी आँखों के सामने हर बात हमें हक्का-बक्का कर देती है, और हमें महसूस करवाती है मानो हमें बाहर कर दिया गया है। फिर हम हताश होते हैं, हम हतोत्साहित होते हैं, और हमारे हृदयों की गहराई में अदम्य क्रोध और निरादर होता है। हम उसे बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, कोई तरीका ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं, और, उससे भी अधिक, हम अपने उद्धारकर्ता यीशु की प्रतीक्षा करना जारी रखने का प्रयास करते हैं और अपने हृदयों को उसके सामने उड़ेलते हैं। यद्यपि ऐसे अवसर भी आते हैं जब हम बाहर से न तो घमंडी होते हैं और न विनम्र, तब भी अपने हृदयों में हम नुकसान की ऐसी भावना से व्यथित हो जाते हैं जैसी पहले कभी नहीं हुई। यद्यपि कभी-कभी हम बाहरी तौर पर असामन्य रूप से शांत दिखाई दे सकते हैं, किंतु भीतर हम समुद्र की गर्जना जैसी यातना का अनुभव करते हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें हमारी सभी आशाओँ और स्वप्नों से वंचित कर दिया है, और हमारी अनावश्यक इच्छाओं से रहित कर दिया है, हम यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वह हमारा उद्धारकर्ता है और हमारा उद्धार करने में सक्षम हैं। उसके न्याय एवं ताड़ना ने हमारे और उसके बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है और यहाँ तक कि कोई उसे पार करने की इच्छा भी नहीं कर रहा है। उसके न्याय और ताड़ना के कारण पहली बार हम इतना अधिक नुकसान और इतना बड़ा अपमान झेलते हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें परमेश्वर के आदर और मनुष्य के अपराध के बारे में सहनशीलता की वास्तव में सराहना करने दी है, जिसकी तुलना में हम बहुत अधम और अशुद्ध हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने पहली बार हमें अनुभव कराया कि हम कितने अभिमानी और आडंबरपूर्ण हैं, और कैसे मनुष्य कभी परमेश्वर की बराबरी नहीं कर सकता है, और उसके समान नहीं बन सकता है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमारे भीतर यह उत्कंठा उत्पन्न की है कि हम ऐसे स्वभाव में अब और न रहें, और हमारे भीतर ऐसे स्वभाव तथा सार से जितना जल्दी हो सके छुटकारा पाने की, और आगे उसके द्वारा तिरस्कृत और उसके लिए घृणित न होने की इच्छा उत्पन्न की है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमारे लिए उसके वचनों का आज्ञापालन करना, और अब उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के विरुद्ध विद्रोह न करना सुखद बनाया। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें एक बार फिर जीवन की खोज करने की इच्छा दी है, और उसे हमारे उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने की प्रसन्नता दी है .... हम विजय के कार्य से बाहर निकल गए हैं, नरक से बाहर आ गए हैं, मृत्यु की छाया की घाटी से बाहर आ गए हैं .... सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें, लोगों के इस समूह को जीत लिया है! उसने शैतान पर विजय पाई है, और अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया है!
हम शैतानी भ्रष्ट स्वभाव धारण किए हुए एक साधारण जनसमूह हैं, हम वे हैं जिनकी नियति युगों पहले परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत की जा चुकी है, और हम वे जरूरतमंद लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने घूरे पर से उठाया है। हमने एक बार परमेश्वर का तिरस्कार किया और उसकी भर्त्सना की, मगर अब हम उसके द्वारा जीते जा चुके हैं। हमें परमेश्वर से जीवन प्राप्त हुआ है और शाश्वत जीवन का मार्ग प्राप्त हुआ है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि हम पृथ्वी पर कहाँ हैं, प्रताड़ना और क्लेश के बावजूद, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा उद्धार से अलग नहीं हो सकते हैं। क्योंकि वह हमारे सृष्टिकर्ता, और हमारी एक मात्र मुक्ति है!
परमेश्वर का प्रेम स्रोत के जल के समान आगे फैलता है, और तुम्हें, मुझे, और उनको और उन सब को दिया जाता है जो वास्तव में सत्य को खोजते और परमेश्वर के प्रकटन की प्रतीक्षा करते हैं।
जिस प्रकार सूर्य के बाद सदैव चंद्रमा निकलता है, उसी प्रकार परमेश्वर का कार्य भी कभी नहीं रुकता है, और तुम पर, मुझ पर, उस पर, और उन सभी पर किया जाता है जो परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करते हैं।
23 मार्च, 2010 को व्यक्त किया गया
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From :सर्वशक्तिमानपरमेश्वर की कलीसिया
-सच्चे
मार्ग की खोजबीन पर एक सौ प्रश्न
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