भ्रष्टाचार के हजारों सालों बाद, मनुष्य सुन्न और मूर्ख बन गया है, एक दुष्ट आत्मा जो परमेश्वर का विरोध करती है, इस हद तक कि परमेश्वर के प्रति मनुष्य की विद्रोहशीलता इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है, और यहाँ तक कि मनुष्य खुद भी अपने विद्रोही स्वभाव का पूरा लेखा देने के अयोग्य है—क्योंकि मनुष्य शैतान के द्वारा पूरी तरह से भ्रष्ट किया जा चुका है, और शैतान के द्वारा रास्ते से भटका दिया गया है कि नहीं जानता कि कहाँ मुड़ना हैं। आज भी, मनुष्य परमेश्वर को धोखा देता है: जब मनुष्य परमेश्वर को देखता है, वह उसे धोखा देता है, और जब वह परमेश्वर को नहीं देख सकता, तब भी वह उसे धोखा देता है। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने परमेश्वर के श्रापों और परमेश्वर के कोप का अनुभव भी किया है, फिर भी उसे धोखा देते हैं।और इसलिए मैं कहता हूँ कि मनुष्य की समझ ने अपने मूल कार्य को खो दिया है, और मनुष्य के अन्तश्चेतना, ने भी, अपने मूल कार्य को खो दिया है। मनुष्य जिसे मैं देखता हूँ मानव रूप में एक जानवर है, वह एक जहरीला साँप है, और कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी आँखों के सामने वह चाहे कितना भी दयनीय बनने की कोशिश करे, मैं उसके प्रति कभी भी दयावान नहीं बनूँगा, क्योंकि मनुष्य को काले और सफेद के बीच में, सत्य और असत्य के बीच में अन्तर की समझ नहीं है, मनुष्य की समझ इतनी सुन्न हो गई है, फिर भी वह आशिषें पाने की कामना करता है; उसकी मानवता बहुत नीच है फिर भी वह एक राजा के प्रभुत्व को पाने की कामना करता है। ऐसी समझ के साथ, वह किसका राजा बन सकता है? कैसे वह एक ऐसी मानवता के साथ, एक सिंहासन पर बैठ सकता है? सचमुच में मनुष्य को कुछ शर्म नहीं है! वह नीच ढ़ोंगी है! तुम सब जो आशिषें पाने की कामना करते हो, मैं सुझाव देता हूँ कि पहले एक शीशे को ढूंढ़ों और अपनी खुद की बदसूरत प्रतिबिंब देखो—क्या तू एक राजा बनने लायक है? क्या तेरे पास एक ऐसा चेहरा है जो आशिषें पा सकता है? तेरे स्वभाव में एक छोटा सा भी बदलाव नहीं आया है और तूने किसी भी सत्य का अभ्यास नहीं किया, फिर भी तू एक अद्भुत कल की कामना करता है। तू अपने आप को भुलावे में रख रहा है! एक ऐसी गन्दी जगह में जन्म लेकर, मनुष्य समाज के द्वारा गंभीर रूप से अभिशप्त किया जा चुका है, वह सामंती नैतिकता के द्वारा प्रभावित किया जा चुका है, और "उच्च शिक्षा के संस्थानों" पर सिखाया गया है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, जीवन पर मतलबी दृष्टिकोण, तिरस्कार-योग्य दर्शनशास्त्र, पूर्ण रूप से बेकार अस्तित्व, और भ्रष्ट जीवन शैली और रिवाज—इन सभी चीजों ने मनुष्य के हृदय पर गंभीर रूप से घुसपैठ की है, और उसके सद्विवेक पर हमला किया और उसे गंभीर रूप से कम आंका है। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से और अधिक दूर है, और परमेश्वर के और अधिक विरोध में रहा है। दिन प्रतिदिन मनुष्य का स्वभाव और अधिक शातिर बन रहा है, और कोई एक भी व्यक्ति नहीं है जो स्वेछा से परमेश्वर के लिए कुछ भी त्याग देगा, एक भी व्यक्ति नहीं जो स्वेछा से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करेगा, न ही, इसके अलावा, एक भी व्यक्ति स्वेछा से परमेश्वर के रूप को खोजेगा। इसके बजाये, शैतान की प्रभुता के आधीन, मनुष्य कुछ नहीं करता परन्तु आनंद का पीछा करता है, कीचड़ की जगह में अपने आप को देह के भ्रष्टाचार के लिए दे देता है। यहाँ तक कि वे जब सत्य को सुनते हैं, वे जो अन्धकार में जीते हैं इसे अभ्यास में लाने का कुछ भी विचार नहीं करते, न ही वे परमेश्वर को खोजने के प्रति झुकते हैं भले ही चाहे उन्होंने उसके रूप को भी देखा हो। एक इतनी भ्रष्ट मानवजाति के पास उद्धार का मौका कैसे है? इतनी पतनो-मुख मानवजाति प्रकाश में कैसे जी सकती है?
मनुष्य का स्वभाव उसके सार के ज्ञान की शुरुआत से बदल जाना चाहिए और उसकी सोच, स्वभाव, और मानसिक दृष्टिकोण के बदल जाने से—मौलिक परिवर्तन के द्वारा। केवल इसी ढंग से मनुष्य के स्वभाव में सच्चे बदलाव आ सकेंगे। मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव शैतान के द्वारा उसे जहर देने और रौंदे जाने के कारण उपजा है, उस प्रबल नुकसान से जिसे शैतान ने उसकी सोच नैतिकता, अंतर्दृष्टि, और समझ पर पहुँचाया है। यह ठीक है क्योंकि मनुष्य की मौलिक चीजें शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दी गईं हैं, और पूरी तरह से उसके विपरीत है जैसे परमेश्वर ने उन्हें मूल रूप से बनाया था, कि मनुष्य परमेश्वर का विरोध करता है और सत्य को नहीं समझता। इस प्रकार, मनुष्य के स्वभाव में बदलाव उसकी सोच, अंतर्दृष्टि और समझ में बदलाव के साथ शुरू होना चाहिए जो परमेश्वर के बारे में उसके ज्ञान को और सत्य के बारे में उसके ज्ञान को बदलेगा। वे जो अधिकतर गहरे भ्रष्ट स्थानों में जन्मे थे वे इस बारे में और अधिक अज्ञानी हैं कि परमेश्वर क्या है, या परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है। जितने अधिक लोग भ्रष्ट होते हैं, उतना ही कम वे परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में जानते हैं, और उनकी समझ और अंतर्दृष्टि अत्यन्त कम होती है। परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य के विरोध और उसकी विद्रोहशीलता का स्रोत शैतान के द्वारा उसकी भ्रष्टता है। क्योंकि वह शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, मनुष्य का सद्विवेक सुन्न हो गया है, वह अनैतिक है, उसके विचार पतित हैं, और उसके पास एक पिछड़ा मानसिक दृष्टिकोण है। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने से पहले, मनुष्य स्वभाविक रूप से परमेश्वर का अनुसरण करता था और उसके वचनों का आज्ञापालन करता था। वह स्वभाविक रूप से सही समझ और सद्विवेक का था, और सामान्य मानवता का था। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने के बाद, उसकी मूल समझ, सद्विवेक, और मानवता मंदी हो गईं और शैतान के द्वारा खराब हो गईं। इस प्रकार, उसने परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता और प्रेम को खो दिया है। मनुष्य की समझ धर्मपथ से हट गई है, उसका स्वभाव एक जानवर के समान हो गया है, और परमेश्वर के प्रति उसकी विद्रोहशीलता और भी अधिक लगातार और गंभीर हो गई है। अभी तक मनुष्य इसे न तो जानता है और न ही पहचानता है, और केवल आँख बंद करके विरोध और विद्रोह करता है। मनुष्य के स्वभाव का प्रकाशन उसकी समझ, अंतर्दृष्टि, और सद्विवेक का प्रकटीकरण है, और क्योंकि उसकी समझ और अंतर्दृष्टि सही नहीं हैं, और उसका सद्विवेक अत्यंत मंदा हो गया है, इसलिए उसका स्वभाव परमेश्वर के प्रति विद्रोही है। यदि मनुष्य की समझ और अंतर्दृष्टि बदल नहीं सकती, तो फिर उसके स्वभाव में बदलाव होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, कि वह परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो। यदि मनुष्य की समझ सही नहीं है, तो वह परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता और परमेश्वर के द्वारा उपयोग के लिए अयोग्य है। "सामान्य समझ" आज्ञापालन और परमेश्वर के प्रति विश्वास योग्य बने रहने को, परमेश्वर के प्रति तड़प, परमेश्वर के प्रति स्पष्ट, और परमेश्वर के प्रति सद्सद्विवेक होने को संदर्भित करती है। यह परमेश्वर के प्रति एक हृदय और मन होने को संदर्भित करती है, और जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करने को नहीं। वे जो धर्मपथ से हटनेवाली समझ के हैं वे ऐसे नहीं हैं। मनुष्य शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया था इसिलिए, उसने परमेश्वर के बारे में धारणाओं का उत्पादन किया है, और परमेश्वर के लिए उसके पास निष्ठा या चाहत नहीं है, और परमेश्वर के प्रति कुछ भी कहने के लिए सद्विवेक नहीं है। मनुष्य जानबूझकर विरोध करता और परमेश्वर पर दोष लगाता है, और, इसके अलावा, उसकी पीठ-पीछे उस पर जोर से अपशब्द फेंक कर मारता है। मनुष्य स्पष्ट रूप से जानता है कि वह परमेश्वर है, फिर भी उसकी पीठ-पीछे उस पर दोष लगाता है, उसकी आज्ञाकारिता करने का कोई भी इरादा नहीं है, और सिर्फ परमेश्वर से अंधाधुंध माँग और निवेदन करता रहता है। ऐसे लोग—वे लोग जो अनैतिक समझ के हैं—वे अपने खुद के घृणित स्वभाव को जानने या अपनी विद्रोहशीलता का पछतावा करने के अयोग्य हैं। यदि लोग अपने आप को जानने के योग्य हों, तो फिर वे अपनी समझ को थोड़ा सा पुनः प्राप्त कर चुके हैं; जितने अधिक लोग परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं लेकिन अपने आप को नहीं जानते, उतने अधिक वे सही समझ के नहीं हैं।
मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटीकरण का स्रोत उसका मंद सद्विवेक, उसकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और उसकी विकृत समझ से बढ़कर और कुछ भी नहीं है; यदि मनुष्य का सद्विवेक और समझ सामान्य होने के योग्य हैं, तो फिर वह परमेश्वर के सामने उपयोग करने के योग्य बन जायेगा। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि मनुष्य का सद्विवेक हमेशा सुन्न रहा है, मनुष्य की समझ कभी भी सही नहीं रही, और लगातार मंद होती गई है कि मनुष्य लगातार परमेश्वर के प्रति विद्रोही बना रहा, यहाँ तक कि उसने यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया और अपने घर में प्रवेश के अंतिम दिनों में परमेश्वर के देहधारी होने का इंकार कर दिया, और परमेश्वर की देह पर दोष लगाता है, और परमेश्वर की देह उसको घृणित और नीच देखती है। यदि मनुष्य में थोड़ी सी भी मानवता होती, वह परमेश्वर के देहधारी शरीर के साथ इतना निर्दयी व्यवहार न करता। यदि उसे थोड़ी सी भी समझ होती, वह परमेश्वर के देहधारी शरीर के साथ अपने व्यवहार में इतना शातिर न होता; यदि उसके पास एक थोड़ा सा सद्विवेक होता, वह देहधारी परमेश्वर के साथ इस ढंग से इतना "आभारी" न होता। मनुष्य परमेश्वर के देह बनने के युग में जीता है, फिर भी वह एक अच्छा अवसर देने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देने में अयोग्य है, और इसके बजाय परमेश्वर के आने को कोसता है, या सम्पूर्ण रूप से परमेश्वर के देह धारण के तथ्य को अनदेखा कर देता है, और प्रकट रूप से इसके विरोध में और इसके बारे में ऊबा हुआ है। इसकी परवाह किये बिना कि मनुष्य परमेश्वर के आने के प्रति कैसा व्यवहार करता है, परमेश्वर ने, संक्षेप में, बिना इसकी परवाह किये अपने कार्य को जारी रखा है—भले ही मनुष्य ने परमेश्वर के प्रति थोड़ा सा भी स्वागत नहीं किया है, और अंधाधुंध उससे निवेदन करता रहता है। मनुष्य का स्वभाव अत्यंत शातिर बन गया है, उसकी समझ अत्यंत मंदी हो गई है, और उसका सद्विवेक दुष्ट के द्वारा पूरी तरह से रौंद दिया गया है और बहुत पहले से ही मनुष्य का मूल सद्विवेक होने से बंद हो गया है। मनुष्य सिर्फ मानवजाति पर देहधारी परमेश्वर के बहुत अधिक जीवन और अनुग्रह प्रदान के लिए अधन्यवादी ही नहीं, परन्तु परमेश्वर के द्वारा उसे सत्य दिए जाने पर बुरा मान गया है; ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य को सत्य में थोड़ा सी भी रूचि नहीं है इसलिए वह परमेश्वर के प्रति बुरा मान गया है। मनुष्य सिर्फ देहधारी परमेश्वर के लिए अपनी जान देने के अयोग्य ही नहीं है, परन्तु वह उससे एहसान निकालने की कोशिश भी करता रहता है, और परमेश्वर से ऐसी माँगें करता है जो दर्जनों गुना बड़ी हैं उससे जो मनुष्य ने परमेश्वर को दिया है। ऐसे सद्विवेक और समझ के लोग इसे दिया हुआ मानते हैं, और फिर भी विश्वास करते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के लिए बहुत अधिक खर्च किया है, और परमेश्वर ने उन्हें बहुत थोड़ा दिया है। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने मुझे सिर्फ एक कटोरा पानी ही दिया है फिर भी अपने हाथ पसार कर माँग[क] दो कटोरे दूध के बराबर की करते हैं, या मुझे एक रात के लिए कमरा दिया है परन्तु मुझ से निवास-स्थान के शुल्क के रूप में कई गुना दाम वसुलते हैं। ऐसी मानवता, और ऐसे सद्विवेक के साथ, कैसे तू अब भी जीवन पाने की कामना करता है? तू कितना घृणित अभागा है! यह ऐसा इस मानवता और मनुष्य के सद्विवेक के कारण ही है कि देहधारी परमेश्वर पूरी धरती पर भटकता है, किसी भी स्थान पर आश्रय नहीं पाता। वे जो सचमुच में सद्विवेक और मानवता को धारण किये हुए हैं उन्हें देहधारी परमेश्वर की आराधना और सच्चे दिल से सेवा इसलिए नहीं करनी चाहिए कि उसने कितना कार्य किया है, परन्तु तब भी चाहे वह कुछ भी कार्य नहीं करता। यह उनके द्वारा किया जाना चाहिए जो सही समझ के हैं, और यह मनुष्य का कर्तव्य है। अधिकतर लोग परमेश्वर की सेवा करने के लिए शर्तों के बारे में बोलते हैं: वे परवाह नहीं करते कि वह एक परमेश्वर है या एक मनुष्य है, और वे सिर्फ अपनी ही शर्तों के बारे में बातचीत करते हैं, और सिर्फ अपनी ही इच्छाओं की उपलब्धि का पीछा करते हैं। जब तुम सब मेरे लिए खाना पकाते हो, तुम सब बावर्ची का शुल्क माँगते हो, जब तुम सब मेरे लिए दौड़ते हो, तुम सब मुझ से दौड़ने का शुल्क माँगते हो, जब तुम सब मेरे लिए काम करते हो तो तुम सब काम करने का शुल्क माँगते हो, जब तुम सब मेरे कपड़े धोते हो तुम सब कपड़े धोने का शुल्क माँगते हो, जब तुम सब कलीसिया के लिए प्रदान करते हो तुम सब स्वस्थ हो जाने की लागत माँगते हो, जब तुम सब बोलते हो तो तुम सब वक्ता का शुल्क माँगते हो, जब तुम सब पुस्तकें बाँटते हो तो तुम सब वितरण शुल्क माँगते हो, और जब तुम सब लिखते हो तो तुम सब लिखने का शुल्क माँगते हो। जिनके साथ मैं निपट चुका हूँ वे भी मुझ से मुआवजा माँगते हैं, जबकि वे जो घर भेजे जा चुके हैं अपने नाम के नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति की माँग करते हैं; वे जो अविवाहित हैं दहेज की माँग करते हैं, या अपनी खोई हुई जवानी के लिए मुआवजे की माँग करते हैं, वे जो मुर्गे को काटते हैं कसाई के शुल्क की माँग करते हैं, वे जो खाने को तलते हैं तलने का शुल्क माँगते तलते हैं, और वे जो सूप बनाते हैं उसके लिए भी भुगतान माँगते हैं.... यह तुम सबकी ऊँची और शक्तिशाली मानवता है और ये तुम सबके स्नेही सद्विवेक के द्वारा निर्धारित कार्य हैं। तुम सबकी समझ कहाँ है? तुम सबकी मानवता कहाँ है? मुझे बताने दो! यदि तुम सब ऐसे ही करते रहोगे, मैं तुम सबके मध्य में कार्य करना बंद कर दूँगा। मैं मनुष्य के रूप में जानवरों के झुंड में कार्य नहीं करूँगा, मैं ऐसे समूह के लोगों के लिए दुःख नहीं सहूँगा जिनका निष्पक्ष चेहरा जंगली हृदय को छुपाये हुए है, मैं ऐसे जानवरों के झुंड के लिए सहन नहीं करूँगा जिनके पास उद्धार के लिए थोड़ी सी भी संभावना नहीं है। जिस दिन मैं तुम सबकी ओर पीठ कर लूँगा उसी दिन तुम सब मर जाओगे, उस दिन अंधकार तुम सब पर आ जायेगा, और उस दिन तुम सब प्रकाश के द्वारा त्याग दिए जाओगे! मुझे बताने दो! मैं कभी भी तुम लोग जैसे समूह पर दयालु नहीं बनूँगा, एक ऐसा झुंड जो जानवरों से भी बदतर है! मेरे वचनों और कार्रवाई की कुछ सीमायें हैं, और तुम सबकी मानवता और सद्विवेक के साथ जैसे कि वे हैं, मैं और अधिक कार्य नहीं करूँगा, क्योंकि तुम सबमें सद्विवेक में बहुत कमी है, तुम सबने मुझे बहुत अधिक पीड़ा दी है, और तुम सबका घृणित व्यवहार मुझे बहुत अधिक घिन दिलाता है! वे लोग जो मानवता और सद्विवेक में बहुत कम हैं उन्हें उद्धार का अवसर नहीं मिलेगा; मैं ऐसे बेरहम और एहसान फरामोश लोगों को कभी भी नहीं बचाऊँगा। जब मेरा दिन आएगा, मैं अनंत काल के लिए अनाज्ञाकारी संतान पर अपनी झुलसाने वाली आग की लपटों को बरसाऊँगा जिन्होंने एक बार मेरे प्रचण्ड कोप को उकसाया था, मैं ऐसे जानवरों पर अपने अनंत काल की सजा को थोप दूंगा जिन्होंने एक बार मुझ पर अपशब्द उछाले और मुझे त्याग दिया, मैं अनाज्ञाकारिता के पुत्रों को अपने क्रोध की आग में हमेशा के लिए जलाऊँगा जिन्होंने एक बार मेरे साथ खाया और मेरे साथ रहे परन्तु मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मेरा अपमान किया और मुझे धोखा दिया। मैं उन सब को आधीन करूँगा जिन्होंने मेरे कोप को सजा के लिए उकसाया, मैं उन सभी जानवरों पर अपने कोप की सम्पूर्णता को बरसाऊँगा जिन्होंने एक बार मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने की कामना की फिर भी मेरी आराधना या मेरा आज्ञापालन नहीं किया, मेरी छड़ी जिससे मैं मनुष्य को मारता हूँ वह उन जानवरों पर टूट पड़ेगी जिन्होंने एक बार मेरी देखभाल और रहस्य जो मैंने बोले उनका आनंद लिया, और जिन्होंने मुझसे भौतिक आनंद लेने की कोशिश की। मैं किसी एक भी व्यक्ति को क्षमा नहीं करूँगा जो मेरा स्थान लेने की कोशिश करता है; मैं उन में से एक को भी नहीं छोड़ूँगा जो मुझ से खाना और कपड़े हथियाने की कोशिश करते हैं। अब तो, तुम सब नुकसान से बचे हुए हो और मुझसे माँगें माँगने में अपने को धोखा देना जारी रखते हो। जब कोप का दिन आ जायेगा तू मुझ से और अधिक माँगें नहीं माँगेगा; उस समय, मैं तुम लोगों के हृदय की चीजों का "आनंद" लेने दूँगा, मैं तुम सबके चेहरे को मिट्टी में घुसा दूँगा, और तुम सब फिर दोबारा कभी भी उठ नहीं पाओगे! शीघ्र या विलंब से, मैं तुम सबको यह कर्ज "चुकाने" जा रहा हूँ—और मैं आशा करता हूँ कि तुम सब धीरज से इस दिन के आने की प्रतीक्षा कर रहे हो।
यदि ये घिनौने जीव सचमुच में अपनी फिजूल खर्ची की इच्छाओं को एक तरफ रखें और परमेश्वर की ओर मुड़ें जाएँ, तो उनके पास उद्धार का अवसर है; यदि मनुष्य के पास हृदय है जो सचमुच में परमेश्वर की चाहत रखता है, तो परमेश्वर के द्वारा त्यागा नहीं जायेगा। मनुष्य परमेश्वर को पाने में इसलिए असफल नहीं हो जाता है कि परमेश्वर के पास भावना है, या इसलिए कि परमेश्वर मनुष्य के द्वारा प्राप्त होना नहीं चाहता, परन्तु इसलिए कि मनुष्य परमेश्वर को पाना ही नहीं चाहता, और इसलिए क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को तीव्रता से खोजता ही नहीं। उनमें से कोई भी जो सचमुच परमेश्वर को खोजता है वह परमेश्वर के द्वारा श्रापित कैसे किया जा सकता है? जो सही समझ और संवेदनशील सद्विवेक का हो वह परमेश्वर के द्वारा कैसे श्रापित किया जा सकता है? उनमें से कोई भी जो सचमुच परमेश्वर की आराधना और सेवा करता है वह उसके कोप की आग से नाश कैसे किया जा सकता है? कोई भी जो परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए खुश है वह परमेश्वर के घर से बाहर कैसे निकाला जा सकता है? कोई भी जो परमेश्वर को पर्याप्त प्रेम नहीं कर सका वह परमेश्वर की सजा में कैसे रह सकेगा? कैसे कोई भी जो परमेश्वर के लिए सबकुछ त्यागने के लिए खुश है उसके लिए कुछ भी न बचे? मनुष्य परमेश्वर का पीछा करने के लिए अनिच्छुक है, अपनी सम्पत्ति को परमेश्वर के लिए खर्च करने के लिए अनिच्छुक है, और परमेश्वर के लिए एक जीवन भर के प्रयास को समर्पित करने के लिए अनिच्छुक है, और इसके बजाय कहता है कि परमेश्वर बहुत दूर चला गया, वह भी परमेश्वर के बारे में बहुत कुछ मनुष्य की धारणाओं के साथ अन्तर पर है। एक ऐसी मानवता के साथ, यद्यपि तुम सब अपने प्रयासों में चाहे प्रचुर भी होते फिर भी तुम सब परमेश्वर के अनुमोदन पाने में अयोग्य ही होते, इस तथ्य के बारे में कुछ न कहने के लिए कि परमेश्वर को नहीं खोजते हो। क्या तुम सब नहीं जानते कि तुम सब मानवजाति दोषपूर्ण उत्पाद हो? क्या तुम सब नहीं जानते कि तुम लोगों की मानवता से बढ़कर अन्य कोई भी मानवता अधिक नीच नहीं है? क्या तुम सब नहीं जानते कि तुम लोग का "आदरसूचक शीर्षक" क्या है? वे जो सच में परमेश्वर को प्रेम करते हैं तुम सब भेड़िये का पिता, भेड़िये की माता, भेड़िये का पुत्र, और भेड़िये का पोता कह कर बुलाते हैं; तुम सब भेड़िये के वंशज हो, भेड़िये के लोग, और तुम सब को अपनी खुद की पहचान जाननी चाहिए और कभी नहीं भूलनी चाहिए। यह न सोचो कि तुम सब कोई उच्च आकृति हो: तुम सब मानवजाति के मध्य गैर-मनुष्यों का सबसे अधिक क्रूर झुंड हो। क्या तुम सबको इसके बारे में कुछ भी नहीं पता? क्या तुम लोगों को पता है कि तुम सबके मध्य में कार्य करने के लिए मैंने कितना जोखिम उठाया है? यदि तुम सबकी समझ वापस सामान्य नहीं हो सकती, और तुम सबका सद्विवेक सामान्य रूप से कार्य नहीं कर सकता, तो फिर तुम सब कभी भी "भेड़िये" की पदवी से मुक्त नहीं हो पाओगे, तुम सब कभी भी श्राप के दिन से बच नहीं पाओगे, अपनी सजा के दिन से कभी बच नहीं पाओगे। तुम सब हीन जन्मे थे, एक चीज जो बिना किसी मूल्य के है। तुम सब सहज ढंग से भूखे भेड़ियों का झुंड, मलबे और कचरे का एक ढेर हो, और, तुम सबकी तरह, मैं तुम लोगों के ऊपर एहसान पाने के लिए कार्य नहीं करता, परन्तु इसलिए कि कार्य की आवश्यकता है। यदि तुम सब इसी ढंग से विद्रोही बने रहोगे, तो मैं अपना कार्य रोक दूँगा, और फिर दोबारा तुम सबके ऊपर कभी कार्य नहीं करूँगा; इसके प्रतिकूल, मैं अपना कार्य दूसरे झुंड पर स्थानान्तरण कर दूँगा जो मुझे प्रसन्न करता है, और इस तरह से मैं तुम सबको हमेशा के लिए छोड़ दूँगा, क्योंकि मैं उन पर नजर रखने के लिए अनिच्छुक हूँ जो मेरे साथ शत्रुता में हैं। तो फिर, क्या तुम सब मेरे अनुरूप बनने की कामना करते हो, या मेरे विरुद्ध शत्रुता बनाने की?
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
अनुशंसित: पापी स्वभाव से किस प्रकार मुक्त हो सकते है, इसका जवाब "वचन देह में प्रकट होता है" की पुस्तक में है
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