क्या मानवजाति वास्तव में स्वयं के भाग्य के नियंत्रण में है?
जब आपदाएं अनपेक्षित रूप से आती हैं, तो हमारा सारा ज्ञान, कौशल और योग्यता धरी की धरी रह जाती है ... बस हम विवशता, अनिश्चितता, सदमे और भय की स्थिति में होते हैं, हमें जीवन की क्षणभंगुरता का बोध होता है... बस अपने आपसे यहप्रश्न करते हैं: हमारे भाग्य का नियंता कौन है? हमारा उद्धार किसके हाथ में है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें