क्या मानवजाति वास्तव में स्वयं के भाग्य के नियंत्रण में है?
बहुत से लोगों को लगता है कि उनका प्रारब्ध उनके अपने हाथ में है – लेकिन जब आपदा आती है तो क्या तब भी आप ऐसा मानते हैं? क्या
उस समय सदमा, भय और दहशत महसूस नहीं होती? क्या आप बौना और तुच्छ महसूस नहीं करते, जीवन की क्षणभंगुरता का बोध नहीं होता? हमें कौन बचा सकता है?
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