क्या मानवजाति वास्तव में स्वयं के भाग्य के नियंत्रण में है?
हमें लगता है कि हम अपने हाथों से एक ख़ूबसूरत घर बना सकते हैं, लेकिन क्या हम वाकई अपने भाग्य के नियंता स्वयं हैं? लेकिन जब आपदा आती है तो कितने बौने, बेबस और अस्थिर हो जाते हैं... उन्हीं पलों में जाकर हमें जीवन की क्षणभंगुरता और मूल्य का बोध होता है।
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