2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, 'तू इस्राएलियों से यह कहना, "तुम्हारे पितरों का परमेश्वर, अर्थात् अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याक़ूब का परमेश्वर, यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है।" देख, सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा'" (निर्गमन 3:15)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
"यहोवा" वह नाम है जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोग) का परमेश्वर जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन दे सकता है। इसका अर्थ है वह परमेश्वर जिसके पास बड़ी सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। … अर्थात्, केवल यहोवा ही इस्राएल के चुने हुए लोगों का परमेश्वर, इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, मूसा का परमेश्वर, और इस्राएल के सभी लोगों का परमेश्वर है। और इसलिए वर्तमान युग में, यहूदा के कुटुम्ब के अलावा सभी इस्राएली यहोवा की आराधना करते हैं। वे वेदी पर उसके लिए बलिदान करते हैं, और याजकीय लबादे पहनकर मन्दिर में उसकी सेवा करते हैं। वे यहोवा के पुनः-प्रकट होने की आशा करते हैं। … यहोवा का नाम इस्राएल के लोगों के लिए एक विशेष नाम है जो व्यवस्था के अधीन जीए थे। प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में, मेरा नाम आधारहीन नहीं है, किन्तु प्रतिनिधिक महत्व रखता हैः प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है। "यहोवा" व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और यह उस परमेश्वर के लिए सम्मानसूचक है जिसकी आराधना इस्राएल के लोगों के द्वारा की जाती है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
व्यवस्था के युग के दौरान, मानव जाति के मार्गदर्शन का कार्य यहोवा के नाम के अधीन किया गया था, और कार्य का पहला चरण पृथ्वी पर किया गया था। इस चरण का कार्य मंदिर और वेदी का निर्माण करना, और इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था का उपयोग करना और उनके बीच कार्य करना था। इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करके, उसने पृथ्वी पर अपने कार्य के लिए एक आधार स्थापित किया। इस आधार से, उसने अपने कार्य का विस्तार इस्राइल से बाहर किया, जिसका अर्थ है, कि इस्राएल से शुरू करके, उसने अपने कार्य का बाहर की ओर विस्तार किया, जिसकी वजह से बाद की पीढ़ियों को धीरे-धीरे पता चला कि यहोवा परमेश्वर था, और यह कि यहोवा ने ही स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का निर्माण किया था, सभी प्राणियों को बनाया था। उसने इस्राएल के लोगों के माध्यम से अपने कार्यको फैलाया। इस्राएल की भूमि पृथ्वी पर यहोवा के कार्य का पहला पवित्र स्थान था, और पृथ्वी पर परमेश्वर का सबसे पहले का कार्य पूरे इस्राएल देश में किया गया था। वह व्यवस्था के युग का कार्य था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
व्यवस्था के युग के दौरान, यहोवा ने मूसा के लिए अनेक आज्ञाएँ निर्धारित की कि वह उन्हें उन इस्राएलियों के लिए आगे बढ़ा दे जिन्होंने मिस्र से बाहर उसका अनुसरण किया था। ये आज्ञाएँ यहोवा द्वारा इस्राएलियों को दी गई थीं, और उनका मिस्र के लोगों से कोई संबंध नहीं था; वे इस्राएलियों को नियन्त्रण में रखने के अभिप्राय से थीं। परमेश्वर ने उनसे माँग करने के लिए इन आज्ञाओं का उपयोग किया। उन्होंने सब्त का पालन किया या नहीं, उन्होंने अपने माता पिता का आदर किया या नहीं, उन्होंने मूर्तियों की आराधना की या नहीं, इत्यादि: ये ही वे सिद्धांत थे जिनसे उनके पापी या धार्मिक होना आँकलन किया जाता था। उनमें से, कुछ ऐसे थे जो यहोवा की आग से त्रस्त थे, कुछ ऐसे थे जिन्हें पत्थऱ मार कर मार डाला गया था, और कुछ ऐसे थे जिन्होंने यहोवा का आशीष प्राप्त किया था, और इसका निर्धारण इस बात के अनुसार किया जाता था कि उन्होंने इन आज्ञाओं का पालन किया या नहीं। जो सब्त का पालन नहीं करते थे उन्हें पत्थर मार कर मार डाला जाएगा। जो याजक सब्त का पालन नहीं करते थे उन्हें यहोवा की आग से त्रस्त किया जाएगा। जो अपने माता पिता का आदर नहीं करते थे उन्हें भी पत्थर मार कर मार डाला जाएगा। यह सब कुछ यहोवा द्वारा अनुशंसा किया गया था। यहोवा ने अपनी आज्ञाओं और व्यवस्थाओं को स्थापित किया था ताकि, जब वह उनके जीवन में उनकी अगुवाई करे, तब लोग उसके वचन को सुनें और उसके वचन का पालन करें और उसके विरूद्ध विद्रोह न करें। उसने नई जन्मी हुई मानव प्रजाति को नियन्त्रण में रखने, अपने भविष्य के कार्य की नींव को बेहतर ढंग से डालने के लिए इन व्यवस्थाओं का उपयोग किया। और इसलिए, उस कार्य के आधार पर जो यहोवा ने किया, प्रथम युग को व्यवस्था का युग कहा गया था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "व्यवस्था के युग में कार्य" से
इस्राएल के सभी लोगों ने यहोवा को अपना प्रभु कहा। उस समय, उन्होंने उसे अपने परिवार का मुखिया माना, और पूरा इस्राएल एक बड़ा परिवार बन गया जिसमें हर कोई अपने प्रभु यहोवा की उपासना करता था। यहोवा का आत्मा प्रायः उन पर प्रकट होता था, और वह उनसे बोलता था अपनी वाणी कहता था, और उनके जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए बादल और ध्वनि के एक स्तंभ का उपयोग करता था। उस समय, पवित्रात्मा ने लोगों को अपनी वाणी के कथन से और बोलते हुए, इस्राएइल में सीधे मार्गदर्शन किया,और वे बादलों को देखते थे और वे मेघ की गड़गड़ाहट सुनते थे, और इस तरह से उसने कई हजारों वर्षों तक उनके जीवन का मार्गदर्शन किया। इस प्रकार, केवल इस्राएलियों ने ही हमेशा यहोवा की आराधना की है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)" से
इस्राएल में उसके कार्य और कथनों ने इस्राएल के सभी लोगों को मार्गदर्शन दिया जब वे इस्राएल के तमाम देश में अपना जीवन जीते थे, और इस तरह मानवजाति को दिखाया कि यहोवा न केवल मनुष्य में अपना श्वास फूँकने में समर्थ है ताकि उसके पास परमेश्वर का जीवन हो सके, और मिट्टी में उठ कर एक सृजित किए गए मानव प्राणी बन सके, बल्कि मानवजाति पर शासन करने के लिए मानवजाति को भस्म कर सकता था, और मानवजाति को शाप दे सकता था और अपने राजदण्ड का उपयोग कर सकता था। तब भी, क्या उन्होंने देखा था कि यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन दे सकता था, और मानवजाति के बीच दिन के घंटों और रात के घंटों के अनुसार बात कर सकता था और कार्य कर सकता था। उसने कार्य सिर्फ इसलिए किया था ताकि उसके जीवधारी जान सकें कि मनुष्य धूल से आया जिसे परमेश्वर द्वारा उठाया गया, और इसके अलावा यह कि मनुष्य उसके द्वारा बनाया गया था। न केवल इतना, बल्कि उसने इस्राएल में जो कार्य आरम्भ किया था वह इस आशय से था कि दूसरे लोग और राष्ट्र (जो वास्तव में इस्राएल से पृथक नहीं थे, बल्कि इस्राएलियों से अलग हो गए थे, मगर फिर भी वे आदम और हव्वा के वंशज ही थे) इस्राएल से यहोवा के सुसमाचार को प्राप्त कर सकें, ताकि विश्व में सभी सृजित प्राणी यहोवा का आदर करने और उसे महान होना ठहराने में समर्थ हो सकें।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "व्यवस्था के युग में कार्य" से
यहोवा नाम परमेश्वर के सम्पूर्ण स्वभाव का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। इस तथ्य से कि उसने व्यवस्था के युग में कार्य किया है यह साबित नहीं होता है कि परमेश्वर केवल व्यवस्था के अधीन ही परमेश्वर हो सकता है। यहोवा ने, मनुष्य से मंदिर और वेदियाँ बनाने के लिए कहते हुए, मनुष्य के लिए व्यवस्थाएँ निर्धारित की और आज्ञाओं की घोषणा की; उसने जो कार्य किया उसने केवल व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व किया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (4)" से
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, 'हे यूसुफ! दाऊद की संतान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा'" (मत्ती 1:20-21)।
"स्वर्गदूत ने उससे कहा, 'हे मरियम, भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। वह महान् होगा और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा, और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा'" (लूका 1:30-33)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यीशु के नाम ने अनुग्रह के युग की शुरुआत को प्रख्यात किया। जब यीशु ने अपनी सेवकाई आरंभ की, तो पवित्र आत्मा ने यीशु के नाम की गवाही देनी आरंभ कर दी, और यहोवा का नाम अब और नहीं बोला जा रहा था, और इसके बजाय पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से नया कार्य आरंभ किया था। जो यीशु में विश्वास करते थे उन लोगों की गवाही, यीशु मसीह के लिए थी, और उन्होंने जो कार्य किया वह भी यीशु मसीह के लिए था। पुराने विधान के व्यवस्था के युग का निष्कर्ष यह था कि मुख्य रूप से यहोवा के नाम पर आयोजित किया गया कार्य समापन पर पहुँच गया था। इसके बाद, परमेश्वर का नाम यहोवा अब और नहीं था अब परमेश्वर का नाम यहोवा नहीं रह गया था; इसके बजाय उसे यीशु कहा जाता था, और यहाँ से पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम के अधीन कार्य करना आरंभ किया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
"यीशु" इमैनुअल है, और इसका मतलब है वह पाप बलि जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा देता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबन्धन योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। … केवल यीशु ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला है। यीशु वह पाप बलि है जिसने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिलाया है। जिसका अर्थ है, कि यीशु का नाम अनुग्रह के युग से आया, और अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य के कारण विद्यमान रहा। अनुग्रह के युग के लोगों को आध्यात्मिक रूप से पुनर्जीवित किए जाने और उनका उद्धार किए जाने हेतु अनुमति देने के लिए यीशु का नाम विद्यमान था, और यीशु का नाम पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है। और इस प्रकार यीशु का नाम छुटकारे के कार्य को दर्शाता है, और अनुग्रह के युग का द्योतक है। … "यीशु" अनुग्रह के युग को दर्शाता है, और यह उन सब के परमेश्वर का नाम है जिन्हें अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारा दिया गया था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
अनुग्रह के युग के दौरान, परमेश्वर का नाम यीशु था, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर ऐसा परमेश्वर था जिसने मनुष्य को बचाया, और यह कि वह एक करुणामय और प्रेममय परमेश्वर था। परमेश्वर मनुष्य के साथ था। उसका प्यार, उसकी करुणा, और उसका उद्धार हर एक व्यक्ति के साथ था। मनुष्य केवल तभी शांति और आनन्द प्राप्त कर सकता था, उसका आशीष प्राप्त कर सकता था, उसका विशाल और विपुल अनुग्रह प्राप्त कर सकता था, और उसके द्वारा उद्धार प्राप्त कर लेता, यदि मनुष्य यीशु के नाम को स्वीकार कर लेता और उसकी उपस्थिति को स्वीकार कर लेता। यीशु को सलीब पर चढ़ाने के माध्यम से, उसका अनुसरण करने वाले सभी लोगों को उद्धार प्राप्त हुआ और उनके पापों को क्षमा कर दिया गया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
जब यीशु आया, तो उसने भी परमेश्वर के कार्य का एक भाग पूरा किया, और कुछ वचनों को कहा—किन्तु वह कौन सा प्रमुख कार्य था जो उसने सम्पन्न किया? उसने मुख्यरूप से जो संपन्न किया, वह था सलीब पर चढ़ने का कार्य। क्रूस पर चढ़ने का कार्य पूरा करने और समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए वह पापमय शरीर की समानता बन गया, और यह समस्त मानवजाति के पापों के वास्ते था कि उसने पापबलि के रूप में सेवा की। यही वह मुख्य कार्य है जो उसने सम्पन्न किया। अंततः, जो बाद में आए उनका मार्गदर्शन करने के लिए, उसने सलीब का मार्ग प्रदान किया। जब यीशु आया, तब यह मुख्य रूप से छुटकारे के कार्य को पूरा करने के लिए था। उसने समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाया, और स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार मनुष्यों तक पहुँचाया, और, इसके अलावा, वह स्वर्ग का राज्य लाया। फलस्वरूप, बाद में जो लोग आये सभी ने कहा, "हमें सलीब के मार्ग पर चलना चाहिए, और स्वयं को सलीब के लिये बलिदान कर देना चाहिए।" निश्चय ही, मनुष्य को पश्चताप करवाने और अपने पापों को अंगीकार करवाने के लिए आरंभ में यीशु ने कुछ अन्य कार्य भी किए और कुछ अन्य वचन भी कहे। किन्तु तब भी उसकी सेवकाई सलीब पर चढ़ने की थी, और उसने साढ़े तीन वर्ष जो मार्ग का उपदेश देने में खर्च किए वे भी सलीब पर चढ़ने के वास्ते थे। कई बार यीशु ने जो प्रार्थनाएँ कीं वे भी सूली पर चढ़ने के वास्ते थी। इस पृथ्वी पर सामान्य मनुष्य का जीवन जो उसने जीया और साढ़े तैंतीस वर्ष जो वह जीया वह मुख्य रूप में सलीब पर चढ़ने के कार्य को पूरा करने के लिए था, वे उसे शक्तिशाली बनाने, उसे इस कार्य को करने में समर्थ बनाने के लिए थे, जिसके फलस्वरूप परमेश्वर ने उसे सलीब पर चढ़ने का कार्य सौंपा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" से
अनुग्रह के युग के कार्य में, यीशु परमेश्वर था जिसने मनुष्य को बचाया। उसका स्वरूप अनुग्रह, प्रेम, करुणा, सहनशीलता, धैर्य, विनम्रता, देखभाल और सहिष्णुता, और उसने जो इतना अधिक कार्य किया वह मनुष्य का छुटकारा था। और जहाँ तक उसका स्वभाव है, वह करुणा और प्रेम का था, और क्योंकि वह करुणामय और प्रेममय था, इसलिए उसे मनुष्य के लिए सलीब पर ठोंक दिया जाना था, ताकि यह दिखाया जाए कि परमेश्वर मनुष्य से उसी प्रकार प्रेम करता था जैसे वह स्वयं से करता था, इस हद तक कि उसने स्वयं को अपनी सम्पूर्णता में बलिदान कर दिया।शैतान ने कहा, "चूँकि तुम मनुष्य से प्यार करते हो, इसलिए तुम्हें उसे अत्यंत चरम तक प्यार अवश्य करना चाहिए: मनुष्य को सलीब से, पाप से मुक्त करने के लिए, तुम्हें अवश्य सलीब पर ठोंका जाना चाहिए, और तुम सभी मानव जाति के बदले में स्वयं को अर्पित करोगे।" शैतान ने निम्नलिखित शर्त बनायी: "चूँकि तुम एक प्रेममय और करुणामय परमेश्वर हो, इसलिए तुम्हें मनुष्य को अत्यंत चरम तक प्यार अवश्य करना चाहिए: तुम्हें अवश्य स्वयं को सलीब पर अर्पित करना चाहिए।" यीशु ने कहा, "अगर यह मानवजाति के लिए है, तो मैं अपना सब कुछ अर्पित करने को तैयार हूँ।" इसके बाद, वह बिना झिझक के सलीब पर चढ़ गया और समस्त मानव जाति को छुटकारा दिलाया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
अनुग्रह के युग में, यीशु संपूर्ण पतित मानवजाति (सिर्फ इस्राएलियों को नहीं) को छुटकारा दिलाने के लिए आया। उसने मनुष्य के प्रति दया और करुणा दिखायी। मनुष्य ने अनुग्रह के युग में जिस यीशु को देखा वह करुणा से भरा हुआ और हमेशा ही प्रेममय था, क्योंकि वह मनुष्य को पाप से मुक्त कराने के लिए आया था। जब तक उसके सूली पर चढ़ने ने मानव जाति को वास्तव में पाप से मुक्त नहीं कर दिया तब तक वह मनुष्य के पाप माफ कर सकता था। उस समय के दौरान, परमेश्वर मनुष्य के सामने दया और करुणा के साथ प्रकट हुआ; अर्थात्, वह मनुष्य के लिए एक पापबलि बना और मनुष्य के पापों के लिए सलीब पर चढ़ाया गया ताकि उन्हें हमेशा के लिए माफ कर दिया जाए। वह दयालु, करुणामय, सहनीय और प्रेममय था। और वे सब जिन्होंने अनुग्रह के युग में यीशु का अनुसरण किया था उन्होंने भी सारी चीजों में सहनीय और प्रेममय बनने की इच्छा की। उन्होंने सभी कष्ट सहे, और यहाँ तक कि यदि पीटे गए, शाप दिए गए या पत्थर मारे गए तो भी लड़ाई नहीं की।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं" से
अनुग्रह के युग दौरान, परमेश्वर का नाम यीशु था। दूसरे शब्दों में, अनुग्रह के युग का कार्य मुख्यतः यीशु के नाम से किया गया था। अनुग्रह के युग के दौरान, परमेश्वर को यीशु कहा गया था। उसने पुराने विधान से परे नया कार्य किया, और उसका कार्य सलीब पर चढ़ाए जाने के साथ ही समाप्त हो गया, और यह उसके कार्य की संपूर्णता थी।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा।" (यशायाह 62:2)।
"जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्वर का नाम और अपने परमेश्वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा।" (प्रकाशितवाक्य 3:12)।
"प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्तिमान है, यह कहता है, 'मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ'" (प्रकाशितवाक्य 1:8)।
"यह कहने लगे, 'हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था, हम तेरा धन्यवाद करते हैं कि तू ने अपनी बड़ी सामर्थ्य को काम में लाकर राज्य किया है'" (प्रकाशितवाक्य 11:17)।
"हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे कार्य महान् और अद्भुत हैं; हे युग-युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्ची है" (प्रकाशितवाक्य 15:3)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अंत के दिनों के दौरान, उसका नाम सर्वशक्तिमान परमेश्वर—सर्वशक्तिमान है, और वह मनुष्य का मार्गदर्शन करने, मनुष्य पर विजय प्राप्त करने, और मनुष्य को प्राप्त करने, और अंत में,युग का समापन करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करता है। हर युग में, अपने कार्य के हर चरण में, परमेश्वर का स्वभाव स्पष्ट है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा, या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं, बल्कि मुझे स्वयं सामर्थ्यवान सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के अंतर्गत मैं समस्त युग को समाप्त करूँगा। एक समय मुझे यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीह भी कहा जाता था, और लोगों ने एक बार मुझे उद्धारकर्त्ता यीशु कहा था क्योंकि वे मुझ से प्रेम करते थे और मेरा आदर करते थे। किन्तु आज मैं वह यहोवा और यीशु नहीं हूँ जिसे लोग बीते समयों में जानते थे—मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आ गया है, वह परमेश्वर जो युग को समाप्त करेगा। वह परमेश्वर मैं स्वयं हूँ जो अपने स्वभाव की परिपूर्णता के साथ, और अधिकार, आदर एवं महिमा से भरपूर होकर पृथ्वी के अंतिम छोर से उदय होता हूँ। लोग कभी भी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और मेरे स्वभाव के प्रति हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक, एक मनुष्य ने भी मुझे नहीं देखा है। यह वह परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है किन्तु वह मनुष्य के बीच में छुपा हुआ है। वह, सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, धधकते हुए सूरज और दहकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसका न्याय मेरे वचनों के द्वारा नहीं किया जाएगा, और कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसे आग की जलती हुई लपटों के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः, मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हों जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्त्ता हूँ जो वापस लौट आया है, मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है, और मैं एक समय मनुष्य के लिए पाप बलि था, किन्तु अंत के दिनों में मैं सूरज की आग की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों का मेरा कार्य ऐसा ही है। मैंने इस नाम को अपनाया है और मेरा यह स्वभाव है ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं धर्मी परमेश्वर हूँ, और धधकता हुआ सूरज हूँ, और दहकती हुई आग हूँ। ऐसा इसलिए है ताकि सभी मेरी, एकमात्र सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें: मैं न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर हूँ, और न मात्र छुटकारा दिलाने वाला हूँ—मैं समस्त आकाश और पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का ताड़ना और न्याय का एक स्वभाव है,जो वह सब कुछ प्रकट करता है जो अधर्मी है, सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय करता है, और उन लोगों को पूर्ण करता है, जो वास्तव में उससे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का एक स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहलेही आ चुके हैं। सभी चीजों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा। यही वह समय है जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल को प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते हैं, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को प्रकट करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी चीजों का अंत प्रकट हो सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंगों को दिखाता है जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरा बुरे की ओर लौट जाएगा, अच्छा अच्छे की ओर लौट जाएगा, और लोगों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से, सभी चीजों का अंत प्रकट होगा, ताकि बुराई को दंडित किया जाएग और अच्छे को पुरस्कृत किया जाएगा, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन नागरिक बन जाएँगे। सभी कार्य धर्मी ताड़ना और न्याय के माध्यम से अवश्य प्राप्त किया जाना चाहिए। क्योंकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर रही है, केवल परमेश्वर का धर्मी स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय का है और जो अंत के दिनों दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपान्तरित और पूरा कर सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधर्मियों को गंभीर रूप से दण्डित कर सकता है। इसलिए, इस तरह का एक स्वभाव युग के महत्व से सम्पन्न होता है, और उसके स्वभाव का प्रकटन और प्रदर्शन प्रत्येक नए युग के कार्य के वास्ते है। परमेश्वर अपने स्वभाव को मनमाने ढंग से और महत्व के बिना प्रकट नहीं करता है। यदि, जब अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का अंत प्रकट किया जाता है, परमेश्वर तब भी मनुष्य पर अक्षय करुणा और प्रेम अर्पित करता है, यदि वह अभी भी मनुष्य के प्रति प्रेममय है, और वह मनुष्य को धर्मी न्याय के अधीन नहीं करता है, किन्तु उसके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और माफ़ी दर्शाता है, यदि मनुष्य चाहे कितना ही गंभीर पाप करे वह, किसी धर्मी न्याय के बिना, उसे तब भी माफ़ कर देता है, तब क्या परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का कभी अंत होगा? इस तरह का कोई स्वभाव कब सही मंज़िल में मानव जाति का नेतृत्व करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, ऐसे न्यायाधीश को लें जो हमेशा प्रेममय, उदारहृदय और सौम्य हो। वह लोगों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के बावजूद प्यार करता हो, और चाहे कोई भी हो वह लोगों के लिए प्रेममय और सहिष्णु रहता है। तब वह कब न्यायोचित निर्णय तक पहुँचने में सक्षम हो पाएगा? अंत के दिनों के दौरान, केवल धर्मी न्याय ही मनुष्य का वर्गीकरण कर सकता है और मनुष्य को एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धर्मी स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
इस समय जब परमेश्वर देहधारी हुआ, तो उसका कार्य, प्राथमिक रूप में ताड़ना और न्याय के द्वारा, अपने स्वभाव को व्यक्त करना है। इसे नींव के रूप में उपयोग करके वह मनुष्य तक अधिक सत्य को पहुँचाता है, अभ्यास करने के और अधिक मार्ग दिखाता है, और इस प्रकार मनुष्य को जातने और मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से बचाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त करता है। राज्य के युग में परमेश्वर के पीछे यही निहित है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की सच्चाइयों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सच्चाइयों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर अकेला व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए अबोधगम्य हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से
राज्य के युग के दौरान, देहधारी परमेश्वर ने उन सभी लोगों को जीतने के लिए वचन बोले जिन्होंने उस पर विश्वास किया। यह "वचन का देह में प्रकट होना" है; परमेश्वर इस कार्य को करने के लिए अंत के दिनों में आया है, जिसका अर्थ है कि वह वचन का देह में प्रकट होना के वास्तविक महत्व को कार्यान्वित करने के लिए आया। वह केवल वचन बोलता है, और तथ्यों का आगमन शायद ही कभी होता है। वचन का देह में प्रकट होने का यही मूल सार है, और जब देहधारी परमेश्वर अपने वचनों को बोलता है, तो यही वचन का देह में प्रकट होना है, और वचन का देह में आना है। "आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था, और वचन देहधारी हुआ।" यह (वचन के देह में प्रकट होने का कार्य) वह कार्य है, जिसे परमेश्वर अंत के दिनों में संपन्न करेगा, और उसकी संपूर्ण प्रबंधन योजना का अंतिम अध्याय है, और इसलिए परमेश्वर को पृथ्वी पर आ कर अपने वचनों को देह में प्रकट करना ही है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" से
राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने, और संपूर्ण युग में काम करने के लिये अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, और उसकी बुद्धि और आश्चर्य को जान सके। उसने यह कार्य इसलिए किये ताकि वह मनुष्यों को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर सके। वचन के युग में वचन को उपयोग करने का यही वास्तविक अर्थ है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "राज्य का युग वचन का युग है" से
उसका आरम्भिक कार्य यहूदिया में, इस्राएल के दायरे में, किया गया; गैर यहूदी देशों में उसने कोई भी युग-प्रारम्भ करने वाला कार्य नहीं किया। उसके काम का अंतिम चरण न केवल गैर यहूदी राष्ट्र के लोगों के बीच किया जा रहा है; इससे अधिक, यह उन श्रापित लोगों के मध्य में किया जा रहा है। यह एक बिन्दु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे योग्य प्रमाण है; इस प्रकार से, परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सृष्टि और सभी वस्तुओं का परमेश्वर "बन" जाता है; जीवन युक्त सभी के लिए आराधना का उद्देश्य बन जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है" से
इस अंतिम युग में, मैं अपने नाम को अन्यजातियों के बीच गौरवान्वित करवाऊँगा, और अपने कर्मों को अन्यजाति देशों के सामने दिखवाऊँगा जिससे वे मुझे मेरे कर्मों के कारण सर्वशक्तिमान कह सकते हैं, और इसे इतना बना सकते हैं कि मेरे वचन शीघ्र ही घटित हो जाएँ। मैं सभी लोगों को ज्ञात करवाऊँगा कि मैं केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर नहीं हूँ, बल्कि अन्यजातियों का भी हूँ, यहाँ तक कि उनका भी हूँ जिन्हें मैंने शाप दिया है। मैं सभी लोगों को यह देखने दूँगा कि मैं समस्त सृष्टि का परमेश्वर हूँ। यह मेरा सबसे बड़ा कार्य है, अंत के दिनों के लिए मेरी कार्य योजना का उद्देश्य है, और अंत के दिनों में पूरा किया जाने वाला एकमात्र कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्यों को बचाने का कार्य भी है" से
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