3. पश्चाताप के बिना युवावस्था का समय बिता दिया
ज़ाओवेन, चॉन्गकिंग
"प्रेम एक शुद्ध भावना है, पवित्र बिना किसी भी दोष के। अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए, अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए। प्रेम नियत नहीं करता, शर्तें, बाधाएँ या दूरी। अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए, अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए। यदि तुम प्रेम करते हो, तो धोखा नहीं देते, शिकायत नहीं करते ना मुँह फेरते हो, बदले में कुछ पाने की, चाह नहीं रखते हो" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "शुद्ध प्रेम बिना दोष के")। परमेश्वर के वचन के इस भजन ने एक बार 7 साल व 4 महीने तक चलने वाली कैद में एक लंबी और खिंचने वाली जिंदगी के दर्द से गुजरने में मेरी मदद की थी। भले ही सीसीपी सरकार ने मेरी युवावस्था के सबसे सुंदर सालों से मुझे वंचित कर दिया था, लेकिन मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से सबसे बहुमूल्य व असली सत्य पाया है और इसीलिए मुझे कोई शिकायत या पछतावा नहीं है।
1996 में मुझे परमेश्वर का की उमंग मिली और मैंने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार किया। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर और संवाद में धर्मसभा करके, मैंने यह जाना कि परमेश्वर ने जो कुछ भी कहा है वह सत्य है, जो इस बुरी दुनिया के सभी ज्ञान व सिद्धांतों का पूरा निरूपण है। सर्वशक्तिमान परमेश्चर का वचन जिंदगी का सबसे बड़ा नियम है। जिस बात ने मुझ और ज्यादा उत्साहित किया वह यह थी कि मैं सहज रह सकती थी और भाईयों व बहनों के साथ किसी भी चीज पर खुल कर और स्वतंत्रता से बात कर सकती थी। मुझे दूसरों के अटकलों के विरुद्ध अपनी रक्षा करने या लोगों से बात करते हुए उनके द्वारा नजरअंदाज किए जाने की चिंता करने की थोड़ी भी जरूरत नहीं थी। मैंने उस सहजता व खुशी का अनुभव किया था जो मैंने पहले कभी नहीं की थी; मुझे यह परिवार वाकई पसंद था। हालांकि, यह सब मेरे ये सुनने से बहुत पहले की बात नहीं थी कि इस देश में लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने की अनुमति नहीं थी। इस मामले से मुझे लगा कि मैंने सबकुछ खो दिया, क्योंकि उनके वचन लोगों केा परमेश्वर की पूजा करने और जिंदगी के सही मार्ग पर चलने की अनुमति देते थे; इसने लोगों को ईमानदार रहने की अनुमति दी थी। अगर हर कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता होता, तो यह पूरी दुनिया शांतपूर्ण स्थान हो गई होती। मैं वाकई नहीं समझी थी: परमेश्वर में विश्वास करना सबसे अधिकापूर्ण पहल थी; क्यों सीसीपी सरकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों को इस हद तक तंग व विरोध करना चाहती थी कि उन्होंने उनके आस्तिकों को ही गिरफ्तार कर लिया? मैंने सोचा: चाहे सीसीपी सरकार हमें कितना भी तंग करें या सामाजिक जनता का विचार जो भी हो, लेकिन मैंने यह फैसला ले लिया है कि यही जिंदगी का सही मार्ग है और मैं अंत तक इसी मार्ग पर चलूंगी!
इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचन की किताबों का वितरण करने के कलीसिया के अपने कर्मव्य को पूरा करना शुरू कर दिया। मैं जानती थी कि इस देश में अपने कर्तव्य को पूरा करना, जो परमेश्वर का विरोध करता था, काफी खतरनाक था और मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता था। लेकिन मैं यह भी जानती थी कि संपूर्ण निर्माण के भाग के रूप में, परमेश्वर के लिए सबकुछ लगा देना व मेरे कर्तव्य को पूरा करना ही मेरी जिंदगी का लक्ष्य था; यह मेरी जिम्मेदारी थी जिससे मैं बच नहीं सकती थी। जब मैं बस परमेश्वर का सहयोग करने में आत्मविश्वास पा ही रही थी, कि सितंबर 2003 के एक दिन, मैं कुछ भाईयों व बहनों को परमेश्वर के वचनों के किताबें देने जा रही थी और तभी शहर के नेशनल सिक्योरिटी ब्यूरो के लोगों ने मुझे गिरफ्तार कर लिया।
नेशनल सिक्योरिटी ब्यूरो में, मुझसे बार—बार पूछताछ की गई और मैं जानती भी नहीं थी कि उत्तर कैसे दूं; मैं तुरंत की परमेश्वर को याद करके रोने लगी: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने आपसे कहा था कि आप मुझे अपनी प्रबुद्धता दें, और मुझे वे वचन दान करें जो मुझे बोलने चाहिए ताकि मैं आपको धोखा न दूं और मैं आपके लिए गवाह बनकर खड़ी हो सकूं।" इस समय के दौरान, मैं हर रोज परमेश्वर के लिए रोया करती थी; मैं परमेश्वर को छोड़ने की हिम्मत नहीं करती थी, मैं बस परमेश्वर से बुद्धि और प्रबुद्धता मांगा करती थी ताकि मैं इन बुरे पुलिस वालों का सामना करने में सक्षम हो पाउं। मुझे देखने और मेरी सुरक्षा करने के लिए परमेश्वर की स्तुति करती थी; हर बार जब मुझसे पूछताछ की जाती थी, तो या तो मेरी लार बहने लगती थी, या फिर तुरंत ही मुझे हिचकियां आने लगती थी और मैं बोल नहीं पाती थी। परमेश्वर के अनोखे कार्य को देखकर, मैं दृढ़ता से संकल्पित हो गई थी: बिल्कुल भी पीछे नहीं हटना है! वे मेरा सिर ले सकत हैं, वे मेरी जान ले सकते हैं, लेकिन आज तो वे मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं! जब मैंने यह संकल्प ले लिया कि मैं जुडास की तरह परमेश्वर को धोखा देने की जगह अपनी जान जोखिम में डाल दूंगी, तो परमेश्वर ने मुझे हर पहलू में "आगे—बढ़ने" की आज्ञा दी: हर बार जब भी मुझसे पूछताछ की गई, परमेश्वर ने मेरी रक्षा की और इस कठिन परीक्षा से शांतिपूर्वक गुजरने की अनुमति दी। भले ही, मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन सीसीपी सरकार ने मुझे "कानून के कार्यान्वयन को बाधित करने के लिए एक बुरे संप्रदाय का प्रयोग करने" का दोषी बनाया और मुझे 9 साल की कैद की सजा सुना दी गई। जब मैंने अदालत की सुनवाई में यह सुना, तो मैं परमेश्वर की सुरक्षा की वजह से दुखी नहीं थी, और न ही मैं उनसे डरी हुई थी; बल्कि, मैंने उनकी निंदा की। जब वे लोग सजा सुना रहे थे, तो मैंने धीमी आवाज में कहा: "यह साक्ष्य है कि सीसीपी सरकार परमेश्वर का विरोध कर रही है!" बाद में, पब्लिक सिक्योरिटी ऑफिसर यह जासूस करने आए कि मेरा रवैया कैसा था, और मैंने शांतिपूर्वक उनसे कहा: "नौ साल क्या हैं? जब मेरे बाहर आने का वक्त आयेगा, तो भी मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया की सदस्य रहूंगी; अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इंतजार करो और देखो! लेकिन तुम्हें याद रखना होगा, यह केस कभी तुम्हारे हाथों में था!" मेरे नजरिए ने उन्हें वाकई आश्चर्यचकित कर दिया; उन्होंने मगरूरी से अपने अंगूठे दिखाएं और बार—बार कहा: :हमें इसे तुम्हारे हाथों में ही देना होगा! हम तुम्हारी प्रशंसा करते हैं! तुम बहन जियांग से भी ज्यादा मजबूत होगा![a] जब तुम बाहर निकलोगी तो मिलेंगे, और तुम्हारे लिए रात्रिभोज रखेंगे!" उस समय, मैं महसूस किया कि परमेश्वर ने गर्व किया है और मेरा दिल आभारी था। जिस साल मुझे सजा सुनाई गई थी, तब मैं केवल 31 साल की थी।
चीन की जेलें पृथ्वी पर नरक हैं, और लंबे समय की कैद भरी जिंदगी ने इस जिंदगी ने मुझे शैतान के सच्ची अमानवीयता और परमेश्वर का शत्रु बनने वाले उसके भयानक अस्तित्व को अच्छी तरह से देखने का मौका दिया। चीन की पुलिस कानून के नियमों का पालन नहीं करती है, बल्कि वे बुराई के नियम का पालन करते हैं। जेल में, पुलिस वाले लोगों से खुद नहीं निपटते हैं, बल्कि वे दूसरे कैदियों को संभालने के लिए कैदियों को हिंसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। ये बुरे पुलिस वाले लोगों के विचारों को सीमित करने के लिए हर प्रकार की युक्तियों का इस्तेमाल भी करते हैं; उदाहरण के लिए, जेल में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति एक खास सीरियल नंबर वाली कैदियों की समान यूनिफार्म पहननी होगी, उन्हें जेल की जरूरतों के अनुसार अपने बाल कटवाने होंगे, उन्हें जेल द्वारा स्वीकृत जूते पहनने होंगे, उन्हें उसी रास्ते पर चलना होगा जिस पर चलने की अनुमति उसे जेल देती है, और उन्हें उसी गति पर चलना होगा जिस गति पर चलने की अनुमति जेल देती है। भले ही यह वसंत, ग्रीष्म, पतझड़ या सर्दी हो, भले ही बारिश हो या धूप, या फिर भयंकर ठंड का दिन हो, सभी कैदियों को किसी विकल्प के लिए वहीं करना पड़ता है, जैसा कि निर्देशित है। हर रोज हमें गिनती करने और कम से कम पांच मिनट तक सीसीपी सरकार की स्तुति गाने के लिए कम से कम 15 मिनट तक इकट्ठा होने की जरूरत होती थी; हमें राजनीतिक काम भी मिलते थे, जैसे कि, वे हमें जेल के कानून और संविधान पढ़ाते थे, और वे हर छ: महीने में हमारी परीक्षा भी लेते थे। इसका उद्देश्य था हमारा मन परिवर्तन करना। वे अक्सर यूं ही अनुशासन और जेल के नियमों पर हमारी जानकारी की परीक्षा भी ले लेते थे। जेल की पुलिस न केवल हमें मानसिक तौर पर यातनाएं दिया करती थी, बल्कि वे पूरी अमानवीयता के साथ शारीरिक तौर पर भी हमें कष्ट देते थे। मुझे मानवीय श्रम करवाने वाली एक संकरी फैक्ट्री में अन्य सैकड़ों लोगों के साथ भरे हुए, एक दिन में दस घंटे से ज्यादा समय तक कठिन श्रम करना पड़ता था। चूंकि इतनी कम जगह में बहुत सारे लोग थे, और चूंकि मशीनों का शोर सभी जगह होता था, इसलिए व्यक्ति चाहे कितना भी सेहतमंद हो, लेकिन अगर वे वहां पर एक निश्चित समयावधि तक रुकें, तो उनके शरीर में गंभीर समस्या पैदा हो जाए। मेरे पीछे सुराख बनाने वाली एक पंचिंग मशीन थी और हर रोज यह लगातार सुराख बनाया करती थी। यह जो गड़गड़ाहट की आवाज उससे आ रही थी वह असहनीय थी और कुछ सालों के बाद, मुझे अच्छी तरह से सुनाई देना बंद हो गया। आज भी मैं पूरी तरह से इससे ठीक नहीं हुई हूं। फैक्ट्री में धूल और प्रदूषण वहां के लोगों के लिए और भी हानिकारक थी। जांच करने के बाद, कई लोगों को ट्यूबरक्यूलॉसिस और फैरिंगाइटिस से पीड़ित पाए गए। इसके अलावा, अपना मानवीय श्रम करने के लिए कई घंटों तक बैठे रहने के कारण, चलना—फिरना लगभग असंभव था और कई लोगों को गंभीर रूप से हेमेरॉइड्स हो गया था। सीसीपी सरकार धन बनाने के लिए कैदियों के साथ मशीनों जैसा बर्ताव कर रही थी; उन्हें इस बात से थोड़ी भी फर्क नहीं पड़ता था कि वे जिंदा रहते हैं हैं मर जाएंगे। वे लोगों से दिन के आरंभ से देर रात तक काम करवाया करते थे। मैं अक्सर इतना थक जाती थी कि मैं शारीरिक रूप से उठ भी नहीं पाती थी। केवल इतना ही नहीं, मुझे अपने साप्ताहिक राजनीतिक कामों, मानवीय श्रम, और सार्वजनिक कामों आदि के अलावा भी सब प्रकार की आकस्मिक परीक्षाओं से निपटना पड़ता था। इसलिए, हर रोज मैं बुरी तरह से थका हुआ करती थी; मेरी मानसिक स्थिति को लगातार ताना जा रहा था, और मुझे इस बात की बहुत ज्यादा चिंता थी कि अगर मैं थोड़ी सी भी बेहोश हुई, तो मैं उठने में सक्षम नहीं हो पाउंगी, और फिर जेल की पुलिस मुझे सजा देगी। इस प्रकार के माहौल में, एक दिन भी ठीक—ठाक गुजारना आसान काम नहीं था।
जब मैंने अपनी सजा की अवधि को शुरू ही किया था, तब मैं जेल की पुलिस द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की क्रूर लूट को संभालने में सक्षम नहीं थी। हर प्रकार के गंभीर मानवीय श्रम और वैचारिक दबाव ने वहां सांस लेना भी मुश्किल कर दिया था, यह बताने की जरूरत नहीं कि मुझे कैदियों के साथ हर प्रकार का संबंध रखना पड़ता था। कुछ जेल के क्रूर पुलिस वालों और कैदियों के बुरे बर्तावों और अपमानों को भी सहना पड़ता था। मुझे अक्सर ही यातना दी जाती और कठिनाइयों में रखा जाता था। कई बार, मैं निराशा में डूब जाया करती थी, खासतौर पर जब मैं नौ साल की सजा की लंबाई के बारे में सोचा करती थी, तो मुझे उदास असहायता से भरा हुआ महसूस होता था और मुझे नहीं पता कि कितनी बार मैं इस हद तक रोई थी कि मैंने खुद को उस दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए आत्महत्या तक के बारे में सोच लिया था, जिस दर्द में मैं थी। हर बार, मैं अवसाद में डूब जाया करती थी और खुद की मदद भी नहीं कर पाती थी, मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर के समक्ष रोई एवं परमेश्वर ने मुझे प्रबुद्ध बना दिया और मेरा मार्गदर्शन किया: "तुम अभी मर नहीं सकते हो। तुम्हें अपनी मुट्ठी बंद करनी होगी और जीवित रहने का संकल्प लेना होगा; तुम्हें परमेश्वर के लिए जीवन व्यतीत करना होगा। जब लोगों के भीतर सत्य होता है तो उनमें कभी न मरने का संकल्प और इच्छा होती है; जब मृत्यु तुम्हें डराती है, तो तुम कहोगे, 'हे परमेश्वर, मैं मरने के लिए तैयार नहीं हूँ; मैं अभी भी तुम्हें नहीं जान पाया। मैंने अभी भी तुम्हारे प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया है। … मुझे परमेश्वर की अच्छी गवाही देनी चाहिए। मुझे परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देना चाहिए। इसके बाद, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मैं कैसे मरता हूँ। तब मैं एक संतोषजनक जीवन जीऊँगा। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन मर रहा है, मैं अभी नहीं मरूँगा; मुझे दृढ़ता से जीना जारी रखना होगा'" ("मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से "मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें" से)। परमेश्वर के वचन मेरे अकेले दिल को शांत करने वाली मेरी मां की शांत व नम्र नजर की तरह थे। ये ऐसे थे जैसे मेरे पिता अपने दोनों हाथों से बड़े प्यार से मेरे चेहरे के आंसू पोछ रहे हों। फौरन, मेरे दिल में एक तेज बिजली और ऊर्जा दौड़ पड़ी। भले ही मैं अंधेरी जेल में शारीरिक रूप से पीड़ा सह रही थी, लेकिन आत्महत्या करना परमेश्वर की इच्छा नहीं थी। मैं परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम नहीं हो पाउंगी और साथ ही शैतान की हंसी की पात्र भी बन जाउंगी। अगर मैं नौ साल की इस शैतानी कैद से जिंदा बाहर जाऊं तो यह एक गवाही होगी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अपनी जिंदगी के साथ आगे बढ़ने की हिम्मत दी और मैंने अपने दिल में एक संकल्प लिया: चाहे मेरे सामने कितनी ही कठिनाइयां क्यों न आए, मैं कर्मठता के साथ जीती रहूंगी; मैं साहस के साथ और मजबूती से जियूंगी और निश्चित रूप से परमेश्वर की संतुष्टि की गवाह बनूंगी।
साल आते गए और साल जाते गए, काम के बढ़ते वजन के कारण मेरे शरीर लगातार कमजोर होता गया। कारखाने में लंबे समय तक बैठे रहने के बाद, मेरा बहुतायत में पसीना निकल गया होता और जब मेरे बवासीर बहुत गंभीर हो जाते तो उनसे भी खून निकलने लग गया होता। मेरी गंभीर एनीमिया के कारण, मुझे अक्सर ही चक्कर आने लगते। लेकिन जेल में, चिकित्सक के पास जांच करवाना आसान काम नहीं था; अगर जेल की पुलिस होती, तो मुझे कुछ सस्ती दवाईयां दे दी जाती। अगर वे नहीं हुई, तो वे कह दिया करते थे कि मैं काम से बचने के लिए बीमारी का बहाना बना रही हूं। मुझे इस बीमारी की यातना को सहना पड़ता था और अपने आंसू पोछने पड़ते थे। एक दिन के काम के बाद ही मैं बुरी तरह से क्लांत हो गई थी। बुरी तरह से थके अपने शरीर को मैं अपने जेल की सेल में ले गई और थोड़ा आराम करना चाह रही थी, लेकिन मुझे थोड़ी सी भी अच्छी नींद लेने का अधिकार नहीं था: या तो जेल की पुलिस मुझे आधी रात को कोई काम करने के लिए बुला लिया करती थी, या फिर जेल की पुलिस द्वारा किए जाने वाले गड़गड़ाहट के शोर से मैं उठ जाती थी। ... वे अक्सर ही मेरे साथ खेला करते थे और मैं चुपचाप यह सब सहती थी। इसके अलावा, मुझे जेल की पुलिस द्वारा किए जाने वाले अमानवीय बर्ताव को भी सहना पड़ता था। मैं एक शरणार्थी की तरह कभी जमीन पर या बरामदें में, या फिर शौचालय के पास भी सोती रहती थी। मैं जो कपड़े धोया करती थी वह सूखते भी नहीं थे, बल्कि उन्हें सूखने के लिए डालने गए दूसरे कैदियों के कपड़ों के साथ भर दिया जाता था। स र्दी के दिनों में कपड़े धोना और भी परेशान करने वाला था, और लंबे समय तक सीलन खाए कपड़े पहनने के कारण कई लोगों को गठिया—वात हो गया था। जेल में, सेहतमंद लोगों को भी कुंठित व मंदबुद्धि, शारीरिक रूप से कमजोर या रोग से पीड़ित होने में ज्यादा समय नहीं लगता था। हम अक्सर ही मौसम के बाद फेंकी गई पुरानी, सूखी सब्जियां खाया करते थे। अगर आप कुछ अच्छा खाना चाहते थे, तो आपको जेल में महंगा खाना खरीदना पड़ता था। भले ही लोगों को जेल में कानून पढ़ाया जाता था, लेकिन वहां कोई कानून नहीं था; जेल की पुलिस ही कानून थी और अगर किसी ने उन्हें गलत तरीके से रोका, तो वे तुम्हें सजा देने का कारण खोज सकते थे, हालांकि एक हद तक वे तुम्हें किसी कारण के बिना भी सजा दे सकते थे। और भी निंदनीय बात यह थी कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वालोें को राजनीतिक अपराधी मानते थे, और कहते थे कि हमारा जुर्म हत्या और आगजनी करने से भी ज्यादा खतरनाक है। इसलिए, वे मुझसे खासतौर पर नफरत करते थे और कठोरता से मुझे नियंत्रित करते थे, और सबसे क्रूरता के साथ मुझे यातनाएं देते थे। इस प्रकार का बुरा बर्ताव इस तानाशाह के पथभ्रष्ट बर्ताव, स्वर्ग का विरोध करने, और परमेश्वर से शत्रुता करने का पक्का सबूत है। जेल में क्रूर यातनाओं को सहकर, मेरा दिल सच्च क्रोध से भर गया था: परमेश्वर में विश्वास करने और परमेश्वर की पूजा करने से कौन सा कानून टूटता है? परमेश्वर का पालन करना और जिंदगी के सही मार्ग पर चलना कौन सा जुर्म है? इंसानों का निर्माण परमेश्वर के हाथों से हुआ था और परमेश्वर में विश्वास करना और परमेश्वर की पूजा करना स्वर्ग व पृथ्वी का कानून है; किस कारण से सीसीपी सरकार ने हिंसापूर्वक इसका उल्लंघन करना पड़ा और इसके पीछे पड़ी है? यह उसका जिद्दी बर्ताव और स्वर्ग का विरोध है; यह हर पहलू में खुद को परमेश्वर के विरुद्ध कर रहा है, यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के आस्तिकों पर उन्नतिरोधक होने का आरोप लगाता है और गंभीर के साथ हमें यातना देता है और हमें लूटता है। यह एक ही बार में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सभी विश्वास करने वालों को खत्म करने की कोशिश करता है। क्या यह सफेद के लिए काने को बदलना और पूरी तरह से उन्नतिरोधक होना नहीं है? यह पागलपन से स्वर्ग का विरोध करता है और परमेश्वर का शुत्रु है; अंतत: इसे परमेश्वर की सच्ची सजा को भुगतना ही होगी! यहां हर जगह भ्रष्टाचार है, तो यहां न्याय भी होना ही चाहिए; यहां हर जगह पाप है, तो यहां उसकी सजा भी होनी ही चाहिए। यह परमेश्वर का स्वर्ग में पूर्वनिर्धारित कानून है, इससे कोई भी भाग नहीं सकता। सीसीपी सरकार का बुरे जुर्म आसमान तक पहुंच गए हैं, वे परमेश्वर का विध्वंस सहेंगे। जैसा कि परमेश्वर ने कहा था: "परमेश्वर इस अंधियारे समाज से लंबे समय से घृणा करता आया है। इस दुष्ट, घिनौने बूढ़े सर्प पर अपने पैरों को रखने के लिए वह अपने दांतों को पीसता है, ताकि वह फिर से कभी न उठ पाए, और फिर कभी मनुष्य का दुरुपयोग न कर पाए; वह उसके अतीत के कर्मों को क्षमा नहीं करेगा, वह मनुष्य को दिए गए धोखे को बर्दाश्त नहीं करेगा, वह प्रत्येक युग में उसके सभी पापों के लिए उसका हिसाब करेगा; सभी बुराईयों के इस सरगना के प्रति परमेश्वर थोड़ी भी उदारता नहीं दिखाएगा, वह पूरी तरह से इसे नष्ट कर देगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (8)" से)।
इस दानवीय कैद में, मैं इन बुरे पुलिस वालों की नजरों में एक आवारा कुत्ते से भी गई—गुजरी थी; वे न केवल मुझे मारा और डांटा करते थे, बल्कि ये बुरे पुलिस वाले अक्सर और अचानक ही मेरे बिस्तर और मेरी निजी चीजों को उठाकर फेंक दिया करते थे। साथ ही, जब भी बाहरी दुनिया में किसी प्रकार के दंगे होते, तो हर बार जेल के वे लोग जो राजनीतिक मामलों के प्रभारी हैं, वह मुझे खोज लिया करते थे और इन घटनाओं पर मेरे दृष्टिकोण पर तर्क—वितर्क करते थे और लगातार इस बात पर मेरी निंदा की जाती कि मैं क्यों परमेश्वर में विश्वास करने के मार्ग में चलती थी। हर बार, जब मैं इस प्रकार के सवालों का सामना कर रही होती, तो मेरा दिल मेरे मुंह को आ गया होता, क्योंकि मैं नहीं जानती थी कि इन बुरे लोगों के दिमाग में मेरे लिए कौन सी योजना बनी रही होती। मेरे दिल हमेशा ही तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना करने लगता और इस आपदा से गुजरने के लिए मदद व मार्गदर्शन के लिए रोने लगता था। दिन—ब—दिन, साल—दर—साल, दुर्व्यहार, शोषण व दमन ने मुझे अकथनीय यातना से उत्पीड़न दिया था: हर रोज, मुझे मानवीय श्रम और कुंठित, उबाऊ राजनीतिक जिम्मेदारियों से लाद दिया जाता था, मैं अपनी बीमारी से भी पीड़ित थी और इन सबसे भी बढ़कर, मैं मानसिक रूप से अवसाद में थी। इसने मुझे टूटने की कगार पर पहुंचा दिया था। खासतौर पर, जब से मैंने बुरे पुलिस वालों की अमानवीय यातना न सह पाने के कारण एक मध्यआयु की महिला कैदी को खुद को आधी रात में खिड़की से फांसी लगाए हुए, और एक बुजुर्ग महिला कैदी को उसकी बीमारी में देरी से इलाज मिलने के कारण मरते हुए देखा था, तब से मैं उसी दमघोंटू खतरनाक संकीर्णता में डूब गई थी और फिर से आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थी। मैं महसूस किया कि मृत्यु सबसे अच्छी राहत थी। लेकिन मैं जानती थी कि वह परमेश्वर को धोखा देना होगा और मैं वह नहीं कर सकती थी। मेरे पास सारा दर्द सहने और परमेश्वर की व्यवस्था को मान लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन जैसे ही मैं अपनी लंबी सजा के बारे में सोचने लगती और यह सोचती कि मैं अब भी आजादी से कितनी दूर थी, तो मुझे महसूस होता था कि मेरे दर्द व हताशा को कोई भी वचन पारिभाषित नहीं कर सकते थे; मैंने महसूस किया कि मैं इसे और नहीं सह सकती थी और यह कि मैं इसे और कितना सहने में सक्षम होउंगी। न जाने कितनी ही बार मैं बस अंधेरी रात में अपनी रजाई से खुद को कवर करके रोने, सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना और विनती करने और मेरे मन में जितना भी दर्द था उसके बारे में उन्हें बताने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। अपने सबसे दर्द भरे और असहाय समय में, मैंने सोचा: आज मैं इसलिए पीड़ा सह रही हूं ताकि मैं खुद को भ्रष्टाचार से अलग कर सकूं और परमेश्वर का उद्धार पा सकूं। यह सब वे तकलीफे हैं जिन्हें मुझे झेलना चाहिए, और जिन्हें मुझे झेलना ही होगा। जैसे ही मैंने इसके बारे में सोचा, तो जो दुख मुझे महसूस हो रहा था वह महसूस होना बंद हो गया; बल्कि, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर में मेरे विश्वास करने के कारण जबरदस्ती जेल में बंद किया जाना, और उद्धार पाने के लिए तकलीफों को सहना महानतम आदर्श व महत्व का था; यह कष्ट बहुत मूल्यवान था! अनजाने में, मेरे दिल का अवसाद आनंद में बदल गया और मैं अपनी भावनाओं को रोक पाने में असमर्थ हो गई; मैंने अपने दिल के अंदर से उस अनुभव का भजन गाना शुरू कर दिया जिससे मैं परिचित थी, जिसे "हमारी जिंदगी व्यर्थ नहीं है" कहते हैं: "हमारी जिंदगी व्यर्थ नहीं हैं, हमारे कष्ट का अर्थ है। हमारी जिंदगी व्यर्थ नहीं है, जिंदगी कितनी भी कठिन हो हम पीछे नहीं हटेंगे। हमारी जिंदगी व्यर्थ नहीं है, हम परमेश्वर को जानने का अच्छा अवसर पाएंगे। हमारी जिंदगी व्यर्थ नहीं है, हम महान परमेश्वर के लिए समाप्त हो सकते हैं। हमें ज्यादा और कौन धन्य है? हमसे ज्यादा और कौन भाग्यशाली है? ओह, परमेश्वर ने हमें जोर दिया है वह पिछली सभी पीढ़ियों से गुजर कर आया है; हमें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए और परमेश्वर के महान प्रेम के लिए हमें उन्हें बदला देना चाहिए।" मैंने अपने दिल में इस भजन को दोहराया और मैं अपने दिल में यह जितना ज्यादा गाती, उतना ही ज्यादा प्रोत्साहन मुझे मिलता; जितना ज्यादा मैं गाती, उतना ही ज्यादा मुझे महसूस होता कि मुझमे शक्ति व आनंद था। मैं परमेश्वर की उपस्थिति में एक प्रतिज्ञा लेने के लिए कोई मदद नहीं कर सकती थी: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं आपकी सहजता और प्रोत्साहन के लिए आपको धन्यवाद करती हूं जिसकी वजह से फिर से मुझमें विश्वास जगा है और मुझे जीते रहने की हिम्मत मिली है। आपने मुझे यह महसूस करने की अनुमति दी है कि आप ही निश्चित रूप से मेरी जिंदगी के प्रभु हैं और आप ही मेरी जिंदगी की शक्ति हैं। भले ही मैं नरक में कैद हूं, लेकिन मैं अकेली नहीं हूं, क्योंकि इन अंधेरे दिनों में भी आप हमेशा ही मेरे साथ रहे हैं; आपने मुझे बार—बार विश्वास दिया है और मुझे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया है। हे परमेश्वर, अगर मैं कभी यहां से बाहर निकलने और आजादी से जीने में सक्षम हुई, तो मैं अपने कर्तव्यों का पालन करूंगी और फिर कभी आपका दिल नहीं दुखाउंगी न ही अपने लिए योजनाएं बनाउंगी। हे परमेश्वर, आगे ये दिन चाहे कितने मुश्किल या कठिनाईयों भरे हों, मैं पूरी ताकत के साथ जीते रहने के लिए आप पर निर्भर रहना चाहती हूं!"
कैद में, मैं अक्सर ही अपने भाईयों व बहनों के साथ के दिनों को याद किया करती थी; वह वाकई कितना अच्छा समय था! हर कोई खुश व हंसता रहता था, और हम में मतभेद भी थे, लेकिन वे सभी अच्छी यादें बन गई थी। लेकिन हर जब मैं उस समय को याद करती जब मैं अपनी पिछली जिम्मेदारियों को लापरवाही से पूरा किया करती थी, तो मुझे बहुत शर्मिंदगी और कृतज्ञता का आभास होता था। जब मैं उन विवादों के बारे में सोचती थी जो मेरी जिद्दी प्रवृत्ति के कारण भाईयों व बहनों के साथ हुए थे; तब मैं खास तौर पर असहज और पश्चाताप महसूस करती थी। जब भी ऐसा होता था, तो हर बार मेरे आंसू निकल आया करते थे और मैं चुपचाप अपने दिल में एक परिचित भजन गाने लगा करती थी: "मैं कितनी पश्चातापी हूं, मैं कितनी पश्चातापी हूं, मैं कितने मूल्यवान समय को बर्बाद कर दिया। समय आगे बढ़ जाता है और केवल पश्चाताप पीछे रह जाता है। … मेरी पिछली सभी कृतज्ञताओं के लिए और मैं सिर ऊंचा करके एक नई शुरुआत करूंगी। परमेश्वर मुझे एक और मौका देते हैं और उनकी उदारता के साथ, मैं अपना नया विकल्प बनाउंगी। मैं निश्चित रूप से इस दिन का जश्न मनाउंगी, सत्य का अभ्यास करूंगी, सबसे अच्छी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को निभाउंगी, और फलस्वरूप परमेश्वर को संतुष्ट करूंगी। परमेश्वर का दिल उत्सुक है, उम्मीदों से भरा है। तो, मैं फिर से उनका दिल नहीं तोड़ूंगी" (फॉलो द लैम्ब एंड सिंग न्यू सॉन्ग्स में "मैं कितनी पश्चातापी हूं")। मेरे दर्द और खुद पर आरोप लगाने में, मैं अक्सर ही अपने दिल में परमेश्वर की प्रार्थना करती थी: हे परमेश्वर! मैं वाकई आपके लिए काफी कम पड़ गई हूं; अगर आप इसे अनुमति देंगे, तो मैं आपको प्रेम करने की कोशिश करने की इच्छित हूं। मेरे इस जेल से बाहर निकलने के बाद, मैं तब भी अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहूंगी और फिर से शुरुआत करना चाहूंगी! मैं पिछली कमियों को भर दूंगी! जेल में मेरे समय के दौरान, मैं उन भाईयों व बहनों को खासतौर पर याद किया जिनके साथ मैं सुबह व शाम में संपर्क में रहा करती थी; मैं वाकई उनसे मिलना चाहती थी लेकिन इस दानवीय जेल में जिसमें मुझे बंद किया गया था, यह इच्छा एक असंभव निवेदन था। हालांकि, मैं इन भाईयों व बहनों को अक्सर ही अपने सपनों में देखा था; मैं सपना देखा था कि हम सब एक साथ परमेश्वर के वचन पढ़ रहे थे और एक—दूसरे के साथ सत्य का संवाद कर रहे थे। हम सभी खुश व आनंदित थे।
2008 में वेंचुआन के भीषण भूकंप के दौरान, हम जिस जेल में कैद थे वह हिलने लगा था और उस समय मैं आखिरी व्यक्ति थी जिसे उस जगह से हटाया गया था। उन दिनों के दौरान लगातार हल्के झटके लग रहे थे। कैदी और जेल की पुलिस दोनों ही इतने भयभीत व चिंतित थे कि मैं आगे नहीं बढ़ पाए थे। लेकिन मेरे दिल खासतौर पर स्थिर और अटल था, क्योंकि मैं जानती थी कि यह परमेश्वर का वचन का गुजरना था; यह परमेश्वर की क्रोधी प्रचंडता की शुरुआत थी। सौ साल में एक बार आने वाले ऐसे भूूकंप के दौरान, परमेश्वर के वचन ने हमेशा ही मेरी रक्षा की; मैं मानती हूं कि मानव की जिंदगी और मृत्यु दोनों ही परमेश्वर के हाथों में है। परमेश्वर चाहे यह जैसे भी करे, लेकिन मैं परमेश्वर की व्यवस्था को मानने के लिए तैयार हूं। हालांकि, एकमात्र बात जो मुझे दुखी करती थी वह यह थी कि अगर मैं मर गई, तो मैं रचना के प्रभु के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने का मौका नहीं मिल पाएगा, मुझे परमेश्वर के प्रेम की अदायगी करने का मौका नहीं मिल पाएगा, और मैं अपने भाईयों व बहनों से नहीं मिल पाउंगी। फिर भी, मेरी चिंता फालतू थी; परमेश्वर हमेशा ही मेरे साथ थे और उन्हें सर्वोत्कृष्ट सुरक्षा दी थी, जिसने मुझे भूकंप से बचने और उससे होकर शांतिपूर्ण जिंदगी जीने का अनुमति दी थी!
जनवरी 2011 में, मुझे जल्दी छोड़ दिया गया, जिससे जेल में मेरी गुलामी के दिनों का अंतत: अंत हुआ। अपनी आजादी पाने पर, मेेरा दिल बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ था: मैं कलीसिया में वापस जा सकती हूं! मैं अपने भाईयों व बहनों के साथ हो सकती हैं! वचन मेरी मनोदशा को नहीं बता सकते हैं। जिस बात की मुझे उम्मीद नहीं थी, वह यह थी कि घर वापस आने के बाद, मेरी बेटी ने मुझे पहचाना नहीं था, और मेरे रिश्तेदार व दोस्तों ने मुझे बड़ी अनोखी नजर से देखा था; उन सभी ने मुझसे दूरी बना ली थी और मुझसे संपर्क रखना छोड़ दियज्ञ। आसपास के लोग मुझे नहीं समझते थे या मुझे घर के अंदर नहीं आने देते थे। इस समय, भले ही मुझे जेल में निंदित या उत्पीड़ित नहीं किया जा रहा था, लेकिन उन उदासीन चेहरों, तिरस्कार और अकेलेपन को सहना मुश्किल था। मैं बहुत कमजोर और नकारात्मक हो गई थी। मैं बीते दिनों को याद करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी: जब यह हादसा हुआ, तो मैं केवल इकतीस साल की थी; जब मैं जेल से बाहर आईं, तो आठ सर्दियां और सात ग्रीष्म निकल चुके थे। मेरे अकेलेपन व असहायता में कितनी ही बार परमेश्वर ने लोगों, मामलों और चीजों की व्यवस्था मेरी मदद करने के लिए की थी; मेरे दर्द और निराशा में कितनी ही बार परमेश्वर के वचनों ने मुझे सहज किया था; कितनी ही बार जब मैं मरना चाहती थी तब परमेश्वर ने मुझे जीने हेतु साहस बटोरने के लिए शक्ति दी की थी ...। उन लंबे व दर्दभरे दिनों के दौरान, वह परमेश्वर ही थे जिन्होंने मुझे दृढ़तापूर्वक जीने हेतु मृत्यु की छाया की घाटी से बाहर निकलने के लिए चरण दर चरण मदद की। अब इस तकलीफ को सहते हुए, मैं नकारात्मक व कमजोर हो गई थी और परमेश्वर से शोक करने लगी थी। मैं सच में कायर और अयोग्य व्यक्ति थी जिसने उसी हाथ को काट खाया था जिसने मुझे खाना खिलाया था! इस बारे में सोचते हुए, मेरा दिल बहुत ज्यादा दोषी हो गया था; मैं उस प्रतिज्ञा के बारे में सोचने के अलावा कोई मदद नहीं कर सकती थी, जो मैंने परमेश्वर के साथ तब ली थी जब मैं जेल में थी: अगर मैं कभी यहां से बाहर निकलने और आजादी से जीने में सक्षम हुई, तो मैं अपने कर्तव्यों का पालन करूंगी और फिर कभी आपका दिल नहीं दुखाउंगी न ही अपने लिए योजनाएं बनाउंगी। मैंने इस प्रतिज्ञा पर विचार किया और उन हालातों को याद किया जिसमें मैं परमेश्वर के लिए यह प्रतिज्ञा लेते वक्त थी। मेरी आंखों से आंसू निकल आए और मैंने धीरे से परमेश्वर के वचन का भजन गाया: मैं अपनी इच्छा से परमेश्वर का अनुसरण करता/करती हूं। मुझे परवाह नहीं है कि वह मुझे चाहता है या नहीं। मैं उसे प्रेम करना चाहता/चाहती हूं, दृढ़ता से उसका अनुसरण करना चाहता/चाहती हूं। मैं उसे प्राप्त करूंगा/करूंगी, उसे अपना जीवन अर्पित करूंगा/करूंगी।
प्रथम.
परमेश्वर की इच्छा हो पूरी। मेरा दिल पूरी तरह से परमेश्वर को हो समर्पित। परमेश्वर मेरे लिए जो कुछ भी करे या मेरे लिए उसकी कोई भी योजना हो, मैं उसे प्राप्त करना चाहता/चाहती हूं। मैं अपनी इच्छा से परमेश्वर का अनुसरण करता/करती हूं। मुझे परवाह नहीं है कि वह मुझे चाहता है या नहीं। मैं उसे प्रेम करना चाहता/चाहती हूं, दृढ़ता से उसका अनुसरण करना चाहता/चाहती हूं। मैं उसे प्राप्त करूंगा/करूंगी, उसे अपना जीवन अर्पित करूंगा/करूंगी।
द्वितीय.
यदि तुम चाहते हो अंत तक खड़े होकर परमेश्वर की इच्छा पूरी करना, तो एक दृढ़ नींव रखो, सभी बातों में सत्य का अभ्यास करो। यह परमेश्वर को प्रसन्न करता है और वह तुम्हारे प्रेम को मज़बूत करेगा। मैं अपनी इच्छा से परमेश्वर का अनुसरण करता/करती हूं। मुझे परवाह नहीं है कि वह मुझे चाहता है या नहीं। मैं उसे प्रेम करना चाहता/चाहती हूं, दृढ़ता से उसका अनुसरण करना चाहता/चाहती हूं। मैं उसे प्राप्त करूंगा/करूंगी, उसे अपना जीवन अर्पित करूंगा/करूंगी।
तृतीय.
जैसे-जैसे तुम परीक्षणों का सामना करते हो, तुम्हें दुख और पीड़ा होगी। फिर भी, परमेश्वर से प्रेम करने के लिए, तुम हर कठिनाई का सामना करते हो, अपना जीवन और सब कुछ छोड़ देते हो। मैं अपनी इच्छा से परमेश्वर का अनुसरण करता/करती हूं। मुझे परवाह नहीं है कि वह मुझे चाहता है या नहीं। मैं उसे प्रेम करना चाहता/चाहती हूं, दृढ़ता से उसका अनुसरण करना चाहता/चाहती हूं। मैं उसे प्राप्त करूंगा/करूंगी, उसे अपना जीवन अर्पित करूंगा/करूंगी।
(“मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना” से "जब तक मैं परमेश्वर को प्राप्त नहीं करता/करती, मैं विश्राम नहीं करूंगा/करूंगी" से)
कुछ समय की आध्यात्मिक उपासना और समायोजन के बाद, मैं परमेश्वर की प्रबुद्धता के तहत अपनी नकारात्मकता से तुरंत बाहर आ गई और मैंने खुद को वापस मेरे कर्तव्यों को पूरा करने के काम में झोंक दिया।
भले ही मेरी युवावस्था के सबसे अच्छे साल जेल में बीत गए थे; इन सात सालों व चार महीनों में, परमेश्वर में मेरे विश्वास करने के कारण मुझे कई तकलीफों को सहना पड़ा, लेकिन मुझे कोई शिकायत और पछतावा नहीं है, क्योंकि मैं कुछ सत्य समझती हूं और मैंने परमेश्वर के प्रेम का अनुभव किया है। मैं महसूस करती हूं कि मेरी पीड़ाओं का अर्थ व मूल्य है; यह मेरे लिए परमेश्वर द्वारा दी गई उमंग व अनुग्रह का अपवाद है; यह मेरी तरफदारी है! भले ही मेरे रिश्तेदार व दोस्त मुझे नहीं समझते हैं, और भले ही मेरी बेटी मुझे नहीं पहचानती है, पर कोई भी इंसान, मामला या वस्तु मुझे परमेश्वर के साथ मेरे संबंध से जुदा नहीं कर सकते; भले ही मैं मर जाउं, लेकिन मैं परमेश्वर को नहीं छोड़ सकती।
शुद्ध प्रेम बिना दोष के यह भजन है, जो मुझे जेल में गाना सबसे ज्यादा पसंद था; अब, मैं परमेश्वर को सबसे शुद्ध प्रेम प्रस्तुत करने के लिए अपनी सच्चे कार्य का प्रयोग करना चाहती हूं!
फुटनोट:
a. सिस्टर जियांग से तात्पर्य 1940 के दशक के चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी की जियांग झूयुन नाम की युवा महिला सदस्य से हैं, जिन्होंने यातनाएं सहने के बाद भी नेशनलिस्ट फोर्सेज़ से जानकारी छिपा कर रखी थी।
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