38. कोई कैसे पुष्टि करे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में वापस लौटा यीशु है?
उत्तर परमेश्वर के वचन से:
सबसे पहले, वह एक नए युग का मार्ग प्रशस्त करने में समर्थ है; दूसरा, वह मनुष्य का जीवन प्रदान करने और अनुसरण करने का मार्ग मनुष्य को दिखाने में समर्थ है। यह इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वह परमेश्वर स्वयं है। कम से कम, जो कार्य वह करता है वह पूरी तरह से परमेश्वर का आत्मा का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और ऐसे कार्य से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का आत्मा उस के भीतर है। चूँकि देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य मुख्य रूप से नए युग का सूत्रपात करना, नए कार्य की अगुआई करना और नई परिस्थितियों को पैदा करना था, इसलिए ये कुछ स्थितियाँ अकेले ही यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वह परमेश्वर स्वयं है।
ऐसी बात का अध्ययन करना कठिन नहीं है, परंतु हम में से प्रत्येक के लिए इस सत्य को जानने की अपेक्षा की जाती है: जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर का सार धारण करेगा, और जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति धारण करेगा। चूँकि परमेश्वर देहधारी हुआ, वह उस कार्य को प्रकट करेगा जो उसे अवश्य करना चाहिए, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया, तो वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है, और मनुष्यों के लिए सत्य को लाने के समर्थ होगा, मनुष्यों को जीवन प्रदान करने, और मनुष्य को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस शरीर में परमेश्वर का सार नहीं है, निश्चित रूप से वह देहधारी परमेश्वर नहीं है; इस बारे में कोई संदेह नहीं है। यह पता लगाने के लिए कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य को इसका निर्धारण उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव से और उसके द्वारा बोले वचनों से अवश्य करना चाहिए। कहने का अभिप्राय है, कि वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है या नहीं, और यह सही मार्ग है या नहीं, इसे परमेश्वर के सार से तय करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने[क] में कि यह देहधआरी परमेश्वर का शरीर है या नहीं, बाहरी रूप-रंग के बजाय, उसके सार (उसका कार्य, उसके वचन, उसका स्वभाव और बहुत सी अन्य बातें) पर ध्यान देना ही कुंजी है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी रूप-रंग को ही देखता है, उसके तत्व की अनदेखी करता है, तो यह मनुष्य की अज्ञानता और उसके अनाड़ीपन को दर्शाता है। बाहरी बातें सार का निर्धारण नहीं करती हैं; उससे भी बढ़कर, परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की अवधारणाओं से अनुरूप कभी भी नहीं रहा है। क्या यीशु का बाहरी रूपरंग मनुष्य की अवधारणाओं से संघर्ष नहीं करता था? क्या उसका रूपरंग और पहनावा, उसकी वास्तविक पहचान के बारे में कोई सुराग देने में असमर्थ नहीं थे? क्या यही वह कारण नहीं था कि आरंभिक फरीसियों ने यीशु का विरोध किया, क्योंकि उन्होंने केवल उसके बाहरी रूपरंग को ही देखा, और उसके द्वारा बोले गये वचनों को अपने हृदय में ग्रहण नहीं किया? मेरी आशा है कि वे भाई और बहनें जो परमेश्वर के रूपरंग की खोज में हैं, वे इतिहास की इस त्रासदी या दुःखद घटना को नहीं दोहराएँगे। तुम लोगों को आधुनिक काल का फरीसी नहीं बनना चाहिए और परमेश्वर को फिर से सलीब पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। तुम लोगों को सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए कि परमेश्वर के वापस लौटने का स्वागत कैसे करें, और एक स्पष्ट मन रखना चाहिए कि कैसे ऐसा व्यक्ति बने जो सत्य के प्रति समर्पित होता है। यह यीशु के बादलों पर लौटकर आने की प्रतीक्षा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "प्रस्तावना" से
वर्तमान में किए गए कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना में कार्य आगे बढ़ाया है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने आगे प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? इसका अर्थ है कि आज के दिन का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य का उत्थान है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से सम्बंधित हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु के द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? यदि यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूसीकरण, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को अब भी पूरा किए जाने की आवश्यकता होती। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि यह कि युग आगे बढ़ गया है, और यहाँ तक कि कार्य पहले से भी अधिक ऊँचा हो गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण एक नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना समझा जा सकता है। यह चरण अनुग्रह के युग के कार्य की नींव पर किया जाता है। यदि कार्य के ये दो चरण असम्बंधित हैं, तो इस चरण में सलीब पर चढ़ना क्यों नहीं है? मैं मनुष्य के पापों को क्यों नहीं उठाता हूँ? मैं पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान के माध्यम से नहीं आता हूँ न ही मैं मनुष्य के पापों को उठाने के लिए सलीबसलीब पर चढ़ाया जाऊँगा। बल्कि, मैं यहाँ मनुष्य को प्रत्यक्ष रूप से ताड़ना देने के लिए हूँ। यदि मैंने सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद मनुष्य को ताड़ना नहीं दी, और अब मैं पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण के माध्यम से नहीं आता, तो मैं मनुष्य को ताड़ना देने के योग्य नहीं होता। यह ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि मैं यीशु के साथ एक ही हूँ जो प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को ताड़ना देने और उसका न्याय करने के लिए आता हूँ। कार्य का यह चरण पूरी तरह से पिछले चरण पर ही निर्मित है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा कार्य ही चरण-दर-चरण मनुष्य को उद्धार तक ला सकता है। यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारी देहों का कोई सम्बंध नहीं है, किन्तु हमारी पवित्रात्माएँ एक ही हैं; यद्यपि हम जो करते हैं और जिस कार्य को हम वहन करते हैं वे एक ही नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम सदृश्य हैं; हमारी देहें भिन्न रूप धारण करती हैं, और यह ऐसा युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की आवश्यकता के कारण है; हमारी सेवकाईयाँ सदृश्य नहीं हैं, इसलिए जो कार्य हम लाते और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और प्राप्त करता है वह अतीत के असमान है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनकी देहों के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और यद्यपि वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे थे, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु उनकी पवित्रात्माएँ एक हैं। यद्यपि उनकी देहें किसी भी तरीके से रक्त या शारीरिक सम्बंध साझा नहीं करती हैं, किन्तु इससे यह इनकार नहीं होता है कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि वे परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं, यद्यपि वे एक ही व्यक्ति के वंशज या सामान्य मानव भाषा (एक पुरुष था जिसने यहूदियों की भाषा बोली और दूसरी स्त्री है जो सिर्फ चीनी भाषा बोलती है) को साझा नहीं करते हैं। यह इन्हीं कारणों से है कि उन्हें जो कार्य करना चाहिए उसे वे भिन्न-भिन्न देशों में, और साथ ही भिन्न-भिन्न समयावधियों करते हैं। इस तथ्य के बावजूद भी वे एक ही पवित्रात्मा हैं, एक ही सार को धारण किए हुए हैं, उनकी देहों के बाहरी आवरणों के बीच बिल्कुल भी पूर्ण समानताएँ नहीं है। वे मात्र एक ही मानजाति को साझा करते हैं, परन्तु उनकी देहों का प्रकटन और जन्म सदृश्य नहीं हैं। इनका उनके अपने-अपने कार्य या मनुष्य के पास उनके बारे में जो ज्ञान है उस पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि, आखिरकार, वे एक ही पवित्रात्मा हैं और कोई भी उन्हें अलग नहीं कर सकता है। यद्यपि वे रक्त द्वारा सम्बंधित नहीं हैं, किन्तु उनका सम्पूर्ण अस्तित्व उनकी पवित्रात्माओं के द्वारा निर्देशित होता है, जिसकी वजह से, उनकी देह एक ही का वंशज साझा नहीं करने के साथ, वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में भिन्न-भिन्न कार्य का उत्तरदायित्व लेते हैं। उसी तरह, यहोवा का पवित्रात्मा यीशु के पवित्रात्मा का पिता नहीं है, वैसे ही जैसे कि यीशु का पवित्रात्मा यहोवा के पवित्रात्मा का पुत्र नहीं है। वे एक ही आत्मा हैं। ठीक वैसे ही जैसे आज का देहधारी परमेश्वर और यीशु हैं। यद्यपि वे रक्त के द्वारा सम्बंधित नहीं हैं; वे एक ही हैं; ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी पवित्रात्माएँ एक ही हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं" से
फुटनोट्स:
क. मूलपाठ में "के लिए" पढा जाता है।
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