2. अंतिम दिनों में चीन में कार्य करने के लिए परमेश्वर के देह-धारण का उद्देश्य और महत्व क्या है
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण सारी मानवजाति के वास्ते है, और समूची मानवजाति की ओर निर्देशित है। यद्यपि यह देह में उसका कार्य है, फिर भी इसे अब भी सारी मानवजाति की ओर निर्देशित किया गया है; वह सारी मानवजाति का परमेश्वर है, वह सभी सृजे गए और न सृजे गए प्राणियों का परमेश्वर है। यद्यपि देह में उसका कार्य एक सीमित दायरे के भीतर होता है, और इस कार्य का विषय भी सीमित होता है, फिर भी हर बार जब वह अपना कार्य करने के लिए देह धारण करता है तो वह अपने कार्य का एक विषय चुनता है जो अत्यंत प्रतिनिधिक है; वह सामान्य एवं मामूली लोगों के एक समूह को नहीं चुनता है कि उन पर कार्य करे, किन्तु इसके बजाए अपने कार्य के विषय के रूप में लोगों के ऐसे समूह को चुनता है जो देह में उसके कार्य के प्रतिनिधि होने में सक्षम हैं।लोगों के ऐसे समूह को चुना गया है क्योंकि देह में उसके कार्य का दायरा सीमित होता है, और इसे विशेष रूप से उसके देहधारी शरीर के लिए तैयार किया गया है, और इसे विशेष रूप से देह में उसके कार्य के लिए चुना गया है। परमेश्वर के द्वारा अपने कार्य के विषयों का चुनाव बेबुनियाद नहीं होता है, परन्तु सिद्धान्त के अनुसार होता हैः कार्य का विषय देहधारी परमेश्वर के कार्य के लिए अवश्य लाभदायक होना चाहिए, और उसे सम्पूर्ण मानवजाति का प्रतिनिधित्व करने में अवश्य सक्षम होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यीशु के व्यक्तिगत छुटकारे को स्वीकार करने के द्वारा यहूदी समस्त मानवजाति का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम थे, और देहधारी परमेश्वर के व्यक्तिगत विजय को स्वीकार करने के द्वारा चीनी लोग समस्त मानवजाति का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हैं। समस्त मानवजाति के विषय में यहूदियों के प्रतिनिधित्व का एक आधार है, और परमेश्वर के व्यक्तिगत विजय को स्वीकार करने के द्वारा समस्त मानवजाति के विषय में चीनियों के प्रतिनिधित्व का भी एक आधार है। यहूदियों के बीच किए गए छुटकारे के कार्य से अधिक कोई भी चीज़ छुटकारे के महत्व को प्रगट नहीं करती है, और चीनी लोगों के बीच विजय के कार्य से अधिक कोई भी चीज़ विजय के कार्य की सम्पूर्णता एवं सफलता को प्रगट नहीं करती है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" से
यदि इस चरण के कार्य में केवल लोगों को पूर्ण बनाना ही शामिल होता, तो इसे इंग्लैण्ड, या अमेरिका, या इस्राएल में किया जा सकता था; इसे किसी भी देश के लोगों पर किया जा सकता है। परन्तु विजय का कार्य चयनात्मक है। जीतने के कार्य का पहला कदम अल्पकालिक है; इसके अलावा, यह शैतान को अपमानित करने और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विजय प्राप्त करने के लिए है। यह विजय का आरम्भिक कार्य है। कोई यह कह सकता है कि कोई भी प्राणी जो परमेश्वर पर विश्वास करता है उसे पूर्ण बनाया जा सकता है क्योंकि पूर्ण बनाया जाना कुछ ऐसा है जिसे केवल एक दीर्घकालीन परिवर्तन के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु जीता जाना अलग बात है। जीत के लिए नमूना ऐसा अवश्य होना चाहिए जो बहुत अधिक पिछड़ा हुआ, गहनतम अंधकार में हो, बहुत ही तुच्छ भी हो और परमेश्वर को स्वीकार करने में अत्यधिक अनिच्छुक हो और परमेश्वर का सबसे अवज्ञाकारी हो। यह एक प्रकार का व्यक्ति है जो जीत लिए जाने की गवाही दे सकता है। विजय के कार्य का मुख्य लक्ष्य शैतान को हराना है। दूसरी ओर, लोगों को पूर्ण बनाने का मुख्य लक्ष्य लोगों को प्राप्त करना है। यह जीते जाने के बाद लोगों को गवाही देने में समर्थ बनाना है कि विजय के इस कार्य को यहाँ, तुम लोगों पर रखा गया है। लक्ष्य है विजय प्राप्त करने के बाद लोगों से गवाही दिलवाना। शैतान को अपमानित करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इन जीते गए लोगों का उपयोग किया जाएगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल पूर्ण बनाया गया ही एक सार्थक जीवन जी सकता है" से
यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, यह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था, और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र में एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण, दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए, सभी देशों में से सबसे अशुद्ध में किया जाता है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान में किया गया था, और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान में किया जाता है, और इस अंधकार को बाहर निकाल दिया जाएगा, प्रकाश को प्रकट किया जाएगा, और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब सभी जगहों में इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी, और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि एक परमेश्वर है, जो सच्चा परमेश्वर है, और हर व्यक्ति सर्वथा आश्वस्त हो जाएगा, तब समस्त जगत में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है: एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का 6000 वर्षों कार्य पूरा हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि हर अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। वैसे तो, केवल चीन में विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्तरूप है, और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। ये चीनी लोग हैं जो बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, जिनका परमेश्वर के प्रति सबसे मज़बूत विरोध है, जिनकी मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, और इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूलरूप आदर्श हैं। … मैंने हमेशा क्यों कहा है कि तुम लोग मेरी प्रबंधन योजना के सहायक हो? यह चीन के लोगों में है कि भ्रष्टाचार, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता सर्वाधिक पूर्णता से व्यक्त होते हैं और अपने सभी विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं, और दूसरी ओर, उनके जीवन और उनकी मानसिकता पिछड़े हुए हैं, और उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जन्म का परिवार-सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी कम है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, और इस परीक्षा के कार्य के इसकी संपूर्णता में पूरा कर दिए जाने के बाद, उसका बाद का कार्य बहुत बेहतर तरीके से होगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सकता है, तो इसके बाद का कार्य ज़ाहिर तौर पर होगा ही। एक बार कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जाता है, तो बड़ी सफलता पूर्णतः प्राप्त कर ली गई होगी, और समस्त विश्व में विजय का कार्य पूर्णतः पूरा हो गया होगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल हो जाता है, तो यह समस्त विश्व में सफलता के बराबर होगा। यही इस बात का महत्व है कि क्यों मैं तुम लोगों से एक प्रतिदर्श और नमूने के रूप में कार्यकलाप करवाता हूँ।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)" से
चीनी लोगों ने कभी परमेश्वर में विश्वास नहीं किया है और कभी भी यहोवा की सेवा नहीं की है, कभी भी यीशु की सेवा नहीं की है। वे जो कर सकते हैं वह केवल दिखावापूर्ण सम्मान है, वे धूप जलाते हैं, जॉस पेपर जलाते हैं, और बुद्ध की पूजा करते हैं। वे सिर्फ मूर्तियों की पूजा करते हैं-वे सभी चरम सीमा तक विद्रोही हैं, इसलिए लोगों की स्थिति जितनी निम्नकम है, इससे उतना ही अधिक पता चलता है कि परमेश्वर तुम लोगों से और भी अधिक महिमा पाते हैं। … अगर याकूब के वंशज चीन में, ज़मीन के इस टुकड़े पर, पैदा हुए होते, और वे तुम सब ही होते, तो तुम लोगों में किए गए कार्य का क्या महत्व होता? शैतान क्या कहेगा? शैतान कहेगा: "वे तुमआप से डरा करते थे, परन्तु कोई भी लंबे समय से इसे पारित नहीं कर पाया था। हालांकि, उनके पूर्वज तुमआपसे डरा करते थे; उन्होंने आपके साथ शुरु से आज्ञा-पालन किया और उन्होंने आपको धोखा दिया हो ऐसा इतिहास में नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि समय की एक अवधि के बाद इसे अब और नीचे पारित नहीं किया गया था। वे मानव जाति के सबसे कलंकित, अधम या सबसे पिछड़े नहीं हैं। उन्होंने शुरुआत से तुमआपको स्वीकार किया। इसे इस तरह करने का कोई महत्व नहीं है! यदि यह वास्तव में इस तरह से किया जाता है, तो इस कार्य से कौन प्रभावित होगा?" पूरे संसार में से, चीनी लोग सबसे पिछड़े हैं। वे कम ईमानदारी के साथ निम्न दर्जे मेंलिए निम्न जन्म लेते हैं, वे बोदे और सुस्त हैं, और वे अशिष्ट और अवनतिशील हैं। वे शैतानी स्वभाव से ओतप्रोत, गंदे और कामुक हैं। तुम सब में ऐसी बातें हैं। जहाँ तक इन भ्रष्ट स्वभावों की बात है, इस कार्य के पूरा होने के बाद लोगों ने उन्हें फेंक देंगेदिया होगा और पूरी तरह से पालन करने और परिपूर्ण बनने में वे सक्षम हो जाएँगे। केवल इस तरह के कार्य के फल को सृष्टि के बीच गवाही कहा जाता है!
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मोआब के वंशजों को बचाने का महत्व" से
अब मोआब के वंशजों पर कार्य करने का अर्थ है उन लोगों को बचाना जो सबसे गहरे अंधेरे में गिर गए हैं। यद्यपि वे शापित थे, परमेश्वर उनसे महिमा पाने के इच्छुक हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरूआत में, उन सभी लोगों के दिलों में परमेश्वर की कमी थी-केवल इन लोगों को उनमें बदलना जो उसनकी आज्ञा का पालन करते और उससेन्हें प्रेम करते हैं, सच्ची विजय है, और इस तरह के कार्य का फल सबसे मूल्यवान और सबसे ज्यादा निश्चयात्मक है। केवल यही महिमा प्राप्त कर रहा है-यही वह महिमा है जिसे कि परमेश्वर आखिरी दिनों में हासिल करना चाहते हैं। हालांकि ये लोग कम दर्जे के हैं, अब वे ऐसे महान उद्धार को प्राप्त करने में सक्षम हैं, जो वास्तव में परमेश्वर की ऊँचाई है। यह काम बहुत ही सार्थक है, और यह न्याय के माध्यम से है कि वहवे इन लोगों को जीत लेता हैते हैं। वहवे जानबूझकर उन्हें दंडित नहीं कर रहाहे, बल्कि वहवे उन्हें बचाने के लिए आया हैए हैं। यदि वहवे अभी भी आखिरी दिनों के दौरान इज़राइल में जीतने का काम कर रहा होताहे होते, तो वह बेकार होगा; यदि वह फलदायक भी हो, तो इसका कोई मोल न होगा या कोई बड़ा महत्व नहीं होगा, और वहवे सारी महिमा पाने में सक्षम नहीं होगाहोंगे। वहवे तुम लोगों पर कार्य कर ररहा हैहे हैं, अर्थात् उन लोगों पर जो सबसे अंधकारमय स्थानों में गिर चुके हैं, जो सबसे अधिक पिछड़े हैं। ये लोग यह मानते नहीं हैं कि एक परमेश्वर हैं और वे कभी नहीं जान पाए हैं कि एक परमेश्वर हैं। इन प्राणियों को शैतान ने इस हद तक भ्रष्ट किया है कि वे परमेश्वर को भूल गए हैं। वे शैतान द्वारा अंधे बना दिए गए हैं और वे बिलकुल नहीं जानते कि स्वर्ग में एक परमेश्वर हैहैं। अपने दिलों में तुम सब मूर्तियों की पूजा करते हो, शैतान की पूजा करते हो, क्या तुम लोग सबसे अधम, सबसे पिछड़े लोग नहीं हो? देह से तुम लोग सबसे निम्नतम हो, किसी भी निजी स्वतंत्रता से विहीन, और तुम लोग कष्टों से भी पीड़ित हो। तुम लोग इस समाज में सबसे निम्नकम स्तर पर भी हो, तुम लोगों को विश्वास की स्वतंत्रता तक नहीं है। तुम सब पर कार्य करने का यही महत्व है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मोआब के वंशजों को बचाने का महत्व" से
अंत के दिनों का कार्य चीन में, जो कि सबसे अंधकारमय, पिछड़े स्थानों में से एक है, क्यों किया जा रहा है? यह परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता प्रकट करने के लिए है। संक्षेप में, जितना अधिक अंधकारमय कोई स्थान होता है उतनी ही अच्छी तरह से उसकी पवित्रता प्रकट हो सकती है। सच्चाई यह है कि यह सब करना परमेश्वर के कार्य के वास्ते है। अब तुम केवल यह जानते हो कि स्वर्ग के परमेश्वर ने पृथ्वी पर अवरोहण कर लिया है और वह तुम्हारे बीच खड़ा है, और उसे तुम्हारी गंदगी और विद्रोहशीलता के खिलाफ विशिष्टता से दर्शाया गया है, ताकि तुम्हें परमेश्वर की समझ आनी शुरू हो जाए-क्या यह एक महान उत्थान नहीं है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "विजय के कार्य का दूसरा कदम किस प्रकार से फल देता है" से
जब परमेश्वर पृथ्वी पर आयाए तो वहवे दुनिया काके नहीं थाथे और संसार का सुख भोगने के लिए वहवे देह नहीं बना थाने थे। वह जगह जहाँ कार्य करना सबसे अच्छी तरह से उसनके स्वभाव को प्रकट करेगाता और जो सबसे अर्थपूर्ण है, वही स्थान है जहाँ वहवे पैदा हुआए। चाहे वह स्थल पवित्र हो या गन्दा, और चाहे वेवह कहींकोई भी काम करेरें, वहवे पवित्र हैहैं। दुनिया में हर चीज़ उसनके द्वारा बनाई गई थी; बात सिर्फ इतनी है कि शैतान ने सब कुछ भ्रष्ट कर दिया है। फिर भी, सभी चीजें अभी भी उसनकी हैं; वे सभी चीजें उसनके हाथों में हैं। उसनका एक गंदे देश में आकर कार्य करना उसनकी पवित्रता को प्रकट करने के लिए है; वेवह अपनाने कार्य के लिए ऐसा करता हैते हैं, अर्थात् इस दूषित भूमि के लोगों को बचाने के इस कार्य को करने के लिए वेवह महान अपमान को सहन करता हैते हैं। यह गवाही के लिए है और यह पूरीसभी मानव जाति के लिए है। इस प्रकार का कार्य लोगों को जोजिसे देखने की अनुमति देता है वह है परमेश्वर की धार्मिकता, और यह परमेश्वर की सर्वोच्चता को प्रदर्शित करने में अधिक सक्षम है। उसनकी महानता और उदारता उन नीच लोगों के एक समूह के उद्धार के माध्यम से दिखायी जाती है, जिनके बारे में कोई भी कुछ खास नहीं सोचता है। एक गंदे स्थल में पैदा होना यह बिलकुल साबित नहीं करता कि वहवे दीन-हीन हैहैं; यह तो केवल सारी सृष्टि को उसनकी महानता और मानव जाति के लिए उसनके सच्चे प्यार को देखने की अनुमति देता है। जितना अधिक वहवे इस तरह से करता हैते हैं उतना ही मनुष्य के लिए उसनका शुद्ध प्रेम प्रकट होता है, उसनका दोषरहित प्रेम उतना ही अधिक प्रकट होता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मोआब के वंशजों को बचाने का महत्व" से
समस्त ब्रम्हांड में परमेश्वर के सारे कार्य ने इसी एक जनसमूह पर ध्यान केंद्रित किया है। उसने अपने सभी प्रयास तुम लोगों के लिये समर्पित किये और तुम्हारे लिये सब कुछ बलिदान किया है, उसने फिर से दावा किया है और समस्त ब्रम्हांड में तुम लोगों के लिये पवित्रा आत्मा के सभी काम दिये हैं। यही कारण है कि मैं कहता हूं, तुम सभी सौभाग्यशाली हो। और यही नहीं, अपनी महिमा को इस्राएल से, अर्थात उसके चुने हुए लोगों से हटाया है, और तुम लोगों को दिया है, ताकि उसकी योजना के उद्देश्यों को तुम्हारे जनसमूह के द्वारा पूर्ण रूप से प्रकट करे। इस कारण तुम सभी वे लोग हो जो परमेश्वर की विरासत को पाएंगे, और इससे भी अधिक परमेश्वर की महिमा के वारिस ठहरेंगे। संभवतः तुम सबको ये वचन स्मरण होंगे: "क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।" अतीत में तुम सबने यह बात सुनी है तो भी किसी ने इन वचनों का सही अर्थ नहीं समझा। आज, तुम सभी अच्छे से जानते हो कि उनका वास्तविक महत्व क्या है। ये वह वचन है जिन्हें परमेश्वर अंतिम दिनों में पूरा करेगा। और ये वचन उन में पूरे होंगे जो विशाल लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक पीड़ित किये गए हैं, उस देश में जहां वह रहता है। यह बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, इसलिए इस देश में, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं उन्हें अपमानित किया जाता और सताया जाता है। इस कारण ये शब्द तुम्हारे समूह के लोगों में वास्तविकता बन जाएंगे। जब उस देश में परमेश्वर का कार्य किया जाता है जहाँ परमेश्वर का विरोध होता है, उसके सारे कामों में अत्यधिक बाधा आती है, और उसके बहुत से वचन सही समय पर पूरे नहीं किये जा सकते; अतः, परमेश्वर के वचनों के कारण लोग शुद्ध किये जाते हैं। यह भी पीड़ा का एक तत्व है। परमेश्वर के लिए विशाल लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना बहुत कठिन है, परन्तु ऐसी कठिनाईयों के बीच में अपनी बुद्धि और अद्भुत कामों को प्रकट करने के लिए परमेश्वर अपने काम का मंचन करता है। परमेश्वर इस अवसर के द्वारा इस जनसमूह के लोगों को पूर्ण करता है। इस अशुद्ध देश में लोगों के सताये जाने के कारण, उनकी क्षमता और उनके पूरे शैतानी स्वभाव का परमेश्वर शुद्धिकरण करता और जीतता है ताकि, इससे, वह महिमा प्राप्त करे और उन्हें भी जो उसके कामों के गवाह बनते हैं। परमेश्वर ने इस जनसूमह के लोगों के लिए जो बलिदान किये हैं यह उन सभी का संपूर्ण महत्व है। कहने का अभिप्राय है, परमेश्वर विजय कार्य उनके द्वारा करता है जो उसका विरोध करते हैं। इस कारण, ऐसा करने पर ही परमेश्वर की महान सामर्थ का प्रकटीकरण हो सकता है। दूसरे शब्दों में, केवल वे जो अशुद्ध देश में हैं परमेश्वर की महिमा का उत्तराधिकार पाने के योग्य हैं, और केवल यह परमेश्वर की महान सामर्थ्य को विशिष्टता दे सकती है। इसी कारण मैं कहता हूँ कि परमेश्वर अशुद्ध देश में महिमा पाता है, और उनके द्वारा जो उस देश में रहते हैं। यह परमेश्वर की इच्छा है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा यह यीशु के कार्य के चरण में था; उसे सिर्फ उन फरीसियों के बीच ही महिमा मिल सकती थी जिन्होंने उसे सताया। यदि यीशु को वैसा कष्ट और यहूदा का विश्वासघात नहीं मिलता, तो यीशु का उपहास और निंदा भी नहीं होती, क्रूस पर चढ़ना तो असम्भव होता, और उसे कभी भी महिमा नहीं मिलती। जहां भी परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य करता है, और जहां भी वह शरीर में काम करता है, वो वहाँ महिमा पाता है और उन्हें जीत लेता है जिन्हें वो जीतना चाहता है। यह परमेश्वर के कार्य की योजना है, और यही उसका प्रबंध है।
… परमेश्वर ने यह महान कार्य उस देश में किया है जहां विशाल लाल अजगर निवास करता है, ऐसा कार्य, यदि कहीं और किया जाता, तो वर्षों पहले बड़ा फल लाता, और मनुष्यों के द्वारा बड़ी आसानी से स्वीकार किया जाता। और ऐसा कार्य पश्चिम के पादरियों के लिए स्वीकार करना अत्यन्त आसान होता जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, क्योंकि यीशु के कार्य का चरण मिसाल का कार्य करता है। यही कारण है कि वह महिमाकरण के कार्य के इस चरण को किसी अन्य स्थान में प्राप्त नहीं कर सका; अर्थात, चूँकि सभी मनुष्यों की ओर से सहयोग और सभी राष्ट्रों की अभिस्वीकृति है, परमेश्वर की महिमा "ठहरने" के लिए कोई स्थान नहीं है। और ठीक रूप से इस देश में इस कार्य के चरण का असाधारण महत्व है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "क्या परमेश्वर का कार्य इतना सरल है, जितना मनुष्य कल्पना करता है?" से
उसने सम्पूर्ण संसार की सृष्टि की; उसने अपने प्रबंधन के 6000 साल के कार्य को सिर्फ़ इस्राएल में ही नहीं किया परन्तु ब्रह्माण्ड के प्रत्येक प्राणी के साथ किया। इससे फर्क नहीं पड़ता चाहे वे चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाईटेड किंगडम या रूस में रहते हों, प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सभी परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं। परमेश्वर की सृष्टि के दायरे से कोई भी व्यक्ति अलग नहीं हो सकता और कोई भी व्यक्ति "आदम का वंशज" होने के ठप्पे से बच नहीं सकता है। वे सभी परमेश्वर की सृष्टि हैं, और वे सभी आदम के वंशज हैं; वे भ्रष्ट आदम और हव्वा के भी वंशज हैं। केवल इस्राएली ही अकेले परमेश्वर की सृष्टि नहीं हैं, परन्तु सभी लोग हैं; फिर भी, सृष्टि में से कुछ लोग श्रापित हैं, और कुछ आशीषित हैं। इस्राएलियों के बारे में काफी अभीष्ट बातें हैं; परमेश्वर ने प्रारम्भ में इस्राएलियों के मध्य कार्य किया क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट लोग थे। उनकी तुलना में चीनी फीके पड़ते थे और उनकी बराबरी की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे; इस प्रकार से, परमेश्वर ने इस्राएलियों के मध्य अपना कार्य प्रारम्भ किया और दूसरे चरण का कार्य यहूदिया में हुआ। परिणामस्वरूप, लोगों ने कई धारणाएं और कई नियम बना लिए। वास्तव में, यदि उसे मनुष्यों की धारणाओं के अनुसार कार्य करना होता, तो परमेश्वर केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता; इस प्रकार से, वह गैर यहूदीयों के मध्य अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता; क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता बजाए इसके कि वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर होता। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम गैर यहूदी राष्ट्रों में महान होगा और गैर यहूदी राष्ट्रों में यहोवा का नाम फैल जाएगा - वे ऐसा क्यों कहते? यदि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इसके अलावा, वह इस कार्य का विस्तार और कहीं नहीं करता और न ही वह ऐसी भविष्यवाणी करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की है, तो उसे गैर यहूदीयों, प्रत्येक देशों तथा स्थानों के मध्य में कार्य का विस्तार करना ही होगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, तो वह ऐसा करेगा भी।यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा उसमें की सभी वस्तुओं का सृजन करने वाला प्रभु है और सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता कि वह अपना कार्य इस्राएल या सम्पूर्ण यहूदिया में कर रहा है, वह जो कार्य करता है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्य होता है और सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य होता है। आज वह जो कार्य बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में-गैर यहूदी राष्ट्र में - कर रहा है, यह अभी भी सम्पूर्ण मानवता का कार्य है। पृथ्वी पर इस्राएल उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार से, चीन गैर यहूदी राष्ट्रों के मध्य में उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने उस भविष्यवाणी को अब पूरा नहीं किया कि "यहोवा का नाम गैर यहूदी देशों में महान हो जाएगा।" गैर यहूदी देशों के मध्य में उसके कार्य के पहला चरण उस कार्य का उल्लेख करता है जो वह बड़े लाल अजगर के देश में कर रहा है। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस देश में कार्य करना और इन श्रापित लोगों के मध्य में कार्य करना विशेष तौर पर मानवीय धारणाओं के विपरीत है; ये लोग सबसे निम्नस्तर के और बिना किसी मूल्य के हैं। यह सभी वे लोग हैं जिन्हें यहोवा ने आरम्भ में छोड़ दिया था। दूसरे लोगों के द्वारा लोगों को त्यागा जा सकता है, परन्तु यदि वे परमेश्वर के द्वारा त्याग दिए जाते हैं, तो इन लोगों का कोई भी स्तर नहीं होगा, और उनका सबसे न्यूनतम मूल्य होगा। सृष्टि का एक भाग, शैतान के द्वारा कब्ज़े में ले लिया जाना या अन्य लोंगो के द्वारा त्याग दिया जाना, ये दोनों चीज़े कष्टदायक हैं, परन्तु यदि सृष्टि के किसी भाग को सृष्टि के प्रभु द्वारा त्याग दिया जाए, तो यह दर्शाता है कि उसकी स्थिति बहुत ही निम्न स्तर पर है। मोआब के वंशज श्रापित थे और वे इस अविकसित देश में पैदा हुए थे; बिना संदेह, मोआब के वंशज अंधकार के प्रभाव में सबसे निम्न स्तर के लोग हैं। क्योंकि ये लोग अतीत में सबसे निम्न दर्जे को प्राप्त थे, उनके मध्य किया गया कार्य मानवीय धारणाओं को तोड़ने के लिए सबसे योग्य है और यह छः हजार साल के प्रबंधन योजना में सबसे लाभकारी भी है। क्योंकि उसका इनके मध्य में कार्य करना, मानवीय धारणाओं को तोड़ने के लिए सबसे अधिक सक्षम है; इसके साथ वह एक युग का लोकार्पण करता है; इसके साथ वह सभी मानवीय अवधारणाओं को नष्ट कर देता है;इसके साथ वह सम्पूर्ण अनुग्रह काल के कार्य को सामाप्त करता है। उसका आरम्भिक कार्य यहूदिया में, इस्राएल के दायरे में,किया गया; गैर यहूदी देशों में उसने कोई भी युग-प्रारम्भ करने वाला कार्य नहीं किया। उसके काम का अंतिम चरण न केवल गैर यहूदी राष्ट्र के लोगों के बीच किया जा रहा है; इससे अधिक, यह उन श्रापित लोगों के मध्य में किया जा रहा है। यह एक बिन्दु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे योग्य प्रमाण है; इस प्रकार से, परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सृष्टि और सभी वस्तुओं का परमेश्वर "बन" जाता है; जीवन युक्त सभी के लिए आराधना का उद्देश्य बन जाता है।
… चूँकि परमेश्वर अपनी सृष्टि के मध्य कार्य करने का इच्छुक है, वह पूरी सृष्टि पर सफलतापूर्वक अपना कार्य निश्चित पूरा कर लेगा; वह उनके मध्य कार्य करेगा जो उसके कार्य के लिए लाभदायक होंगे। इसलिए, वह मनुष्यों के मध्य कार्य करने में सभी परम्पराओं को तोड़ देता है, उसके लिए "श्रापित," "ताड़ित," और "आशीषित" शब्द बेमतलब हैं! यहूदी लोग काफी अच्छे हैं, और इस्राएल के चुने हुए लोग भी बुरे नहीं हैं, ये अच्छी क्षमता और मानवता से भरे हुए लोग हैं। यहोवा ने शुरआत में अपना कार्य इनके मध्य में प्रारम्भ किया था और अपना प्रारंभिक काम पूरा किया, परन्तु यह सब बेमतलब होता यदि वह उन्हें अपने विजयी कार्य के लिए प्राप्तकर्ताओं के तौर पर इस्तेमाल करता। हालांकि वे भी सृष्टि का एक हिस्सा हैं और उनके बहुत सारे सकारात्मक पहलु हैं, उनके मध्य में इस चरण के कार्य को करना बेमतलब होगा। वह किसी को भी जीतने में असमर्थ होगा, न ही वह सम्पूर्ण सृष्टि को समझाने में सक्षम होगा। बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के इन लोगों के मध्य उसके कार्यों के स्थानांतरण का यह महत्व है। यहां पर सबसे गहरा अर्थ एक युग के प्रारम्भ में, सभी मानव धारणाओं और नियमों का तोड़ने में और सम्पूर्ण अनुग्रह युग के कार्य का समापन किये जाने में है। यदि उसका वर्तमान का कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, उसके छः हज़ार सालों के प्रबंधन के कार्य के समाप्त होने के समय तक, प्रत्येक व्यक्ति यह विश्वास करता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, यह कि सिर्फ इस्राएल के लोग परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, यह कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर की आशीष और प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करने के योग्य हैं। अंतिम दिनों में, परमेश्वर बड़े लाल अजगर के गैर यहूदी देश में देहधारी के तौर पर है; उसने सम्पूर्ण सृष्टि के परमेश्वर के तौर पर परमेश्वर का कार्य पूर्ण कर लिया है; उसने अपना सम्पूर्ण प्रबंधन कार्य पूर्ण कर लिया है, और बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में वह अपने कार्य का मुख्य भाग को समाप्त करेगा। कार्य के तीनों चरणों का मुख्य बिन्दु है मनुष्य की मुक्ति-अर्थात सम्पूर्ण रचना के द्वारा सृष्टि के प्रभु की आराधना कराना। … परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में किए गए थे। यदि अंतिम दिनों में उसके कार्य का यह चरण इस्राएलियों के बीच ही हो रहा होता, तो न केवल सम्पूर्ण सृष्टि यह विश्वास करती कि केवल इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, बल्कि परमेश्वर के सम्पूर्ण प्रबंधन की योजना भी अपने वांछित प्रभाव को प्राप्त नहीं कर पाती। इस्राएल में उसके कार्य के दो चरण जिस समय में किए गए, कोई भी नया कार्य कभी भी नही किया गया था और गैर यहूदी राष्ट्रों में परमेश्वर के नए युग के प्रारम्भ का कोई भी कार्य कभी भी नहीं किया गया था। युग प्रारम्भ करने के इस चरण का कार्य गैर यहूदी देशों में सबसे पहले किया गया, और इसके अलावा, इसे पहले मोआबियों के वंशजों के मध्य किया जाता है; इसने सम्पूर्ण युग का प्रारम्भ किया। परमेश्वर ने मानवीय धारणाओं में समाहित किसी भी ज्ञान को तोड़ डाला है और इस से किसी भी बात को अस्तित्व में बने रहने की अनुमति नहीं दी है। उसके विजय के कार्य में उसने मानवीय धारणाओं को तोड़ डाला, उन पुराने, पहले के मानवीय ज्ञान के तरीकों को नष्ट कर डाला। उसने लोगों को अनुमति दी की वे देखें कि परमेश्वर के साथ कोई भी नियम नहीं होते हैं, कि परमेश्वर के बारे में कुछ भी पुराना नहीं है, कि वह जो कार्य करता है वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, पूरी तरह से मुक्त है, कि वह जो कुछ करता है उसमें वह सही है। वह सृष्टि के बीच जो भी कार्य करता है उसके प्रति तुम्हें पूरी तरह से समर्पित होना है। जो भी कार्य वह करता है वह सार्थक होता है और उसके स्वयं की इच्छा और ज्ञान के अनुसार होता है और मानवीय चुनावों और धारणाओं के अनुसार नहीं होता है। वह उन कार्यों को करता है जो उसके कार्य के लिए लाभप्रद होता हैं; यदि कुछ उसके कार्य के लिए लाभदायक नहीं है तो वह उस कार्य को नहीं करेगा, चाहे वह कितना भी अच्छा क्यों न हो! वह कार्य करता है और, अपने कार्य और सार्थकता के अनुसार अपने कार्य के प्राप्तकर्ता एवं स्थान को चुनता है। वह पुराने नियमों का पालन नहीं करता है, न ही वह पुराने नुस्खों का पालन करता है; इसके बजाय, वह कार्य की महत्ता के आधार पर अपने कार्य की योजना बनाता है; अंत में वह उसके सच्चे प्रभाव और प्रत्याशित उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है। यदि तुम इन बातों को अभी नहीं समझोगे, तो यह कार्य तुम पर कोई प्रभाव नहीं डाल पायेगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है" से
परमेश्वर के प्रकट होने का मनुष्य की धारणाओं के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है, परमेश्वर का मनुष्य के आदेश पर दिखाई देना उस से भी कम संभव है। जब परमेश्वर अपना कार्य करता है तो वह अपने स्वयं के चुनाव करता है और अपनी स्वयं की योजनाएं बनाता है; इसके अलावा, उसके पास अपने ही उद्देश्य हैं, और अपने ही तरीके हैं। जो कार्य वह करता है उसे उस पर मनुष्य के साथ चर्चा करने की या मनुष्य की सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और ना ही उसे अपने कार्य की हर एक व्यक्ति को सूचना देने की आवश्यकता है। यह परमेश्वर का स्वभाव है और, इससे बढ़कर, हर किसी को यह पहचानना चाहिए। …
चाहे तू अमेरिकी, ब्रिटिश, या किसी भी अन्य राष्ट्रीयता का हो, तुझे अपने स्वयं के दायरे से बाहर आना चाहिए, तुझे स्वयं को पार करना चाहिए, और परमेश्वर की एक सृष्टि के रूप में परमेश्वर के कार्य को देखना चाहिए। इस तरीके से, तू परमेश्वर के पदचिन्हों पर रुकावट नहीं डाल पाएगा। क्योंकि, आज, कई लोग परमेश्वर के एक निश्चित देश या राष्ट्र में प्रकट होने को असंभव समझते हैं। परमेश्वर के कार्य का कितना गहरा महत्व है, और परमेश्वर का प्रकट होना कितना महत्वपूर्ण है! उन्हें कैसे मनुष्य की धारणाओं और सोच से मापा जा सकता है? और इसलिए मैं कहता हूँ, जब तू परमेश्वर के प्रकट होने को खोजता है तब तुझे अपनी राष्ट्रीयता या जातीयता की धारणाओं को तोड़ देना चाहिए। इस तरह, तू अपने स्वयं की धारणाओं से विवश नहीं हो पाएगा; इस तरह, तू परमेश्वर के प्रकट होने का स्वागत करने में सक्षम हो पाएगा। अन्यथा, तू हमेशा अन्धकार में रहेगा, और परमेश्वर की मंजूरी कभी हासिल नहीं कर पाएगा।
परमेश्वर सभी मानव जाति का परमेश्वर है। वह अपने आप को किसी भी देश या राष्ट्र की निजी संपत्ति नहीं बनाता है, और वह किसी भी रूप, देश, या राष्ट्र द्वारा बाधित हुए बिना अपनी योजना का कार्य करता है। शायद तूने इस रूप की कभी कल्पना भी नहीं की होगी, या शायद तू इसके अस्तित्व का इनकार करता है, या शायद उस देश या राष्ट्र के साथ, जिसमें परमेश्वर प्रकट होता है, भेदभाव किया जाता है और पृथ्वी पर सबसे कम विकसित माना जाता है। फिर भी परमेश्वर के पास उसकी बुद्धि है। उसकी शक्ति के द्वारा और उसकी सत्यता और स्वभाव के माध्यम से उसे ऐसे लोगों का समूह मिल गया है जो उसके साथ एक विचार के हैं। और उसे ऐसे लोगों का समूह मिल गया है जैसा वह बनाना चाहता थाः उसके द्वारा जीता गया एक समूह, जो अति पीड़ादायक दुख और सब प्रकार के अत्याचार को सह लेता है और अंत तक उसका अनुसरण कर सकता है। किसी भी रूप में या देश की बाधाओं से मुक्त हो कर परमेश्वर के प्रकट होने का उद्देश्य उसे उसकी योजना का कार्य पूरा करने में सक्षम होने के लिए है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर यहूदिया में देहधारी हुआ, उसका लक्ष्य सूली पर चढ़ाये जाने के कार्य को पूरा करने के द्वारा सारी मानव जाति को पाप से मुक्त करना था। फिर भी यहूदियों का मानना था कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना असंभव था, और उन्होंने सोचा कि परमेश्वर के लिए देहधारी होना और प्रभु यीशु के रूप में होना असंभव है। उनका "असंभव" एक ऐसा आधार बन गया जिसके द्वारा उन्होंने परमेश्वर को अपराधी ठहराया और विरोध किया, और अंत में इस्राएल को विनाश की ओर ले गए। आज, कई लोगों ने उसी प्रकार की गलती की है। वे परमेश्वर के किसी भी क्षण आ जाने का प्रचार बहुत हल्के रूप में करते हैं, साथ ही वे उसके प्रकट होने को गलत भी ठहराते हैं; उनका "असंभव" एक बार फिर परमेश्वर के प्रकट होने को उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर सीमित करता है। … अपने "असंभव" के विचार को एक तरफ रखो! जितना अधिक लोग यह मानते हैं कि कुछ असंभव है, उतना ही अधिक उसके घटित होने की संभावना है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से भी ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों की तुलना में ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमा से कहीं ऊँचा होता है। जितना अधिक कुछ असंभव है, उतना अधिक वहाँ सच्चाई को खोजने की आवश्यकता है; जितना अधिक वह मनुष्य की धारणा और कल्पना से परे है, उतना ही अधिक उस में परमेश्वर की इच्छा समाहित होती है। क्योंकि परमेश्वर स्वयं को चाहे जहां भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसके स्थान और उसके प्रकट होने के तरीकों के कारण उसका तत्व कभी नहीं बदलेगा। उसके पदचिन्ह चाहे कहीं भी क्यों न हों परमेश्वर का स्वभाव एक जैसा बना रहता है। चाहे जहां कहीं भी परमेश्वर के पदचिन्ह क्यों न हों, वह सभी मानव जाति का परमेश्वर है। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि एशिया, यूरोप और अमेरिका में सभी लोगों का परमेश्वर है, और यहां तक कि पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ वो ही परमेश्वर है। इसलिए, हम परमेश्वर के कथनों से परमेश्वर की इच्छा की और उसके प्रकट होने की खोज करें और उसके पदचिन्हों का अनुसरण करें! परमेश्वर ही मार्ग, सत्य और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकट होना समवर्ती है, और उसका स्वभाव और पदचिन्ह हमेशा मानव जाति के लिए उपलब्ध रहेंगे। प्रिय भाइयों और बहनों, मुझे आशा है कि तुम लोग इन शब्दों में परमेश्वर के प्रकट होने को देख सकते हो, और तुम लोग उसके पदचिन्हों का अनुसरण करना शुरू कर दोगे, एक नए युग की ओर और एक सुंदर नए आकाश और नई पृथ्वी में प्रवेश कर सकोगे जो परमेश्वर के प्रकट होने की प्रतीक्षा करनेवालों के लिए तैयार किए गए हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का प्रकटीकरण एक नया युग लाया है" से
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