प्रश्न 23: तुम यह प्रमाण देते हो कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर देहधारी परमेश्वर है, जो अभी अंतिम दिनों में अपने न्याय के कार्य को कर रहा है। लेकिन धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों का कहना है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य वास्तव में मनुष्य का काम है, और बहुत से लोग जो प्रभु यीशु पर विश्वास नहीं करते, वे कहते हैं कि ईसाई धर्म एक मनुष्य में विश्वास है। हम अभी भी यह नहीं समझ पाए हैं कि परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के बीच में क्या अंतर है, इसलिए कृपया हमारे लिए यह सहभागिता करो।
उत्तर:
परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य निश्चित रूप से अलग हैं। अगर हम सावधानी से जांच करें तो हम लोग इसे देख पाएंगे। मिसाल के तौर पर, अगर हम प्रभु यीशु के कथन और कार्य को देखें और फिर प्रेरितों के कथन और कार्य पर नज़र डालें, हम कह सकते हैं कि अंतर एकदम स्पष्ट है। प्रभु यीशु का कहा हर वचन सत्य है और उसमें अधिकार है, और ये बहुत से रहस्य प्रकट कर सकता है। इन्हें इंसान कभी नहीं कर सकता। यही वजह है कि बहुत से लोग प्रभु यीशु का अनुसरण करते हैं, जबकि प्रेरितों का कार्य सिर्फ सुसमाचार को प्रसारित सकता है, परमेश्वर की गवाही दे सकता है और कलीसिया को आपूर्ति कर सकता है। परिणाम बहुत सीमित होते हैं। परमेश्वर के कार्य में और मनुष्य के कार्य में अंतर एकदम साफ है। फिर लोग इसे समझ क्यों नहीं पाते? क्या कारण है? कारण ये है कि भ्रष्ट मानवजाति परमेश्वर को नहीं जानती। उसमें किसी तरह का कोई सत्य नहीं है। इसलिए इंसान परमेश्वर के कार्य में और इंसान के कार्य में अंतर नहीं कर पाता, और देहधारी परमेश्वर के कार्य को आसानी से इंसान का कार्य, और इंसान के कार्य को आसानी से हमारा पसंदीदा कार्य और दुष्ट आत्माओं का कार्य, झूठे मसीहों और नबियों के कार्य को आसानी से स्वीकार करने और अनुसरण करने लायक परमेश्वर का कार्य मान लेता है। ये सच्चे मार्ग से डिगना और परमेश्वर का विरोध करना है, और इसे मनुष्य को पूजना, शैतान का अनुसरण और शैतान को पूजना माना जाता है। ये परमेश्वर के स्वभाव के खिलाफ एक गंभीर अपराध है और वे परमेश्वर द्वारा शापित होंगे। इस तरह के लोग बचाए जाए का मौका गँवा देंगे। यही कारण है कि आपका प्रश्न लोगों के सच्चे मार्ग की जांच और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को जानने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। बाहर से देखने पर, देहधारी परमेश्वर का कार्य और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले लोगों का कार्य, दोनों ही ऐसे लगते हैं जैसे इंसान ही कार्य कर रहा है और बोल रहा है। लेकिन उनके सार और उनके कार्य की प्रकृति में ज़मीन-आसमान का अंतर है। आज सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आकर सारे सत्य और रहस्य प्रकट कर दिए हैं और परमेश्वर के कार्य और इंसान के कार्य में अंतर का खुलासा कर दिया है। अब जाकर हमें परमेश्वर के कार्य और इंसान के कार्य का ज्ञान हुआ है और उसको समझ पाए हैं। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर नज़र डालें।
"स्वयं परमेश्वर के कार्य में सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य सम्मिलित है, और यह सम्पूर्ण युग के कार्य का भी प्रतिनिधित्व करता है। कहने का तात्पर्य है, परमेश्वर का स्वयं का कार्य पवित्र आत्मा के सभी कार्य की गति एवं प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि प्रेरितों का कार्य परमेश्वर के स्वयं के कार्य का अनुसरण करता है और युग की अगुवाई नहीं करता है, न ही यह सम्पूर्ण युग में पवित्र आत्मा के कार्य करने की प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वे केवल वही कार्य करते हैं जिसे मनुष्य को अवश्य करना चाहिए, जो प्रबंधकीय कार्य को बिलकुल भी शामिल नहीं करता है। परमेश्वर का स्वयं का कार्य प्रबंधकीय कार्य के भीतर एक परियोजना है। मनुष्य का कार्य केवल उन मनुष्यों का कर्तव्य है जिन्हें उपयोग किया जाता है और इसका प्रबंधकीय कार्य से कोई सम्बन्ध नहीं है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से)।
"देहधारी परमेश्वर का कार्य एक नये विशेष युग (काल) को प्रारम्भ करता है, और ऐसे लोग जो उसके कार्य को निरन्तर जारी रखते हैं वे ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें उसके द्वारा उपयोग किया जाता है। मनुष्य के द्वारा किया गया समस्त कार्य देहधारी परमेश्वर की सेवकाई के अन्तर्गत होता है, और इस दायरे के परे जाने में असमर्थ होता है। यदि देहधारी परमेश्वर अपने कार्य को करने के लिए नहीं आता, तो मनुष्य पुराने युग को समापन की ओर लाने में समर्थ नहीं होता, और नए विशेष युग की शुरुआत करने में समर्थ नहीं होता। मनुष्य के द्वारा किया गया कार्य महज उसके कर्तव्य के दायरे के भीतर होता है जो मानवीय रूप से संभव है, और परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। केवल देहधारी परमेश्वर ही आ सकता है और उस कार्य को पूरा कर सकता है जो उसे करना चाहिए, और उसके अलावा, कोई भी उसके स्थान पर इस कार्य को नहीं कर सकता है। निश्चित रूप से, जो कुछ मैं कहता हूँ वह देहधारण के कार्य के सम्बन्ध में है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" से)।
"जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर का सार धारण करेगा, और जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति धारण करेगा। चूँकि परमेश्वर देहधारी हुआ, वह उस कार्य को प्रकट करेगा जो उसे अवश्य करना चाहिए, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया, तो वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है, और मनुष्यों के लिए सत्य को लाने में समर्थ होगा, मनुष्यों को जीवन प्रदान करने, और मनुष्य को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस शरीर में परमेश्वर का सार नहीं है, निश्चित रूप से वह देहधारी परमेश्वर नहीं है; इस बारे में कोई संदेह नहीं है। …
… देहधारी परमेश्वर के वचन एक नया युग आरंभ करते हैं, समस्त मानवजाति का मार्गदर्शन करते हैं, रहस्यों को प्रकट करते हैं, और एक नये युग में मनुष्य को दिशा दिखाते हैं। मनुष्य द्वारा प्राप्त की गई प्रबुद्धता मात्र एक आसान अभ्यास या ज्ञान है। वह समस्त मानवजाति को एक नये युग में मार्गदर्शन नहीं दे सकती है या स्वयं परमेश्वर के रहस्य को प्रकट नहीं कर सकती है। परमेश्वर आखिरकार परमेश्वर है, और मनुष्य मनुष्य ही है। परमेश्वर में परमेश्वर का सार है और मनुष्य में मनुष्य का सार है" ("वचन देह में प्रकट होता है" के लिए प्रस्तावना से)।
"देहधारी परमेश्वर उन लोगों से मौलिक रूप से भिन्न है जो परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाते हैं। देहधारी परमेश्वर दिव्यता का कार्य करने में समर्थ है, जबकि परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए जाने वाले लोग समर्थ नहीं हैं। प्रत्येक युग के आरंभ में, नया युग शुरू करने के लिए और मनुष्य को एक नई शुरुआत में लाने के लिए परमेश्वर का आत्मा व्यक्तिगत रूप से बोलता है। जब वह अपना बोलना पूरा कर लेता है, तो यह प्रकट करता है कि परमेश्वर की दिव्यता के भीतर उसका कार्य हो गया है। उसके बाद, सभी लोग अपने जीवन अनुभव में प्रवेश करने के लिए उन लोगों के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं जो परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए जाते हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए लोगों के बीच महत्वपूर्ण अंतर" से)।
"जो कुछ परमेश्वर प्रगट करता है परमेश्वर स्वयं वही है, और यह मनुष्य की पहुंच से परे है, और यह मनुष्य की सोच से परे है। वह सम्पूर्ण मानवजाति की अगुवाई करने के अपने कार्य को अभिव्यक्त करता है, और यह मानवजाति के अनुभव के विवरणों के विषय से सम्बद्ध नहीं है, परन्तु इसके बजाए यह उसके अपने प्रबंधन से सम्बन्धित है। मनुष्य अपने अनुभव को अभिव्यक्त करता है, जबकि परमेश्वर अपने अस्तित्व को अभिव्यक्त करता है - यह अस्तित्व उसका अंतर्निहित स्वभाव है और यह मनुष्य की पहुंच से परे है। मनुष्य का अनुभव उसका अवलोकन एवं उसका ज्ञान है जिसे परमेश्वर के अस्तित्व की उसकी अभिव्यक्ति के आधार पर हासिल किया जाता है। ऐसे अवलोकन एवं ज्ञान को मनुष्य का अस्तित्व कहा जाता है। इन्हें मनुष्य का अंतर्निहित स्वभाव एवं उसकी वास्तविक क्षमता के आधार पर अभिव्यक्त किया जाता है; इस प्रकार उन्हें मनुष्य का अस्तित्व भी कहा जाता है। …देहधारी परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचन आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है और वे उस कार्य को अभिव्यक्त करते हैं जिन्हें आत्मा के द्वारा किया गया है। देह ने इसे अनुभव नहीं किया है या देखा नहीं हैं, परन्तु अभी भी उसके अस्तित्व को अभिव्यक्त करता है क्योंकि शरीर का मूल-तत्व आत्मा है, और वह आत्मा के कार्य को अभिव्यक्त करता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से)।
"वह कार्य जिसे परमेश्वर करता है वह उसकी देह के अनुभव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है; वह कार्य जिसे मनुष्य करता है वह मनुष्य के अनुभव का प्रतिनिधित्व करता है। हर कोई अपने व्यक्तिगत अनुभव के विषय में बातचीत करता है। परमेश्वर सीधे तौर पर सत्य को अभिव्यक्त कर सकता है, जबकि मनुष्य केवल सत्य का अनुभव करने के पश्चात् ही उससे सम्बन्धित अनुभव को अभिव्यक्त कर सकता है। परमेश्वर के कार्य में कोई नियम नहीं होते हैं और यह समय या भौगोलिक अवरोधों के अधीन नहीं होता है। वह जो है उसे वह किसी भी समय, कहीं पर भी प्रगट कर सकता है। जो वह है उसे वह किसी भी समय एवं किसी भी स्थान पर व्यक्त कर सकता है। जैसा उसे अच्छा लगता है वह वैसा कार्य करता है। मनुष्य के काम में परिस्थितियां एवं सन्दर्भ होते हैं; अन्यथा, वह काम करने में असमर्थ होता है और वह परमेश्वर के विषय में अपने ज्ञान को व्यक्त करने या सत्य के विषय में अपने अनुभव को व्यक्त करने में असमर्थ होता है। आपको बस यह बताने के लिए उनके बीच के अन्तर की तुलना करनी है कि यह परमेश्वर का अपना कार्य है या मनुष्य का काम है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से)।
"अगर मनुष्य को यह कार्य करना पड़ता, तो यह बहुत ही सीमित हो जाता; यह मनुष्य को एक निश्चित बिन्दु तक ले जा सकता था, परन्तु यह मनुष्य को अनंत मंज़िल पर ले जाने में सक्षम नहीं होता। मनुष्य की नियति को निर्धारित करने में मनुष्य समर्थ नहीं है, इसके अतिरिक्त, न ही वह मनुष्य के भविष्य की संभावनाओं एवं भविष्य की मंज़िल को सुनिश्चित करने में सक्षम है। फिर भी, परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य भिन्न होता है। चूँकि उसने मनुष्य को सृजा था, इसलिए वह मनुष्य की अगुवाई करता है; चूँकि वह मनुष्य को बचाता है, इसलिए वह उसे पूरी तरह से बचाएगा, और उसे पूरी तरह प्राप्त करेगा; चूँकि वह मनुष्य की अगुवाई करता है, इसलिए वह उसे उपयुक्त मंज़िल पर पहुंचाएगा, और चूँकि उसने मनुष्य को सृजा था और उसका प्रबंध करता है, इसलिए उसे मनुष्य की नियति एवं उसकी भविष्य की संभावनाओं की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। यही वह कार्य है जिसे सृष्टिकर्ता के द्वारा किया गया है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना" से)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने परमेश्वर के कार्य और इंसान के कार्य के बीच के अंतर को एकदम साफ कर दिया है। जब देहधारी परमेश्वर का सार और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले इंसान का सार अलग होता है, तो वे जो काम करते हैं वो भी बहुत अलग होता है। परमेश्वर बाहर से एक साधारण, सामान्य व्यक्ति दिखते हैं, लेकिन वे देह में परमेश्वर के आत्मा का साकार रूप हैं। इसलिए उनमें एक दिव्य सार है, उनमें परमेश्वर का अधिकार, सामर्थ्य, सर्वव्यापकता और विवेक है। इसी कारण देहधारी परमेश्वर सीधे अपने कार्य में सत्य व्यक्त कर सकते हैं और परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को, जो उनके पास है और जो वे हैं, व्यक्त कर सकते हैं, और एक नए युग का आरंभ और अंत कर सकते हैं, परमेश्वर के इरादों और इंसान से परमेश्वर की उम्मीदों को व्यक्त करते हुए, परमेश्वर की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को प्रकट कर सकते हैं। देहधारी परमेश्वर ने जो वचन व्यक्त किये हैं वे सब सत्य हैं वे इंसान का जीवन हो सकते हैं और इंसान के जीवन स्वभाव को बदल सकते हैं। परमेश्वर का कार्य मनुष्य को जीत सकता है, उसे शुद्ध कर सकता है इंसान को शैतान के प्रभाव से बचा सकता है, और इंसानियत को एक ख़ूबसूरत मंज़िल तक ले जा सकता है। ऐसे कार्य का प्रभाव कुछ ऐसा है जिसे कोई इंसान नहीं कर सकता। देहधारी परमेश्वर का कार्य स्वयं परमेश्वर का कार्य है, और उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। दूसरी तरफ, परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले मनुष्य का सार मनुष्य है। उनमें केवल मानवता होती है, मसीह का दिव्य सार नहीं होता, इसलिए वे सत्य या परमेश्वर के स्वभाव को और उस सबको जो उनके पास है और जो वे हैं, व्यक्त नहीं कर सकते। वे परमेश्वर के कथनों और कार्य के आधार पर परमेश्वर के वचनों के अपने निजी ज्ञान का ही बखान कर सकते हैं, या अपने अनुभवों और गवाही के बारे में बात कर सकते हैं। उनका सारा ज्ञान और गवाही उनकी परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ और नज़रिये को दर्शाता है। उनका ज्ञान कितना भी ऊँचा हो या उनके शब्द कितने भी सटीक हों, उनकी बातों को न तो सत्य कहा जा सकता है और न ही परमेश्वर के वचन कहा जा सकता है, इसलिये ये बातें इंसान का जीवन नहीं हो सकतीं इंसान को सिर्फ़ मदद, आपूर्ति, समर्थन और नसीहत दे सकती है, परिणाम हासिल नहीं कर सकतीं, इंसान को शुद्ध नहीं कर सकतीं, उसे बचा नहीं सकतीं और पूर्ण नहीं कर सकतीं। इसलिए परमेश्वर द्वारा उपयोग किया जाने वाला इंसान स्वयं परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकता मनुष्य के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए केवल परमेश्वर के साथ समन्वय कर सकता है।
जब परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य में अंतर की बात आती है, तो हम इस बात को और ज़्यादा स्पष्ट करने के लिए एक वास्तविक उदाहरण दे सकते हैं। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य के रहस्यों को प्रकट करते हुए, प्रायश्चित के मार्ग का प्रचार किया, "प्रायश्चित करो: क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है," और उन्हें मनुष्य के लिए पापबलि के रूप में सूली पर चढ़ा दिया गया, उन्होंने मानवजाति को छुड़ाने का कार्य किया, इंसान को अपने पाप स्वीकार करने के लिये, प्रायश्चित करने के लिये किया और मनुष्यों के पापों को क्षमा किया, लोगों को अपराध और कानून के अभिशाप से मुक्त करने के लिये किया ताकि लोग परमेश्वर से प्रार्थना करने और संगत करने के लिए उनके सामने आने की पात्रता हासिल कर सकें, परमेश्वर का भरपूर अनुग्रह और सत्य पा सकें, परमेश्वर करुणामय और दयालु स्वभाव देख सकें। प्रभु यीशु के कार्य ने अनुग्रह के युग का आरंभ और व्यवस्था के युग का अंत किया। यह अनुग्रह के युग के लिए परमेश्वर के कार्य का हिस्सा है। जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य पूरा कर लिया, तो उनके प्रेरितों ने परमेश्वर के वचनों और कार्य के आधार पर, उनके चुने हुए लोगों को प्रभु यीशु के वचनों का अनुभव करने और अभ्यास करने की अगुवाई की, उनके उद्धार की गवाही को फैलाया और पूरी धरती पर मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाले उनके सुसमाचार का प्रचार किया। ये अनुग्रह के युग में प्रेरितों का कार्य है और यही परमेश्वर के द्वारा उपयोग किये गए लोगों का कार्य भी था। इससे हम ये देख पाते हैं कि प्रभु यीशु के कार्य और प्रेरितों के कार्य के सार में अंतर है। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए सभी सत्य व्यक्त किये, परमेश्वर की 6,000 साल की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को प्रकट किया, परमेश्वर के धाम से आरंभ होने वाला न्याय का कार्य किया, मानवजाति को शैतान के भ्रष्टाचार और असर से पूरी तरह से बचाने का कार्य किया, मनुष्य को परमेश्वर के धर्मी, प्रतापी, क्रोधपूर्ण, अप्रसन्न न किये जा सकने योग्य स्वभाव के दर्शन कराए, ताकि भ्रष्ट मानवजाति पाप-मुक्त हो सके, पवित्रता पा सके, और परमेश्वर को प्राप्त हो सके। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य ने राज्य के युग का आरंभ और अनुग्रह के युग का अंत किया। ये राज्य के युग के लिये परमेश्वर का कार्य है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचन की बुनियाद पर, परमेश्वर द्वारा उपयोग किया गया इंसान का कार्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सींचता है और उनकी चरवाही करता है, उन्हें परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने और परमेश्वर में विश्वास करने के लिए सही मार्ग में प्रवेश करने की ख़ातिर उनकी अगुवाई करता है, और राज्य के उतरने के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने और उनकी गवाही देने का कार्य करता है। यह राज्य के युग में परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले व्यक्ति का काम है। इससे हम ये देख पाते हैं दोनों बार जब परमेश्वर ने देहधारण किया तो परमेश्वर का कार्य युग का आरंभ करना और युग का अंत करना था। ये पूरी मानवजाति की ओर केंद्रित है और परमेश्वर की प्रबंधन योजना को पूरा करने के लिए कार्य का एक चरण है। ये ठीक मानवजाति को छुड़ाने और बचाने का कार्य है। दोनों बार परमेश्वर के देहधारण करने के समय के कार्य से ये प्रमाणित होता है कि मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए सिर्फ़ परमेश्वर ही अपने कार्य में सत्य व्यक्त कर सकते हैं। कोई भी इंसान परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकता। केवल देहधारी परमेश्वर ही परमेश्वर का कार्य कर सकते हैं। तो दोनों बार देहधारी परमेश्वर ने गवाही दी कि मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। देहधारी परमेश्वर के अलावा, और कोई स्वयं परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकता। वे न तो नए युग का आरंभ कर सकते हैं, न पुराने युग का अंत कर सकते हैं और न ही मानवजाति को बचा सकते हैं। परमेश्वर द्वारा उपयोग किया जाने वाला इंसान का कार्य अगुवाई करने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की चरवाही करने और इंसान का कर्तव्य पूरा करने के लिये, केवल परमेश्वर के कार्य के साथ समन्वय कर सकता है। चाहे इंसान ने कितने भी साल काम किया हो या कितने शब्द बोले गए हों, या उसका काम कितना भी विशाल दिखता हो, इसका सार पूरा इंसान का काम है। यह एक सच्चाई है। देहधारी परमेश्वर के कार्य में और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए इंसानों के काम में यही मुख्य अंतर है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने हमें परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम में मौलिक अंतर का एहसास कराया है। हमें अब जाकर समझ में आया है कि देहधारी परमेश्वर जब कार्य करते हैं तो वे सत्य व्यक्त कर सकते हैं, परमेश्वर का स्वभाव और परमेश्वर के पास जो है और जो वे हैं, उसे व्यक्त कर सकते हैं। अगर हम परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लें और अनुभव कर लें तो हम सत्य को समझ पाएंगे, और परमेश्वर के पवित्र और धार्मिक स्वभाव को, परमेश्वर के सार को, मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के इरादों को, मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के तरीकों को और मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्यार को ज़्यादा से ज़्यादा समझ पाएंगे। साथ ही हम शैतान द्वारा दूषित होने के अपने सार, प्रकृति और सत्य की समझ को भी पा लेंगे। इस तरह हमारा दूषित स्वभाव शुद्धिकरण और परिवर्तन हासिल कर सकता है, हम परमेश्वर के प्रति सच्ची आज्ञाकारिता और भय पैदा कर सकते हैं, और परमेश्वर द्वारा उद्धार को पा सकते हैं। हालांकि मनुष्य का कार्य और परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से अलग हैं। चूँकि इंसान सत्य व्यक्त नहीं कर सकता है और केवल अपने निजी अनुभव और परमेश्वर के वचनों के ज्ञान पर चर्चा कर सकता है, भले ही ये सत्य के अनुरूप हो, ये केवल परमेश्वर के चुने हुए लोगों का मार्गदर्शन, चरवाही, समर्थन और सहायता कर सकता है। इससे पता चलता है कि अगर ये परमेश्वर द्वारा अनुमोदित व्यक्ति है, तो उसका काम सिर्फ परमेश्वर के कार्य के साथ समन्वय करना और इंसान का कर्तव्य पूरा करना है। अगर ऐसा व्यक्ति परमेश्वर द्वारा उपयोग नहीं किया गया है, बिना पवित्र आत्मा के कार्य वाला व्यक्ति है, तो वो इंसान के उपहार, प्रतिभा और प्रसिद्धि का गुणगान करने वाला व्यक्ति है। अगर वो बाइबल की व्याख्या भी करता है, तो भी वो बाइबल में मनुष्य के वचनों का गुणगान करता है, परमेश्वर के वचनों को अप्रासंगिक बना देता है और परमेश्वर के वचनों को बदल देता है। ऐसे लोगों का काम फरीसियों का काम है और वचनों का विरोध करने का काम है। इंसानों का काम ख़ास तौर से इन दो अलग-अलग स्थितियों में आता है। चाहे कुछ भी हो, इंसान के काम और परमेश्वर के कार्य में सबसे बड़ा अंतर यह है: अगर ये सिर्फ़ इंसान का काम है, तो ये इंसानों को शुद्ध करने और बचाने के परिणाम हासिल नहीं कर सकता। जबकि परमेश्वर का कार्य सत्य व्यक्त कर सकता है और इंसान को शुद्ध कर सकता है, उसे बचा सकता है। ये एक सच्चाई है। हम जिस ख़ास बात की यहां चर्चा कर रहे हैं, वो है परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए लोगों के बीच का अंतर। परमेश्वर द्वारा धार्मिक अगुवों के कार्य का उपयोग न करना एक अलग मामला है।
जब परमेश्वर के कार्य और इंसान के काम में इतना साफ़ अंतर है, तो फिर भी हम परमेश्वर पर विश्वास करने के साथ-साथ इंसान की पूजा और उसका अनुसरण क्यों करें? उसके बावजूद इतने सारे लोग प्रसिद्ध आध्यात्मिक हस्तियों और धार्मिक अगुवों के कामों को परमेश्वर के कार्यों की तरह क्यों मानते हैं? इतने सारे लोग झूठे मसीहों और दुष्ट आत्माओं के धोखे तक को परमेश्वर का कार्य क्यों मानते हैं? उसकी वजह ये है कि हमारे भीतर सत्य नहीं है और हम परमेश्वर के कार्य और इंसान के काम में अंतर नहीं कर सकते। हम देहधारी परमेश्वर और इंसान के सार को नहीं जानते, हम नहीं जानते कि सत्य की पहचान कैसे करें और कौनसी बात सत्य के अनुरूप है। हम परमेश्वर की वाणी और इंसान के शब्दों में अंतर नहीं कर पाते, इसके अलावा, हमें शैतान ने दूषित कर दिया है और हम सब ज्ञान और उपहार की पूजा करते हैं, इसलिए बाइबल में इंसान से आने वाले ज्ञान को, धार्मिक सिद्धांतों को और आध्यात्मिक मतों को सत्य मान लेना बड़ा आसान होता है। हमारा उन बातों को मान लेना जो सत्य से संबंधित नहीं हैं, जो इंसान से आती हैं, वे बातें हमारे ज्ञान को बढ़ाने का काम तो कर सकती हैं, लेकिन ये हमारे जीवन को किसी भी तरह की आपूर्ति प्रदान नहीं करतीं, और इसके अलावा, परमेश्वर को जानने और परमेश्वर का भय मानने का प्रभाव हासिल नहीं कर सकतीं। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। इसलिए, इंसान चाहे कितना भी काम कर ले, कितने भी शब्द बोल ले, कितने भी समय काम कर ले, या कितना भी बड़ा काम कर ले, वो काम इंसान के शुद्धिकरण और इंसान को बचाने का परिणाम हासिल नहीं कर सकता। इंसान का जीवन नहीं बदलेगा। इससे ये ज़ाहिर होता है कि इंसान का काम परमेश्वर के कार्य की जगह नहीं ले सकता। सिर्फ़ परमेश्वर का कार्य ही इंसान को बचा सकता है। परमेश्वर के कार्य की अवधि कितनी भी छोटी हो, उनके बोले गए वचन चाहे कितने भी कम हों, ये फिर भी किसी युग का आरंभ और अंत कर सकता है, और मानवजाति को छुड़ाने और बचाने के परिणामों को हासिल कर सकता है। परमेश्वर और इंसान के कार्य में ये अंतर एकदम साफ़ है। अगर हम परमेश्वर और इंसान के कार्य में अंतर को समझ लें तो फिर हम आँख बंद करके इंसान की पूजा और उसका पालन नहीं करेंगे, और झूठे मसीहों और मसीह–विरोधियों के झाँसे में और काबू में नहीं आएंगे। इस तरह हम अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार और उसका पालन कर पाएंगे, और परमेश्वर से उद्धार पाने के लिए परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को हासिल कर पाएंगे। अगर इन्सान परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम में अंतर न कर पाए, तो हम झूठे मसीहों और मसीह–विरोधियों के झाँसे और उनके नियंत्रण से नहीं निकल पाएंगे। इस तरह हम आमतौर पर परमेश्वर में विश्वास करते हैं, बल्कि हम वास्तव में इन्सान में विश्वास करते हैं, इन्सान का अनुसरण करते हैं और इन्सान की पूजा करते हैं; हम मूर्तियों की पूजा कर रहे हैं। ये परमेश्वर का विरोध और परमेश्वर के साथ धोखा है। अगर हमें अभी भी अपने मार्ग की गलती का एहसास नहीं हुआ, तो आख़िरकार परमेश्वर के स्वभाव को नाराज़ करने की एवज़ में परमेश्वर हमें शाप दे देंगे और हमें हटा देंगे।
"राज्य के सुसमाचार पर उत्कृष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से
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