परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
कुछ लोगों में अपनी ओर ध्यान खींचने की विशेष प्रवृत्ति होती है। अपने भाई-बहनों की उपस्थिति में, वह कहता है कि वह परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ है, परंतु उनकी पीठ पीछे, वह सत्य का अभ्यास नहीं करता है और पूरी तरह से अन्यथा करता है। क्या यह उन धार्मिक फरीसियों जैसा नहीं है? एक व्यक्ति जो सच में परमेश्वर से प्यार करता है और जिसमें सत्य है वह एक है जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है, परंतु वह बाहर से ऐसा प्रकट नहीं करता है। परिस्थिति उत्पन्न होने पर पर वह सत्य का अभ्यास करने को तैयार रहता है और अपने विवेक के विरुद्ध जा कर बोलता या क्रिया नहीं करता है। चाहे परिस्थिति कुछ भी हो, जब मामले उठते हैं तो वह बुद्धि का प्रदर्शन करता है और अपने कर्मों में उच्च सिद्धांत वाला होता है। इस तरह का कोई व्यक्ति ही वह व्यक्ति है जो सच में सेवा करता है। कुछ ऐसे भी होते हैं जो परमेश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता के लिए दिखावटी प्रेम करते हैं। वे कई दिनों तक चिंता में अपनी भौंहें चढ़ा कर अपने दिन बिताते हैं, एक बनावटी अच्छा होने का नाटक करते हैं, और एक दयनीय मुखाकृति का दिखावा करते हैं। कितना तिरस्करणीय है! और यदि तुम उससे कहते कि, "तुम परमेश्वर के प्रति किस प्रकार से आभारी हो? कृपया मुझे बताओ!" तो वह निरुत्तर होता। यदि तुम परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हो, तो इस बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा मत करो, बल्कि परमेश्वर के लिए अपना प्यार दर्शाने हेतु अपने वास्तविक अभ्यास का उपयोग करो, और एक सच्चे हृदय से उससे प्रार्थना करो। जो परमेश्वर के साथ व्यवहार करने के लिए केवल वचनों का उपयोग करते हैं वे सभी पाखंडी हैं। कुछ लोग प्रत्येक प्रार्थना के साथ परमेश्वर के प्रति आभार के बारे में बोलते हैं, और जब कभी भी वे प्रार्थना करते हैं, तो पवित्र आत्मा के द्रवित हुए बिना ही रोना आरंभ कर देते हैं। इस तरह के मनुष्य धार्मिक रिवाजों और अवधारणाओं से सम्पन्न होते हैं; वे, सदैव यह विश्वास करते हुए ऐसे रीति-रिवाजों और अवधारणाओं के साथ जीते हैं कि ऐसी क्रियाएँ परमेश्वर को प्रसन्न करती हैं, और यह कि सतही धार्मिकता या दुःखभरे आँसुओं का परमेश्वर समर्थन करता है। ऐसे बेतुके लोगों से कौन सी भलाई आ सकती है? अपनी विनम्रता का प्रदर्शन करने के लिए, कुछ लोग दूसरों की उपस्थिति में अनुग्रह का दिखावा करते हैं। कुछ दूसरों के सामने जानबूझकर किसी नितान्त शक्तिहीन मेमने की तरह चापलूस होते हैं। क्या यह राज्य के लोगों का चाल-चलन है? राज्य के व्यक्ति को जीवंत और स्वतंत्र, भोला-भाला और स्पष्ट, ईमानदार और प्यारा होना चाहिए; एक ऐसा जो स्वतंत्रता की स्थिति में हो। उसमें चरित्र और प्रतिष्ठा हो, और जहाँ कहीं जाए वह गवाही दे सकता हो; वह परमेश्वर और मनुष्य दोनों का प्यारा हो। वे जो विश्वास में नौसिखिये होते हैं उनके पास बहुत से बाहरी अभ्यास होते हैं; उन्हें सबसे पहले निपटने और टूटने की एक अवधि से अवश्य गुज़रना चाहिए। जिनके हृदय में परमेश्वर का विश्वास है वे बाहरी रूप से दूसरों को अलग नहीं दिखते हैं, किन्तु उनकी क्रियाएँ और कर्म दूसरों के लिए प्रशंसनीय हैं। केवल ऐसे ही व्यक्ति परमेश्वर के वचनों पर जीवन बिताने वाले समझे जा सकते हैं। यदि तुम इस व्यक्ति को प्रतिदिन सुसमाचार का उपदेश देते हो, और कि, उन्हें उद्धार में ला रहे हो, तब भी अंत में, तुम नियमों और सिद्धांतों में जी रहे हो, तब तुम परमेश्वर के लिए महिमा नहीं ला सकते हो। इस प्रकार के चाल-चलन के लोग धार्मिक लोग हैं, और पाखंडी भी हैं।
जब कभी भी ऐसे धार्मिक लोग जमा होते हैं, वे पूछते हैं, "बहन, इन दिनों तुम कैसी रही हो?" वह उत्तर देती है, "मैं परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ महसूस करती हूँ और कि मैं उसके हृदय की इच्छा को पूरा करने में असमर्थ हूँ।" दूसरी कहती है, "मैं भी परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ हूँ और उसे संतुष्ट करने में असमर्थ हूँ।" ये कुछ वाक्य और वचन अकेले ही उनके हृदयों की गहराई की अधम चीजों को व्यक्त करते हैं। ऐसे वचन अत्यधिक घृणित और अत्यंत अरुचिकर हैं। ऐसे मनुष्यों की प्रकृति परमेश्वर का विरोध करती है। जो लोग वास्तविकता पर ध्यान केन्द्रित करते हैं वे वही संचारित करते हैं जो उनके हृदयों में होता है और संवाद में अपने हृदय को खोल देते हैं। उनमें एक भी झूठा श्रम, कोई शिष्टताएँ या खोखली मधुर बातें नहीं होती है। वे हमेशा स्पष्ट होते हैं और किसी पार्थिव नियम का पालन नहीं करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनमें, बिना किसी समझ के, बाह्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति होती है। जब कोई दूसरा गाता है, तो वह नाचने लगता है, यहाँ तक कि यह समझे बिना कि उसके बरतन का चावल पहले से ही जला हुआ है। लोगों के इस प्रकार के चाल-चलन धार्मिक या सम्माननीय नहीं हैं, और बहुत ही तुच्छ हैं। ये सब वास्तविकता के अभाव की अभिव्यक्तियाँ है! कुछ आत्मा में जीवन के मामलों के बारे में संगति के लिए इकट्ठा होते हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ होने की बात नहीं करते हैं, फिर भी वे अपने हृदयों में उसके प्रति एक सच्चे प्यार को कायम रखते हैं। परमेश्वर के प्रति तुम्हारी कृतज्ञता का दूसरों से कोई लेना देना नहीं है; तुम परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ हो, न कि किसी मनुष्य के प्रति। इसलिए इस बारे में लगातार दूसरों से कहना तुम्हारे किस उपयोग का है? तुम्हें अवश्य सच्चाई में प्रवेश करने को महत्व देना चाहिए, न कि बाहरी उत्साह या प्रदर्शन को।
मनुष्य के सतही अच्छे कर्म किस चीज का प्रतिनिधित्व करते हैं? वे देह का प्रतिनिधित्व करते हैं, और यहाँ तक कि बाहरी सर्वोत्तम अभ्यास भी जीवन का प्रतिनिधित्व नहीं करते है, केवल तुम्हारी अपनी व्यक्तिगत मनोदशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। मनुष्य के बाहरी अभ्यास परमेश्वर की इच्छा को पूरा नहीं कर सकते हैं। तुम निरतंर परमेश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता की बातें करते रहते हो, तब भी तुम दूसरे को जीवन की आपूर्ति नहीं कर सकते हो या परमेश्वर से प्रेम करने के लिए दूसरों को उत्तेजित नहीं कर सकते हो। क्या तुम विश्वास करते हो कि ऐसे कार्य परमेश्वर को प्रसन्न करेंगे? तुम विश्वास करते हो कि यह परमेश्वर के हृदय की इच्छा है, कि यह आत्मा की इच्छा है, किन्तु सच में यह बेतुका है! तुम विश्वास करते हो कि जो तुम्हें अच्छा लगता है और जो तुम चाहते हो, उसी में परमेश्वर आनंदित होता है। क्या जो तुम्हें अच्छा लगता है, परमेश्वर को अच्छा लगने का प्रतिनिधित्व कर सकता है? क्या मनुष्य का चरित्र परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है? जो तुम्हें अच्छा लगता है निश्चित रूप से यह वही है जिससे परमेश्वर घृणा करता है, और तुम्हारी आदतें ऐसी हैं जिन्हें परमेश्वर घृणा करता है और अस्वीकार करता है। यदि तुम कृतज्ञ महसूस करते हो, तो परमेश्वर के सामने जाओ और प्रार्थना करो। इस बारे में दूसरों से बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि तुम परमेश्वर के सामने प्रार्थना नहीं करते हो, और इसके बजाय दूसरों की उपस्थिति में निरंतर अपनी ओर ध्यान आकर्षित करवाते हो, तो क्या इससे परमेश्वर के हृदय की इच्छा को पूरा किया जा सकता है? यदि तुम्हारी क्रियाएँ सदैव दिखावे के लिए ही हैं, तो इसका अर्थ है कि तुम मनुष्यों में सबसे व्यर्थ हो। वह किस तरह का व्यक्ति है जिसके केवल सतही अच्छे कर्म हैं, किन्तु सच्चाई से रहित हैं? ऐसे लोग पाखंडी फरीसी और धार्मिक लोग हैं। यदि तुम लोग अपने बाहरी अभ्यासों को नहीं छोड़ते हो और परिवर्तन नहीं कर सकते हो, तो तुम लोगों के पाखंड के तत्व और भी अधिक बढ़ जाएँगे। पाखंड के तत्व जितना अधिक होते हैं, परमेश्वर के प्रति विरोध उतना ही अधिक होता है, और अंत में, इस तरह के मनुष्य निश्चित रूप से त्यक्त कर दिए जाएँगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर पर विश्वास करना वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, न कि धार्मिक रीति-रिवाजों पर" से
यदि तुम्हारा विश्वास परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की नींव पर नहीं बना है, तो अंततः तुम्हें परमेश्वर का विरोध करने के परिणामस्वरूप दण्डित किया जाएगा। वे सभी जो अपने विश्वास में परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की खोज नहीं करते हैं परमेश्वर का विरोध करते हैं। परमेश्वर कहता है कि लोग सत्य की खोज करें, कि वे परमेश्वर के वचन के लिए प्यासे हों, और परमेश्वर के वचनों को खाएँ एवं पीएँ, और उन्हें अभ्यास में लाएँ, ताकि वे परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता को प्राप्त कर सकें। यदि तुम्हारी प्रेरणाएँ सचमुच में इस प्रकार की हैं, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हें उठाएगा, और वह निश्चित रूप से तुम्हारे प्रति अनुग्रहपूर्ण होगा। कोई भी इस पर सन्देह नहीं कर सकता है, और कोई भी इसे बदल नहीं सकता है। यदि तुम्हारी प्रेरणाएँ परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता के वास्ते नहीं हैं, और तुम्हारे अन्य लक्ष्य हैं, तो जो कुछ भी तुम कहते और करते हो-परमेश्वर के सामने तुम्हारी प्रार्थनाएँ, और यहाँ तक कि तुम्हारे प्रत्येक कार्यकलाप-परमेश्वर के विरोध में होंगे। तुम मृदुभाषी एवं विनम्र-व्यवहार वाले हो सकते हो, तुम्हारा हर कार्यकलाप और अभिव्यक्ति सही दिखायी दे सकती है, तुम एक ऐसा व्यक्ति दिखाई दे सकते हो जो कि आज्ञाकारी है, किन्तु जब परमेश्वर के प्रति तुम्हारी प्रेरणाओं एवं परमेश्वर में विश्वास के बारे में तुम्हारे दृष्टिकोण की बात आती है, तो जो कुछ भी तुम करते हो वह परमेश्वर के विरोध में, तथा बुरा होता है। जो लोग भेड़ों के समान आज्ञाकारी प्रतीत होते हैं, परन्तु जिनके हृदय बुरे इरादों को आश्रय देते हैं, वे भेड़ की खाल में भेड़िए हैं, वे प्रत्यक्षत: परमेश्वर का अपमान करते हैं, और परमेश्वर उन में से एक को भी नहीं छोड़ेगा। पवित्र आत्मा उन में से प्रत्येक को प्रकट करेगा, ताकि सभी यह देख सकें कि उन में से प्रत्येक से जो पाखण्डी हैं पवित्र आत्मा के द्वारा निश्चित रूप से घृणा की जाएगी एवं उनका तिरस्कार किया जाएगा। चिंता मत करो: परमेश्वर बारी-बारी से उन में से प्रत्येक के साथ निपटेगा और उनका समाधान करेगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए" से
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