परमेश्वर के वचन से जवाब:
सभी चीजों का अंत की ओर पहुँचना परमेश्वर के कार्य की समाप्ति की ओर संकेत करता है और मानवजाति के विकास के अंत का संकेत करता है। इसका अर्थ है कि शैतान के द्वारा भ्रष्ट की गई मानवजाति अपने विकास के अंत पर पहुँच गई है, और आदम और हव्वा के वंशज अपने अंत तक पहुँच गए हैं, और इसका अर्थ यह भी है कि अब ऐसी मानवजाति, जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है, के लिए लगातार विकास करते रहना असंभव है। …जब उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, तो जो शेष बचेंगे वे शुद्ध किए जाएँगे, और जब वे मानवजाति के उच्चतर राज्य में प्रवेश करेंगे तो एक अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का पृथ्वी पर आनंद उठाएँगे; दूसरे शब्दों में, वे मानवजाति के विश्राम में प्रवेश करेंगे और परमेश्वर के साथ-साथ रहेंगे। जो नहीं बच सकते हैं उनके ताड़ना और न्याय से गुजरने के बाद, उनके मूल स्वरूप पूर्णतः प्रकट हो जाएँगे; उसके बाद वे सबके सब नष्ट कर दिए जाएँगे और, शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर जीवित रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवजाति में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ये लोग अंतिम विश्राम के देश में प्रवेश करने के योग्य नहीं है, न ही ये लोग उस विश्राम के दिन में प्रवेश करने के योग्य हैं जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे, क्योंकि वे दण्ड के लक्ष्य हैं और दुष्ट हैं, और वे धार्मिक लोग नहीं हैं। …बुरे को दण्ड और अच्छे को पुरस्कार देने का उसका परम कार्य समस्त मानवजाति को सर्वथा शुद्ध करने के लिए है, ताकि वह पूर्णतः शुद्ध मानवजाति को अनंत विश्राम में ले जाए। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है। यह उसके समस्त प्रबंधन कार्य का अंतिम चरण है। यदि परमेश्वर दुष्टों का नाश नहीं करता बल्कि उन्हें बचा रहने देता तो संपूर्ण मानव जाति अभी भी विश्राम में प्रवेश करने योग्य नहीं होती, और परमेश्वर समस्त मानवजाति को एक बेहतर राज्य में नहीं पहुँचा पाता। इस प्रकार वह कार्य पूर्णतः समाप्त नहीं होता। जब वह अपना कार्य समाप्त कर लेगा, तो संपूर्ण मानव जाति पूर्णतः पवित्र हो जाएगी। केवल इस तरह से ही परमेश्वर शांतिपूर्वक विश्राम में रह सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" से
यदि परमेश्वर ने कुकर्मियों को प्रकट नहीं किया, तो वे लोग जो ईमानदारी से परमेश्वर का आज्ञा पालन करते हैं कभी भी प्रकाश को नहीं देखेंगे; यदि परमेश्वर उन्हें उचित नियति में नहीं पहुँचाता है जो आज्ञा पालन करते हैं, तो जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं वे अपने योग्य दण्ड को प्राप्त नहीं कर पाएँगे। यही परमेश्वर के कार्य की प्रक्रिया है। यदि वह बुरे को दण्ड देने एवं अच्छे को पुरस्कृत करने का यह कार्य नहीं करता, तो उसके प्राणी कभी भी अपनी संबंधित नियतियों में पहुँचने में सक्षम नहीं हो पाते। एक बार जब मानवजाति विश्राम में प्रवेश कर लेगी तब कुकर्मियों को नष्ट कर दिया जाएगा, समस्त मानवजाति सही मार्ग पर आ जाएगी, और हर प्रकार का व्यक्ति उन प्रकार्यों के अनुसार जो उसे करने चाहिए, अपने स्वयं के प्रकार के साथ हो जाएगा। केवल यही मानवजाति के विश्राम का दिन होगा और मानव जाति के विकास की अपरिहार्य प्रवृत्ति होगी, और जब मानवजाति विश्राम में प्रवेश करेगी केवल तभी परमेश्वर की महान और चरम कार्यसिद्धि पूर्णता पर पहुँचेगी; यह उसके कार्य का समापन अंश होगा। यह कार्य मानवजाति के ह्रासोन्मुख भौतिक जीवन का अंत करेगा, और यह भ्रष्ट मानवजाति का अंत करेगा। यहाँ से मानवजाति एक नए राज्य में प्रवेश करेगी। यद्यपि मनुष्य का भौतिक अस्तित्व रहता है, किंतु उसके इस जीवन के मूलतत्व और भ्रष्ट मानवजाति के मूलतत्व में महत्त्वपूर्ण अंतर होते हैं। उसके अस्तित्व का अर्थ और भ्रष्ट मानवजाति के अस्तित्व का अर्थ भी भिन्न होता है। यद्यपि यह एक नए प्रकार के व्यक्ति का जीवन नहीं है, किंतु यह कहा जा सकता है कि यह उस मानवजाति का जीवन है जो उद्धार प्राप्त कर चुकी है और ऐसा जीवन है जिसने मानवता और विवेक को पुनःप्राप्त कर लिया है। ये वे लोग हैं जो कभी परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी थे, और जिन्हें कभी परमेश्वर के द्वारा जीता गया था और फिर उसके द्वारा बचाया गया था; ये वे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर को लज्जित किया और बाद में उसकी गवाही दी। उसकी परीक्षा से गुज़रकर बचे रहने के बाद, उनका अस्तित्व ही सबसे अधिक अर्थपूर्ण अस्तित्व है; ये वे लोग हैं जिन्होंने शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दी; ये वे लोग हैं जो जीवित रहने के योग्य हैं। जो नष्ट किए जाएँगे ये वे लोग हैं जो परमेश्वर के गवाह नहीं बन सकते हैं और जो जीवित रहने के योग्य नहीं हैं। उनका विनाश, उनके दुष्ट आचरण के कारण होगा, और विनाश ही उनकी सर्वोत्तम नियति है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" से
विश्व के सृजन के बाद से परमेश्वर के आत्मा ने इतना महान कार्य किया है; उसने विभिन्न युगों के दौरान, और भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न कार्य किए हैं। प्रत्येक युग के लोग उसके भिन्न स्वभाव को देखते हैं, जो कि उस भिन्न कार्य के माध्यम से प्राकृतिक रूप से प्रकट होता है जिसे वह करता है। वह दया और करुणा से भरा हुआ परमेश्वर है; वह मनुष्य और मनुष्य के चरवाहे के लिए पापबलि है, फिर भी वह मनुष्य पर न्याय, ताड़ना, और श्राप भी है। वह मनुष्य की पृथ्वी पर दो हजार साल तक रहने में अगुआई कर सका और भ्रष्ट मानवजाति को पाप से छुटकारा दिला सका था। और आज, वह उस मानवजाति को जीतने में भी सक्षम है जो उसे नहीं जानती है और उसे अपने प्रभुत्व के अधीन करने में सक्षम है, ताकि सभी पूरी तरह से उसके प्रति समर्पण कर दें। अंत में, वह समस्त विश्व में मनुष्यों के अंदर जो कुछ भी अशुद्ध और अधर्मी है उसे जला कर दूर कर देगा, ताकि उन्हें यह दिखाए कि वह न सिर्फ दया, करुणा, बुद्धि, आश्चर्य और पवित्रता का परमेश्वर है, बल्कि इससे भी अधिक, वह एक ऐसा परमेश्वर है जो मनुष्य का न्याय करता है। मानवजाति के बीच बुरों के लिए, वह प्रज्वलन, न्याय करने वाला और दण्ड है; जिन्हें पूर्ण किया जाना है उनके लिए, वह क्लेश, शुद्धिकरण, और परीक्षण, और साथ ही आराम, संपोषण, वचनों की आपूर्ति, व्यवहार करने वाला और काँट-छाँट है। और जिन्हें अलग कर दिया जाता है उनके लिए, वह सजा, और साथ ही प्रतिशोध भी है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं" से
मेरी दया उन पर व्यक्त होती है जो मुझसे प्रेम करते हैं और अपने आपको नकारते हैं। और दुष्टों को मिला दण्ड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध का साक्षी है। जब आपदा आएगी, तो उन सभी पर अकाल और महामारी आ पड़ेगी जो मेरा विरोध करते हैं और वे विलाप करेंगे। जो लोग सभी तरह की दुष्टता कर चुके हैं, किन्तु जिन्होंने बहुत वर्षों तक मेरा अनुसरण किया है, वे अभियोग से नहीं बचेंगे; वे भी, ऐसी आपदा जिसके समान युगों-युगों तक कदाचित ही देखी गई होगी, में पड़ते हुए, लगातार आंतक और भय की स्थिति में जीते रहेंगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए" से
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