दो साधारण भाई व बहन, बीजिंग
15 अगस्त, 2012
मेरे लिए 21 जुलाई 2012 सबसे अविस्मरणीय दिन था, साथ ही साथ मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन भी।
उस दिन, बीजिंग में फांगशान जिले में भारी बारिश हो रही थी, सबसे भारी बारिश जो हमने इकसठ सालों में वहां देखी थी। शाम 4 बजे के थोड़ी देर बाद, मैं यूं ही नज़र डालने के लिए सड़क की ओर गया और देखा कि सब ओर पानी था। हमारी परिवार की कार पहले ही बह रही थी, लेकिन वह अभी तक बह कर आगे नहीं गई थी तो इसका एकमात्र कारण यह था कि इसके सामने कुछ था जो इसे आगे बहने से रोक रहा था। इस नजारे ने मुझे बहुत चिंतित कर दिया, तो मैंने जल्दी से अपने पति को बुलाया, वह भी एक विश्वासी हैं, लेकिन मैं कितनी ही बार कोशिश की पर मेरी उनसे बात नहीं हो पाई। फिर, परमेश्वर की इच्छा जानने की बजाय, मैं उन्हें बुलाने के लिए जल्दी से घर की ओर जाने लगी।
इसके बाद, मेरे पति और मैं हाथ में छाते लिए हुए, कार को देखने के लिए गए। जब हम वाहन के बगल में पहुंचे, तो वह इसे चलाने के लिए इसके अंदर जाने लगे, लेकिन इससे पहले कि वह इसे छू भी पाते, यह अपने आप ही आगे बढ़ना शुरू हो गई। वह कुछ कदम उसके पीछे भागे, लेकिन कार को पानी के बहाव ने बहा दिया, और वह भी उसके साथ में खिंच गए। मैं तुरंत ही भागकर उन्हें पकड़ना चाहती थी, लेकिन इससे पहले कि मैं कदम बढ़ा पाती, मैं भी पानी के बहाव में खिंच गई। पलक झपकते ही, उस भयंकर प्रवाह ने हमें साठ मीटर से ज्यादा दूरी तरह बहा दिया। तभी, एक मिनीवैन टैक्सी अचानक ही बहते हुए हमारी सामने आ गई। मेरे पति उस टैक्सी का सहारा लेकर खड़े होना चाहते थे, लेकिन इससे पहले कि वे ऐसा कर पाते, वह आगे बह गई और हम कुछ और मीटर तक बहते चले गए। एक जगह पर, जहां पानी के बहाव ने एक मोड़ लिया था, वहां मेरे पति आखिरकार खुद को खड़ा करने में सक्षम हो पाए। उन्होंने कहा, "जल्दी करो! उस खेमे में चढ़ जाओ!" एक दूसरे का हाथ पकड़कर, हम दोनों कठिनाई से उस छोटे खेमे पर चढ़ गए। तभी बाढ़ और ऊपर आ गई। हमने फिर से बह जाने के डर से, खम्भों को कसकर पकड़ लिया। इसी समय, इस जीने व मरने के संकट में, मुझे परमेश्वर पर भरोसा करने की याद आई। मेरे दिल में, मैंने लगातार उनसे याचना की और प्रार्थना करने लगी, "परमेश्वर! आज मैं जियूं या मर जाऊं यह तुम्हारे हाथों में है; मेरी मौत तक तुम्हारा धर्म है!" मैं एक पल के लिए भी उन्हें छोड़ने का साहस किए बिना, बार—बार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। अचानक, एक चमत्कार हुआ: कई डंडों ने पानी के प्रवाह को हमारी ओर बहने से रोक दिया, और जब बाढ़ ने हमारे शरीर को मारना जारी रखा तो हमें कोई भी दर्द महसूस होना बंद हो गया। चूंकि पानी बढ़ता जा रहा था, हम दोनों ने लगातार प्रार्थना की और परमेश्वर की स्तुति में भजन गाए। बाद में, चूंकि पानी का बहाव और भी तेज होता जा रहा था, मेरी ताकत पहले ही खत्म हो गई थी और मुझे ऐसा लगने लगा था कि मैं बहुत देर तक उस खंभे को पकड़कर नहीं रख पाऊंगी। तुरंत ही, मैं अपने पति को चिल्लाकर कहा, "मैं बहुत देर तक इसे पकड़कर नहीं रख सकती। मैं थक गई हूं!" अचानक ही, बाढ़ ने मुझे बहा दिया। मेरे पति ने तुरंत ही मुझे पकड़ लिया, और इस अफरा—तफरी में, जिंदगी और मौत तराजू में लटके हुए थे। तभी एक कार बहती हुई हमारे सामने आ गई और फिर अचानक ही वह उन खंभों के बीच फंस गई। वह जल प्रवाह उस कार के दोनों तरफ से बहने लगा, और बिल्कुल सही-सलामत हो गए थे! परमेश्वर अद्भूत हैं! परमेश्वर कितने सर्वशक्तिमान हैं! अगर परमेश्वर ने उस दिन मुझे न बचाया होता, तो बाढ़ मुझे बहाकर ले गई होती, और मैं पता नहीं कहां मर गई होती। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर थे जिन्होंने मेरी जिंदगी में मुझे दूसरा मौका दिया। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा था, "परमेश्वर अपने जीवन का प्रयोग सभी को पोषण प्रदान करने के लिये करता है, फिर वह चाहे सजीव हो या निर्जीव, सभी को अपने सामर्थ्य और अधिकार के बल से सही व्यवस्था में लाता है। यह एक सत्य है जो कोई भी आसानी से धारण नहीं कर सकता है या समझ नहीं सकता है और ये परमेश्वर के द्वारा जीवन शक्ति के न समझ में आने वाले सत्यों का सही प्रगटीकरण और आदेश है।" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है" से)।
और इसी तरह से हम बारिश में पांच घंटे तक फंसे रहे। दरअसल, कुछ बचावकर्ताओं ने पहले ही हमें देख लिया था, लेकिन यह देखते हुए कि वह जल प्रवाह कितना भीषण था, उन्हें भी बह जाने की चिंता होने लगी थी, तो हमें बचाने के लिए आने की जगह वे बस दूर से देख रहे थे। जाहिर है, आपदा का सामना करने पर, हर कोई स्वार्थी और असहाय हो जाता है; लोग निश्चित ही एक—दूसरे को नहीं बचा सकते हैं। केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही जिंदगी का स्रोत हैं; और इससे भी बढ़कर, केवल वह ही हैं जो हमें समय रहते बचा सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को छोड़ना मरने के समान है। अब मैंने निजी तौर पर परमेश्वर का प्यार चख लिया है, मैं उनके समक्ष एक संकल्प लेना चाहती हूं: आज से, मैं दृढ़तापूर्वक सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना चाहती हूं; मैं सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अपने निजी अनुभव का प्रयोग करके और भी लोगों को परमेश्वर के समक्ष लाना चाहती हूं, ताकि मैं उनकी उस करुणा का ऋण चुका सकूं, जो उन्होंने अपने उद्धार के लिए मुझे दी है!
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सच्चे मार्ग की खोजबीन पर एक सौ प्रश्न और उत्तर
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