मनुष्य केवल विश्वास के अनिश्चित शब्द पर बना रहता है, फिर भी मनुष्य यह नहीं जानता है कि वह क्या है जो विश्वास का निर्माण करता है, और यह तो बिलकुल ही नहीं जानता है कि उसके पास विश्वास क्यों है। मनुष्य बहुत ही कम जानता है और स्वयं मनुष्य में बहुत सारी कमियाँ हैं; वह बस लापरवाही और अज्ञानता से मुझ पर विश्वास रखता है। यद्यपि वह नहीं जानता है कि विश्वास क्या है न ही वह यह जानता है कि वह क्यों मुझ पर विश्वास रखे हुए है, वह सनक के साथ निरन्तर ऐसा करता रहता है। जो मैं मनुष्य से चाहता हूँ वह मात्र यह नहीं है कि वह सनक के साथ मुझे इस तरह पुकारे या अव्यवस्थित रीति से मुझ पर विश्वास करे।
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मंगलवार, 27 अगस्त 2019
शुक्रवार, 9 अगस्त 2019
विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए
वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? तुमने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण तुम कितने बदले हो? अब तुम सभी जानते हो कि परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह उसके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए, इत्यादि है। जैसा यह है, यदि तुम परमेश्वर को सिर्फ़ देह के कल्याण के लिए या क्षणिक आनंद के लिए प्रेम करते हो, तो भले ही, अंत में, परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम इसके शिखर पर पहुँचता है और तुम कुछ भी नहीं माँगते, यह "प्रेम" जिसे तुम खोजते हो अभी भी अशुद्ध प्रेम होता है, और परमेश्वर को भाने वाला नहीं होता।
शनिवार, 27 जुलाई 2019
परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है
पिछले दो युगों के कार्यों में से एक चरण का कार्य इस्राएल में सम्पन्न हुआ; दूसरा यहूदिया में हुआ। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य का कोई भी चरण इस्राएल को छोड़ कर नहीं गया; कार्य के ये वे चरण थे जो विशेष चुने हुए लोगों के मध्य में किये गए। इस प्रकार से, इस्राएलियों के दृष्टिकोण से, यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है। यहूदिया में यीशु के कार्य के कारण और उसके क्रूस पर चढ़ने के कार्य को पूरा करने के कारण, यहूदियों के दृष्टिकोण से, यीशु यहूदियों का उद्धारकर्ता है। वह केवल यहूदियों का राजा है, अन्य लोगों का राजा नहीं है; वह अंग्रेजों का उद्धार करने वाला प्रभु नहीं है, न ही अमरीका के लोगों का उद्धार करने वाला प्रभु है, परन्तु वह वो प्रभु है जो इस्राएलियों का उद्धार करता है, और इस्राएल में वह केवल यहूदियों का उद्धार करता है। वास्तव में, परमेश्वर सभी वस्तुओं का स्वामी है।
गुरुवार, 11 जुलाई 2019
तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई भाग दो
सबसे पहले, परमेश्वर ने आदम और हव्वा का सृजन किया, और उसने साँप का भी सृजन किया। सभी चीज़ों में साँप सर्वाधिक विषैला था; उसकी देह में विष था, और शैतान उस विष का उपयोग करता था। यह साँप ही था जिसने पाप करने के लिए हव्वा को प्रलोभित किया। हव्वा के बाद आदम ने पाप किया, और तब वे दोनों अच्छे और बुरे के बीच भेद करने में समर्थ हो गए थे। यदि यहोवा जानता था कि साँप हव्वा को प्रलोभित करेगा और हव्वा आदम को प्रलोभित करेगी, तो उसने उन सबको एक ही वाटिका के भीतर क्यों रखा? यदि वह इन चीज़ों का पूर्वानुमान करने में समर्थ था, तो उसने क्यों साँप की रचना की और उसे अदन की वाटिका के भीतर रखा? अदन की वाटिका में अच्छे और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल क्यों था? क्या वह चाहता था कि वे उस फल को खाएँ? जब यहोवा आया, तब न आदम को और न हव्वा को उसका सामना करने का साहस हुआ, और केवल इसी समय यहोवा को पता चला कि उन्होंने अच्छे और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया है और वे साँप के छल-कपट का शिकार बन गए हैं।
बुधवार, 10 जुलाई 2019
तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई भाग एक
6000 वर्षों के दौरान कार्य की समग्रता समय के साथ धीरे-धीरे बदल गई है। इस कार्य में बदलाव समस्त संसार की परिस्थितियों के अनुसार हुए हैं। परमेश्वर का प्रबंधन का कार्य केवल मानवजाति के पूर्णरूपेण विकास की प्रवृत्ति के अनुसार धीरे-धीरे रूपान्तरित हुआ है; सृष्टि के आरंभ में इसकी पहले से योजना नहीं बनाई गई थी। संसार का सृजन करने से पहले, या इसके सृजन के ठीक बाद, यहोवा ने अभी तक कार्य के प्रथम चरण, व्यवस्था की; कार्य के दूसरे चरण—अनुग्रह की; और कार्य के तीसरे चरण—जीतने की योजना नहीं बनायी थी, जिनमें वह सबसे पहले लोगों के एक समूह—मोआब के कुछ वंशजों के बीच कार्य करता, और इससे वह समस्त ब्रह्माण्ड को जीतता। उसने संसार का सृजन करने के बाद ये वचन नहीं कहे; उसने ये वचन मोआब के बाद नहीं कहे, लूत से पहले की तो बात ही छोड़ो। उसका समस्त कार्य अनायास ही किया गया था।
बुधवार, 29 मई 2019
परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है भाग दो
परमेश्वर द्वारा इस युग में बोले गये वचन, व्यवस्था के युग के दौरान बोले गए वचनों से भिन्न हैं, और इसलिए, वे अनुग्रह के युग के दौरान बोले गये वचनों से भी भिन्न हैं। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने वचन का कार्य नहीं किया, किन्तु समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए केवल सलीब पर चढ़ने का वर्णन किया। बाइबिल में केवल यह वर्णन किया गया है कि यीशु को क्यों सलीब पर चढ़ाया जाना था, और सलीब पर उसने कौन-कौन सी तकलीफें सही, और कैसे मनुष्य को परमेश्वर के लिये सलीब पर चढ़ना जाना चाहिए। उस युग के दौरान, परमेश्वर द्वारा किया गया समस्त कार्य सलीब पर चढ़ने के आस-पास केंद्रित था। राज्य के युग के दौरान, देहधारी परमेश्वर ने उन सभी लोगों को जीतने के लिए वचन बोले जिन्होंने उस पर विश्वास किया। यह "वचन का देह में प्रकट होना" है; परमेश्वर इस कार्य को करने के लिए अंत के दिनों में आया है, जिसका अर्थ है कि वह वचन का देह में प्रकट होना के वास्तविक महत्व को कार्यान्वित करने के लिए आया। वह केवल वचन बोलता है, और तथ्यों का आगमन शायद ही कभी होता है।
मंगलवार, 28 मई 2019
परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है भाग एक
परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों के अनुसार अपने वचन कहता है और अपना कार्य करता है, तथा भिन्न-भिन्न युगों में, वह भिन्न-भिन्न वचन कहता है। परमेश्वर नियमों से नहीं बँधता है, और एक ही कार्य को दोहराता नहीं है, और न अतीत की बातों को लेकर विषाद करता है; वह ऐसा परमेश्वर है जो सदैव नया है, कभी पुराना नहीं होता है, और वह हर दिन नये वचन बोलता है। जिस चीज का आज पालन किया जाना चाहिए उसका तुम्हें पालन करना चाहिए; यही मनुष्य की जिम्मेवारी और कर्तव्य है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि अभ्यास परमेश्वर की वर्तमान रोशनी और वास्तविक वचनों के आस-पास केन्द्रित हो। परमेश्वर नियमों का पालन नहीं करता है, और अपनी बुद्धि और सर्व-सामर्थ्य को प्रकट करने के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से बोलने में सक्षम है।
मंगलवार, 14 मई 2019
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है"
मानवजाति का सदस्य और सच्चे ईसाई होने के नाते, अपने मन और शरीर को परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के लिए समर्पित करना हम सभी की ज़िम्मेदारी और दायित्व है, क्योंकि हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और यह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश के लिए नहीं हैं और मानवजाति के धर्मी कार्य के लिए नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के योग्य नहीं हैं जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए हैं, परमेश्वर के लिए तो और भी अधिक अयोग्य हैं, जिसने हमें सब कुछ प्रदान किया है।
सोमवार, 8 अप्रैल 2019
8. परमेश्वर ने आपदा से हमारे परिवार की रक्षा की
वैंग लैन, बीजिंग
6 अगस्त, 2012
21 जुलाई 2012 को, साठ वर्षों में सबसे बड़ी बाढ़ ने हमारे गांव को तहस—नहस कर दिया। यह आपदा स्वर्ग से गिरी थी, बाढ़ के पानी में मिट्टी और पत्थर मिश्रित थे एवं इसने पूरे गांव को तबाह कर दिया था। अधिकांश घरों को पानी व कीचड़ के भूस्खलन ने नष्ट कर दिया था।
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
1. सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे जिंदगी में दूसरा मौका दिया है
दो साधारण भाई व बहन, बीजिंग
15 अगस्त, 2012
मेरे लिए 21 जुलाई 2012 सबसे अविस्मरणीय दिन था, साथ ही साथ मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन भी।
उस दिन, बीजिंग में फांगशान जिले में भारी बारिश हो रही थी, सबसे भारी बारिश जो हमने इकसठ सालों में वहां देखी थी। शाम 4 बजे के थोड़ी देर बाद, मैं यूं ही नज़र डालने के लिए सड़क की ओर गया और देखा कि सब ओर पानी था। हमारी परिवार की कार पहले ही बह रही थी, लेकिन वह अभी तक बह कर आगे नहीं गई थी तो इसका एकमात्र कारण यह था कि इसके सामने कुछ था जो इसे आगे बहने से रोक रहा था।
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