वैंग लैन, बीजिंग
6 अगस्त, 2012
21 जुलाई 2012 को, साठ वर्षों में सबसे बड़ी बाढ़ ने हमारे गांव को तहस—नहस कर दिया। यह आपदा स्वर्ग से गिरी थी, बाढ़ के पानी में मिट्टी और पत्थर मिश्रित थे एवं इसने पूरे गांव को तबाह कर दिया था। अधिकांश घरों को पानी व कीचड़ के भूस्खलन ने नष्ट कर दिया था।
उस दोपहर पांच बजे के बाद, बारिश बहुत ही भयंकर हो रही थी। हमारे घर के ऊपर से बाढ़ का पानी और बड़े पत्थर बरस रहे थे, और हमारे घर के सामने व पीछे बाढ़ का बहुत पानी था। वे हजारों मुर्गियों के साथ मेरी बेटी के मुर्गियों के दरबे को बहाकर ले गए, वे सुअर के बाड़े को बहाकर ले गए, और सुअरों को भी। पानी हमारे घर से ऊपर बस बहने ही वाला था। हमारे साथ एक 94 साल के बुजुर्ग व दस माह का बच्चा था। हम बेहद डरे हुए थे। जब मैं 94 साल के बुजुर्ग व बच्चे को ऊंची इमारत में ले जा रही थी, तो पानी निचले हिस्से में आना शुरू हो गया था। बारिश जारी थी। हमारे देखते—देखते पानी ऊंची इमारत की ओर बढ़ने लगा। मैं खुद में डरी हुई थी। मैंने तुरंत ही गांव के सहयोगी को बुलाया, उसने कहा कि मुझे पहाड़ पर भाग जाना चाहिए, और यह कि वे भी खुद को सुरक्षित करने में काफी कठिनाइयों का सामना कर रहे थे, वहां हर व्यक्ति खुद की ही चिंता कर रहा था। इस व्याकुलता में, मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया, "संकट मेरे द्वारा ही लाया जाएगा और निश्चित रूप से मैं ही उसका क्रियान्वयन करूँगा।" ("वचन देह में प्रकट होता है" स "अपने लक्ष्य की तैयारी में तुम्हें पर्याप्त भले काम करने चाहिये" से)। परमेश्वर पर विश्वास करने का मतलब है परमेश्वर पर निर्भर हो जाना, आप लोगों पर भरोसा नहीं कर सकते, इसलिए मैं दरवाजे पर खड़ी हो गई और ऊँची आवाज में परमेश्वर से याचना करने लगी: "हे परमेश्वर, हमें बचाओ! हे परमेश्वर, हमें बचाओ!" पूरा परिवार घुटनों पर आ गया और प्रार्थना की: "हे परमेश्वर, यदि हम इस आपदा में मर जाते हैं तो यह आपका धर्म है, क्योंकि हम बहुत विद्रोही हैं। यदि हम इस आपदा से बच जाते हैं तो यह आपकी कृपा से है। हम फिर से कार्य शुरू करेंगे, और आपकी इच्छा के प्रति विचारशील रहेंगे, अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे और सुसमाचार फैलाएंगे।" अंधेरा हो गया था और हमने बाहर जाने की हिम्मत नहीं की। पूरा परिवार साथ बैठकर, परमेश्वर की सारी मानवता के भाग्य की समझ को साझा कर रहा था, कि अगर परमेश्वर किसी व्यक्ति की मौत चाहते हैं, तो ऐसी कोई जगह नहीं जहां वह व्यक्ति छिप सकता है, वे परमेश्वर के हाथों से नहीं बच पाएंगे, और हमें मौत का डर नहीं था।
बारिश कभी तेज होती, कभी धीमी, और इसी तरह पूरी रात गिरती रही।
जब भोर हुई तो हमने उठकर देखा कि हमारे घर के ऊपर चट्टानों और रेत का एक बड़ा ढेर बना हुआ था, और पानी उस इमारत के चारों ओर से चला गया था जिसमें हमने रात बिताई थी; यह अद्भुत था। मैंने अपने घर के सामने और पीछे कीचड़ और मलबे को देखा। हमारे ऊपर भारी पानी और भारी चट्टानें होने की वजह से, जिस भवन में हमने आश्रय लिया हुआ था, वह सबसे ज्यादा खतरनाक थी, लेकिन पानी की एक भी बूंद या मिट्टी अंदर नहीं आई थी, और वह जिसमें हम नहीं रुके थे वह पूरी तरह से जलमग्न हो गई थी, जिसकी बहुत सी चीजें बह गई थी। हमने सचमुच परमेश्वर के प्यार और उद्धार को देखा। अगर परमेश्वर की हम पर नजर नहीं होती और वह हमारी सुरक्षा नहीं कर रहे होते तो हममें से कोई भी बच नहीं सकता था। पूरे परिवार ने परमेश्वर को अपने दिल से धन्यवाद किया। यह परमेश्वर थे जिन्होंने हमें जीवन में यह मौका दिया, हमें इसे संजोना चाहिए, और अब से अपना कर्तव्यों का पालन करना और परमेश्वर को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए!
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सच्चे मार्ग की खोजबीन पर एक सौ प्रश्न और उत्तर
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