पिछले दो युगों के कार्यों में से एक चरण का कार्य इस्राएल में सम्पन्न हुआ; दूसरा यहूदिया में हुआ। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य का कोई भी चरण इस्राएल को छोड़ कर नहीं गया; कार्य के ये वे चरण थे जो विशेष चुने हुए लोगों के मध्य में किये गए। इस प्रकार से, इस्राएलियों के दृष्टिकोण से, यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है। यहूदिया में यीशु के कार्य के कारण और उसके क्रूस पर चढ़ने के कार्य को पूरा करने के कारण, यहूदियों के दृष्टिकोण से, यीशु यहूदियों का उद्धारकर्ता है। वह केवल यहूदियों का राजा है, अन्य लोगों का राजा नहीं है; वह अंग्रेजों का उद्धार करने वाला प्रभु नहीं है, न ही अमरीका के लोगों का उद्धार करने वाला प्रभु है, परन्तु वह वो प्रभु है जो इस्राएलियों का उद्धार करता है, और इस्राएल में वह केवल यहूदियों का उद्धार करता है। वास्तव में, परमेश्वर सभी वस्तुओं का स्वामी है।
वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। वह न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, और वह न केवल यहूदियों का परमेश्वर है; वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में पूर्ण हुए हैं, और इस प्रकार से, लोगों के मध्य में कुछ धारणाओं ने आकार ले लिया है। लोग सोचते हैं कि यहोवा इस्राएल में अपना कार्य कर रहा था और स्वयं यीशु ने भी यहूदिया में अपना कार्य किया-इसके अतिरिक्त, यह देहधारण था जिसके माध्यम से वह यहूदिया में अपना कार्य कर रहा था-और जो कुछ भी मामला हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं फैला। वह मिस्रियों के साथ कार्य नहीं कर रहा था; न ही वह भारतीयों के साथ कार्य कर रहा था; वह केवल इस्राएलियों के साथ कार्य कर रहा था; लोग इस प्रकार से कई धारणाएँ बनाते हैं; इसके अलावा, वे परमेश्वर के कार्य की एक निर्धारित दायरे में योजना बनाते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर अपना कार्य कर रहा होता है, तो वह चुने हुए लोगों के मध्य में ही होना चाहिए और इस्राएल के भीतर होना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा, परमेश्वर के पास अपने कार्य को ग्रहण करने वाला और कोई नहीं है, न ही उसके कार्य का कोई और दायरा है; वे देहधारी परमेश्वर को "अनुशासित" करने के लिए विशेष रूप से सख्त हैं, उन्हें इस्राएल के दायरे से बाहर जाने की अनुमति नहीं देते हैं। क्या यह सभी मानवीय धारणाएं नहीं हैं? परमेश्वर ने सम्पूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीजों की सृष्टि की, और सम्पूर्ण सृष्टि को बनाया; तो वह किस प्रकार से केवल इस्राएल में ही अपने कार्य को सीमित कर सकता है? अगर ऐसा है तो, उसके द्वारा उसकी सृष्टि को सम्पूर्णतामें बनाने का क्या अर्थहोगा? उसने सम्पूर्ण संसार की सृष्टि की; उसने अपने प्रबंधन के 6000 साल के कार्य को सिर्फ़ इस्राएल में ही नहीं किया परन्तु ब्रह्माण्ड के प्रत्येक प्राणी के साथ किया। इससे फर्क नहीं पड़ता चाहे वे चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाईटेड किंगडम या रूस में रहते हों,प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सभी परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं। परमेश्वर की सृष्टि के दायरे से कोई भी व्यक्ति अलग नहीं हो सकता और कोई भी व्यक्ति "आदम का वंशज" होने के ठप्पे से बच नहीं सकता है। वे सभी परमेश्वर की सृष्टि हैं, और वे सभी आदम के वंशज हैं; वे भ्रष्ट आदम और हव्वा के भी वंशज हैं। केवल इस्राएली ही अकेले परमेश्वर की सृष्टि नहीं हैं, परन्तु सभी लोग हैं; फिर भी, सृष्टि में से कुछ लोग श्रापित हैं, और कुछ आशीषित हैं। इस्राएलियों के बारे में काफी अभीष्ट बातें हैं; परमेश्वर ने प्रारम्भ में इस्राएलियों के मध्य कार्य किया क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट लोग थे। उनकी तुलना में चीनी फीके पड़ते थे और उनकी बराबरी की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे; इस प्रकार से, परमेश्वर ने इस्राएलियों के मध्य अपना कार्य प्रारम्भ किया और दूसरे चरण का कार्य यहूदिया में हुआ। परिणामस्वरूप, लोगों ने कई धारणाएं और कई नियम बना लिए। वास्तव में, यदि उसे मनुष्यों की धारणाओं के अनुसार कार्य करना होता, तो परमेश्वर केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता; इस प्रकार से, वह गैर यहूदीयों के मध्य अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता; क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता बजाए इसके कि वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर होता। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम गैर यहूदी राष्ट्रों में महान होगा और गैर यहूदी राष्ट्रों में यहोवा का नाम फैल जाएगा - वे ऐसा क्यों कहते? यदि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इसके अलावा, वह इस कार्य का विस्तार और कहीं नहीं करता और न ही वह ऐसी भविष्यवाणी करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की है, तो उसे गैर यहूदीयों, प्रत्येक देशों तथा स्थानों के मध्य में कार्य का विस्तार करना ही होगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, तो वह ऐसा करेगा भी। यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा उसमें की सभी वस्तुओं का सृजन करने वाला प्रभु है और सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता कि वह अपना कार्य इस्राएल या सम्पूर्ण यहूदिया में कर रहा है, वह जो कार्य करता है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्य होता है और सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य होता है। आज वह जो कार्य बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में-गैर यहूदी राष्ट्र में - कर रहा है, यह अभी भी सम्पूर्ण मानवता का कार्य है। पृथ्वी पर इस्राएल उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार से, चीन गैर यहूदी राष्ट्रों के मध्य में उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने उस भविष्यवाणी को अब पूरा नहीं किया कि "यहोवा का नाम गैर यहूदी देशों में महान हो जाएगा।" गैर यहूदी देशों के मध्य में उसके कार्य के पहला चरण उस कार्य का उल्लेख करता है जो वह बड़े लाल अजगर के देश में कर रहा है। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस देश में कार्य करना और इन श्रापित लोगों के मध्य में कार्य करना विशेष तौर पर मानवीय धारणाओं के विपरीत है; ये लोग सबसे निम्नस्तर के और बिना किसी मूल्य के हैं। यह सभी वे लोग हैं जिन्हें यहोवा ने आरम्भ में छोड़ दिया था। दूसरे लोगों के द्वारा लोगों को त्यागा जा सकता है, परन्तु यदि वे परमेश्वर के द्वारा त्याग दिए जाते हैं, तो इन लोगों का कोई भी स्तर नहीं होगा, और उनका सबसे न्यूनतम मूल्य होगा। सृष्टि का एक भाग, शैतान के द्वारा कब्ज़े में ले लिया जाना या अन्य लोंगो के द्वारा त्याग दिया जाना, ये दोनों चीज़े कष्टदायक हैं, परन्तु यदि सृष्टि के किसी भाग को सृष्टि के प्रभु द्वारा त्याग दिया जाए, तो यह दर्शाता है कि उसकी स्थिति बहुत ही निम्न स्तर पर है। मोआब के वंशज श्रापित थे और वे इस अविकसित देश में पैदा हुए थे; बिना संदेह, मोआब के वंशज अंधकार के प्रभाव में सबसे निम्न स्तर के लोग हैं। क्योंकि ये लोग अतीत में सबसे निम्न दर्जे को प्राप्त थे, उनके मध्य किया गया कार्य मानवीय धारणाओं को तोड़ने के लिए सबसे योग्य है और यह छः हजार साल के प्रबंधन योजना में सबसे लाभकारी भी है। क्योंकि उसका इनके मध्य में कार्य करना, मानवीय धारणाओं को तोड़ने के लिए सबसे अधिक सक्षम है; इसके साथ वह एक युग का लोकार्पण करता है; इसके साथ वह सभी मानवीय अवधारणाओं को नष्ट कर देता है; इसके साथ वह सम्पूर्ण अनुग्रह काल के कार्य को सामाप्त करता है। उसका आरम्भिक कार्य यहूदिया में, इस्राएल के दायरे में, किया गया; गैर यहूदी देशों में उसने कोई भी युग-प्रारम्भ करने वाला कार्य नहीं किया। उसके काम का अंतिम चरण न केवल गैर यहूदी राष्ट्र के लोगों के बीच किया जा रहा है; इससे अधिक, यह उन श्रापित लोगों के मध्य में किया जा रहा है। यह एक बिन्दु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे योग्य प्रमाण है; इस प्रकार से, परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सृष्टि और सभी वस्तुओं का परमेश्वर "बन" जाता है; जीवन युक्त सभी के लिए आराधना का उद्देश्य बन जाता है।
वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। वह न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, और वह न केवल यहूदियों का परमेश्वर है; वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में पूर्ण हुए हैं, और इस प्रकार से, लोगों के मध्य में कुछ धारणाओं ने आकार ले लिया है। लोग सोचते हैं कि यहोवा इस्राएल में अपना कार्य कर रहा था और स्वयं यीशु ने भी यहूदिया में अपना कार्य किया-इसके अतिरिक्त, यह देहधारण था जिसके माध्यम से वह यहूदिया में अपना कार्य कर रहा था-और जो कुछ भी मामला हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं फैला। वह मिस्रियों के साथ कार्य नहीं कर रहा था; न ही वह भारतीयों के साथ कार्य कर रहा था; वह केवल इस्राएलियों के साथ कार्य कर रहा था; लोग इस प्रकार से कई धारणाएँ बनाते हैं; इसके अलावा, वे परमेश्वर के कार्य की एक निर्धारित दायरे में योजना बनाते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर अपना कार्य कर रहा होता है, तो वह चुने हुए लोगों के मध्य में ही होना चाहिए और इस्राएल के भीतर होना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा, परमेश्वर के पास अपने कार्य को ग्रहण करने वाला और कोई नहीं है, न ही उसके कार्य का कोई और दायरा है; वे देहधारी परमेश्वर को "अनुशासित" करने के लिए विशेष रूप से सख्त हैं, उन्हें इस्राएल के दायरे से बाहर जाने की अनुमति नहीं देते हैं। क्या यह सभी मानवीय धारणाएं नहीं हैं? परमेश्वर ने सम्पूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीजों की सृष्टि की, और सम्पूर्ण सृष्टि को बनाया; तो वह किस प्रकार से केवल इस्राएल में ही अपने कार्य को सीमित कर सकता है? अगर ऐसा है तो, उसके द्वारा उसकी सृष्टि को सम्पूर्णतामें बनाने का क्या अर्थहोगा? उसने सम्पूर्ण संसार की सृष्टि की; उसने अपने प्रबंधन के 6000 साल के कार्य को सिर्फ़ इस्राएल में ही नहीं किया परन्तु ब्रह्माण्ड के प्रत्येक प्राणी के साथ किया। इससे फर्क नहीं पड़ता चाहे वे चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाईटेड किंगडम या रूस में रहते हों,प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सभी परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं। परमेश्वर की सृष्टि के दायरे से कोई भी व्यक्ति अलग नहीं हो सकता और कोई भी व्यक्ति "आदम का वंशज" होने के ठप्पे से बच नहीं सकता है। वे सभी परमेश्वर की सृष्टि हैं, और वे सभी आदम के वंशज हैं; वे भ्रष्ट आदम और हव्वा के भी वंशज हैं। केवल इस्राएली ही अकेले परमेश्वर की सृष्टि नहीं हैं, परन्तु सभी लोग हैं; फिर भी, सृष्टि में से कुछ लोग श्रापित हैं, और कुछ आशीषित हैं। इस्राएलियों के बारे में काफी अभीष्ट बातें हैं; परमेश्वर ने प्रारम्भ में इस्राएलियों के मध्य कार्य किया क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट लोग थे। उनकी तुलना में चीनी फीके पड़ते थे और उनकी बराबरी की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे; इस प्रकार से, परमेश्वर ने इस्राएलियों के मध्य अपना कार्य प्रारम्भ किया और दूसरे चरण का कार्य यहूदिया में हुआ। परिणामस्वरूप, लोगों ने कई धारणाएं और कई नियम बना लिए। वास्तव में, यदि उसे मनुष्यों की धारणाओं के अनुसार कार्य करना होता, तो परमेश्वर केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता; इस प्रकार से, वह गैर यहूदीयों के मध्य अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता; क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता बजाए इसके कि वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर होता। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम गैर यहूदी राष्ट्रों में महान होगा और गैर यहूदी राष्ट्रों में यहोवा का नाम फैल जाएगा - वे ऐसा क्यों कहते? यदि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इसके अलावा, वह इस कार्य का विस्तार और कहीं नहीं करता और न ही वह ऐसी भविष्यवाणी करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की है, तो उसे गैर यहूदीयों, प्रत्येक देशों तथा स्थानों के मध्य में कार्य का विस्तार करना ही होगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, तो वह ऐसा करेगा भी। यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा उसमें की सभी वस्तुओं का सृजन करने वाला प्रभु है और सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता कि वह अपना कार्य इस्राएल या सम्पूर्ण यहूदिया में कर रहा है, वह जो कार्य करता है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्य होता है और सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य होता है। आज वह जो कार्य बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में-गैर यहूदी राष्ट्र में - कर रहा है, यह अभी भी सम्पूर्ण मानवता का कार्य है। पृथ्वी पर इस्राएल उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार से, चीन गैर यहूदी राष्ट्रों के मध्य में उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने उस भविष्यवाणी को अब पूरा नहीं किया कि "यहोवा का नाम गैर यहूदी देशों में महान हो जाएगा।" गैर यहूदी देशों के मध्य में उसके कार्य के पहला चरण उस कार्य का उल्लेख करता है जो वह बड़े लाल अजगर के देश में कर रहा है। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस देश में कार्य करना और इन श्रापित लोगों के मध्य में कार्य करना विशेष तौर पर मानवीय धारणाओं के विपरीत है; ये लोग सबसे निम्नस्तर के और बिना किसी मूल्य के हैं। यह सभी वे लोग हैं जिन्हें यहोवा ने आरम्भ में छोड़ दिया था। दूसरे लोगों के द्वारा लोगों को त्यागा जा सकता है, परन्तु यदि वे परमेश्वर के द्वारा त्याग दिए जाते हैं, तो इन लोगों का कोई भी स्तर नहीं होगा, और उनका सबसे न्यूनतम मूल्य होगा। सृष्टि का एक भाग, शैतान के द्वारा कब्ज़े में ले लिया जाना या अन्य लोंगो के द्वारा त्याग दिया जाना, ये दोनों चीज़े कष्टदायक हैं, परन्तु यदि सृष्टि के किसी भाग को सृष्टि के प्रभु द्वारा त्याग दिया जाए, तो यह दर्शाता है कि उसकी स्थिति बहुत ही निम्न स्तर पर है। मोआब के वंशज श्रापित थे और वे इस अविकसित देश में पैदा हुए थे; बिना संदेह, मोआब के वंशज अंधकार के प्रभाव में सबसे निम्न स्तर के लोग हैं। क्योंकि ये लोग अतीत में सबसे निम्न दर्जे को प्राप्त थे, उनके मध्य किया गया कार्य मानवीय धारणाओं को तोड़ने के लिए सबसे योग्य है और यह छः हजार साल के प्रबंधन योजना में सबसे लाभकारी भी है। क्योंकि उसका इनके मध्य में कार्य करना, मानवीय धारणाओं को तोड़ने के लिए सबसे अधिक सक्षम है; इसके साथ वह एक युग का लोकार्पण करता है; इसके साथ वह सभी मानवीय अवधारणाओं को नष्ट कर देता है; इसके साथ वह सम्पूर्ण अनुग्रह काल के कार्य को सामाप्त करता है। उसका आरम्भिक कार्य यहूदिया में, इस्राएल के दायरे में, किया गया; गैर यहूदी देशों में उसने कोई भी युग-प्रारम्भ करने वाला कार्य नहीं किया। उसके काम का अंतिम चरण न केवल गैर यहूदी राष्ट्र के लोगों के बीच किया जा रहा है; इससे अधिक, यह उन श्रापित लोगों के मध्य में किया जा रहा है। यह एक बिन्दु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे योग्य प्रमाण है; इस प्रकार से, परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सृष्टि और सभी वस्तुओं का परमेश्वर "बन" जाता है; जीवन युक्त सभी के लिए आराधना का उद्देश्य बन जाता है।
वर्तमान में कुछ ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के द्वारा आरम्भ किए गए नए कार्य को अब भी नहीं समझ पा रहे हैं। परमेश्वर ने गैर यहूदी राष्ट्रों में एक नया प्रारम्भ किया है और एक दूसरे युग का प्रारम्भ किया है एवं दूसरे कार्य का लोकार्पण किया है और वह मोआब के वंशजों के मध्य कार्य कर रहा है। क्या यह उसका नवीनतम कार्य नहीं है? सम्पूर्ण युगों में किसी ने भी इस कार्य का अनुभव नहीं किया है, न ही किसी ने इसके बारे में सुना है, और सराहना करने की तो बात ही दूर है। परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर का आश्चर्य, परमेश्वर का अथाहपन, परमेश्वर की महानता, परमेश्वर की पवित्रता इन अंतिम दिनों में कार्य के इस चरण पर निर्भर करती है, ताकि यह स्पष्टता से प्रकट हो सके। क्या यह वह नया कार्य नहीं है जो मानवजाति की धारणाओं को तोड़ रहा है? यहां पर अब भी कुछ इस प्रकार से सोचने वाले लोग हैं: "चूँकि परमेश्वर ने मोआबियों को श्राप दिया और कहा कि वह उनके वंशजों को छोड़ देगा, तो वह उन्हें अब कैसे बचा सकता है? "ये उन गैर यहूदी राष्ट्र के लोग हैं जिन्हें श्राप दिया गया था और इस्राएल से बाहर निकाल दिया गया था; इस्राएली उन्हें "गैर यहूदी कुत्ते" कहकर पुकारते थे। हर किसी की दृष्टि में, वे केवल गैर यहूदी कुत्ते नहीं, परन्तु उससे भी बद्तर हैं, विनाश के पुत्र; दूसरे शब्दों में, वे परमेश्वर के द्वारा चुने हुए लोग नहीं हैं। हालांकि वे मूल रूप से इस्राएल के दायरे में पैदा हुए थे, वे इस्राएल के लोगों का हिस्सा नहीं हैं; वे भी गैर यहूदी देशों में से निष्कासित कर दिए गए थे। ये सबसे निम्न लोग हैं। खासतौर पर इसलिये कि वे मानवता के बीच में सबसे निम्न हैं परमेश्वर उनके मध्य में नए युग के लोकार्पण का कार्य प्रारम्भ कर रहा है। क्योंकि वे भ्रष्ट मानवता के प्रतिनिधि हैं और परमेश्वर का कार्य बिना चुनाव या उद्देश्य के नहीं है, जो कार्य वह आज इन लोगों के मध्य में कर रहा है वह सृष्टि के मध्य में किया जा रहा कार्य भी है। नूह सृष्टि का एक भाग था, जैसा कि उनके वंशज हैं। संसार में जिसके देह और लहू है वह सृष्टि का एक भाग है। परमेश्वर का कार्य सम्पूर्ण सृष्टि पर निर्देशित है; यह इसके अनुसार नहीं किया जाता है कि रचने के बाद किसी को श्रापित किया गया है या नहीं। उसके प्रबंधन का कार्य सम्पूर्ण सृष्टि की ओर निर्देशित है, न कि उन चुने हुए लोगों की ओर जो श्रापित नहीं हैं। चूँकि परमेश्वर अपनी सृष्टि के मध्य कार्य करने का इच्छुक है, वह पूरी सृष्टि पर सफलतापूर्वक अपना कार्य निश्चित पूरा कर लेगा; वह उनके मध्य कार्य करेगा जो उसके कार्य के लिए लाभदायक होंगे। इसलिए, वह मनुष्यों के मध्य कार्य करने में सभी परम्पराओं को तोड़ देता है, उसके लिए "श्रापित," "ताड़ित," और "आशीषित" शब्द बेमतलब हैं! यहूदी लोग काफी अच्छे हैं, और इस्राएल के चुने हुए लोग भी बुरे नहीं हैं, ये अच्छी क्षमता और मानवता से भरे हुए लोग हैं। यहोवा ने शुरआत में अपना कार्य इनके मध्य में प्रारम्भ किया था और अपना प्रारंभिक काम पूरा किया, परन्तु यह सब बेमतलब होता यदि वह उन्हें अपने विजयी कार्य के लिए प्राप्तकर्ताओं के तौर पर इस्तेमाल करता। हालांकि वे भी सृष्टि का एक हिस्सा हैं और उनके बहुत सारे सकारात्मक पहलु हैं, उनके मध्य में इस चरण के कार्य को करना बेमतलब होगा। वह किसी को भी जीतने में असमर्थ होगा, न ही वह सम्पूर्ण सृष्टि को समझाने में सक्षम होगा। बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के इन लोगों के मध्य उसके कार्यों के स्थानांतरण का यह महत्व है। यहां पर सबसे गहरा अर्थ एक युग के प्रारम्भ में, सभी मानव धारणाओं और नियमों को तोड़ने में और सम्पूर्ण अनुग्रह युग के कार्य का समापन किये जाने में है। यदि उसका वर्तमान का कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, उसके छः हज़ार सालों के प्रबंधन के कार्य के समाप्त होने के समय तक, प्रत्येक व्यक्ति यह विश्वास करता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, यह कि सिर्फ इस्राएल के लोग परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, यह कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर की आशीष और प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करने के योग्य हैं। अंतिम दिनों में, परमेश्वर बड़े लाल अजगर के गैर यहूदी देश में देहधारी के तौर पर है; उसने सम्पूर्ण सृष्टि के परमेश्वर के तौर पर परमेश्वर का कार्य पूर्ण कर लिया है; उसने अपना सम्पूर्ण प्रबंधन कार्य पूर्ण कर लिया है, और बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में वह अपने कार्य के मुख्य भाग को समाप्त करेगा। कार्य के तीनों चरणों का मुख्य बिन्दु है मनुष्य की मुक्ति-अर्थात सम्पूर्ण रचना के द्वारा सृष्टि के प्रभु की आराधना कराना। इसलिए, इस कार्य का प्रत्येक चरण बहुत ही सार्थक है; परमेश्वर बिल्कुल भी बिना अर्थ या मूल्य का कार्य नहीं करेगा। एक ओर, इस चरण के कार्य में एक युग का प्रारम्भ और पिछले दोनों युगों का अंत निहित है; दूसरी ओर, इसमें सम्पूर्ण मानव धारणाओं को तोड़ना और मनुष्यों के सभी पुराने विश्वास एवं ज्ञान को मिटाना निहित है। पिछले दो युगों का कार्य मनुष्यों की भिन्न-भिन्न धारणाओं के अनुसार हुआ था; हालांकि यह चरण, मानवीय धारणाओं को पूरी तरह से मिटा देता है, जिससे यह पूरी तरह से मानवजाति को जीत लेता है। मोआबी वंशजों पर विजय का उपयोग करते हुए और उनके मध्य किये गया कार्य का उपयोग करते हुए परमेश्वर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में पूरी मानवता को जीत लेगा। उसके कार्य के इस चरण का यही सबसे गहरा महत्व है, और यही उसके कार्य के इस चरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। भले ही तुम अब जानते हो कि तुम्हारे स्वयं की स्थिति निम्न है और तुम कम मूल्य के हो, फिर भी तुम महसूस करते हो कि तुम्हारी सबसे आनन्ददायक वस्तु से भेंट हो गई हैः तुमने बहुत ही महान आशीष को प्राप्त किया है, महान वायदे को प्राप्त किया है और परमेश्वर के महान कार्य को तुम समाप्त कर सकते हो और तुम परमेश्वर का सच्चा चेहरा देख सकते हो, परमेश्वर के निहित स्वभाव को जान सकते हो और परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण कर सकते हो। परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में किए गए थे। यदि अंतिम दिनों में उसके कार्य का यह चरण इस्राएलियों के बीच ही हो रहा होता, तो न केवल सम्पूर्ण सृष्टि यह विश्वास करती कि केवल इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, बल्कि परमेश्वर के सम्पूर्ण प्रबंधन की योजना भी अपने वांछित प्रभाव को प्राप्त नहीं कर पाती। इस्राएल में उसके कार्य के दो चरण जिस समय में किए गए, कोई भी नया कार्य कभी भी नही किया गया था और गैर यहूदी राष्ट्रों में परमेश्वर के नए युग के प्रारम्भ का कोई भी कार्य कभी भी नहीं किया गया था। युग प्रारम्भ करने के इस चरण का कार्य गैर यहूदी देशों में सबसे पहले किया गया, और इसके अलावा, इसे पहले मोआबियों के वंशजों के मध्य किया जाता है; इसने सम्पूर्ण युग का प्रारम्भ किया। परमेश्वर ने मानवीय धारणाओं में समाहित किसी भी ज्ञान को तोड़ डाला है और इस से किसी भी बात को अस्तित्व में बने रहने की अनुमति नहीं दी है। उसके विजय के कार्य में उसने मानवीय धारणाओं को तोड़ डाला, उन पुराने, पहले के मानवीय ज्ञान के तरीकों को नष्ट कर डाला। उसने लोगों को अनुमति दी की वे देखें कि परमेश्वर के साथ कोई भी नियम नहीं होते हैं, कि परमेश्वर के बारे में कुछ भी पुराना नहीं है, कि वह जो कार्य करता है वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, पूरी तरह से मुक्त है, कि वह जो कुछ करता है उसमें वह सही है। वह सृष्टि के बीच जो भी कार्य करता है उसके प्रति तुम्हें पूरी तरह से समर्पित होना है। जो भी कार्य वह करता है वह सार्थक होता है और उसके स्वयं की इच्छा और ज्ञान के अनुसार होता है और मानवीय चुनावों और धारणाओं के अनुसार नहीं होता है। वह उन कार्यों को करता है जो उसके कार्य के लिए लाभप्रद होता हैं; यदि कुछ उसके कार्य के लिए लाभदायक नहीं है तो वह उस कार्य को नहीं करेगा, चाहे वह कितना भी अच्छा क्यों न हो! वह कार्य करता है और, अपने कार्य और सार्थकता के अनुसार अपने कार्य के प्राप्तकर्ता एवं स्थान को चुनता है। वह पुराने नियमों का पालन नहीं करता है, न ही वह पुराने नुस्खों का पालन करता है; इसके बजाय, वह कार्य की महत्ता के आधार पर अपने कार्य की योजना बनाता है; अंत में वह उसके सच्चे प्रभाव और प्रत्याशित उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है। यदि तुम इन बातों को अभी नहीं समझोगे, तो यह कार्य तुम पर कोई प्रभाव नहीं डाल पायेगा।
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