वे अवस्थाएँ ऐसी ही हैं जिन्हें मनुष्य को सिद्ध किए जाने के बाद हासिल करना होगा। यदि तू इतना कुछ हासिल नहीं कर सकता है, तो तू एक सार्थक जीवन नहीं बिता सकता है। मनुष्य शरीर में रहता है, इसका मतलब है कि वह मानवीय नरक में रहता है, और परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना के बगैर, मनुष्य शैतान के समान ही गन्दा है। मनुष्य पवित्र कैसे हो सकता है? पतरस ने यह विश्वास किया कि परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय मनुष्य की सब से बड़ी सुरक्षा और सब से महान अनुग्रह है। केवल परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के द्वारा ही मनुष्य जागृत हो सकता है, और शरीर और शैतान से बैर कर सकता है। परमेश्वर का कठोर अनुशासन मनुष्य को शैतान के प्रभाव से मुक्त करता है, वह उसे उसके छोटे संसार से आज़ाद करता है, और उसे परमेश्वर की उपस्थिति के प्रकाश में जीवन बिताने देता है।ताड़ना और न्याय की अपेक्षा कोई बेहतर उद्धार नहीं है! पतरस ने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! जब तक तू मेरी ताड़ना और न्याय करता है, मैं यह जानूँगा कि तूने मुझे नहीं छोड़ा है। भले ही तू मुझे आनन्द और शांति न दे, और मुझे कष्ट में जीने दे, और मुझे अनगिनित ताड़नाओं से प्रताड़ित करे, किन्तु जब तक तू मुझे नहीं छोड़ता है तब तक मेरा हृदय सुकून से रहेगा। आज, तेरी ताड़ना और न्याय मेरी सब से बेहतरीन सुरक्षा और सब से महान आशीष बन गए हैं। वह अनुग्रह जो तू मुझे देता है वह मेरी सुरक्षा करता है। जो अनुग्रह आज तू मुझे देता है वह तेरे धर्मी स्वभाव का प्रकटीकरण, और वह ताड़ना और न्याय है; इसके अतिरिक्त, यह एक परीक्षा है, और, उस से बढ़कर, यह दुख भोग का जीवन है।" पतरस देह की अभिलाषाओं को अलग रख सकता था, और एक अत्यंत गहरे प्रेम और सब से बड़ी सुरक्षा की खोज कर सकता था, क्योंकि उसने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से इतना कुछ हासिल किया था। अपने जीवन में, यदि मनुष्य शुद्ध होना चाहता है और अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करना चाहता है, यदि वह एक सार्थक जीवन बिताना चाहता है, और एक जीवधारी के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहता है, तो उसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और उसे परमेश्वर के अनुशासन और परमेश्वर के प्रहार को अपने आप से दूर नहीं होने देना चाहिए, इस प्रकार वह अपने आपको शैतान के छल प्रपंच और प्रभाव से मुक्त कर सकता है और परमेश्वर के प्रकाश में जीवन बिता सकता है। यह जानो कि परमेश्वर की ताड़ना और न्याय वह ज्योति है, और वह मनुष्य के उद्धार की ज्योति है, और यह कि मनुष्य के लिए उस से बेहतर कोई आशीष, अनुग्रह या सुरक्षा नहीं है। मनुष्य शैतान के प्रभाव के अधीन जीता है, और देह में रहता है; यदि उसे शुद्ध नहीं किया जाता है और उसे परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है, तो वह पहले से कहीं ज़्यादा भ्रष्ट बन जाएगा। यदि वह परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो उसे शुद्ध होना और उद्धार पाना होगा। पतरस ने प्रार्थना की, "परमेश्वर जब तू मुझ से कृपा के साथ व्यवहार करता है तो मैं प्रसन्न हो जाता हूँ, और मुझे सुकून मिलता है; जब तू मेरी ताड़ना करता है, तब मुझे उस से कहीं ज़्यादा सुकून और आनन्द मिलता है। यद्यपि मैं कमज़ोर हूँ, और अकथनीय कष्ट सहता हूँ, यद्यपि मेरे जीवन में आँसू और उदासी है, फिर भी तू जानता है कि यह उदासी मेरी अनाज्ञाकारिता के कारण है, और मेरी कमज़ोरी के कारण है। मैं रोता हूँ क्योंकि मैं तेरी इच्छाओं को संतुष्ट नहीं कर पाता हूँ, मैं दुखी और खेदित हूँ क्योंकि मैं तेरी मांगों के प्रति नाकाफी हूँ, लेकिन मैं इस आयाम को हासिल करने के लिए तैयार हूँ, मैं वह सब करने के लिए तैयार हूँ जो मैं तुझे संतुष्ट करने के लिए कर सकता हूँ। तेरी ताड़ना मेरे लिए सुरक्षा लेकर आई है, और मुझे सब से बेहतरीन उद्धार दिया है; तेरा न्याय तेरी सहनशीलता और धीरज को ढँक देता है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, मैं तेरी दया और करूणा का आनन्द नहीं ले पाऊँगा। आज, मैं यह और भी अधिक देखता हूँ कि तेरा प्रेम स्वर्ग से भी ऊँचा हो गया है और सब से श्रेष्ठ हो गया है। तेरा प्रेम मात्र दया और करूणा नहीं है; किन्तु उस से भी बढ़कर, यह ताड़ना और न्याय है। तेरी ताड़ना और न्याय ने मुझे बहुत कुछ दिया है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, एक भी व्यक्ति शुद्ध नहीं हो सकता है, और एक भी इंसान सृष्टिकर्ता के प्रेम को अनुभव करने के योग्य नहीं हो सकता है। यद्यपि मैं ने सैकड़ों परीक्षाओं और क्लेशों को सहा है, और यहाँ तक कि मौत के करीब आ गया, फिर भी ऐसे कष्टों(क) ने मुझे सचमुच में तुझे जानने और सर्वोच्च उद्धार प्राप्त करने दिया है। यदि तेरी ताड़ना, न्याय और अनुशासन मेरे पास से चले गए होते, तो मैं अंधकार में शैतान के प्रभुत्व में जीवन बिताता। मनुष्य की देह से क्या लाभ है? यदि तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ कर चले गए होते, तो यह ऐसा होता मानो तेरे आत्मा ने मुझे छोड़ दिया हो, मानो अब आगे से तू मेरे साथ नहीं है। यदि ऐसा होता, तो मैं जीवन कैसे बिताता? यदि तू मुझे बीमारी देता, और मेरी स्वतन्त्रता को ले लेता, मैं जीवन बिताता तो रहता, परन्तु तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ देते, मेरे पास जीने का कोई रास्ता नहीं होता। यदि मेरे पास तेरी ताड़ना और तेरा न्याय नहीं होता, तो मैं ने तेरे प्रेम को खो दिया होता, एक ऐसे प्रेम को जो मेरे लिए बहुत गहरा है जिसे मैं शब्दों में नहीं कह सकता हूँ। तेरे प्रेम के बिना, मैं शैतान के शासन के अधीन जीता, और तेरे महिमामय मुखड़े को देखने के काबिल नहीं हो पाता। तू ही बता, मैं कैसे निरन्तर जीवन बिताता? ऐसा अंधकार, ऐसा जीवन, मैं बिलकुल सह नहीं सकता था? तू मेरे साथ है तो यह ऐसा है मानो मैं तुझे देख रहा हूँ, इस प्रकार मैं तुझे कैसे छोड़ सकता हूँ? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मैं तुझ से भीख मांगता हूँ, तुझ से मेरे सब से बड़े सुकून को मत छीन, भले ही ये पुनःआश्वासन के मात्र थोड़े से शब्द हैं। मैं ने तेरे प्रेम का आनन्द लिया है, और आज मैं तुझ से दूर नहीं रह सकता हूँ; तू ही बता, मैं तुझ से कैसे प्रेम नहीं कर सकता हूँ? मैं ने तेरे प्रेम के कारण दुख में बहुत से आँसू बहाए हैं, फिर भी मैं ने हमेशा से यह विश्वास किया है कि एक ऐसा जीवन अधिक अर्थपूर्ण है, मुझे समृद्ध करने में अधिक योग्य है, मुझे बदलने में अधिक सक्षम है, और मुझे उस सत्य को हासिल करने की अनुमति देने में अधिक काबिल है जिसे सभी जीवधारियों के द्वारा धारण किया जाना चाहिए।
मनुष्य का सारा जीवन शैतान के प्रभुत्व के अधीन बीतता है, और ऐसा एक भी इंसान नहीं है जो अपने बलबूते पर अपने आपको शैतान के प्रभाव से आज़ाद कर सकता है। सभी लोग भ्रष्टता और खालीपन में बिना किसी अर्थ या मूल्य के एक गन्दे संसार में रहते हैं; वे शरीर के लिए, वासना के लिए और शैतान के लिए ऐसी लापरवाह ज़िन्दगियाँ बिताते हैं। उनके अस्तित्व में जरा सा भी मूल्य नहीं है। मनुष्य उस सत्य को खोज पाने में असमर्थ है जो उसे शैतान के प्रभाव से मुक्त कर सकता है। यद्यपि मनुष्य परमेश्वर पर विश्वास करता है और बाइबल पढ़ता है, फिर भी वह यह नहीं जानता है कि वह अपने आपको शैतान के नियन्त्रण से आज़ाद कैसे करे। विभिन्न युगों के दौरान, बहुत ही कम लोगों ने इस रहस्य की खोज की है, और बहुत ही कम लोगों ने इसे स्पर्श किया है। कुछ इस तरह कि, भले ही मनुष्य शैतान से घृणा करता है, और देह से घृणा करता है, फिर भी वह नहीं जानता है कि अपने आपको शैतान के फँसानेवाले प्रभाव से कैसे बचाए। आज, क्या तुम लोग अभी भी शैतान के प्रभुत्व के अधीन नहीं हो? तुम लोग अपने अनाज्ञाकारी कार्यों पर खेद नहीं करते हो, और यह बिलकुल भी महसूस नहीं करते हो कि तुम लोग अशुद्ध और अनाज्ञाकारी हो। परमेश्वर का विरोध करने के बाद, तुम लोगों को मन की शांति भी मिलती है और बहुत निश्चलता का एहसास भी होता है। क्या तेरी निश्चलता इसलिए नहीं है क्योंकि तू भ्रष्ट है? क्या यह मन की शांति तेरी अनाज्ञाकारिता से नहीं आती है? मनुष्य एक मानवीय नरक में रहता है, वह शैतान के बुरे प्रभाव में रहता है; पूरी धरती में, प्रेत मनुष्य के साथ रहते हैं, और मनुष्य की देह में अतिक्रमण करते हैं। पृथ्वी पर, तू एक सुन्दर स्वर्गलोक में नहीं रहता है। जहाँ तू रहता है वह दुष्ट आत्मा का संसार है, एक मानवीय नरक है, और अधोलोक है। यदि मनुष्य को स्वच्छ नहीं किया जाता है, तो वह गन्दा हो जाता है; यदि परमेश्वर के द्वारा उसकी सुरक्षा और देखभाल नहीं की जाती है, तो वह अभी भी शैतान का बन्धुआ है; यदि उसका न्याय और उसकी ताड़ना नहीं की जाती है, तो उसके पास शैतान के बुरे प्रभाव के अत्याचार के बचने का कोई उपाय नहीं होगा। वह भ्रष्ट स्वभाव जो तू दिखाता है और वह अनाज्ञाकारी व्यवहार जो तू करता है वे इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि तू अभी भी शैतान के शासन के अधीन जी रहा है। यदि तेरे मस्तिष्क और विचारों को शुद्ध नहीं किया गया है, और तेरे स्वभाव का न्याय और उसकी ताड़ना नहीं की गई है, तो तेरी पूरी हस्ती को अभी भी शैतान के प्रभुत्व के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, तेरा मस्तिष्क शैतान के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, तेरे विचार शैतान के द्वारा कुशलता से इस्तेमाल किए जाते हैं, और तेरी पूरी हस्ती शैतान के हाथों नियन्त्रित होती है। क्या तू जानता है कि, अभी, तू पतरस के स्तर से कितना दूर है? क्या तुझमें वह योग्यता है? तू आज की ताड़ना और न्याय के विषय में कितना जानता है? जितना पतरस जान पाया उसकी तुलना में तू कितना जान पाया है? आज, यदि तू जानने में असमर्थ है, तो क्या तू इस ज्ञान को भविष्य में जानने के योग्य हो पाएगा? तेरे जैसा आलसी और डरपोक व्यक्ति साधारणतः परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को जानने में असमर्थ होता है। यदि तू शारीरिक शांति, और शारीरिक आनन्द का अनुसरण करता है, तो तेरे पास शुद्ध होने का कोई उपाय नहीं होगा, और अंत में तू वापस शैतान के पास लौट जाएगा, क्योंकि जिस प्रकार की ज़िन्दगी तू जीता है वह शैतानी, और शारीरिक है। आज जिस प्रकार की स्थितियाँ हैं, बहुत से लोग जीवन की खोज नहीं करते हैं, जिसका मतलब है कि वे शुद्ध होने, या जीवन में और अधिक गहरे अनुभव में प्रवेश करने की परवाह नहीं करते हैं। और इस प्रकार कैसे उन्हें सिद्ध बनाया जा सकता है? वे जो जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं उनके पास सिद्ध किए जाने का कोई अवसर नहीं होता है, और ऐसे लोग जो परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण नहीं करते हैं, और अपने स्वभाव में बदलाव का अनुसरण नहीं करते हैं, वे शैतान के बुरे प्रभाव से बच पाने में असमर्थ होते हैं। परमेश्वर के विषय उनके ज्ञान और उनके स्वभाव में परिवर्तन के पश्चात् उनके प्रवेश के संबंध में, वे उनके बारे में गम्भीर नहीं हैं, वे उनके समान हैं जो सिर्फ धर्म में विश्वास करते हैं, और जो अपनी आराधना में मात्र रस्म का अनुसरण करते हैं। क्या यह समय की बर्बादी नहीं है? परमेश्वर पर उसके विश्वास के सन्दर्भ में, यदि मनुष्य जीवन के विषयों के प्रति गम्भीर नहीं है, और यदि मनुष्य सत्य में प्रवेश करने की कोशिश नहीं करता है, अपने स्वभाव में परिवर्तन की कोशिश नहीं करता है, और परमेश्वर के कार्य के ज्ञान की खोज बिलकुल भी नहीं करता है, तो उसे सिद्ध नहीं बनाया जा सकता है। यदि तू सिद्ध किए जाने की इच्छा करता है, तो तुझे परमेश्वर के कार्य के महत्व को समझना ही होगा। विशिष्ट रूप से, तुझे उसकी ताड़ना और उसके न्याय के महत्व को समझना होगा, और यह समझना होगा कि उन्हें मनुष्य के लिए क्यों किया गया। क्या तू यह स्वीकार कर सकता है? इस प्रकार की ताड़ना के दौरान, क्या तू पतरस के समान ही अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ है? यदि तू परमेश्वर के ज्ञान और पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है, और अपने स्वभाव में परिवर्तनों की कोशिश करता है, तो तेरे पास सिद्ध किए जाने का अवसर है। उनके लिए जिन्हें सिद्ध किया जाना है, उन पर विजयी होने के कार्य का यह कदम अति आवश्यक है; केवल जब मनुष्य पर विजय पा लिया जाता है, तभी मनुष्य सिद्ध किए जाने के कार्य का अनुभव कर सकता है। केवल जीत लिए जाने की भूमिका को निभाने में कोई बड़ा मूल्य नहीं है, जो तुझे परमेश्वर के इस्तेमाल के योग्य नहीं बनाएगा। सुसमाचार फैलाने हेतु अपनी भूमिका को निभाने के लिए तेरे पास कोई साधन नहीं होगा, क्योंकि तू जीवन का अनुसरण नहीं करता है, और अपने आप में परिवर्तन और नवीनीकरण का अनुसरण नहीं करता है, और इसलिए तेरे पास जीवन का कोई वास्तविक अनुभव नहीं होता है। इस कदम दर कदम कार्य के दौरान, तूने एक बार सेवा का कार्य करने वाले के, और एक विषमता के समान कार्य किया था, किन्तु अंततः यदि तू पतरस के समान बनने के लिए अनुसरण नहीं करता है, और यदि तेरा अनुसरण उस मार्ग के अनुसार नहीं है जिसके द्वारा पतरस को सिद्ध बनाया गया था, तो, स्वाभाविक रूप से, तू अपने स्वभाव में परिवर्तन का अनुभव नहीं करेगा। यदि तू ऐसा व्यक्ति है जो सिद्ध किए जाने के लिए अनुसरण करता है, तो तुझे गवाही देनी होगी, और तू कहेगा: "परमेश्वर के इस कदम दर कदम कार्य में, मैं ने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य को स्वीकार कर लिया है, और यद्यपि मैं ने बड़ा कष्ट सहा है, फिर भी मैं जान गया हूँ कि परमेश्वर मनुष्य को सिद्ध कैसे बनाता है, मैं ने परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य को प्राप्त कर लिया है, मेरे पास परमेश्वर की धार्मिकता का ज्ञान है, और उसकी ताड़ना ने मुझे बचा लिया है। उसका धर्मी स्वभाव मुझमें आ गया है, और मेरे लिए आशीषें और अनुग्रह लाया है, और उसके न्याय और उसकी ताड़ना ने मुझे सुरक्षित और शुद्ध किया है। यदि परमेश्वर के द्वारा मेरी ताड़ना और मेरा न्याय नहीं किया जाता, और यदि परमेश्वर के कठोर वचन मेरे ऊपर नहीं आते, तो मैं परमेश्वर को नहीं जान सकता था, न ही मुझे बचाया जा सकता था। एक जीवधारी के रूप में, आज मैं यह देखता हूँ, एक व्यक्ति न केवल परमेश्वर के द्वारा बनाए गए सभी चीज़ों का आनन्द उठाता है, परन्तु, अति महत्वपूर्ण रूप से, सभी जीवधारियों को परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का आनन्द उठाना चाहिए, और उसके धर्मी न्याय का आनन्द उठाना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य के आनन्द के योग्य है। एक ऐसे जीव के रूप में जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट बना दिया गया है, उसे परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का आनंद उठाना चाहिए। उसके धर्मी स्वभाव में उसकी ताड़ना और उसका न्याय है, और, इसके अतिरिक्त, उसमें बड़ा प्रेम है। यद्यपि आज मैं परमेश्वर के प्रेम को पूरी तरह प्राप्त करने में असमर्थ हूँ, फिर भी मुझे उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त है, और इस में मैं आशीषित हूँ।" यह वह पथ है जिस पर वे चलते हैं जो सिद्ध किए जाने का अनुभव करते हैं और जिसके ज्ञान के बारे में वे बोलते हैं। ऐसे लोग पतरस के समान हैं; उनके पास पतरस के समान ही अनुभव हैं। वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने जीवन प्राप्त किया है, और जिनके पास सत्य है। यदि मनुष्य बिलकुल अंत तक अनुभव करता है, तो परमेश्वर के न्याय के दौरान वह अनिवार्य रूप से पूरी तरह शैतान के प्रभाव से अपने आपको को छुड़ा लेगा, और परमेश्वर के द्वारा ग्रहण कर लिया जाएगा।
उन पर विजय पा लिए जाने के बाद, लोगों के पास कोई गूंजती हुई गवाही नहीं होती है। उन्होंने महज शैतान को शर्मिन्दा कर दिया है, किन्तु उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सत्यता के आधार पर जीवन नहीं बिताया है। तूने दूसरा उद्धार प्राप्त नहीं किया है; तूने महज एक पापबलि प्राप्त किया है, तुझे अब तक सिद्ध नहीं बनाया गया है—यह कितना बड़ा नुकसान है। तुझे समझना होगा कि तुझे किस में प्रवेश करना चाहिए, तुझे किस के लिए जीवन व्यतीत करना चाहिए, और तुझे उस में प्रवेश करना होगा। यदि, अंत में, तू सिद्ध किए जाने के कार्य को पूरा नहीं करता है, तो तू एक वास्तविक मनुष्य नहीं हैं, और तू पछतावे से भर जाएगा। आदम और हव्वा जिन्हें परमेश्वर के द्वारा आदि में बनाया गया था वे पवित्र थे, दूसरे शब्दों में, जब वे अदन की वाटिका में थे तब वे पवित्र थे, और उनमें कोई अशुद्धता नहीं थी। वे यहोवा के प्रति भी निष्ठावान थे, और यहोवा को धोखा देने के विषय में कुछ नहीं जानते थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि उन में शैतान के प्रभाव का विघ्न नहीं था, उन में शैतान का ज़हर नहीं था, और वे सभी मानवजाति में सब से अधिक शु़द्ध थे। वे अदन की वाटिका में रहते थे, वे हर प्रकार की गन्दगी से दूर थे, वे देह के कब्ज़े से अलग थे, और वे यहोवा का आदर करते थे। बाद में, जब शैतान के द्वारा उनकी परीक्षा ली गई, तो उनके पास साँप का ज़हर था और यहोवा को धोखा देने की इच्छा थी, और वे शैतान के प्रभाव में जीवन बिताते थे। आदि में, वे पवित्र थे और यहोवा का आदर करते थे; केवल इसी प्रकार वे मानव थे। बाद में, जब शैतान के द्वारा उनकी परीक्षा ली गई, तब उन्होंने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया, और शैतान के प्रभाव के अधीन जीवन बिताने लगे। धीरे धीरे उन्हें शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया, और उन्होंने मनुष्य के मूल स्वरूप को खो दिया। आदि में, मनुष्य के पास यहोवा की श्वास थी, और वह थोड़ा भी अनाज्ञाकारी नहीं था, और उसके हृदय में कोई बुराई नहीं थी। उस समय, मनुष्य सचमुच में मानव था। शैतान के द्वारा कलुषित किए जाने के बाद, मनुष्य पशु बन गया; उसके विचार बुराई और गन्दगी से भर गए, और उनमें कोई अच्छाई और पवित्रता नहीं थी। क्या यह शैतान नहीं है? तूने परमेश्वर के बहुत से कार्य का अनुभव किया है, फिर भी तू नहीं बदला है और तुझे शुद्ध नहीं किया गया है। तू अभी भी शैतान के प्रभुत्व में जीवन बिताता है, और अभी भी परमेश्वर को समर्पित नहीं होता है। यह एक ऐसा व्यक्ति है जिस पर विजय पाया जा चुका है लेकिन उसे सिद्ध नहीं बनाया गया है। और ऐसा क्यों कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को सिद्ध नहीं किया गया है? क्योंकि इस व्यक्ति ने जीवन या परमेश्वर के कार्य के ज्ञान का अनुसरण नहीं किया है, और शारीरिक आनन्द और क्षणिक सुखसे अधिक किसी और चीज़ का लालच नहीं करता है। इसके परिणामस्वरूप, उनके जीवन स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है, और उन्होंने मनुष्य के मूल रूप को फिर से प्राप्त नहीं किया है जिसे परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था। ऐसे लोग चलती फिरती लाशें हैं, वे मरे हुए लोग हैं जिन में कोई आत्मा नहीं है! वे जो आत्मा में विषयों के ज्ञान का अनुसरण नहीं करते हैं, वे जो पवित्रता का अनुसरण नहीं करते हैं, और वे जो सत्य से जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं, वे जो केवल नकारात्मक पहलु पर विजय पा लिए जाने से ही संतुष्ट होते हैं, और वे जो सत्य को जीने और उसे प्रकट करने, और पवित्र लोगों में से एक बनने में असमर्थ होते हैं—वे ऐसे लोग हैं जिन्हें बचाया नहीं गया है। क्योंकि, अगर वह सत्य के बिना है, तो मनुष्य परमेश्वर की परीक्षाओं के मध्य स्थिर खड़े रहने में असमर्थ है; केवल वे लोग जो परमेश्वर की परीक्षाओं के दौरान स्थिर खड़े रह सकते हैं वे ही ऐसे लोग हैं जिन्हें बचाया गया है। मैं ऐसे लोगों को चाहता हूँ जो पतरस के समान हैं, ऐसे लोग जो सिद्ध किए जाने का अनुसरण करते हैं। आज की सच्चाई उन्हें दी जाती है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं। यह उद्धार उन्हें दिया जाता है जो परमेश्वर के द्वारा उद्धार पाने की लालसा करते हैं, और यह उद्धार सिर्फ तुम लोगों द्वारा ग्रहण करने के लिए नहीं है, परन्तु यह इसलिए भी है ताकि तुम लोग परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाओ। तुम लोग परमेश्वर को ग्रहण करते हो ताकि परमेश्वर भी तुम लोगों को ग्रहण कर सके। आज मैं ने ये वचन तुम लोगों से कहे हैं, और तुम लोगों ने इन्हें सुना है, और तुम लोगों को इन वचनों के अनुसार व्यवहार करना है। अंत में, जब तुम लोग इन वचनों को व्यवहार में लाते हो तो यह तब होगा जब मैं इन वचनों के द्वारा तुम लोगों को ग्रहण कर लूँगा; उस समय, तुम लोगों ने भी इन वचनों को ग्रहण लिया होगा, दूसरे शब्दों में, तुम लोगों ने इस सर्वोच्च उद्धार को ग्रहण कर लिया होगा। तुम लोगों को शुद्ध कर दिए जाने के बाद, तो तुम लोग सच्चे मानव हो जाओगे। यदि तू सच्चाई से जीवन बिताने में असमर्थ हैं, या उस व्यक्ति के समान जीवन बिताने में असमर्थ हैं जिसे सिद्ध किया गया है, तो ऐसा कहा जा सकता है कि तू एक मानव नहीं हैं, तू एक चलती फिरती लाश है, और एक पशु है, क्योंकि तुझमें सच्चाई नहीं है, दूसरे शब्दों में कहें तो तुझमें यहोवा की श्वास नहीं है, और इस प्रकार तू मरा हुआ इंसान है जिस में कोई आत्मा नहीं है! यद्यपि विजय पा लिए जाने के बाद गवाही देना संभव है, परन्तु जो तू प्राप्त करता है वह एक छोटा सा उद्धार है, और तू एक जीवित प्राणी नहीं बन पाया है जिस में आत्मा है। यद्यपि तूने ताड़ना और न्याय का अनुभव किया है, फिर भी उसके परिणामस्वरूप तेरा स्वभाव नहीं बदला है या परिवर्तित नहीं हुआ है; तू अभी पुराना मनुष्य है, तू अभी भी शैतान का है, और तू कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हैं जिसे शुद्ध किया गया है। केवल ऐसे लोगों का मोल है जिन्हें सिद्ध किया गया है, और केवल ऐसे ही लोगों ने सच्चे जीवन को प्राप्त किया है। एक दिन, कोई तुझ से कहेगा, "तूने परमेश्वर का अनुभव किया है, अतः कुछ बता कि उसका कार्य कैसा है। दाऊद ने परमेश्वर के काम का अनुभव किया था, और उसने यहोवा के कार्यों को देखा था, मूसा ने भी यहोवा के कार्यों को देखा था, और वे दोनों यहोवा के कार्यों का बखान कर सकते थे, और यहोवा की विलक्षणता के बारे में बोल सकते थे। तुम लोगों ने देहधारी परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य को देखा है; क्या तुम लोग उसकी बुद्धि के बारे में बात कर सकते हो? क्या तू उसके कार्य की विलक्षणता के बारे में बात कर सकता है? परमेश्वर तुम लोगों से क्या अपेक्षा करता है, और तुम लोग उनका अनुभव कैसे करते हो? तुम लोगों ने अंतिम दिनों के दौरान परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है; तुम लोगों का सब से बड़ा दर्शन क्या है? क्या तुम लोग इसके बारे में बात कर सकते हो? क्या तुम लोग परमेश्वर के धर्मी स्वभाव के बारे में बात कर सकते हो?" इन प्रश्नों से सामना होने पर तू कैसे उत्तर देगा? यदि तू कह सकता है, "परमेश्वर अत्यंत धर्मी है, वह हमें ताड़ना देता है और हमारा न्याय करता है, और कठोरता से हमारा खुलासा करता है। परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य के द्वारा किए गए अपराध के प्रति वास्तव में असहनशील होता है। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद, मैं अपने स्वयं की क्रूरता को जान पाया हूँ, मैं सचमुच में परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को देख पाया हूँ," तब वह दूसरा व्यक्ति निरन्तर आप से पूछेगा, "तू परमेश्वर के विषय में और क्या जानता है! एक मनुष्य जीवन में प्रवेश कैसे कर सकता है? क्या तेरी कोई व्यक्तिगत आकांक्षाएँ हैं?" तू जवाब देगा, "शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, परमेश्वर के जीवधारी पशु बन गए, और वे गधों से कुछ अलग नहीं थे। आज, मैं परमेश्वर के हाथों में रहता हूँ, और इस प्रकार मुझे सृष्टिकर्ता की इच्छाओं को संतुष्ट करना होगा, और जो कुछ वह शिक्षा देता है उसका पालन करना होगा। मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है।" यदि तू केवल ऐसी व्यापकता के साथ बात करता है, तो तू जो कह रहा है उसे वह व्यक्ति नहीं समझेगा। जब वे तुझसे पूछते हैं कि तेरे पास परमेश्वर के कार्य का क्या ज्ञान है, तो वे तेरे व्यक्तिगत अनुभवों की ओर संकेत कर रहे हैं। वे पूछताछ कर रहें हैं कि उसका अनुभव करने के बाद तेरे पास परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय का क्या ज्ञान है, और इस तरह वे तेरे व्यक्तिगत अनुभवों की ओर संकेत कर रहे हैं, और तुझ से कहते हैं कि तू सत्य के अपने ज्ञान के बारे में बोले। यदि तू ऐसी चीज़ों के बारे में बोलने में असमर्थ है, तो इस से यह साबित होता है कि तू आज के कार्य के बारे में कुछ नहीं जानता है। तू हमेशा ऐसे वचनों को बोलता है जो दिखावटी हैं, या जिन्हें वैश्विक रूप से जाना जाता है; तेरे पास कोई विशिष्ट अनुभव नहीं है, तेरे ज्ञान में मुख्य तत्व तो बिलकुल भी नहीं है, और तेरे पास सच्ची गवाहियाँ नहीं हैं, और अन्य लोग तेरे द्वारा आश्वस्त नहीं होते हैं। परमेश्वर का एक निष्क्रिय अनुयायी मत बन, और उसका अनुसरण मत कर जो विचित्र है। न गर्म और न ठण्डा होने से तू अपने आप के ऊपर अधिकार खो देगा और तू जीवन में समय बर्बाद करेगा। तुझे स्वयं को ऐसी शिथिलता और निष्क्रियता से छुड़ाना है, और सकारात्मक चीज़ों का अनुसरण करने और अपनी स्वयं की कमज़ोरियों पर विजय पाने में कुशल बनना है, ताकि तू सच्चाई को प्राप्त कर सके और सच्चाई का जीवन बिता सके। तेरी कमज़ोरियों के विषय में कुछ भी डरने की बात नहीं है, और तेरी कमियां तेरी सब से बड़ी समस्या नहीं है। तेरी सब से बड़ी समस्या, और तेरी सब से बड़ी कमी है कि तू न गर्म है और न ठण्डा है और तुझ में सत्य की खोज की इच्छा की कमी है। तुम लोगों की सबसे बड़ी समस्या है तुम लोगों की डरपोक मानसिकता जिसके द्वारा तुम लोग उन चीज़ों से खुश हो जो जैसी की वैसी हैं, और तुम लोग निष्क्रियता से इन्तज़ार करते हो। यह तुम लोगों की सबसे बड़ी बाधा है, और सत्य का अनुसरण करने में तुम लोगों का सब से बड़ा शत्रु है। यदि तू केवल इसलिए आज्ञा मानता है क्योंकि जो वचन मैं ने कहा है वे बहुत गम्भीर हैं, तो तेरे पास सचमुच में वह ज्ञान नहीं है, न ही तू सत्य को संजोकर रखता है। जैसी तेरी आज्ञाकारिता है उसे गवाही नहीं कहते हैं, और मैं ऐसी आज्ञाकारिता को स्वीकार नहीं करता हूँ। कोई तुझ से पूछ सकता है, "तेरा परमेश्वर वास्तव में कहाँ से आता है? तेरे इस परमेश्वर की हस्ती क्या है?" तू उत्तर देगा, "उसकी हस्ती ताड़ना और न्याय है।" "क्या परमेश्वर मनुष्य के प्रति तरस से भरा हुआ और प्रेमी नहीं है? क्या तू यह जानता है?" तू कहेगा, "यह दूसरों का परमेश्वर है। यह वह परमेश्वर है जिस पर धर्म को मानने वाले लोग विश्वास करते हैं, यह हमारा परमेश्वर नहीं है।" जब तेरे जैसे लोग सुसमाचार फैलाते हैं, तो तेरे द्वारा सच्चे मार्ग को तोड़ा मरोड़ा जाता है, और इस प्रकार तू किस काम का है? अन्य लोग तुझ से सच्चा मार्ग कैसे प्राप्त करेंगे? तू सत्य के बगैर है, और तू सत्य के बारे में कुछ नहीं बोल सकता है, इसके अतिरिक्त, न ही तू सत्य के लिए जी सकता है। वे कौन सी योग्यताएँ हैं जो तुझे परमेश्वर के सामने जीने के काबिल बनाती हैं? जब तू दूसरों तक सुसमाचार फैलाता है, और जब तू सत्य के बारे में बोलता है, और परमेश्वर की गवाही देता है, यदि तू उन्हें जीत पाने में असमर्थ होता है, तो वे तेरे वचनों का खण्डन करेंगे। क्या तू अंतरिक्ष का कचरा नहीं है? तूने परमेश्वर के कार्य का बहुत अनुभव किया है, फिर भी जब तू सत्य बोलता है तो उसका कोई मतलब नहीं होता है। क्या तू किसी काम के लायक नहीं है? तेरी क्या उपयोगिता है? तूने परमेश्वर के कार्य का इतना अनुभव कैसे किया है, फिर भी तेरे पास उसका थोड़ा सा भी ज्ञान नहीं है? जब वे पूछते हैं कि तेरे पास परमेश्वर का क्या वास्तविक ज्ञान है, तो तुझको शब्द नहीं मिलते हैं, या फिर बेतुके ढ़ंग से जवाब देता है—-यह कहता है कि परमेश्वर सामर्थी है, यह कि जो सब से बड़ी आशीषें तूने प्राप्त की हैं वे सचमुच में परमेश्वर की प्रशंसा के लिए हैं, और यह कि परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से देख पाने के योग्य होने से बढ़कर कोई सौभाग्य नहीं है। ऐसा कहने का क्या मूल्य है? वे बेकार और खोखले शब्द हैं! परमेश्वर के कार्य का इतना अनुभव प्राप्त करने के बाद, क्या तू केवल इतना जानता है कि परमेश्वर को ऊँचा उठाना ही सत्य है? तुझे परमेश्वर के कार्य को अवश्य जानना होगा, और केवल तभी तू परमेश्वर की सच्ची गवाही दे पाएगा। वे, जिन्होंने सत्य को प्राप्त नहीं किया है, कैसे परमेश्वर की सच्ची गवाई दे सकते हैं?
फुटनोटः
क. मूल पाठ "इसे" पढ़ता है।
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