मानवजाति के प्रबंधन करने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, जिसका अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है। इन चरणों में संसार की रचना का कार्य समाविष्ट नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण हैं। संसार की रचना करने का कार्य, सम्पूर्ण मानवजाति को उत्पन्न करने का कार्य था। यह मानवजाति को बचाने का कार्य नहीं था, और मानवजाति को बचाने के कार्य से कोई सम्बन्ध नहीं रखता है, क्योंकि जब संसार की रचना हुई थी तब मानवजाति शैतान के द्वारा भ्रष्ट नहीं की गई थी, और इसलिए मानवजाति के उद्धार का कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। मानवजाति को बचाने का कार्य केवल मानवजाति के भ्रष्ट होने पर ही आरंभ हुआ, और इसलिए मानवजाति का प्रबंधन करने का कार्य भी मानवजाति के भ्रष्ट हो जाने पर ही आरम्भ हुआ। दूसरे शब्दों में, मनुष्य के प्रबंधन का परमेश्वर का कार्य मनुष्य को बचाने के कार्य के परिणामस्वरूप आरंभ हुआ, और संसार की रचना के कार्य से उत्पन्न नहीं हुआ।मानवजाति के प्रबंधन का कोई भी कार्य मानवजाति के भ्रष्ट स्वभाव के बिना नहीं हो सकता था, और इसलिए मानवजाति के प्रबंधन के कार्य में चार चरणों या चार युगों के बजाए तीन भागों का समावेश है। परमेश्वर के मानवजाति को प्रबंधित करने के कार्य को उद्धृत करने का केवल यही सही तरीका है। जब अंतिम युग समाप्त होने के समीप होगा, तब तक मानवजाति को प्रबंधित करने का कार्य पूर्ण समाप्ति तक पहुँच गया होगा। प्रबंधन के कार्य के समापन का अर्थ है कि समस्त मानवजाति को बचाने का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो गया है, और यह कि मानवजाति अपनी यात्रा के अंत में पहुँच चुकी है। समस्त मानवजाति को बचाने के कार्य के बिना, मानवजाति के प्रबंधन के कार्य का अस्तित्व नहीं होगा, न ही उसमें कार्य के तीन चरण होंगे। यह निश्चित रूप से मानवजाति की चरित्रहीनता की वजह से था, और क्योंकि मानवजाति को उद्धार की इतनी अधिक आवश्यकता थी, कि यहोवा ने संसार का सृजन समाप्त किया और व्यवस्था के युग का कार्य आरम्भ कर दिया। केवल तभी मानवजाति के प्रबंधन का कार्य आरम्भ हुआ, जिसका अर्थ है कि केवल तभी मानवजाति को बचाने का कार्य आरम्भ हुआ। "मानवजाति का प्रबंधन करने" का अर्थ पृथ्वी पर नव-सृजित मानवजाति (कहने का अर्थ है, कि ऐसी मानवजाति जिसे अभी भ्रष्ट होना है) के जीवन का मार्गदर्शन करना नहीं है। बल्कि, यह उस मानवजाति का उद्धार है जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, जिसका अर्थ है, कि यह इस भ्रष्ट मानवजाति को बदलना है। यही मानवजाति का प्रबंधन करने का अर्थ है। मानवजाति को बचाने के कार्य में संसार की रचना करने का कार्य सम्मिलित नहीं है, और इसलिए मानवजाति का प्रबंधन करने का कार्य संसार की रचना करने के कार्य को समाविष्ट नहीं करता है, और केवल कार्य के तीन चरणों को ही समाविष्ट करता है जो संसार की रचना से अलग हैं। मानवजाति का प्रबंधन करने के कार्य को समझने के लिए कार्य के तीन चरणों के इतिहास के बारे में अवगत होना आवश्यक है—यही है वह बचाए जाने के लिए जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य अवगत होना चाहिए। परमेश्वर के प्राणियों के रूप में, तुम लोगों को जानना चाहिए कि मनुष्य परमेश्वर के द्वारा रचा गया था, और मानवजाति की भ्रष्टता के स्रोत को पहचानना चाहिए, और, इसके अलावा, मनुष्य के उद्धार की प्रक्रिया को जानना चाहिए। यदि तुम लोग केवल यही जानते हो कि परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए सिद्धांतों के अनुसार कैसे कार्य किया जाए, परन्तु इस बात का कोई भान नहीं है कि परमेश्वर मानवजाति को किस प्रकार से बचाता है, या मानवजाति की भ्रष्टता का स्रोत क्या है, तो परमेश्वर की रचना के रूप में यही तुम लोगों में कमी है। परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के वृहद विस्तार से अनभिज्ञ बने रहते हुए, तुम्हें उन सत्यों को समझ कर केवल संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए जिन्हें व्यवहार में लाया जा सकता है—यदि ऐसा मामला है, तो तुम बहुत ही हठधर्मी हो। कार्य के तीन चरण परमेश्वर के मनुष्यों के प्रबंधन की आंतरिक कथा हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सुसमाचार का आगमन, समस्त मानवजाति के बीच सबसे बड़ा रहस्य हैं, और सुसमाचार के प्रसार का आधार भी हैं। यदि तुम अपने जीवन से सम्बन्धित सामान्य सत्यों को समझने पर ही केवल ध्यानकेन्द्रित करते हो, और इसके बारे में कुछ नहीं जानते हो, जो कि सबसे बड़ा रहस्य और दर्शन है, तो क्या तुम्हारा जीवन किसी दोषपूर्ण उत्पाद के सदृश नहीं है,जो सिर्फ देखने के अलावा किसी काम का नहीं है?
यदि मनुष्य केवल अभ्यास पर ही ध्यानकेन्द्रित करता है, और परमेश्वर के कार्य और मनुष्यों के ज्ञान को गौण देखता है, तो क्या यह "मोहरों की लूट, कोयले पर छाप" के समान नहीं है? वह जिसे तुम्हें अवश्य जानना चाहिए, तुम्हें अवश्य जानना चाहिए, और वह जिसे तुम्हें अभ्यास में अवश्य लाना चाहिए, तुम्हें अभ्यास में अवश्य लाना चाहिए। केवल तभी तुम्हेंई एक होगे जो जानता है कि सत्य की तलाश कैसे करनी है। जब सुसमाचार फैलाने का तुम्हारा दिन आता है, यदि तुम सिर्फ़ यह कह पाते हो कि परमेश्वर एक महान और धर्मी परमेश्वर है, कि वह एक सर्वोच्च परमेश्वर है, ऐसा परमेश्वर है जिससे किसी महान व्यक्ति की तुलना नहीं की जा सकती है, और जिससे उच्च कोई और दूसरा नहीं है..., यदि तुम केवल ये अप्रासंगिक और सतही बातें कह सकते हो, और तुम उन वचनों को कहने में सर्वथा असमर्थ हो जिनका महत्व अत्यधिक है, और जिनमें सार है, यदि तुम्हें परमेश्वर को जानने के बारे में, या परमेश्वर के कार्य के बारे में कहने के लिए कुछ भी नहीं है, और, इसके अलावा, सत्य की व्याख्या नहीं कर सकते हो, या वह प्रदान नहीं कर सकते हो जिसकी मनुष्य में कमी है, तो तुम्हारे जैसा कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने में अक्षम है। परमेश्वर की गवाही देना और राज्य के सुसमाचार को फैलाना कोई साधारण बात नहीं है। तुम्हें सबसे पहले सत्य से और उन दर्शनों से जिन्हें समझा जाना है सज्जित अवश्य होना चाहिए। जब तुम परमेश्वर के दर्शनों और कार्य के विभिन्न पहलुओं के सत्य बारे में स्पष्ट हो जाओगे, तुम अपने हृदय में परमेश्वर के कार्य को जान जाओगे, और इसकी परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या करता है—चाहे यह धर्मी न्याय हो या मनुष्य का–शुद्धिकरण—तुम अपनी बुनियाद के रूप में सबसे महत्वपूर्ण दर्शन से सम्पन्न हो जाओगे, और अभ्यास में लाने के लिए सही सत्य से सम्पन्न हो जाओगे, तब तुम बिल्कुल अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य बन जाओगे। तुम्हें यह अवश्य जानना चाहिए कि इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या कार्य करता है, उस के कार्य का उद्देश्य नहीं बदलता है, उसके कार्य का केन्द्र नहीं बदलता है और मनुष्य के प्रति उसकी इच्छा नहीं बदलती है। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि उसके वचन कितने कठोर हैं, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि परिस्थिति कितनी विपरीत है, उसके कार्य के सिद्धान्त नहीं बदलेंगे, और मनुष्यों को बचाने का उसका आशय नहीं बदलेगा। बशर्ते कि यह मनुष्य के अन्त का प्रकाशन या मनुष्य का गंतव्य नहीं है, और अंतिम चरण का कार्य, या परमेश्वर के प्रबंधन की सम्पूर्ण योजना को समाप्त करने का कार्य नहीं है, और बशर्ते कि यह उस समय के दौरान है जब वह मनुष्य पर कार्य करता है, तब उसके कार्य का केन्द्र नहीं बदलेगा: यह हमेशा मानवजाति का उद्धार होगा। यह परमेश्वर में तुम लोगों के विश्वास का आधार होना चाहिए। कार्य के तीन चरणों का उद्देश्य समस्त मानवजाति का उद्धार है—जिसका अर्थ है शैतान के अधिकार क्षेत्र से मनुष्य का पूर्ण उद्धार। यद्यपि कार्य के इन तीन चरणों में से प्रत्येक का एक भिन्न उद्देश्य और महत्व है, किन्तु प्रत्येक मानवजाति को बचाने के कार्य का हिस्सा है, और उद्धार का एक भिन्न कार्य है जो मानवजाति की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है। एक बार जब तुम कार्य के तीन चरणों के उद्देश्य के बारे में अवगत हो जाओगे हो, तब तुम्हें कार्य के प्रत्येक चरण के महत्व के बारे में सराहना करने के बारे में पता चल जाएगा, और तुम जान जाओगे कि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने के लिए किस तरह से कार्यकलाप करें। यदि तुम इस स्थिति तक पहुँच सकते हो, तो यही सबसे बड़ा दर्शन, तुम्हारा आधार बन जाएगा। तुम्हें न केवल अभ्यास करने के आसान तरीकों को, या गहरे सत्यों को खोजना चाहिए, बल्कि दर्शन को अभ्यास के साथ जोड़ देना चाहिए, ताकि वहाँ सत्य जिसे अभ्यास में डाला जा सकता है, और ज्ञान जो कि दर्शनों पर आधारित है, दोनो हों। केवल तभी तुम कोई ऐसे व्यक्ति बनोगे जो सत्य की पूरी तरह से तलाश कर रहा है।
कार्य के तीनों चरण परमेश्वर के प्रबंधन का मुख्य केन्द्र हैं और उनमें परमेश्वर का स्वभाव और वह क्या है व्यक्त होते हैं। जो परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों के बारे में नहीं जानते हैं वे यह जानने में अक्षम हैं कि परमेश्वर कैसे अपने स्वभाव को व्यक्त करता है, न ही वे परमेश्वर के कार्य की बुद्धि को जानते हैं, और वे उन कई मार्गों जिनके माध्यम से वह मानवजाति को बचाता है, और सम्पूर्ण मानवजाति के लिए उसकी इच्छा से अनभिज्ञ रहता है। कार्य के तीनों चरण मानवजाति को बचाने के कार्य की पूर्ण अभिव्यक्ति हैं। जो लोग कार्य के तीन चरणों के बारे में नहीं जानते हैं वे पवित्र आत्मा के कार्य के विभिन्न तरीकों और सिद्धान्तों से अनभिज्ञ होंगे; जो लोग केवल सख्ती से उन सिद्धांत से चिपके रहते हैं जो कार्य के एक चरण से शेष रहता है ये वे लोग हैं जो परमेश्वर को सिद्धांत तक सीमित कर देते हैं, और परमेश्वर में उनका विश्वास अस्पष्ट और अनिश्चित होता है। ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार को कभी भी प्राप्त नहीं करेंगे। केवल परमेश्वर के कार्य के तीन चरण ही परमेश्वर के स्वभाव की संपूर्णता को पूरी तरह से व्यक्त कर सकते हैं और संपूर्ण मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के आशय को, और मानवजाति के उद्धार की सम्पूर्ण प्रक्रिया को पूरी तरह से व्यक्त कर सकते हैं। यह सबूत है कि उसने शैतान को हरा दिया है और मानवजाति को जीत लिया है, यह परमेश्वर की जीत का सबूत है और परमेश्वर के सम्पूर्ण स्वभाव की अभिव्यक्ति है। जो लोग परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से केवल एक चरण को ही समझते हैं वे परमेश्वर के स्वभाव को केवल आंशिक रूप से ही जानते हैं। मनुष्य की धारणा में, कार्य के इस एकल चरण का सिद्धांत बन जाना आसान है, इसकी सम्भावना बन जाती है कि मनुष्य परमेश्वर के बारे में नियमों को स्थापित करेगा, और मनुष्य परमेश्वर के स्वभाव के इस एकल भाग का परमेश्वर के सम्पूर्ण स्वभाव के प्रतिनिधित्व के रूप में उपयोग करेगा। इसके अलावा, यह विश्वास करते हुए कि यदि परमेश्वर एक बार ऐसा था, तो वह हर समय वैसा ही बना रहेगा, और कभी भी नहीं बदलेगा, मनुष्य की अधिकांश कल्पनाएँ अंदर इस तरह से मिश्रित होती हैं कि वह परमेश्वर के स्वभाव, अस्तित्व और बुद्धि, और साथ ही परमेश्वर के कार्य के सिद्धान्तों को, सीमित मापदण्डों के भीतर, कठोरता से विवश कर देता है। केवल वे लोग ही जो कार्य के तीनों चरणों को जानते और सराहते हैं परमेश्वर को पूरी तरह से और सही ढ़ंग से जान सकते हो। कम से कम, वे परमेश्वर को इस्राएलियों या यहूदियों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित नहीं करेंगे और उसे ऐसे परमेश्वर के रूप में नहीं देखेंगे जिसे मनुष्यों के वास्ते सदैव के लिए सलीब पर चढ़ा दिया जाएगा। यदि तुम्हें परमेश्वर के बारे में उसके कार्य के केवल एक चरण के द्वारा पता चलता है, तो तुम्हारा ज्ञान भी बहुत कम है। तुम्हारा ज्ञान समुद्र में मात्र एक बूँद की तरह है। यदि नहीं, तो कई पुराने धार्मिक रक्षकों ने परमेश्वर को जीवित सलीब पर क्यों चढ़ाया होता? क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को निश्चित मापदण्डों के भीतर सीमित करता है? क्या कई लोग इसलिए परमेश्वर का विरोध नहीं करते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य में बाधा नहीं डालते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के विभिन्न और विविधतापूर्ण कार्यों को नहीं जानते हैं, और इसके अलावा, क्योंकि वे केवल चुटकीभर ज्ञान और सिद्धांत से संपन्न होते हैं जिके भीतर वे पवित्र आत्मा के कार्य को मापते हैं? यद्यपि इस प्रकार के लोगों का अनुभव केवल सतही होता है, किन्तु वे घमण्डी और आसक्त प्रकृति के होते हैं, और वे पवित्र आत्मा के कार्य को अवमानना से देखते हैं, पवित्र आत्मा के अनुशासनों की उपेक्षा करते हैं और इसके अलावा, पवित्र आत्मा के कार्यों की "पुष्टि" करने के लिए अपने पुराने तुच्छ तर्कों का उपयोग करते हैं। वे एक नाटक भी करते हैं, और अपनी स्वयं की शिक्षा और पाण्डित्य पर पूरी तरह से आश्वस्त होते हैं, और यह कि वे संसार भर में यात्रा करने में सक्षम होते हैं। क्या ये ऐसे लोग नहीं हैं जो पवित्र आत्मा के द्वारा तिरस्कृत और अस्वीकार किए गए हैं और क्या ये नए युग के द्वारा हटा नहीं दिए जाएँगे? क्या ये वही अदूरदर्शी छोटे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के सामने आते हैं और खुले आम उसका विरोध करते हैं, जो केवल यह दिखावा करने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कितने चालाक हैं? बाइबिल के अल्प ज्ञान के साथ, वे संसार के "शैक्षणिक समुदाय" में पैर पसारने की कोशिश करते हैं, लोगों को सिखाने के लिए केवल सतही सिद्धांतों के साथ, वे पवित्र आत्मा के कार्य को पलटने का प्रयत्न करते हैं, और इसे अपने ही स्वयं के विचारों की प्रक्रिया के चारों ओर घूमाते रहने का प्रयास करते हैं, और अदूरदर्शी की तरह हैं, वे एक ही झलक में परमेश्वर के 6000 सालों के कार्यों को देखने की कोशिश करते हैं। क्या इन लोगों के पास बातचीत करने का कोई भी कारण है? वास्तव में, परमेश्वर के बारे में लोगों को जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही धीमा वे उसके कार्य का आँकलन करने में होते हैं। इसके अलावा, आज वे परमेश्वर के कार्य के बारे में अपने ज्ञान की बहुत ही कम बातचीत करते हैं, बल्कि वे अपने निर्णय में जल्दबाज़ी नहीं करते हैं। लोग परमेश्वर के बारे में जितना कम जानते हैं, उतना ही अधिक वे घमण्डी और अतिआत्मविश्वासी होते हैं और उतना ही अधिक बेहूदगी से परमेश्वर के अस्तित्व की घोषणा करते हैं—फिर भी वे केवल सिद्धांत की बात ही करते हैं और कोई भी वास्तविक प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते हैं। इस प्रकार के लोगों का कोई मूल्य नहीं होता है। जो पवित्र आत्मा के कार्य को एक खेल की तरह देखते हैं वे ओछे होते हैं! जो लोग पवित्र आत्मा के नए कार्य का सामना करते समय सचेत नहीं होते हैं, जो अपना मुँह चलाते रहते हैं, वे आलोचनात्मक होते हैं, जो पवित्र आत्मा के धर्मी कार्यों को इनकार करने की अपनी प्राकृतिक सहज प्रवृत्ति पर लगाम नहीं लगाते हैं और उसका अपमान और ईशनिंदा करते हैं—क्या इस प्रकार के असभ्य लोग पवित्र आत्मा के कार्य के बारे में अनभिज्ञ नहीं रहते हैं? इसके अलावा, क्या वे अभिमानी, अंतर्निहित रूप से घमण्डी और अशासनीय नहीं हैं? भले ही ऐसा दिन आए जब ऐसे लोग पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार करें, तब भी परमेश्वर उन्हें सहन नहीं करेगा। न केवल वे उन्हें तुच्छ समझते हैं जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, बल्कि स्वयं परमेश्वर के विरुद्ध भी, ईशनिंदा करते हैं। इस प्रकार के उजड्ड लोग, न तो इस युग में और न ही आने वाले युग में, क्षमा किए जाएँगे, और वे हमेशा के लिए नरक में सड़ेंगे! इस प्रकार के असभ्य, आसक्त लोग परमेश्वर में भरोसा करने का दिखावा करते हैं और जितना अधिक वे ऐसा करते हैं, उतना ही अधिक उनकी परमेश्वर के प्रशासकीय आदेशों का उल्लंघन करने की संभावना होती है। क्या वे सभी घमण्डी ऐसे लोग नहीं हैं जो स्वाभाविक रूप से उच्छृंखल हैं, और जिन्होंने कभी भी किसी का भी आज्ञापालन नहीं किया है, जो सभी इसी मार्ग पर चलते हैं? क्या वे दिन प्रतिदिन परमेश्वर का विरोध नहीं करते हैं, वह जो हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है? आज तुम लोगों को इस बात का महत्व समझना चाहिए कि परमेश्वर के कार्यों के तीन चरणों को जानना तुम लोगों के लिए क्यों आवश्यक है। जिन वचनों को मैं कहता हूँ वे तुम लोगों के लाभ के लिए हैं, और केवल खोखली बातें नहीं हैं। यदि तुम लोग चीज़ों में जल्दबाज़ी करोगे, तो क्या मेरा सभी कठिन कार्य व्यर्थ नहीं हो जाएगा? तुम लोगों में से प्रत्येक को अपनी प्रकृति को जानना चाहिए। तुम में से अधिकांश लोग तर्क करने में कुशल होते हो, सैद्धांतिक प्रश्नों के जवाब तुम लोगों की ज़ुबान पर रखे रहते हैं, परन्तु तुम लोगों के पास सार से सम्बन्धित प्रश्नों के बारे में कहने के लिए कुछ भी नहीं है। यहाँ तक कि आज भी, तुम लोग तुच्छ बातचीत में ही लगे रहते हो, अपने पुरानी प्रकृति को बदलने में अक्षम हो, और तुम लोगों में से अधिकांश, उच्च सत्य को प्राप्त करने के लिए, जिस मार्ग का अनुसरण करते हो उसे बदलने का भी कोई अभिप्राय नहीं रखते हो, अपने जीवन को केवल आधे-अधूरे मन से जी रहे हो। इस प्रकार के लोग किस प्रकार से अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने में सक्षम हैं? भले ही तुम लोग इस मार्ग पर अंत तक बने रहो, इसका तुम लोगों को क्या लाभ होगा? इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, या तो सच्चे तरीके से तलाश करके, या अन्यथा जल्दी ही हार स्वीकार करके, अपने विचारों को बदलना बेहतर है। जैसे-जैसे समय बीतता है तुम लोग एक मुफ़्तखोर परजीवी बन जाते हो—क्या तुम इस प्रकार की निम्न और अप्रतिष्ठित भूमिका निभाने को तैयार हो?
कार्य के तीन चरण परमेश्वर के सम्पूर्ण कार्य का अभिलेख हैं, ये परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार का अभिलेख हैं, और ये काल्पनिक नहीं हैं। यदि तुम लोग परमेश्वर के सम्पूर्ण स्वभाव के ज्ञान की वास्तव में खोज करना चाहते हो, तो तुम लोगों को परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के तीनों चरणों को अवश्य जानना चाहिए और, इसके अलावा, तुम लोगों को किसी भी चरण को चूकना अवश्य नहीं चाहिए। यही सबसे न्यूनतम है जो परमेश्वर को जानने की खोज करने वालों के द्वारा प्राप्त अवश्य किया जाना चाहिए। मनुष्य स्वयं परमेश्वर के ज्ञान के साथ नहीं आ सकता है। यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे मनुष्य स्वयं कल्पना कर सकता है, न ही यह पवित्र आत्मा के द्वारा किसी एक व्यक्ति के प्रति विशेष अनुग्रह का परिणाम है। इसके बजाय, यह वह ज्ञान है जो तब आता है जब मनुष्य परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लेता है, और परमेश्वर का ज्ञान है जो केवल परमेश्वर के कार्य के तथ्यों का अनुभव करने के बाद ही आता है। इस प्रकार का ज्ञान यूँ ही हासिल नहीं किया जा सकता है, न ही यह कोई ऐसी चीज है जिसे सिखाया जा सकता है। यह पूरी तरह से व्यक्तिगत अनुभव से संबंधित है। परमेश्वर का मनुष्यों का उद्धार कार्य के इन्हीं तीन चरणों के मूल में निहित है, फिर भी उद्धार के कार्य के भीतर कार्य करने के कई तरीके और उपाय शामिल हैं जिनके माध्यम से परमेश्वर के स्वभाव व्यक्त होता है। यही है जो मनुष्य के लिए पहचानना सबसे कठिन है,और इसे समझना मनुष्य के लिए मुश्किल है। युगों का पृथक्करण, परमेश्वर के कार्य में बदलाव, कार्य के स्थान में बदलाव, इस कार्य को ग्रहण करने वाले में बदलाव, आदि—ये सभी कार्य के तीन चरणों में समाविष्ट हैं। विशेष रूप से, पवित्र आत्मा के कार्य करने के तरीकों में भिन्नता, और साथ ही परमेश्वर के स्वभाव, छवि, नाम, पहचान में परिवर्तन या अन्य बदलाव, ये सभी कार्य के तीन चरणों के ही भाग हैं। कार्य का एक चरण केवल एक ही भाग का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और एक निश्चित दायरे के भीतर ही सीमित है। यह युगों के विभाजन, या परमेश्वर के कार्य में बदलाव से संबंधित नहीं है, और अन्य पहलुओं से तो बिल्कुल भी संबंधित नहीं है। यह एक सुस्पष्ट तथ्य है। कार्य के तीन चरण मानवजाति को बचाने में परमेश्वर के कार्य की संपूर्णता हैं। मनुष्य को परमेश्वर के कार्य को और उद्धार के कार्य में परमेश्वर के स्वभाव को अवश्य जानना चाहिए, और इस तथ्य के बिना, परमेश्वर का तुम्हारा ज्ञान केवल खोखले शब्द हैं, सैद्धांतिक बातों का शानदार दिखावा मात्र से अधिक नहीं हैं। इस प्रकार का ज्ञान मनुष्य को न तो यकीन दिला सकता है और न ही उस पर जीत दिला सकता है, इस प्रकार का ज्ञान वास्तविकता से बाहर की बात है और सत्य नहीं है। यह बहुत ही भरपूर मात्रा में, और कानों के लिए सुखद हो सकता है, परन्तु यदि यह परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव से विपरीत है, तो परमेश्वर तुम्हें नहीं छोड़ेगा। न केवल वह तुम्हारे ज्ञान की प्रशंसा नहीं करेगा बल्कि तुम्हारे पापी होने और उसकी निंदा करने के कारण तुम से अपना प्रतिशोध लेगा। परमेश्वर को जानने के वचन हल्के में नहीं बोले जाते हैं। यद्यपि तुम चिकनी-चुपड़ी बातें बोलने वाले और वाक्पटु हो सकते हो, और तुम्हारे वचन मृतकों में जीवन डाल सकते हों, और जीवित को मृत कर सकते हों, तब भी जब परमेश्वर के ज्ञान की बात आती है तो तुम्हारी अज्ञानता सामने आती है। परमेश्वर कोई ऐसा नहीं है जिसका तुम जल्दबाज़ी में आँकलन कर सकते हो या जिसकी लापरवाही से प्रशंसा कर सकते हो या जिसे उदासीनता से कलंकित कर सकते हो। तुम किसी की भी और सभी की प्रशंसा करते हो, फिर भी परमेश्वर की शुचिता और अनुग्रह का वर्णन करने के लिए तुम सही शब्दों को बोलने में संघर्ष करते हो—और यही सभी हारने वालों द्वारा सीखा जाता है। भले ही ऐसे कई भाषा विशेषज्ञ हैं जो परमेश्वर का वर्णन करने में सक्षम हैं, लेकिन वे जो वर्णन करते हैं उसकी सटीकता उन लोगों द्वारा बोले गए सत्य का सौवाँ हिस्सा है जो परमेश्वर से संबंधित होते हैं और उनका सीमित शब्द-संग्रह होता है, फिर भी समृद्ध अनुभव रखते हैं। इस प्रकार ऐसा देखा जा सकता है कि परमेश्वर का ज्ञान सटीकता और वास्तविकता में निहित है, न कि शब्दों का चतुराई से उपयोग करने या समृद्ध शब्द-संग्रह में है। मनुष्य का ज्ञान और परमेश्वर का ज्ञान पूरी तरह असम्बद्ध हैं। परमेश्वर को जानने का पाठ मानवजाति के किसी भी प्राकृतिक विज्ञान से ऊँचा है। यह ऐसा सबक है जो केवल उन्हीं अत्यंत थोड़े से लोगों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जो परमेश्वर को जानने की खोज कर रहे हैं और यूँही किसी भी प्रतिभावान व्यक्ति द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए तुम लोगों को अवश्य ही परमेश्वर को जानने और सत्य की तलाश करने को ऐसे नहीं देखना चाहिए मानो कि वे मात्र किसी बच्चे के द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। हो सकता है कि तुम अपने पारिवारिक जीवन, अपनी जीवन-वृत्ति या अपने वैवाहिक जीवन में पूरी तरह से सफल हो, परन्तु जब सत्य की और परमेश्वर को जानने के सबक की बात आती है, तो तुम्हारे पास अपने स्वयं के लिए दिखाने के लिए कुछ नहीं है, तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है। सत्य को व्यवहार में लाना, ऐसा कहा जा सकता है कि, तुम लोगों के लिए बहुत ही कठिनाई की बात है, और परमेश्वर को जानना तो और भी बड़ी समस्या है। यही तुम लोगों की कठिनाई है, और सम्पूर्ण मानवजाति द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाई भी है। जिन्होंने परमेश्वर को जानने के ध्येय में कुछ प्राप्त कर लिया है उनके बीच, ऐसे लगभग कोई नहीं हैं जो मानक के मुताबिक हों। मनुष्य नहीं जानता है कि परमेश्वर को जानने का अर्थ क्या है, या परमेश्वर को जानना क्यों आवश्यक है या किस हद तक जानना परमेश्वर को जानना समझा जाता है। यही मानवजाति के लिए बहुत उलझन वाली बात है और आसान शब्दों में मानवजाति द्वारा सामना की जा रही सबसे बड़ी पहेली है—कोई भी इस प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम नहीं है, न ही कोई इस प्रश्न का उत्तर देने की इच्छा रखता है, क्योंकि आज तक मानवजाति में से किसी को भी इस कार्य के अध्ययन में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई है। शायद, जब कार्य के तीन चरणों की पहेली मानवजाति को बताई जाएगी, तो अनुक्रम से परमेश्वर को जानने वाली प्रतिभाओं का एक समूह प्रकट होगा। वास्तव में, मैं आशा करता हूँ कि ऐसा ही हो, और अधिक क्या, मैं इस कार्य को करने की प्रक्रिया में हूँ और निकट भविष्य में और भी अधिक इस प्रकार की प्रतिभाओं के प्रकटन को देखने की आशा करता हूँ। वे कार्य के इन तीन चरणों के तथ्य की गवाही देने वाले लोग बन जाएँगे और वास्तव में, कार्य के इन तीनों चरणों की गवाही देने वाले प्रथम भी होंगे। यदि जिस दिन परमेश्वर के कार्य की समाप्ति होती है उस दिन इस प्रकार की कोई प्रतिभा नहीं हो, या केवल एक या दो ही हों, और उन्होंने देहधारी परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जाना व्यक्तिगत रूप से स्वीकार कर लिया हो, तो इससे अधिक कष्टप्रद और खेदजनक कुछ भी नहीं–है—यद्यपि यह सिर्फ़ सबसे बुरी स्थिति है। चाहे मामला कुछ भी हो, मैं अभी भी आशा करता हूँ कि जो वास्तव में परमेश्वर की तलाश करते हो वे इस आशीष को प्राप्त कर सकते हो। समय के आरम्भ से ही, इस प्रकार का कार्य पहले कभी नहीं हुआ, मानव विकास के इतिहास में कभी भी इस प्रकार का कार्य नहीं हुआ है। यदि तुम वास्तव में परमेश्वर को जानने वालों में सबसे प्रथम लोगों में से एक हो सकते हो, तो क्या यह सभी प्राणियों में सर्वोच्च आदर की बात नहीं होगी? क्या मानवजाति में कोई ऐसा प्राणी होगा जिसने परमेश्वर से बहुत अधिक प्रशंसा प्राप्त की होगी? इस प्रकार का कार्य प्राप्त करना आसान नहीं है, परन्तु तब भी अंत में प्रतिफल प्राप्त करेगा। उनके लिंग या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना, वे सभी लोग जो परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हैं, अंत में, परमेश्वर का सबसे महान सम्मान प्राप्त करते हैं और वे ही एकमात्र होंगे जो परमेश्वर का प्राधिकार धारण करते हैं। यही आज का कार्य है, और भविष्य का कार्य भी है; यह अंतिम, और 6,000 सालों के कार्य में निष्पादित किया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, और कार्य करने का एक तरीका है जो मनुष्य की प्रत्येक श्रेणी को प्रकट करता है। मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान करवाने के कार्य के माध्यम से, मनुष्य की विभिन्न श्रेणियाँ प्रकट होती हैं: जो परमेश्वर को जानते हैं वे परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने और उसकी प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने के योग्य होते हैं, जबकि जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे परमेश्वर के आशीषों और प्रतिज्ञाओं को स्वीकारने के योग्य नहीं होते हैं। जो परमेश्वर को जानते हैं वे परमेश्वर के अंतरंग हैं, और जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे परमेश्वर के अंतरंग नहीं कहे जा सकते हैं; परमेश्वर के अंतरंग परमेश्वर का कोई भी आशीष प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु जो उसके घनिष्ठ नहीं हैं वे उसके किसी भी काम के लायक नहीं हैं। चाहे यह क्लेश, शुद्धिकरण या न्याय हो, ये सभी अंततः मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य बनाने के वास्ते हैं और इसलिए हैं ताकि मनुष्य परमेश्वर के प्रति समर्पण करे। यही एकमात्र प्रभाव है जो अंततः प्राप्त किया जाएगा। कार्य के तीनों चरणों में से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, और यह मनुष्य के परमेश्वर के ज्ञान के लिए लाभकारी है, और परमेश्वर का अधिक पूर्ण और विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने में मनुष्य की सहायता करता है। यह समस्त कार्य मनुष्य के लिए लाभप्रद है।
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
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