आत्मा से सम्बन्धित मामलों में, तूझे कोमलतापूर्वक संवेदनशील होना चाहिए; मेरे वचनों के प्रति, तुझे सावधानीपूर्वक चौकस रहना पड़ेगा। तुझे मेरा आत्मा और शारीरिक स्वरूप, मेरे वचनों और शारीरिक स्वरूप को एक अखंड रूप में देखने की स्थिति में रहने का लक्ष्य बनाना चाहिए, ताकि सम्पूर्ण मानवता मुझे मेरी उपस्थिति में संतुष्ट करने के योग्य हो। मैंने अपने कदमों से बह्माण्ड को कुचला है, उसके पूरे विस्तार पर मेरी नज़रें लगी हुई हैं, और मैं सम्पूर्ण मानवजाति के मध्य चला-फिरा हूँ, मानविक मीठे, खट्टे, कड़वे और तीखे अनुभवों को चखा हूं, परन्तु मनुष्य मुझे कभी भी वास्तव में समझ नहीं पाया है, न ही मुझे सम्पूर्ण विश्व में चलता हुआ देख पाया है।क्योंकि मैं शान्त था, और कोई अलौकिक कर्म नहीं किया, इसी कारण कोई भी मुझे वास्तव में नहीं देख पाया है। चीजें अब पहले जैसी नहीं रहीं: मैं उन बातों को करने जा रहा हूं जिन्हें संसार ने, सृष्टि की रचना की शुरूआत से, पहले कभी नहीं देखा है, मैं उन वचनों को बोलने वाला हूँ जिन्हें मनुष्यों ने, पूरे युगों के दौरान, कभी भी नहीं सुना है, क्योंकि मैं अपेक्षा करता हूँ कि सम्पूर्ण मानवता मुझे देह में पहचाने। ये मेरे प्रबंधन के कार्य हैं, जिनके बारे में मानवता को जरा भी आभास नहीं है। यहां तक कि जब मैं उनके बारे में खुल कर बोलता हूँ, मनुष्य अभी भी अपने दिमाग में इतना भ्रमित है कि उसे उनके बारे में प्रत्येक विस्तार से बताना असम्भव है। यहाँ मनुष्य की अत्याधिक दीनता निहित है, क्या ऐसा नहीं है? यह बिल्कुल वहीं है जिसे मैं उसमें ठीक करना चाहता हूँ, क्या ऐसा नहीं है? इन वर्षों में, मैंने मनुष्य पर कोई भी कार्य नहीं किया है; इन सभी वर्षों में, जो लोग मेरे देह के अवतार के सीधे सम्पर्क में रहे, उन्होंने भी मेरी दिव्यता की ओर से सीधे आने वाली आवाज को कभी भी नहीं सुना। इसलिए यह अपरिहार्य है कि मनुष्यों में मेरे बारे में ज्ञान की कमी होनी चाहिए, परन्तु केवल इसी बात ने कई युगों से मेरे प्रति मानवता के प्रेम को प्रभावित नहीं किया है। तथापि, अब मैं ने तुम लोगों पर कई चमत्कारी और अथाह कार्य किया है साथ ही साथ कई बातें तुम लोगों को कही है। फिर भी, इन तरह की परिस्थितियों में भी, कई लोगों ने मेरे मुंह पर ही मेरा विरोध किया है। मुझे कुछ उदाहरण देने दो:
तू प्रतिदिन एक अनिश्चित परमेश्वर से प्रार्थना करता है, मेरे इरादों को समझने की कोशिश करता है, ताकि जीवन की संवेदना को महसूस कर सके। परन्तु, जब मेरे वचन वास्तव में उतरते हैं, तू उन्हें अलग तौर से देखता है: तू मेरे वचनों और मेरे आत्मा को एक अविभाज्य इकाई के रूप में ग्रहण करता है, परन्तु तू मनुष्य को लात मार के एक ओर कर देता है, यह सोचते हुए कि मनुष्य जो मैं हूं वह इस प्रकार के वचनों को बोलने योग्य ही नहीं है, और यह कि वे मेरे आत्मा द्वारा प्रवृत्त करने के परिणाम हैं। इस प्रकार की परिस्थिति के बारे में तुझे किस प्रकार से पता चलेगा? तू मेरे वचनों पर एक निश्चित सीमा तक विश्वास करता है, परन्तु जब मेरे देह धारण करने की बात हो, अधिक या कम सीमा तक तू खुद अपने ही विचारों को मानता है, जिनके बारे में तू दिन प्रतिदिन सोच-विचार करता है, यह कहते हुए: "वह इस प्रकार से चीजें क्यों करता है? क्या ऐसा हो सकता है कि यह परमेश्वर की ओर से आता है? असम्भव! मेरे दृष्टिकोण में, वह लगभग मेरे ही समान है—एक साधारण, सामान्य व्यक्ति।" फिर से, इस प्रकार की परिस्थिति को तू किस प्रकार से व्यक्त करेगा?
मैंने जो ऊपर कहा है, उसके बारे में, क्या तुम लोगों में से ऐसा कोई है जो इससे सुसज्जित नहीं है? ऐसा कोई है जो इसे धारण नहीं करता है? यह कुछ इस प्रकार से दिखाई देगा जिसे तू एक व्यक्तिगत सम्पति के टुकड़े के रूप में रखा हो, और इस पूरे समय तू इसे जाने देने के लिए अनिच्छुक रहा हो। फिर भी तू इसका पीछा करने के सक्रिय प्रयास के लिए कम इच्छुक रहा है; बल्कि, व्यक्तिगत तौर पर कार्य करने के लिए तू मेरा इंतजार करता है। सत्य कहें तो, ऐसा कोई भी एक इंसान नहीं है, जो बिना मुझे खोजे आसानी से मेरे बारे में जान जाए। निश्चित ही, ये सिर्फ उथले कथन नहीं हैं जिसका मैं तुम लोगों को प्रचार कर रहा हूं, क्योंकि मैं तेरे संदर्भ के लिए किसी दूसरे कोण से उदाहरण को प्रस्तुत कर सकता हूं।
जैसे ही पतरस का उल्लेख होता है, प्रत्येक व्यक्ति उसकी प्रशंसा से भर जाता है, तुरन्त ही पतरस के बारे में इन कहानियों से बारे में स्मरण कराए जाते हुए—उसने किस प्रकार से तीन बार परमेश्वर को जानने के विषय में इन्कार किया और इससे भी अधिक शैतान को अपनी सेवाएं प्रदान कीं, और इस प्रकार परमेश्वर की परीक्षा ली, परन्तु अंत में उसके ही खातिर क्रूस पर उल्टा लटकाया गया इत्यादि। अब मैं तुझे यह बताने पर बहुत ही महत्व देता हूँ कि किस प्रकार से पतरस ने मेरे बारे में जाना और साथ ही साथ उसके अंतिम परिणाम के बारे में भी। पतरस नामक इस व्यक्ति के पास उत्कृष्ट क्षमता थी, परन्तु उसकी परिस्थितियां पौलुस से भिन्न थीं। उसके माता-पिता ने मुझे सताया था, वे शैतान की दुष्ट शक्तियों के अधीन थे, और इसी कारण से कोई यह नहीं कह सकता कि उन्होंने पतरस को तरीका सौंप दिया था। पतरस बुद्धि से चुस्त था, देशी बुद्धिमत्ता के साथ सम्पन्न था, बचपन से उसके माता-पिता उससे स्नेह करते थे, फिर भी, बड़े होने के बाद, वह उनका शत्रु बन गया था, क्योंकि उसने हमेशा मुझे जानने के लिए कोशिश किया, और इसी बात ने उसे अपने माता-पिता से मुँह मुड़वा दिया। यह इसलिए हुआ क्योंकि, सबसे पहले, उसने यह विश्वास किया कि स्वर्ग और पृथ्वी और उसमें की सभी वस्तुएं सर्वशक्तिमान् के हाथों में हैं, और सभी सकारात्मक बातें उसी से उत्पन्न होती हैं और सीधे उसी की ओर से आती हैं, शैतान द्वारा किसी संसाधन से गुज़रे बिना। उसके माता-पिता के द्वारा विफल हुओं की तरह कार्य करने के विपरीत उदाहरण के कारण, इससे वह मेरे प्रेम एवं दया को और भी अधिक आसानी से समझने में सक्षम हो पाया, जिससे उसके भीतर मुझे खोजने की ज्वाला और भी अधिक भड़क गई। उसने न केवल बहुत ही करीबी से मेरे वचनों को खाने और पीने पर ध्यान दिया, बल्कि मेरे इरादों को समझने के लिए और भी अधिक प्रयास किया, और वह अपने विचारों में लगातार दूरदर्शी एवं सतर्क रहा, इसलिए वह अपनी आत्मा में बहुत ही उत्सुकता से हमेशा चालाक बना रहा और वह अपने हर काम में मुझे प्रसन्न करने के योग्य रहा। साधारण जीवन में, उसने उन लोगों से पाठ सीखने पर बहुत करीबी से ध्यान दिया जो अतीत में असफल रहे थे ताकि और भी महान प्रयास के लिए अपने आप को प्रेरणा देता रहे, गहराई से भयभीत कि वह कहीं उन असफलता के जाल में गिर न जाए। उसने उन लोगों के विश्वास और प्रेम को आत्मसात करने पर भी करीब से ध्यान दिया जो युगों से परमेश्वर को प्रेम करते आ रहे थे। इस प्रकार से उसने न केवल नकारात्मक रूप में, बल्कि और भी अधिक महत्वपूर्णता से, सकारात्मक रूम में अपने विकास की प्रगति को तेज़ किया, जब तक कि वह मेरी उपस्थिति में मुझे सबसे अच्छी तरह से पहचानने वाला व्यक्ति न बन गया। इसी कारण से, इस की कल्पना करना कठिन नहीं होगा कि किस प्रकार से वह अपना सब कुछ मेरे हाथों में दे पाया, यहां तक कि खाने-पीने, कपड़े पहनने, सोने या रहने में भी वह स्वयं का स्वामी नहीं रहा, परन्तु मुझे सभी बातों में संतुष्टि प्रदान की जिस बुनियाद पर वह मेरे उपहार का आनन्द ले सका। कई बार मैंने उसे परीक्षाओं में रखा, जो वास्तव में उसे अधमरा करके छोड़ा, परन्तु इन सैकड़ों परीक्षाओं के मध्य में भी, उसने कभी भी मुझमें अपने विश्वास को नहीं छोड़ा या मुझ से उसका मोह भंग नहीं हुआ। बल्कि जब मैंने कहा कि मैंने उसे पहले से ही अलग कर दिया है, उसके दिल में निराशा नहीं आई या निराशा में नहीं पड़ गया, बल्कि पहले की ही तरह अपने सिद्धांतों का पालन जारी रखा ताकि मेरे प्रति प्रेम को महसूस कर सके। जब मैंने उससे कहा कि हालांकि उसने मुझ से प्रेम किया, मैं उसकी प्रशंसा नहीं करूँगा बल्कि अंत में मैं उसे शैतान के हाथों में दे दूँगा। इन परीक्षाओं के मध्य, जो उसके देह में नहीं पहुंची परन्तु शब्दों के द्वारा परीक्षण थे, फिर भी उसने मेरे लिए प्रार्थना की: ओह, परमेश्वर! स्वर्ग, पृथ्वी और उसके असंख्य वस्तुओं के मध्य, ऐसा कोई मनुष्य है, कोई सृष्टि है, या कोई ऐसी वस्तु है सर्वशक्तिमान, जो तेरे हाथों में न हो? जब तूने मुझे दया दिखाने के लिए इच्छा करता है, मेरा हृदय तेरी दया के कारण बहुत आनन्दित होता है, हालांकि मैं उसके अयोग्य हो सकता हूँ, मैंने तेरे रहस्यमय कार्यों को और भी अधिक महसूस किया, क्योंकि तू अधिकार और बुद्धि से परिपूर्ण है। हालांकि मेरा शरीर पीड़ित हो सकता है, मैं अपनी आत्मा में चैन से हूं। मैं तेरी बुद्धि और कार्यों की प्रशंसा क्यों न करूं? यदि मैं तुझे जानने के बाद मर भी जाऊं, तो मैं उसके लिए हमेशा तैयार और इच्छित रहूंगा। ओह, सर्वशक्तिमान! निश्चय ही ऐसा नहीं है कि तू सचमुच मुझे देखने नहीं देना चाहता है? निश्चय ही ऐसा नहीं है कि मैं सच में तेरे न्याय को प्राप्त करने के अयोग्य हूँ? क्या यह सम्भव हो सकता है कि मुझ में ऐसा कुछ है जो तू नहीं देखना चाहता? इस प्रकार की परीक्षाओं के मध्य, हालांकि पतरस भी मेरे इरादों को जानने में असफल रहा, यह स्पष्ट है कि उसने मेरे द्वारा उपयोग किए जाने को गर्व और व्यक्तिगत महिमा का विषय समझा (चाहे यह केवल मेरा न्याय पाना हो ताकि मानवता मेरी महिमा और क्रोध को देख सके), और परीक्षाओं के अधीन रखे जाने पर बिल्कुल भी निरूत्साहित नहीं हुआ। मेरी उपस्थिति में उसकी वफादारी के कारण, और उस पर मेरी आशीषों के कारण, वह हज़ारों सालों के लिए मानवजाति के लिए एक उदाहरण और आदर्श बन गया है। क्या यह ऐसा उदाहरण ठीक नहीं है जिसका तुम लोगों को अनुसरण करना चाहिए? इस समय, तुम लोगों को जोर लगा कर सोचना चाहिए और यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि क्यों मैंने तुम लोगों को पतरस का इतना लम्बा वृत्तांत दिया है। यह तुम लोगों के लिए आचार संहिता के समान होना चाहिए।
हालांकि बहुत कम लोग हैं जो मुझे जानते हैं, मैं उस कारण मानवता पर अपना क्रोध नहीं निकालूँगा, क्योंकि मानवता में इतनी सारी कमियां हैं कि उनके लिए वह स्तर प्राप्त करना कठिन है जो मैं उनसे अपेक्षा करता हूँ। इसलिए, हजारों सालों से मैं मानवता के लिए उदार बना रहा हूँ, तब से लेकर आज तक मैं वैसा ही हूं। परन्तु मैं आशा करता हूं कि तुम लोग, मेरी उदारता के कारण, बहुत अधिक आनंद नहीं उठाओगे; इसके बजाए तुझे, पतरस के द्वारा, मुझे जानना चाहिए और मेरी खोज करनी चाहिए, और पतरस की सभी कहानियों के माध्यम से, अभूतपूर्व तरीके से प्रकाशमान होना चाहिए, और इस प्रकार से ऐसे क्षेत्र में पहुँच जाओगे जहाँ मानवता पहले नहीं पहुँची हो। सम्पूर्ण बह्माण्ड में, आकाश के असीमित विस्तार में और सृष्टि की असंख्य बातों में, पृथ्वी पर की असंख्य चीजों में, और स्वर्ग की असंख्य चीजों में प्रत्येक और हर कोई अपनी सम्पूर्ण शक्ति से मेरे कार्य के अंतिम भाग के लिए अपने आप को समर्पित कर रहा है। निश्चय ही तुम लोग किनारे पर दर्शक बने रहना नहीं चाहते होगे, शैतान की शक्तियों के द्वारा तितर-बितर होते हुए? शैतान लगातार उस ज्ञान का भक्षण कर रहा है, जो मनुष्य मेरे बारे में अपने हृदयों में रखते हैं, और निरंतर, दांत खोलकर और पंजों को बाहर निकालकर, अपनी मृत्यु के अंतिम समय में संघर्ष में लगा रहता है। क्या तुम लोग उसकी धोखे वाली युक्तियों में आकर इस समय पकड़े जाना चाहते हो? क्या इस समय, तुम लोग यह इच्छा करते हो कि तुम्हारे अपने जीवन को अलग-थलग कर देने के लिए, मेरे कार्य का अंतिम चरण पूरा हो जाए? तुम लोग भी निश्चय तौर पर मेरा इंतजार नहीं कर रहे होगे कि मैं एक बार फिर अपनी उदारता दिखाऊँ? मुझे जानने की कोशिश करना सबसे मुख्य बात है, परन्तु तुम लोगों को मेरी वास्तविक अभ्यास पर ध्यान देने की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। मैं सीधे तौर पर अपने वचनों के माध्यम से तुम लोगों को परिज्ञान दे रहा हूं, यह आशा करते हुए कि तुम लोग मेरे मार्गदर्शन के प्रति समर्पित होगे, और अपनी ही महत्वकांक्षाओं या इरादों को पालना छोड़ दोगे।
27 फरवरी, 1992
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