"परमेश्वर में आस्था"(5)-क्या प्रभु में विश्वास का सच प्रभु के लिए परिश्रम पूर्वक कार्य करना है?
अधिकांश विश्वासियों का मानना है कि यदि हम प्रभु का नाम लेते हैं, प्रार्थना करते है, बाइबल पढ़ते हैं और बैठकों में जाते हैं, और यदि हम वस्तुओं का त्याग करते हैं, प्रभु के लिए खर्च और कष्ट उठाकर कार्य करते हैं, तो यह प्रभु में सच्चा विश्वास है, और जब प्रभु लौटेंगे तब हम स्वर्ग के राज्य में आरोहित किए जाने में सक्षम होंगे। क्या इस प्रकार का विचार सही है? प्रभु यीशु ने कहा, “उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना : हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” (मत्ती 7: 22-23)
"मुझे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि तुम्हारी मेहनत कितनी सराहनीय है, तुम्हारी योग्यताएं कितनी प्रभावशाली हैं, तुम कितने बारीकी से मेरा अनुसरण कर रहे हो, तुम कितने प्रसिद्ध हो, या तुम कितने उन्नत प्रवृत्ति के हो; जब तक तुमने मेरी अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है, तब तक तुम मेरी प्रशंसा प्राप्त नहीं कर पाओगे। "“वचन देह में प्रकट होता है” से
चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।
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