1. परमेश्वर की आवाज़ को वास्तव मरण कैसे पहचानना चाहिए? कोई कैसे इस बात की पुष्टि कर सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (युहन्ना 10:27)।
"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (युहन्ना 16:12-13)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
देहधारी परमेश्वर के वचन एक नया युग आरंभ करते हैं, समस्त मानवजाति का मार्गदर्शन करते हैं, रहस्यों को प्रकट करते हैं, और एक नये युग में मनुष्य को दिशा दिखाते हैं। मनुष्य द्वारा प्राप्त की गई प्रबुद्धता मात्र एक आसान अभ्यास या ज्ञान है। वह समस्त मानवजाति को एक नये युग में मार्गदर्शन नहीं दे सकती है या स्वयं परमेश्वर के रहस्य को प्रकट नहीं कर सकती है। परमेश्वर आखिरकार परमेश्वर है, और मनुष्य मनुष्य ही है। परमेश्वर में परमेश्वर का सार है और मनुष्य में मनुष्य का सार है।
"वचन देह में प्रकट होता है" के लिए प्रस्तावना से
जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर का सार धारण करेगा, और जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति धारण करेगा। चूँकि परमेश्वर देहधारी हुआ, वह उस कार्य को प्रकट करेगा जो उसे अवश्य करना चाहिए, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया, तो वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है, और मनुष्यों के लिए सत्य को लाने के समर्थ होगा, मनुष्यों को जीवन प्रदान करने, और मनुष्य को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस शरीर में परमेश्वर का सार नहीं है, निश्चित रूप से वह देहधारी परमेश्वर नहीं है; इस बारे में कोई संदेह नहीं है। यह पता लगाने के लिए कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य को इसका निर्धारण उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव से और उसके द्वारा बोले वचनों से अवश्य करना चाहिए। कहने का अभिप्राय है, कि वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है या नहीं, और यह सही मार्ग है या नहीं, इसे परमेश्वर के सार से तय करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने[क] में कि यह देहधआरी परमेश्वर का शरीर है या नहीं, बाहरी रूप-रंग के बजाय, उसके सार (उसका कार्य, उसके वचन, उसका स्वभाव और बहुत सी अन्य बातें) पर ध्यान देना ही कुंजी है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी रूप-रंग को ही देखता है, उसके तत्व की अनदेखी करता है, तो यह मनुष्य की अज्ञानता और उसके अनाड़ीपन को दर्शाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" के लिए प्रस्तावना से
सबसे पहले, वह एक नए युग का मार्ग प्रशस्त करने में समर्थ है; दूसरा, वह मनुष्य का जीवन प्रदान करने और अनुसरण करने का मार्ग मनुष्य को दिखाने में समर्थ है। यह इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वह परमेश्वर स्वयं है। कम से कम, जो कार्य वह करता है वह पूरी तरह से परमेश्वर का आत्मा का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और ऐसे कार्य से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का आत्मा उसके भीतर है। चूँकि देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य मुख्य रूप से नए युग का सूत्रपात करना, नए कार्य की अगुआई करना और नई परिस्थितियों को पैदा करना था, इसलिए ये कुछ स्थितियाँ अकेले ही यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वह परमेश्वर स्वयं है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर" से
… यह पता करना कठिन नहीं है कि परमेश्वर का अधिकार और पहचान परमेश्वर के कथनों में स्पष्टता से प्रकाशित है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर ने कहा "मेरी वाचा तेरे साथ बनी रहेगी, इसलिए तू … मैं ने तुझे ठहरा दिया … मैं तुझे बनाऊँगा" जैसे वाक्यांश "तू बनेगा" और "मैं करूँगा," जिसके वचन परमेश्वर की पहचान और अधिकार के दृढ़ निश्चय को लिए हुए हैं, और एक मायने में, सृष्टिकर्ता की विश्वासयोग्यता का संकेत है; दूसरे मायने में, वे परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए विशिष्ट वचन हैं, जिनमें सृष्टिकर्ता की पहचान है—साथ ही साथ रूढ़िगत शब्दावली का एक भाग भी है। ...
... इन वचनों को परमेश्वर के मुँह से कहा गया था, और परमेश्वर के वचनों में सामर्थ, प्रताप, और अधिकार है। ऐसी शक्ति और अधिकार को, और प्रमाणित तथ्यों की पूर्णता की अनिवार्यता को, किसी भी सृजे गए प्राणी और न सृजे गए प्राणी द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है, और न ही कोई सृजा प्राणी और न अनसृजा प्राणी उससे बढ़कर उत्कृष्ट हो सकता है। केवल सृष्टिकर्ता ही मानवजाति के साथ ऐसे अन्दाज़ और ऊँची और नीची आवाज़ में बात कर सकता है, और प्रमाणित तथ्यों ने साबित किया है कि उसकी प्रतिज्ञाएँ खोखले शब्द, या बेकार की घमण्ड की बातें नहीं हैं, परन्तु अद्वितीय अधिकार का प्रदर्शन हैं जिस से कोई व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ बढ़कर नहीं हो सकता है।
... जब परमेश्वर के मुख से ऐसे वचन बोले जाते हैं, तो वे परमेश्वर के सच्चे स्वभाव का प्रकाशन एवं प्रकटीकरण होते हैं, वे परमेश्वर की हस्ती एवं अधिकार का एक पूर्ण प्रकाशन एवं प्रदर्शन होते हैं, और ऐसा कुछ भी नहीं है जो परमेश्वर की पहचान के प्रमाण के रूप में कहीं अधिक सही और उचित होता है। बोले गए ऐसे कथनों की रीति, अन्दाज़, और शब्द सृष्टिकर्ता की पहचान के बिलकुल उचित चिन्ह हैं, और परमेश्वर की खुद की पहचान के प्रकटीकरण से पूरी तरह से मेल खाते हैं, और उसमें कोई झूठा दिखावा, या अशुद्धता नहीं है; वे पूरी और सम्पूर्ण रीति से सृष्टिकर्ता के अधिकार और हस्ती का पूर्ण प्रदर्शन हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I" से
परमेश्वर का वचन वास्तव में परमेश्वर के स्वभाव का एक प्रकटन है। आप परमेश्वर के वचन से मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति का उद्धार, और जिस तरह से वे उन्हें बचाते हैं उसे देख सकते हैं … क्योंकि परमेश्वर का वचन, परमेश्वर के द्वारा उसे लिखने हेतु मनुष्य के उपयोग के विपरीत, परमेश्वर के द्वारा ही प्रकट होता है। यह व्यक्तिगत रूप में परमेश्वर के द्वारा प्रकट किया जाता है। यह स्वयं परमेश्वर है जो अपने स्वयं के वचनों और अपने भीतर की आवाज़ को प्रकट कर रहा है। हम उन्हें हार्दिक वचन क्यों कहते हैं? क्योंकि वे बहुत गहराई से निकलते हैं, और परमेश्वर के स्वभाव, उनकी इच्छा, उनके विचारों, मानवजाति के लिए उनके प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति उद्धार, तथा मानवजाति से उनकी अपेक्षाओं को प्रकट कर रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के बीच कठोर वचन, शांत एवं कोमल वचन, कुछ विचारशील वचन हैं, और कुछ प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचन हैं जो अमानवीय हैं। यदि आप केवल प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचनों को देखेंगे, तो आप महसूस करेंगे कि परमेश्वर काफी कठोर है। यदि आप केवल शांत एवं कोमल पहलु को देखेंगे, तो ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर के पास ज़्यादा अधिकार नहीं है। इसलिए इस विषय में आपको सन्दर्भ से बाहर होकर नहीं समझना चाहिए। आपको इसे हर एक कोण से अवश्य देखना चाहिए। कभी-कभी परमेश्वर शांत एवं करुणामयी दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम को देखते हैं; कभी-कभी वह कठोर दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग परमेश्वर के अपमान न किए जा सकने योग्य स्वभाव को देखते हैं। मनुष्य विलापनीय ढंग से गंदा है और परमेश्वर के मुख को देखने के योग्य नहीं है, और परमेश्वर के सामने आने के योग्य नहीं है। लोगों का परमेश्वर के सामने आना अब पूरी तरह परमेश्वर के अनुग्रह से ही है। जिस तरह परमेश्वर कार्य करता है और उसके कार्य के अर्थ से परमेश्वर की बुद्धि को देखा जा सकता है। भले ही लोग परमेश्वर के सम्पर्क में न आएँ, तब भी वे परमेश्वर के वचनों में इन चीज़ों को देखने में सक्षम होंगे।
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से "देहधारण का ज्ञान" से
इस बार, परमेश्वर कार्य करने आत्मिक देह में नहीं, बल्कि एक एकदम साधारण देह में आया है। यह न केवल परमेश्वर के दूसरी बार देहधारण की देह है, बल्कि यह वही देह है जिसमें वह लौटकर आया है। यह बिलकुल साधारण देह है। इस देह में दूसरों से अलग कुछ भी नहीं है, परंतु तुम उससे वह सत्य ग्रहण कर सकते हो जिसके विषय में तुमने पहले कभी नहीं सुना होगा। यह तुच्छ देह, परमेश्वर के सभी सत्य-वचन का मूर्त रूप है, जो अंत के दिनों में परमेश्वर का काम करती है, और मनुष्यों के जानने के लिये यही परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव की अभिव्यक्ति है। क्या तुमने परमेश्वर को स्वर्ग में देखने की प्रबल अभिलाषा नहीं की? क्या तुमने स्वर्ग में परमेश्वर को समझने की प्रबल अभिलाषा नहीं की? क्या तुमने मनुष्य जाति के गंतव्य को जानने या समझने की प्रबल अभिलाषा नहीं की? वह तुम्हें वो सभी अकल्पनीय रहस्य बतायेगा, जो कभी कोई इंसान नहीं बता सका, और तुम्हें वो सत्य भी बतायेगा जिन्हें तुम नहीं समझते। वह परमेश्वर के राज्य में तुम्हारे लिये द्वार है, नये युग में तुम्हारा मार्गदर्शक है, ऐसा साधारण देहधारी असीम, अथाह रहस्यों को समेटे हुये है। संभव है कि उसके कार्यों को तुम समझ न पाओ, परंतु उसके सभी कामों का लक्ष्य, तुम्हें इतना बताने के लिये पर्याप्त है कि वह कोई साधारण देह नहीं है, जैसा लोग मानते हैं। क्योंकि वह परमेश्वर की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही साथ अंत के दिनों में मानवजाति के प्रति परमेश्वर की परवाह को भी दर्शाता है। यद्यपि तुम उसके द्वारा बोले गये उन शब्दों को नहीं सुन सकते, जो आकाश और पृथ्वी को कंपाते से लगते हैं, या उसकी ज्वाला सी धधकती आंखों को नहीं देख सकते, और यद्यपि तुम उसके लौह दण्ड के अनुशासन का अनुभव नहीं कर सकते, तुम उसके शब्दों में परमेश्वर के क्रोध को सुन सकते हो, और जान सकते हो कि परमेश्वर समस्त मानवजाति पर दया दिखाता है; तुम परमेश्वर के धार्मिकतायुक्त स्वभाव और उसकी बुद्धि को समझ सकते हो, और इसके अलावा, समस्त मानवजाति के लिये परमेश्वर की चिंता और परवाह को समझ सकते हो।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "क्या तुम जानते हो? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक बहुत बड़ा काम किया है" से
वह कार्य और वह सब कुछ जिसे मनुष्य परमेश्वर के बारे में पृथ्वी पर देखता है वह अलौकिक है। जो कुछ तुम अपनी आँखों से देखते हो और जो कुछ तुम अपने कानों से सुनते हो वे सब अलौकिक हैं, क्योंकि उसका कार्य और उसके वचन मनुष्य के लिए अबोधगम्य और अप्राप्य है। यदि स्वर्ग की किसी चीज़ को पृथ्वी पर लाया जाता है, तो वह अलौकिक होने के सिवाए कोई अन्य चीज़ कैसे हो सकती है? स्वर्ग के राज्य के रहस्यों को पृथ्वी पर लाया गया था, ऐसे रहस्य जो मनुष्य के लिए अबोधगम्य और अगाध थे, जो बहुत चमत्कारिक और बुद्धिमत्तापूर्ण हैं—क्या वे सब अलौकिक नहीं थे? … देहधारी परमेश्वर के द्वारा इस दिन किया जाने वाला कौन सा कार्य अलौकिक नहीं है? उसके वचन तुम्हारे लिए अबोधगम्य और अप्राप्य हैं, और उसका कार्य किसी भी व्यक्ति के द्वारा नहीं किया जा सकता है। जो उसकी समझ में है वह मनुष्य द्वारा नहीं समझा जा सकता है, और न ही मनुष्य जान सकता है कि उसका ज्ञान कहाँ से है। कुछ कहते हैं, कि मैं भी तुम्हारे जैसा साधारण हूँ, तो ऐसा कैसे है कि मैं वह नहीं जानता हूँ जो तुम जानते हो? मैं अनुभव में बड़ा और समृद्ध हूँ, फिर भी तुम वह कैसे जान सकते हो जो मैं नहीं जानता हूँ? यह सब मनुष्य के लिए अप्राप्य है। यहाँ तक कि ऐसे लोग भी हैं जो आश्चर्य करते हैं: इस्राएल में किए गए कार्य को वास्तव में कोई भी नहीं जानता है; तुम्हें कैसे पता चला? यहाँ तक कि बाइबल के प्रतिपादक भी स्पष्टीकरण नहीं दे सकते हैं; तुम्हें कैसे पता चला? क्या ये सभी अलौकिक मामले नहीं हैं? उसने किसी अद्भुत काम का अनुभव नहीं किया है, फिर भी वह सब जानता है और वचन उस तक अत्यधिक आसानी के साथ आता है। क्या यह अलौकिक नहीं है? उसका कार्य उस से अधिक है जो देह के लिए प्राप्य है। ऐसा कार्य केवल किसी भी देह के विचार से प्राप्त नहीं किया जा सकता है और मनुष्य के मन और तर्क के लिए पूरी तरह से अचिंतनीय है। यद्यपि उसने कभी भी बाइबल नहीं पढ़ी, फिर भी वह इस्राएल में परमेश्वर के कार्य को समझता है। और यद्यपि जब वह बोलता है तो वह पृथ्वी पर खड़ा होता है, किन्तु वह तीसरे स्वर्ग के रहस्यों की बात करता है। जब मनुष्य इन वचनों पर विचार करता है, तो एक भावना मनुष्य को वशीभूत कर लेती है, "क्या यह तीसरे स्वर्ग की भाषा नहीं है?" क्या ये सभी ऐसे मामले नहीं हैं जो सामान्य व्यक्ति के द्वारा प्राप्त किए जाने से अधिक हैं?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (1)" से
वह मनुष्य के सार-तत्व से अच्छी तरह से परिचित है, वह सभी प्रकार के अभ्यास को प्रगट कर सकता है जो सब प्रकार के लोगों से सम्बन्धित होते हैं। वह मानव के भ्रष्ट स्वभाव एवं विद्रोही आचरण को भी बेहतर ढंग से प्रगट कर सकता है। वह सांसारिक लोगों के मध्य नहीं रहता है, परन्तु वह नश्वर मनुष्यों के स्वभाव और सांसारिक लोगों की समस्त भ्रष्टता से भली भांति अवगत है। वह ऐसा ही है। हालाँकि वह संसार के साथ व्यवहार नहीं करता है, फिर भी वह संसार के साथ व्यवहार करने के नियमों को जानता है, क्योंकि वह मानवीय स्वभाव को पूरी तरह से समझता है। वह वर्तमान एवं अतीत दोनों के आत्मा के कार्य के विषय में जानता है जिसे मनुष्य की आंखें नहीं देख सकती हैं जिसे मनुष्य के कान नहीं सुन सकते हैं। इसमें बुद्धि शामिल है जो जीवन का दर्शनशास्त्र एवं आश्चर्य नहीं है जिसकी गहराई नापना मनुष्य को कठिन जान पड़ता है। वह ऐसा ही है, लोगों के लिए खुला और साथ ही लोगों से छिपा हुआ भी है। जो कुछ वह अभिव्यक्त करता है वह ऐसा नहीं है जैसा एक असाधारण मनुष्य होता है, परन्तु अंतर्निहित गुण एवं आत्मा का अस्तित्व है। वह संसार भर में यात्रा नहीं करता है परन्तु उसके विषय में हर एक चीज़ को जानता है। वह "वन-मानुषों" के साथ सम्पर्क करता है जिनके पास कोई ज्ञान या अंतर्दृष्टि नहीं है, परन्तु वह ऐसे शब्दों को व्यक्त करता है जो ज्ञान से ऊँचे और महान मनुष्यों से ऊपर हैं। वह कम समझ एवं सुन्न लोगों के समूह के मध्य रहता है जिनके पास मानवता नहीं है और जो मानवीय परम्पराओं एवं जीवनों को नहीं समझते हैं, परन्तु वह मानवजाति से सामान्य मानवता को जीने के लिए कह सकता है, ठीक उसी समय वह मानवजाति के नीच एवं घटिया मनुष्यत्व को प्रगट करता है। यह सब कुछ वही है जो वह है, वह किसी भी मांस और लहू के व्यक्ति की अपेक्षा अधिक ऊँचा है। उसके लिए, यह जरुरी नहीं है कि वह उस काम को करने के लिए जिसे उसे करने की आवश्यक है जटिल, बोझिल एवं पतित सामाजिक जीवन का अनुभव करे और भ्रष्ट मानवजाति के सार-तत्व को पूरी तरह से प्रगट करे। ऐसा पतित सामाजिक जीवन उसकी देह को उन्नत नहीं करता है। उसके कार्य एवं वचन मनुष्य केआज्ञालंघन को ही प्रगट करते हैं और संसार के साथ निपटने के लिए मनुष्य को अनुभव एवं शिक्षाएं प्रदान नहीं करते हैं। जब वह मनुष्य को जीवन की आपूर्ति करता है तो उसे समाज या मनुष्य के परिवार की जांच पड़ताल करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। मनुष्य का खुलासा एवं न्याय करना उसकी देह के अनुभवों की अभिव्यक्ति नहीं है; यह लम्बे समय तक मनुष्य के आज्ञालंघन को जानने के बाद उसकी अधार्मिकता को प्रगट करने और मानवता के भ्रष्ट स्वभाव से घृणा करने के लिए है। वह कार्य जिसे परमेश्वर करता है वह मनुष्य पर अपने स्वभाव को पूरी तरह से प्रगट करने और अपने अस्तित्व को अभिव्यक्त करने के लिए है। केवल वही इस कार्य को कर सकता है, यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे मांस और लहू का व्यक्ति हासिल कर सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
जब लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं, तो उसके विषय में उनका पहला ज्ञान यह है कि वह अथाह, बुद्धिमान एवं अद्भुत है, और वे अवचेतन रूप से उसका आदर करते हैं और उस कार्य के रहस्य का एहसास करते हैं जिसे उसने किया है, जो मनुष्य के दिमाग की पहुंच से परे है। लोग बस यही चाहते हैं कि वे परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने, और उसकी इच्छाओं को संतुष्ट करने के योग्य हो जाएं; वे उससे बढ़कर होने की इच्छा नहीं करते हैं, क्योंकि जो कार्य परमेश्वर करता है वह मनुष्य की सोच एवं कल्पना से परे चला जाता है और मनुष्य के द्वारा नहीं किया जा सकता है। यहाँ तक कि मनुष्य भी अपनी स्वयं की कमियों को नहीं जानता है, जबकि परमेश्वर ने एक नए मार्ग को खोला है और वह मनुष्य को एक बिलकुल नए एवं अधिक खूबसूरत संसार में ले जाने के लिए आया है, जिससे मानवजाति ने नई प्रगति की है और उसकी एक नई शुरुआत हुई है। जो कुछ मनुष्य उसके लिए महसूस करता है वह सराहना नहीं है, या फिर, यह सिर्फ सराहना नहीं है। उनका अत्यंत गहरा अनुभव भय-मिश्रित आदर एवं प्रेम है, और उनकी भावना यह है कि परमेश्वर वास्तव में अद्भुत है। वह ऐसा कार्य करता है जिसे करने में मनुष्य असमर्थ है, वह ऐसी बातें बोलता है जिसे बोलने में मनुष्य असमर्थ है। ऐसे लोग जिन्होंने उसके कार्य का अनुभव किया है वे हमेशा अवर्णनीय एहसास का अनुभव करते हैं। ऐसे लोग जिनके पास अत्यंत गहरे अनुभव हैं वे विशेष रूप से परमेश्वर से प्रेम करते हैं। वे हमेशा उसकी मनोरमता को महसूस करते हैं, और यह महसूस करते हैं कि उसका कार्य कितना बुद्धिमत्तापूर्ण, एवं कितना अद्भुत है, और इसके परिणामस्वरूप यह उनके मध्य असीमित सामर्थ उत्पन्न करता है। यह डर या कभी कभार का प्रेम एवं आदर नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के लिए परमेश्वर की करुणा एवं सहिष्णुता का गहरा एहसास है। हालांकि, ऐसे लोग जिन्होंने उसकी ताड़ना एवं न्याय का अनुभव किया है वे महसूस करते हैं कि वह प्रतापी एवं अनुल्लंघनीय है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
उसके वचनों में जीवन की सामर्थ्य है, और उसके शब्द हमें वह मार्ग दिखाते हैं जिन पर हमें चलना चाहिए, और हमें समझने देते हैं कि सत्य क्या है। हम उसके वचनों की ओर खिंचना शुरू कर देते हैं, हम उसके लहजे और तरीके पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं और अवचेतन मन में इस साधारण व्यक्ति के हृदय की आवाज में रुचि लेना आरंभ कर देते हैं। हमारी मंज़िल और उद्धार के लिए, वह हमारे लिए श्रमसाध्य प्रयास करता है, नींद और भोजन गँवा देता है, हमारे लिए रोता है, हमारे लिए आँहें भरता है, हमारे लिए बीमारी में कराहता है, अपमान सहता है, और हमारी संवेदनहीनता और विद्रोहीपन के कारण उसका हृदय लहूलुहान होता है और आँसू बहाता है; उसका यह व्यक्तित्व और आधिपत्य एक साधारण मनुष्य से बढ़ कर है, और कोई भी भ्रष्ट मनुष्य उन्हें धारण कर या पा नहीं सकता है। उसमें जो सहनशीलता और धैर्य है, वह किसी साधारण मनुष्य में नहीं हो सकता है, और उसके जैसा प्रेम किसी सृजित प्राणी में नहीं हो सकता है। उसके अलावा अन्य कोई भी हमारे सभी विचारों को नहीं जान सकता है, या हमारे स्वभाव और सार को नहीं समझ सकता है, या मानवजाति के विद्रोहीपन और भ्रष्टता का न्याय कर सकता है, या स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से हमसे बातचीत या हमारे बीच में कार्य कर सकता है। उसके अलावा अन्य कोई परमेश्वर के अधिकार, विवेक और प्रतिष्ठा को धारण नहीं कर सकता है; परमेश्वर का स्वभाव और उसके पास क्या है और जो वह है, अपनी संपूर्णता में, प्रवाहित होते हैं। उसके अलावा कोई अन्य हमें मार्ग दिखा या प्रकाश तक ले जा नहीं सकता है। उसके अलावा कोई अन्य परमेश्वर के उन रहस्यों को प्रकट नहीं कर सकता है जिन्हें परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ से अब तक प्रकट नहीं किया है। उसके अलावा कोई अन्य हमें शैतान के बंधन और हमारे भ्रष्ट स्वभाव से बचा नहीं सकता है। वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और परमेश्वर के हृदय की आवाज़, परमेश्वर के सभी प्रोत्साहनों, और मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर के न्याय के सभी वचनों को व्यक्त करता है। उसने एक नया युग, एक नया काल आरंभ किया है, और वह एक नया स्वर्ग और पृथ्वी, नया काम लाया है, और वह हमारे लिए नई आशा लाया है, और हमारे उस जीवन का अंत किया है जिसे हम अस्पष्टता में जी रहे थे, और हमें उद्धार के मार्ग को पूर्ण रूप से देखने दिया है। उसने हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व को जीता है, हमारे हृदयों को जीता है। उस क्षण के बाद से, हमारे मन सचेत हो गए हैं, और हमारी आत्माएँ पुर्नजीवित होती हुई प्रतीत होने लगी हैं: यह साधारण, महत्वहीन व्यक्ति, जो हमारे बीच में रहता है, जिसे हमने लंबे समय तक तिरस्कृत किया है—क्या वह प्रभु यीशु नहीं हैं; जो सदैव हमारे विचारों में हैं और जिसके लिए हम रात-दिन लालायित रहते हैं? यह वही है! यह वास्तव में वही है! वह हमारा परमेश्वर है! वह सत्य, मार्ग, और जीवन है!
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के प्रकटन को उनके न्याय और ताड़ना में देखना" से
फुटनोट्स:
क. मूलपाठ में "के लिए" पढा जाता है।
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