प्रश्न 2: तुम यह प्रमाणित करते हो कि परमेश्वर ने देह-धारण किया है और अंतिम दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए मनुष्य का पुत्र बन चुका है, और फिर भी अधिकांश धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि परमेश्वर बादलों के साथ लौटेगा, और वे इसका आधार मुख्यतः बाइबल की इन पंक्तियों पर रखते हैं: "यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा"। (प्रेरितों, 1:11)। "देखो, वह बादलों के साथ आने वाला है; और हर एक आँख उसे देखेगी" (प्रकाशित वाक्य 1:7)। और इसके अलावा, धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों ने हमें यह भी निर्देश दिया है कि कोई भी प्रभु यीशु जो बादलों के साथ नहीं आता है, वह झूठा है और उसे छोड़ दिया जाना चाहिए। इसलिए हम निश्चित नहीं हो पा रहे हैं कि यह नज़रिया बाइबल के अनुरूप है या नहीं; इसे सच मान लेना उचित है या नहीं?
उत्तर:
जब प्रभु के लिए बादलों के साथ अवतरण की प्रतीक्षा करने की बात आती है, हमें मनुष्यों के विचारों और कल्पनाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए! फरीसियों ने मसीहा के आगमन की प्रतीक्षा करने में बड़ी गलती की थी। उन्होंने निश्चित रूप से मनुष्य के विचारों और कल्पनाओं के अनुसार प्रभु यीशु को आंका जो कि पहले ही आ चुके थे। अंत में, उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया था। क्या यह एक तथ्य नहीं है? क्या प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा करना इतना ही सरल है जितना कि हम सोचते हैं? यदि प्रभु वापस आते हैं और मनुष्यों के बीच उसी तरह कार्य करते हैं जैसे प्रभु यीशु ने देह में किया था, और हम उन्हें पहचानते नहीं है, तो क्या हम भी फरीसियों के समान उनकी आलोचना और निंदा करेंगे और उन्हें फिर से सूली पर चढ़ा देंगे? क्या यह एक संभावना है? प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वे वापस आएंगे और इसके बारे में कई वचन कहे थे, लेकिन आप केवल उस भविष्यवाणी को पकड़े हैं कि प्रभु बादलों के साथ अवतरित होंगे और प्रभु द्वारा कही गयी अन्य महत्वपूर्ण भविष्यवाणियों की खोज या जांच नहीं करते हैं। इससे गलत रास्ते पर चलना और प्रभु द्वारा त्याग दिया जाना आसान बनता है! वास्तव में बाइबल में सिर्फ "बादलों के साथ अवतरित होने" की भविष्यवाणी ही नहीं है। ऐसी कई भविष्यवाणियां भी हैं जैसे प्रभु चोर के रूप में आएंगे और गुप्त रूप से अवतरित होंगे। उदाहरण के लिए, प्रकाशितवाक्य 16:15, "देख, मैं चोर के समान आता हूँ।" मत्ती 25:6, "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।'" और प्रकाशितवाक्य 3:20: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ: यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर, उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।" ये सभी भविष्यवाणियां परमेश्वर के मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करने और उनके गुप्त रूप से अवतरित होने को दर्शाती हैं। "एक चोर के रूप" में का मतलब है चुपके से गुप्त रूप से आना। लोगों को पता नहीं होगा कि वे परमेश्वर हैं, भले ही वे उन्हें देखते या सुनते हैं, जैसे पहले था जब प्रभु यीशु प्रकट हुए थे और अपना कार्य किया था। बाहर से, प्रभु यीशु सिर्फ एक साधारण मनुष्य के पुत्र थे और कोई नहीं जानता था कि वे परमेश्वर हैं, यही कारण है कि प्रभु यीशु ने मनुष्य के पुत्र के स्वरूप और कार्य के लिए "चोर के रूप" की उपमा का प्रयोग किया। यह बहुत उपयुक्त है! जो लोग सच्चाई से प्यार नहीं करते, उन्हें देहधारी परमेश्वर के कोई भी वचन, कार्य अथवा उनके द्वारा व्यक्त किए सत्य स्वीकार नहीं होते। बल्कि, वे देहधारी परमेश्वर को एक सामान्य व्यक्ति के रूप में देखते हैं और उनकी निंदा करते हैं और उन्हें त्याग देते हैं। यही कारण है कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि जब वे वापस लौटेंगे: "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर, आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। प्रभु की भविष्यवाणी के आधार पर, उनकी वापसी "मनुष्य के पुत्र का आगमन" होगी। "मनुष्य के पुत्र" का संदर्भ देहधारी परमेश्वर से है, न कि पुनर्जीवित प्रभु यीशु के आध्यात्मिक शरीर के बादलों के साथ सभी लोगों के सामने प्रत्यक्ष अवतरण से। ऐसा क्यों है? चलिए इसके बारे में विचार करें। यदि पुनर्जीवित प्रभु यीशु का आध्यात्मिक शरीर सार्वजनिक रूप से अवतरित होता, तो यह अत्यधिक शक्तिशाली होता और विश्व को अचंभित कर देता। हर कोई जमीन पर गिर जाता और कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं करता। उस स्थिति में, क्या वापस लौटे प्रभु यीशु को तब भी बहुत अधिक पीड़ा सहन करनी होगी और वे इस पीढ़ी द्वारा अस्वीकार कर दिए जाएंगे? बेशक नहीं। यही कारण है कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि उनकी वापसी "मनुष्य के पुत्र का आगमन" और "चोर के रूप में" होगी। वास्तविकता में, यह परमेश्वर का मनुष्य के पुत्र के रूप में गुप्त रूप से देहधारण करने को दर्शा रहा है।
तो मनुष्य के पुत्र का गुप्त रूप से अवतरित होकर अपने कार्य करने और परमेश्वर के प्रत्यक्ष रूप से बादलो के साथ अवतरित होने के बीच क्या सम्बन्ध है? इस प्रक्रिया में क्या शामिल है? चलिए उस बारे में सरलता से चर्चा करते हैं। अंत के दिनों में, परमेश्वर देहधारी होते हैं और अपने वचन सुनाने के लिए लोगों के बीच गुप्त रूप से अवतरित होते हैं, परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए न्याय के कार्य करते हैं, जो लोग उनकी वाणी सुनते हैं और उनके सिंहासन के सामने लौटते हैं, उनको शुद्ध और सिद्ध करते हैं और उन्हें विजयी लोगों का समूह बनाते हैं। तब परमेश्वर भीषण आपदा लाते हैं, उन सभी को जो अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय को स्वीकार नहीं करते हैं, उनको शुद्ध करते हैं और ताड़ना देते हैं। इसके बाद, परमेश्वर सभी मनुष्यों के सामने प्रत्यक्ष तौर पर प्रकट होने के लिए बादलों के साथ अवतरित होंगे। यह तब पूरी तरह से प्रकाशितवाक्य 1:7 की भविष्यवाणी को पूरा करेगा: "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है; और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे: और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे।" जब प्रभु बादलों के साथ अवतरित होते हैं तो जिन्होंने उन्हें बींधा था वे भी उन्हें क्यों देख सकते हैं। वे कौन लोग हैं जिन्होंने उन्हें बींधा था? कुछ लोग कहते हैं कि ये वही लोग हैं जिन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया था। क्या यह वास्तव में ऐसा है? क्या जिन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया था उन लोगों को परमेश्वर ने पहले ही शापित और नष्ट नहीं कर दिया था? वास्तविकता में, उनको बींधने वाले लोग वे हैं जो, उस अवधि में जब देहधारी परमेश्वर अंत के दिनों में कार्य करने के लिए गुप्त रूप से अवतरित हुए, तब परमेश्वर की वाणी की खोज नहीं करते और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और उनका विरोध करते हैं। उस समय, वे उस सर्वशक्तिमान परमेश्वर को देखेंगे कि जिनका उन्होंने विरोध और निंदा की है वह वास्तव में वही उद्धारकर्ता यीशु है, जिनका वे इन सभी वर्षों से व्याकुलता से इंतजार करते रहे हैं। वे अपनी छाती पीटेंगे, रोयेंगे और अपने दाँत पीसेंगे, और उनका परिणाम केवल सज़ा ही हो सकता है। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक यह नहीं कहती कि अंत में ऐसे लोग जीवित रहते हैं या मर जाते हैं, इसलिए हम संभवत: जान नहीं सकते। केवल परमेश्वर जानते हैं। यहाँ तक, सभी को स्पष्ट होना चाहिए। केवल बुद्धिमान कुंवारियां जो परमेश्वर की वाणी सुनती हैं प्रभु की वापसी का स्वागत करने का अवसर प्राप्त कर सकती हैं, मेमने की शादी के भोज में भाग लेने के लिए परमेश्वर के सिंहासन के सामने लायी जा सकती हैं, और परमेश्वर द्वारा एक विजयी के रूप में सिद्ध की जा सकती हैं। यह प्रकाशितवाक्य 14:4 की भविष्यवाणी को पूरा करता है, "ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं। ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं। ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।" जहाँ तक उन लोगों की बात है जो केवल इस धारणा को मानते हैं कि प्रभु बादलों के साथ अवतरित होंगे, लेकिन अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की खोज और जांच नहीं करते हैं, उन्हें मूर्ख कुंवारी माना जाता है। खासकर वे लोग जो क्रोधावेश में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध करते हैं और उनकी निंदा करते हैं, वे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य से उजागर किये गए फरीसी और यीशु-विरोधी हैं। वे सभी वे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर को फिर से सूली पर चढ़ाया है। ये सभी लोग भीषण आपदाओं में गिर जाएंगे और दंड प्राप्त करेंगे। हमारी चर्चा के इस बिंदु पर, क्या गलती है उन लोगों की जो केवल बादलों के साथ अवतरित होने वाले प्रभु का स्वागत करते हैं, वे किस प्रकार के लोग हैं, और उनका परिणाम क्या होगा, ये वही बातें हैं जिनके बारे में मैं विश्वास करता हूं, सभी को स्पष्ट होनी चाहिए।
आइए देखते हैं कि कैसे फरीसियों ने मसीहा के आगमन का इंतज़ार किया और क्यों उन्होने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया आरंभ में यहूदी फरीसी, मसीहा के विषय में अवधारणाओं और कल्पनाओं से भरे हुए थे। उन्होंने बाइबल की भविष्यवाणी देखी थी: "क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है: और प्रभुता उसके काँधे पर होगी" (यशायाह 9:6)। "हे बैतलहम एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हज़ारों में गिना नहीं जाता, तौ भी तुझ में से मेरे लिये एक पुरुष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन् अनादि काल से होता आया है" (मीका 5:2)। बाइबल की भविष्यवाणियों और मसीहा के आगमन के विषय की दीर्घकाल की कल्पनाओं एवं अनुमानों के आधार पर, फरीसियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि निश्चित ही प्रभु मसीहा कहलाएंगे और यकीनन एक दौलतमंद परिवार में जन्म लेंगे। आगे, वे दाऊद जैसे होंगे यरूशलेम के राजा बनेंगे, और उनको रोमन शासन से अलग होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। अधिकांश यरूशलेम वासी इसी प्रकार की अवधारणा रखते थे। परंतु परमेश्वर ने उनकी अवधारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार इन भविष्यवाणियों की पूर्ति नहीं की, इस लिए फरीसियों ने प्रभु यीशु के खिलाफ सभी प्रकार के आरोपों को खोजने की कोशिश की और प्रभु यीशु का तिरस्कार और निंदा करी। भले ही प्रभु यीशु ने उस समय कई सत्य व्यक्त किए और चमत्कार दिखाए, परमेश्वर की पूर्ण सामर्थ्य और शक्ति का प्रदर्शन किया, फरीसियों ने प्रभु यीशु के अथाह वचनों की गंभीरता और उनकी महान सामर्थ्य की कोई परवाह नहीं की। जब तक वो उनकी अवधारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप नहीं होते, जब तक वे दौलतमंद परिवार में पैदा न हुए होते और उनका अवतार महान और प्रतिष्ठित न होता, जब तक उनका नाम मसीहा न होता, वे उनकी निंदा और विरोध करते। अपने सत्य से घृणा करने वाले स्वभाव के कारण, उन्होंने सत्य अभिव्यक्त कर उद्धार का कार्य करने वाले प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया! भाइयों और बहनों, क्या फरीसी घृणा के लायक हैं? क्या उन्हें शापित करना चाहिए! प्रभु यीशु का विरोध और उनकी निंदा करने के फरीसियों के पापों ने उनके सत्य से घृणा और नफ़रत करने वाले शैतानी स्वभाव को पूरी तरह से उजागर कर दिया है। इससे पता चलता है कि कि उनके हृदय मसीहा द्वारा उनको पापों से बचाए जाने को लेकर आशान्वित नहीं थे, बल्कि इसके बजाय उनकी आशा क्या थी? वे चाहते थे कि यहूदियों का राजा उन्हें रोमन सरकार के शासन से छुटकारा दिला दे, ताकि उन्हें गुलामी जैसा कष्ट न भोगना पड़े! उन्हें परमेश्वर में विश्वास था और वे मसीहा के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति और अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करना चाहते थे। आइए इसके बारे में सोचते हैं। यीशु के आने की प्रतीक्षा करने में फरीसियों ने कौन सी गलतियां की? वे परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित क्यों हुए? यह बात वाकई विचार करने लायक है! जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आए तो क्यों फरीसियों ने उनका विरोध किया और उनकी निंदा की? फरीसियों की कौन सी प्रकृति और गुण यहां प्रदर्शित हुए? ये ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें परमेश्वर के प्रकटन की चाह रखने वाले लोगों को समझना चाहिए! अगर हम इन समस्याओं के परे ही नहीं देख पाते हैं, तो जब प्रभु यीशु के पुनरागमन पर उनका स्वागत करने की बात आएगी, तब शायद हम भी उसी प्रकार परमेश्वर विरोधी मार्ग पर चले जाएंगे जैसा फरीसियों ने किया! क्या ये सही नहीं है?
फरीसियों ने मसीहा के आने का इंतजार कैसे किया था? उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर क्यों चढ़ा दिया? इन सवालों का स्रोत क्या है? आइए देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का क्या कहना है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका मूल जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। और तो और, उन्होंने केवल इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, मगर जीवन के सत्य की खोज नहीं की। और इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं, क्यों उन्हें जीवन के मार्ग का कुछ भी ज्ञान नहीं है, और ना ही जानते हैं कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग कैसे कहते हो कि ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा को नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु के द्वारा कहे गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे, और, ऊपर से, क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और क्योंकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था, और कभी भी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने गलती की सिर्फ़ मसीह के नाम को खोखला सम्मान देने की जबकि किसी न किसी ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी मूल रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत है: इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, तुम मसीह नहीं हो जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता। क्या ये दृष्टिकोण मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद नहीं हैं?" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा" से) सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मसीहा के इंतजार में प्रभु यीशु के प्रति फरीसियों के विरोध का सार और स्रोत अब हमें पूरी तरह से स्पष्ट हो जाना चाहिए। इसलिए, प्रभु की वापसी का स्वागत करने के संबंध में, अगर मनुष्य उनकी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा करता है, और मूर्खों की तरह सिर्फ प्रभु के बादलों के साथ अवतरित होने का इंतजार करता रहता है, बजाए इसके कि सत्य की खोज की जाए और परमेश्वर की आवाज को सुना जाए, तो क्या वे भी फरीसियों की तरह परमेश्वर का विरोध करने के उसी मार्ग पर नहीं चलने लगेंगे? तो फिर उनका परिणाम क्या होगा? लगता है सभी को यह बात समझ में आ गई है।
अब, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार 20 वर्षों से भी अधिक समय से पूरे मेनलैंड चीन में फ़ैल रहा है। यह काफी समय से विभिन्न पंथों और संप्रदायों में फ़ैल रहा है। इस अवधि के दौरान, सीसीपी सरकार के भारी दबाव और शोषण के साथ-साथ, सीसीपी मीडिया के दुष्प्रचार अभियान के कारण, सर्वशक्तिमान परमेश्वर पहले ही एक ऐसा पारिवारिक नाम बन चुके हैं जिनके बारे में हर कोई जानता है। बाद में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा बोले गए सभी सत्य वचनों, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया द्वारा प्रस्तुत विभिन्न वीडियो और फिल्मों को लगातार इंटरनेट पर जारी किया जा रहा है, जो दुनिया भर में फ़ैल रहा है। धार्मिक मंडली के सभी लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया की गवाही के विभिन्न तरीकों के बारे में सुना होगा। हाँ, वास्तव में हमने इनके बारे में सुना है। बहुत सारे लोगों ने गवाही दी है कि परमेश्वर आए हैं। यह प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को अच्छी तरह से पूरा करता है: "आधी रात को धूम मची, देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो" (मत्ती 25:6)। तो फिर क्यों धार्मिक पादरी और एल्डर्स अभी भी प्रचंड रूप से अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की निंदा और विरोध करते हैं। बाइबल में प्रभु की वापसी के बारे में अनेक भविष्यवाणियां हैं, तो फिर वे प्रभु के बादलों के साथ अवतरित होने की भविष्यवाणी पर इस तरह से क्यों अड़े हुए हैं? वे बिलकुल भी खोज क्यों नहीं करते हैं, जब वे यह सुनते हैं कि प्रभु के आने के प्रमाण मौजूद हैं? जब उन्हें यह पता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कई सत्य वचन कहे हैं और उन्होंने परमेश्वर के कार्य की वास्तविकता को देखा है, तो क्यों वे अभी भी जिद्दी बनकर अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की निंदा और विरोध करने की अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को सही मानते हैं? क्या ये लोग सत्य को पसंद करते हैं और वास्तव में प्रभु के आने का इंतजार करते हैं या नहीं? क्या वे बुद्धिमान कुंवारियां हैं या मूर्ख कुंवारियां? अगर वे बुद्धिमान कुंवारियां है और वास्तव में प्रभु की वापसी का इंतजार करते हैं, तो फिर, जब वे परमेश्वर के स्वर को सुनते हैं और राज्य के सुसमाचार को फैलते देखते हैं, तब भी क्यों अभी भी जिद्दी बनकर निंदा और विरोध करते हैं? क्या यह प्रभु के प्रकट होने की चाह और उम्मीद में उनकी ईमानदारी होगी? क्या यह प्रभु की वापसी का आनंद लेने में उनकी सही अभिव्यक्ति होगी? अंत में, साफ़ तौर पर कहें तो, प्रभु में उनका विश्वास और प्रभु यीशु की वापसी के लिए उनकी चाह नकली है, लेकिन उनकी आशीर्वाद पाने की और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की चाह असली है! वे प्रभु में विश्वास करते हैं इसलिए नहीं कि वे सत्य की खोज कर जीवन पाएं, इसलिए भी नहीं कि उन्हें सत्य का लाभ मिले और पापों को दूर किया जाए। वे किस बात की सबसे अधिक परवाह करते हैं? यह इसलिए है कि जब प्रभु उनको सीधे स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए अवतरित होंगे और उन्हें शरीर की पीड़ा से बचाकर निकालेंगे और वे स्वर्ग के राज्य की कृपा का आनंद उठाएंगे। यह परमेश्वर में विश्वास करने का उनका सही मकसद है! इस कारण के अलावा, उन सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अस्वीकार करने के लिए उनकी क्या वजह है जो मनुष्य को बचाने के लिए सत्य वचन बोलते हैं? हर कोई इस पर विचार कर सकता है। जो कोई भी सत्य से प्रेम करते हैं और वास्तव में परमेश्वर के प्रकट होने की चाह रखते हैं, तो जब उन्हें यह सुनाई पड़ेगा कि प्रभु आ गए हैं, उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या वे इसे नहीं सुनेंगे, नहीं देखेंगे, इसके संपर्क में नहीं आएंगे? क्या वे आँखें मूंदकर इनकार, निंदा और विरोध करेंगे? बेशक नहीं। क्योंकि ऐसा व्यक्ति जो ईमानदारी से परमेश्वर के प्रकट होने की चाह रखता है और परमेश्वर के आगमन का स्वागत करता है, अपने हृदय में सत्य और धार्मिकता की प्रधानता के साथ सही रोशनी के प्रकट होने का इंतजार करता है। वे मनुष्य जाति को बचाने के लिए और पापों से पूरी तरह बचाकर पवित्र करने के लिए और परमेश्वर द़वारा पाए जाने के लिए परमेश्वर के आगमन का इंतजार करते हैं। आप सब बताइए, क्या यह सही नहीं है? लेकिन ऐसे लोग जो सिर्फ प्रभु के बादलों के साथ अवतरित होने का इंतज़ार करते हैं, फिर भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का इनकार और अस्वीकार कर देते हैं, ख़ास तौर पर ऐसे धार्मिक नेता जो अपने रुतबे और आजीविका की रक्षा करने के लिए क्रोधावेश में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और विरोध करते हैं—ये सब ऐसे लोग हैं जो सत्य से दूर भागते हैं और सत्य से नफ़रत करते हैं। ये सब ऐसे अविश्वासी और यीशु विरोधी हैं जिन्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के द्वारा उजागर किया जाता है। जब देहधारी परमेश्वर अपना उद्धार का कार्य पूरा कर लेते हैं, ये लोग लाखों वर्षों में एक बार आने वाली आपदा में घिर जाते हैं, रोते हैं और अपने दांत पीसते रह जाते हैं। तब सार्वजनिक रूप से बादलों के साथ प्रभु के अवतरित होने की भविष्यवाणी बिलकुल पूरी हो जाएगी: "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है; और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे: और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे" (प्रकाशितवाक्य 1:7)।
आइए हम एक नज़र देखें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं: "जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, मगर अंधों की तरह यीशु के श्वेत बादलों पर आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के विरोध में ईश-निंदा करेंगे, और ये वे प्रजातियाँ हैं जो नष्ट कर दी जाएँगीं। तुम लोग सिर्फ़ यीशु के अनुग्रह की कामना करते हो, और सिर्फ़ स्वर्ग के सुखद राज्य का आनंद लेना चाहता हो, मगर जब यीशु देह में लौटता है, तो तुमने यीशु के द्वारा कहे गए वचनों का कभी भी पालन नहीं किया, और यीशु के द्वारा व्यक्त किये गए सत्य को कभी भी ग्रहण नहीं किया है। यीशु के एक श्वेत बादल पर वापस आने के तथ्य के बदले में तुम लोग क्या प्रदर्शित करोगे? क्या वही ईमानदारी जिसमें तुम लोग पाप की पुनरावृत्ति करते रहते हो, और फिर बार-बार उनकी स्वीकारोक्ति करते हो? एक श्वेत बादल पर वापस आने वाले यीशु के लिए तुम बलिदान में क्या अर्पण करोगे? क्या कार्य के वे वर्ष जिनकी तुम लोग स्वयं सराहना करते हो? लौट कर आये यीशु को तुम लोगों पर विश्वास कराने के लिए तुम लोग किस चीज को प्रदर्शित करोगे? क्या अपने उस अभिमानी स्वभाव को, जो किसी भी सत्य का पालन नहीं करता है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा" से)
"मैं तुम लोगों बता दूँ, कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं वे निश्चित रूप से उस श्रेणी के होंगे जो विनाश को झेलेगी। वे जो देह में लौटे यीशु के वचनों को स्वीकार करने में अक्षम हैं वे निश्चित रूप से नरक के वंशज, प्रमुख दूत के वंशज हैं, उस श्रेणी के हैं जो अनंत विनाश के अधीन की जाएगी। कई लोग मैं क्या कहता हूँ इसकी परवाह नहीं करते हैं, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को बताना चाहता हूँ जो यीशु का अनुसरण करते हैं, कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते हुए अपनी आँखों से देखो, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते हुए देखोगे तो यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए अधोलोक में चले जाओगे। यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति की घोषणा होगी, और यह तब होगा जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दण्ड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के संकेतों को देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब वहाँ सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति ही होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं तथा संकेतों की खोज नहीं करते हैं और इस प्रकार शुद्ध कर दिए जाते हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे ही जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि 'यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता है एक झूठा मसीह है' अनंत दण्ड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेतों को प्रदर्शित करता है, परन्तु उस यीशु को स्वीकार नहीं करते हैं जो गंभीर न्याय की घोषणा करता है और जीवन में सच्चे मार्ग को बताता है। और इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे तो वह उनके साथ उचित बर्ताव करे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं?" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा" से)
"स्क्रीनप्ले प्रश्नों के उत्तर" से
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