प्रश्न 5: धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग अक्सर विश्वासियों के लिए ऐसा प्रचार करते हैं कि कोई भी उपदेश जो कहता है कि प्रभु देह में आ गया है, वह झूठा है। वे बाइबल की इन पंक्तियों को इसका आधार बनाते हैं: "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24: 23-24)। अब हमें कुछ पता नहीं है कि हमें सच्चे मसीह को झूठों से कैसे अलग पहचानना चाहिए, इसलिए कृपया इस प्रश्न का उत्तर दो।
उत्तर:
प्रभु यीशु ने वास्तव में यह भविष्यवाणी की थी कि अंत के दिनों में झूठे मसीहा और झूठे पैगम्बर सामने आएँगे। यह एक सच्चाई है। लेकिन प्रभु यीशु ने कई बार यह भी स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की है कि वे वापस लौटेंगे। पक्के तौर पर, क्या हम इसमें विश्वास करते हैं? प्रभु यीशु की वापसी की भविष्यवाणियों को परखते समय, बहुत से लोग झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों से सावधान होने को प्राथमिकता दे देते हैं। और इस बात पर जरा भी विचार नहीं करते कि जब दूल्हे का आगमन होगा तो उसका स्वागत कैसे करेंगे, और उसकी आवाज कैसे सुनेंगे। यहां समस्या क्या है? क्या यह ऐसी बात नहीं हुई कि दम घुटने के डर से खाना ही न खाया जाए, अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप जैसी बात? सच यह है कि झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों के प्रति हम कितने भी सजग रहें, यदि हम प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं करेंगे, और हमें परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा, तो हम उन मूर्ख कुंवारियों की तरह होंगे जिन्हें परमेश्वर ने हटा दिया और त्याग दिया है, और प्रभु में हमारा विश्वास -पूरी तरह से विफल हो जाएगा! हम प्रभु की वापसी का स्वागत कर सकेंगे या नहीं, इसकी कुंजी इस बात में छुपी हुई है कि हम परमेश्वर की आवाज सुनने में समर्थ हैं या नहीं। जबतक हम इस तथ्य को पहचानेंगे कि मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं, तबतक हमें परमेश्वर की आवाज को पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होगी। यदि हम सत्य को नहीं समझ सकेंगे, और केवल परमेश्वर के संकेतों और चमत्कारों पर ही ध्यान केन्द्रित किए रहेंगे, तो हम निश्चित रूप से झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा छले जाएँगे। यदि हम सच्चे मार्ग की खोज और परख नहीं करेंगे, तो हम कभी भी परमेश्वर की आवाज सुनने में समर्थ नहीं होंगे। क्या हम मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करते रहते हैं और अपना विनाश स्वयं नहीं ले आते हैं? हम प्रभु के वचनों में विश्वास करते हैं, परमेश्वर के मेमने परमेश्वर की आवाज सुनते हैं। जो लोग सचमुच विचार और योग्यता से सम्पन्न हैं, और परमेश्वर की आवाज सुन सकते हैं वे झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा नहीं छले जाएँगे। क्योंकि झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर सत्य से विहीन हैं, और परमेश्वर का कार्य कर सकने में वे असमर्थ हैं। हमें इस बात को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जो लोग असमंजस में पड़े और विवेकहीन हैं, केवल वे ही झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा छले जा सकते हैं। चतुर कुंवारियां झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा नहीं छली जाएँगी, क्योंकि उन्हें परमेश्वर की देखभाल और उनका संरक्षण प्राप्त है। परमेश्वर ने जब मनुष्य की रचना की तो चतुर कुंवारियों को मानवीय चेतना से सम्पन्न किया गया और उन्हें परमेश्वर की आवाज सुनने में सक्षम बनाया गया। और इसलिए, परमेश्वर के मेमने उसकी आवाज सुन पाते हैं, परमेश्वर द्वारा ऐसा ही नियत किया गया है। केवल मूर्ख कुंवारियां ही झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों से बचते फिरने की युक्ति में लगी रहती हैं, और प्रभु की वापसी को समझने और परखने की उपेक्षा कर देती हैं। यदि हम प्रभु की वापसी का स्वागत करना चाहते हैं, और झूठे मसीहों तथा झूठे पैगम्बरों से छले जाना नहीं चाहते, तो हमें यह समझना होगा कि झूठे मसीहे लोगों को कैसे बहकाते हैं। वे लोगों को भला कैसे बहकाते हैं? वास्तव में, प्रभु यीशु ने हमें झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों की कार्यविधियों के बारे में पहले ही बता दिया है। प्रभु यीशु ने कहा है, "क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे: कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:24)। प्रभु यीशु के वचन हमें यह दिखाते हैं कि परमेश्वर के चुने हुए जनों को छलावा देने के लिए झूठे मसीहे और पैगम्बर मुख्य रूप से संकेतों और चमत्कारों का सहारा लेते हैं। झूठे मसीहों द्वारा लोगों को ठगने का यह मुख्य प्रत्यक्षीकरण है। इसमें हमें यह जरूर समझ लेना चाहिए कि, झूठे मसीहे लोगों को छलने के लिए संकेतों और चमत्कारों का प्रयोग क्यों करते हैं। सबसे बड़ी बात, ऐसा इसलिए है क्योंकि झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर सत्य से बिल्कुल ही वंचित होते हैं। अपनी प्रकृति और अपने सार में, वे अत्यंत ही दुष्ट और बुरी चेतना वाले होते हैं। और इसलिए लोगों को छलने के लिए उन्हें संकेतों और चमत्कारों पर निर्भर होना पड़ता है। यदि झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर सत्य से सम्पन्न होते, तो वे लोगों को छलने के लिए संकेतों और चमत्कारों का प्रयोग नहीं करते। इस तरह से देखने पर, झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर संकेत और चमत्कार इसलिए उत्पन्न करते हैं क्योंकि वे इतना ही कर सकते हैं। यदि हम यही नहीं समझ सकते तो हमें छलना उनके लिए बिल्कुल आसान हो जाएगा। केवल मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। वह जो सत्य को प्रकट कर सकता हो, और लोगों को मार्ग दिखा सकता हो, और उन्हें जीवन दे सकता हो वह मसीह ही हैं। जो लोग सत्य को अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं वे पक्के तौर पर झूठे मसीह हैं, वे नकली हैं। झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों को पहचानने का यह बुनियादी सिद्धान्त है। वे सब लोग जो सच्चे मार्ग को पाने का प्रयत्न और उसकी परख करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आवाज को खोजने और उसका पता लगाने के लिए इस सिद्धान्त का पालन करना चाहिए। और इस तरह वे कोई गलती नहीं करेंगे।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों की कार्यविधियों का पहले ही खुलासा कर चुके हैं। आइए, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यदि अंत के दिनों में यीशु के जैसा ही कोई "परमेश्वर" प्रकट हो जाता, जो बीमार को चंगा करता और दुष्टात्माओं को निकालता, और मनुष्य के लिए सलीब पर चढ़ाया जाता, तो वह "परमेश्वर", यद्यपि बाइबिल में वर्णित परमेश्वर के समरूप होता और स्वीकार करने में मनुष्य के लिए आसान होता, किन्तु अपने सार रूप में, परमेश्वर के आत्मा के द्वारा नहीं, बल्कि एक दुष्टात्मा द्वारा पहना गया देह होता। क्योंकि जो उसने पहले ही पूरा कर लिया है उसे कभी नहीं दोहराना, यह परमेश्वर के कार्य का सिद्धान्त है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" से)। "यदि, वर्तमान समय में, कोई व्यक्ति उभर कर आता है जो चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करने, पिशाचों को निकालने, और चंगाई करने में और कई चमत्कारों को करने में समर्थ है, और यदि यह व्यक्ति दावा करता है कि यह यीशु का आगमन है, तो यह दुष्टात्माओं की जालसाजी और उसका यीशु की नकल करना होगा। इस बात को स्मरण रखें! परमेश्वर एक ही कार्य को दोहराता नहीं है। यीशु के कार्य का चरण पहले ही पूर्ण हो चुका है, और परमेश्वर फिर से उस चरण के कार्य को पुनः नहीं दोहराएगा। …मनुष्य की अवधारणाओं में, परमेश्वर को अवश्य हमेशा चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, हमेशा चंगा करना और पिशाचों को निकालना चाहिए, और हमेशा यीशु के ही समान अवश्य होना चाहिए, फिर भी इस समय परमेश्वर इन सब के समान बिल्कुल भी नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अभी भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करता है और अभी भी दुष्टात्माओं को निकालता और चंगा करता है—यदि वह यीशु के ही समान करता है—तो परमेश्वर एक ही कार्य को दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं होगा। कोई महत्व या मूल्य नहीं है? इस प्रकार, प्रत्येक युग में परमेश्वर कार्य के एक ही चरण को करता है। एक बार जब उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा हो जाता है, तो शीघ्र ही इसकी दुष्टात्माओं के द्वारा नकल की जाती है, और शैतान द्वारा परमेश्वर का करीब से पीछा करने के बाद, परमेश्वर एक दूसरे तरीके में बदल देता है; एक बार परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूर्ण कर लेता है, तो इसकी दुष्टात्माओं द्वारा नकल कर ली जाती है। तुम लोगों को इन बातों के बारे में अवश्य स्पष्ट हो जाना चाहिए" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "आज परमेश्वर के कार्य को जानना" से)। "कभी भी परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप नहीं होता है, क्योंकि उसका कार्य हमेशा नया होता है और कभी भी पुराना नहीं होता है। न ही वह कभी पुराने कार्य को दोहराता है बल्कि पहले कभी नहीं किए गए कार्य के साथ आगे बढ़ जाता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "वह मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर के प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है जिसने उसे अपनी ही धारणाओं में परिभाषित किया है?" से)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं कि परमेश्वर हमेशा नवीन होते हैं, कभी भी पुराने नहीं होते और वे हमेशा एक ही कार्य नहीं करते। यह ठीक वैसा ही है कि जब यीशु अपना कार्य करने आए: वे हमें अनुग्रह के युग में ले आए, और उन्होंने व्यवस्था के युग को समाप्त किया। उन्होंने छुटकारे के कार्य का एक चरण पूरा किया और मनुष्य जाति को पाप से बचा लिया। उनका कार्य प्रभावी हो सके, इसके लिए उन्होंने कुछ संकेत और चमत्कार भी दिखाए। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आगमन हुआ है, उन्होंने राज्य के युग का आरंभ किया और अनुग्रह के युग को समाप्त किया। लेकिन वे प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य को दोबारा नहीं करते। इसके बजाय, प्रभु यीशु द्वारा छुटकारे के कार्य के आधार पर, वे परमेश्वर के घर से आरंभ करते हुए न्याय का कार्य संचालित करते हैं। मानवजाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए वे सभी सत्यों को प्रकट करते हैं ताकि मनुष्य के पाप के मूल और उसके शैतानी स्वभाव का निराकरण किया जा सके, और मनुष्य को पूरी तरह से शैतान के प्रभाव से बचाया जा सके, ताकि मनुष्य परमेश्वर को प्राप्त हो सके। और झूठे मसीहे? वे सब दुष्ट चेतनाएं हैं जो मसीह की नकल उतारते हैं। वे नए युग की ओर ले जाने और पुराने युग को समाप्त करने का कार्य कर सकने में असमर्थ हैं। कुछ साधारण संकेतों और चमत्कारों को पैदा करके वे केवल प्रभु यीशु की नकल कर सकते हैं, ताकि वे मूर्खों और नासमझों को धोखा दे सकें। लेकिन मृतक को जीवित करके यीशु ने जो कार्य किया, उसकी नकल करने में वे सक्षम नहीं हैं, और न ही वे रोटी के पाँच टुकड़ों से पाँच हजार लोगों का पेट भरने, या वायु और समुद्र को फटकारने में सक्षम हैं। सही है। यह उनकी क्षमता से बिल्कुल बाहर है। सारांश रूप में, झूठे मसीहा दुष्ट होते हैं, वे बुरी चेतना हैं, और सत्य से पूरी तरह वंचित हैं। और इसलिए, लोगों को छलने के लिए उन्हें संकेतों और चमत्कारों पर निर्भर होना पड़ता है। या फिर वे परमेश्वर के वचनों के लहजे तथा कभी परमेश्वर द्वारा कहे गए सामान्य वचनों की नकल करके लोगों को छलते और सलाह देते हैं।
जहाँ तक इस सच्चाई की बात है कि सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच कैसे अन्तर किया जाए, आइए, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर दृष्टि डालें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर देहधारी हुआ और मसीह कहलाया, और इसलिए वह मसीह, जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है| क्योंकि वह परमेश्वर के तत्व को स्वयं में धारण किए रहता है, और अपने कार्य में परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि को धारण करता है, और ये चीजें मनुष्य के लिये अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, फिर भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे सभी धोखेबाज़ हैं। मसीह पृथ्वी पर केवल परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि वह देह है जिसे धारण करके परमेश्वर लोगों के बीच रहकर कार्य पूर्ण करता है। यह वह देह नहीं है जो किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सके, बल्कि वह देह है, जो परमेश्वर के कार्य को पृथ्वी पर अच्छी तरह से करता है और परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करता है, और अच्छी प्रकार से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, और मनुष्य को जीवन प्रदान करता है। कभी न कभी, उन धोखेबाज़ मसीह का पतन होगा, हालांकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें किंचितमात्र भी मसीह का सार-तत्व नहीं होता। इसलिए मैं कहता हूं कि मसीह की प्रमाणिकता मनुष्य के द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती है, परन्तु स्वयं परमेश्वर के द्वारा उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता" है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से, हम यह साफ तौर पर देख सकते हैं कि मसीह देहधारी हुए परमेश्वर हैं, वे देह में साकार हुई परमेश्वर की आत्मा हैं। अर्थात्, परमेश्वर जो कुछ भी धारण करते हैं, जिसमें परमेश्वर के पास जो है और परमेश्वर जो है, परमेश्वर का स्वभाव, और परमेश्वर का विवेक शामिल है, सभी उनके देह में साकार होते हैं। मसीह में दिव्यता का सार है, और वे सत्य के अवतार हैं। वे हमेशा सभी स्थानों पर मनुष्य को सत्य प्रदान करने, सत्य को व्यक्त करने, और इसे मनुष्य तक पहुँचाने में समर्थ हैं। केवल मसीह ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने और बचाने का कार्य कर सकते हैं। और कोई इसकी नकल नहीं कर सकता है, और न ही इससे इनकार कर सकता है। जबकि अधिकतर झूठे मसीह, इस बीच, शैतानी आत्माओं के काबू में रहते हैं। वे अत्यधिक अभिमानी और हास्यास्पद होते हैं। सार रूप में, वे शैतानी आत्माएँ और दानव हैं। इस प्रकार, इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या संकेत या चमत्कार करके दिखाते हैं, या वे किस प्रकार से बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं, या गहरे ज्ञान और सिद्धांत की बातें करते हैं, वे लोगों को धोखा देने, उन्हें नुकसान पहुँचाने, और उन्हें बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं करते हैं। वे ऐसा कुछ भी नहीं करते हैं जो लोगों के लिए शिक्षाप्रद हो। वे बस इतना ही करते हैं कि लोगों के हृदयों में और अधिक अंधकार भर देते हैं, वे उनके चलने के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ते हैं, ताकि अंततः शैतान उन्हें निगल जाए। यह देखा जा सकता है कि सभी झूठे मसीह और झूठे पैगंबर देहधारी शैतान हैं, वे बुरे दानव हैं जो परमेश्वर के कार्य को बाधित करने और परमेश्वर को परेशान करने आए हैं। इस बात की परवाह किए बिना कि वे कितने लोगों को धोखा देते हैं, हानि पहुँचाते हैं या बर्बाद करते हैं, उनका शीघ्र ही पतन होगा, और वे स्वयं को नष्ट कर लेंगे, क्योंकि उनमें ज़रा सा भी सत्य नहीं है। यदि हम वास्तव में इस बारे में सत्य को समझ जाते हैं कि सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच अंतर कैसे करें, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि झूठे मसीहों के हाथों धोखा खाने के डर से हम परमेश्वर की आवाज़ को सुनने या उनके प्रकटन का स्वागत करने से इनकार कर दें।
"राज्य के सुसमाचार पर उत्कृष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से
जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंत के दिनों में अपना न्याय का कार्य करने के लिये सत्य व्यक्त करना शुरू किया है, मानवता पहले ही राज्य के युग में प्रवेश कर गई है और राज्य का युग शुरू हो गया है। अगर परमेश्वर पर हमारा विश्वास अनुग्रह के युग में ही अटककर रह जाता है, तो फिर हम पीछे छोड़ दिए गए हैं और परमेश्वर के कार्य के द्वारा दरकिनार कर दिए गए हैं। परमेश्वर के घर से न्याय का कार्य शुरू करने के लिये जब प्रभु गुप्त रूप से आएंगे, तो ये तय है कि उसी समय परमेश्वर के कार्य का पीछा करने और उनके कार्य में बाधा डालने के लिये बहुत से झूठे मसीह और कपटी लोग भी प्रकट होंगे। इसलिए, जब झूठे मसीह प्रकट होते हैं, तो परमेश्वर पहले ही गुप्त रूप से आ चुके होते हैं। फ़र्क सिर्फ़ इतना है हमें इस बात की ख़बर नहीं होती। इस समय, हमें पूरी तत्परता से परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की खोज और पड़ताल करनी चाहिए, लेकिन अब भी बहुत से लोग, जब प्रभु के दूसरे आगमन की बात आती है तो, बजाय इस बात पर ध्यान देने के कि किस तरह बुद्धिमान कुँवारी बनकर परमेश्वर की वाणी सुनें, और कैसे प्रभु के दूसरे आगमन की अगवानी करें, झूठे मसीहों से सावधान रहने को ज़्यादा अहमियत देते हैं। वे लोग अपनी ही धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहते हैं, उन्हें लगता है देहधारण के ज़रिये प्रभु यीशु के वापस आने की सारी गवाहियाँ झूठी हैं। क्या वे बिल्कुल वही मूर्ख कुंवारियाँ नहीं हैं जिनके बारे में प्रभु यीशु ने कहा था? क्या ये लौटकर आए प्रभु यीशु की निंदा नहीं है? ये लोग प्रभु यीशु की वापसी में विश्वास करते भी हैं क्या? क्या ये प्रभु यीशु के दूसरे आगमन को नकारना नहीं है?
कोई सच्चे मसीह और झूठे मसीह में किस तरह अंतर करता है, उसी से सही मायने में पता चलता है कि उसमें सत्य है या नहीं, और यही बेहतरीन तरीका है ये पता करने का कि वो बुद्धिमान कुंवारी है या मूर्ख कुंवारी। कुछ लोग धर्मशास्त्र के इस अंश का इस्तेमाल देहधारी मसीह को परखने और उनकी निंदा करने और मसीह के आगमन को नकारने के लिये करते हैं। ये लोग ख़ुद को बेवकूफ साबित कर रहे हैं। सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में भेद करने के लिए ज़रूरी है कि पहले, मसीह के सार का ज्ञान हासिल किया जाए। हर कोई जानता है कि प्रभु यीशु देह में मसीह हैं और मसीह देहधारी परमेश्वर हैं, यानी इंसानों के बीच कार्य करने के लिये स्वर्ग के परमेश्वर मनुष्य के पुत्र बने हैं। मसीह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण हैं और उनमें दिव्य तत्व है। परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि, परमेश्वर का स्वभाव, और परमेश्वर के पास जो है और जो वे हैं और जो परमेश्वर के आत्मा के पास है, वो सब मसीह में साकार हो गया है। मसीह सत्य, मार्ग और जीवन हैं। इस तरह हम यकीन से कह सकते हैं कि मसीह कोई अस्पष्ट परमेश्वर नहीं हैं, वे काल्पनिक या अलौकिक नहीं हैं। मसीह वास्तविक और व्यवहारिक हैं; इंसान उन पर निर्भर हो सकता है, उन पर विश्वास किया जा सकता है। मसीह व्यवहारिक परमेश्वर हैं जिनका अनुसरण किया जा सकता है, उन्हें जाना जा सकता है। ये उसी तरह है जैसे प्रभु यीशु इंसानों के बीच सजीव रूप में रह रहे हैं, कार्य कर रहे हैं, लोगों की अगुवाई कर रहे हैं, उनकी रखवाली कर रहे हैं। अब जबकि हम मसीह का सार जानते हैं, सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में भेद करना बहुत आसान हो जाता है। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के एक अंश पर नज़र डालें। "ऐसी बात का अध्ययन करना कठिन नहीं है, परंतु हम में से प्रत्येक के लिए इस सत्य को जानने की अपेक्षा की जाती है: जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर का सार धारण करेगा, और जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति धारण करेगा। चूँकि परमेश्वर देहधारी हुआ, वह उस कार्य को प्रकट करेगा जो उसे अवश्य करना चाहिए, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया, तो वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है, और मनुष्यों के लिए सत्य को लाने में समर्थ होगा, मनुष्यों को जीवन प्रदान करने, और मनुष्य को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस शरीर में परमेश्वर का सार नहीं है, निश्चित रूप से वह देहधारी परमेश्वर नहीं है; इस बारे में कोई संदेह नहीं है। यह पता लगाने के लिए कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य को इसका निर्धारण उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव से और उसके द्वारा बोले वचनों से अवश्य करना चाहिए। कहने का अभिप्राय है, कि वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है या नहीं, और यह सही मार्ग है या नहीं, इसे परमेश्वर के सार से तय करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने[अ] में कि यह देहधारी परमेश्वर का शरीर है या नहीं, बाहरी रूप-रंग के बजाय, उसके सार (उसका कार्य, उसके वचन, उसका स्वभाव और बहुत सी अन्य बातें) पर ध्यान देना ही कुंजी है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी रूप-रंग को ही देखता है, उसके तत्व की अनदेखी करता है, तो यह मनुष्य की अज्ञानता और उसके अनाड़ीपन को दर्शाता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से)।
जब प्रभु यीशु अनुग्रह के युग में आये, तो उन्होंने कहा: "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। प्रभु यीशु ने बहुत से सत्य व्यक्त किये, दया और करुणा जैसा मुख्य स्वभाव व्यक्त किया, और पूरी मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा किया। प्रभु यीशु का कार्य, कथन और उनका व्यक्त स्वभाव पूरी तरह से प्रमाणित करते हैं कि मसीह सच्चाई, मार्ग और जीवन हैं। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आकर कहा: "मैं सत्य, मार्ग और जीवन हूं।" सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कई लाख वचन व्यक्त किये और बही खोली, अपना मुख्यत: धार्मिक स्वभाव व्यक्त किया और अंत के दिनों का अपना न्याय का कार्य किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का इंसान का न्याय करने, उसे ताड़ना देने और दूषित इंसान को बचाने का कार्य एक बार फिर प्रमाणित करता है कि मसीह सत्य, मार्ग और जीवन हैं। प्रभु यीशु ने बहुत पहले भविष्यवाणी कर दी थी कि वे अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए वापस आएंगे, और वे मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण कर इस कार्य को करेंगे, मनुष्य के पुत्र के रूप में आकर कलीसियाओं से बात करेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य ने प्रभु यीशु के दूसरे आगमन की भविष्यवाणी पूरी कर दी है। इससे हमें ये जानने का मौका मिला कि सच्चे मसीह देहधारण कर सत्य और परमेश्वर के स्वभाव को व्यक्त करने के लिए आ सकते हैं, और अंत के दिनों का न्याय का कार्य कर सकते हैं और इंसान को जीत सकते हैं और उसे शुद्ध कर सकते हैं, साथ ही परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकते हैं और उनकी गवाही दे सकते हैं। मसीह सत्य, मार्ग और जीवन हैं। उनके द्वारा व्यक्त सभी सत्य यकीनी तौर पर और पूरी तरह से भ्रष्ट मानवजाति को जीत लेंगे, और परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखने वाले सभी लोगों को परमेश्वर के सिंहासन के सामने ला सकते हैं। मसीह निश्चित रूप से परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को पूरा करेंगे। इसमें कोई शक नहीं है।
झूठे मसीह ऐसी दुष्ट आत्माएं हैं जो नकली मसीह हैं। वे लोग धोखेबाज हैं। सबसे झूठे मसीहों पर दुष्ट आत्माओं का कब्ज़ा है। अगर उन पर दुष्ट आत्माओं का कब्ज़ा नहीं भी है, तो भी वे बेहद घमंडी और उल्टी बुद्धि के शैतान हैं। इसी वजह से वे लोग नकली मसीह बनते हैं। नकली मसीह पवित्र आत्मा के प्रति ईश-निन्दा का पाप कर रहे हैं और ऐसे लोग पक्के तौर पर शाप के भागी बनेंगे। क्योंकि झूठे मसीहों का सार दुष्ट आत्मा है, झूठे मसीहों में किसी भी तरह की कोई सच्चाई नहीं है और वे शैतान का ही रूप हैं। इसलिए, झूठे मसीह जो कुछ भी कहते हैं वो झूठ और धोखा है, उनकी बात लोगों को आश्वस्त नहीं कर सकती। जो कुछ झूठे मसीहों ने कहा और किया है, वो जांच की कसौटी पर ठहर नहीं सकता, और न ही लोगों की छान-बीन के लिये वे लोग उसे ऑनलाइन डालने की हिम्मत करेंगे। क्योंकि झूठे मसीह और दुष्ट आत्माओं का संबंध अंधेरे और बुराई से है जो दिन की रोशनी का सामना नहीं कर सकती। वे लोग सिर्फ कुछ सरल से संकेत और चमत्कार दिखाकर हर जगह अंधेरे कोनों में मूर्ख और अज्ञानी लोगों को धोखा दे सकते हैं। इसलिए, हमें यकीन है कि जो कोई भी मसीह होने का दावा करता है और लोगों को धोखा देने के लिये सिर्फ कुछ संकेत और चमत्कार दिखाता है, वो झूठा मसीह है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों के मसीह ने जो कुछ कहा है वो सारा सत्य, ऑनलाइन डाल दिया गया है, ताकि हर इंसान उसे देख सके। जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य को प्रेम करते हैं, सत्य मार्ग की खोज और जांच कर रहे हैं, वे सभी लोग एक-एक करके परमेश्वर के वचन के न्याय, शुद्धिकरण और पूर्ण होने को स्वीकार करने के लिये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ रहे हैं। ये एक ऐसा सच है जिसे मान लिया गया है। झूठे मसीह जो कुछ कहते और करते हैं, वो देहधारी मसीह से बिल्कुल अलग है। लोग आसानी से इस सत्य को समझ सकते हैं। इसलिए, मसीह के सत्य, मार्ग और जीवन होने के सिद्धांत के आधार पर सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में भेद करना सबसे सटीक तरीका है। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था कि परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की वाणी सुनती है। बुद्धिमान कुंवारियाँ परमेश्वर की वाणी सुन सकती हैं, और बुद्धिमान कुंवारियाँ दुल्हन की वाणी में सत्य की खोज कर पाएँगी, परमेश्वर के वचन में परमेश्वर के स्वभाव की, परमेश्वर के पास क्या है और परमेश्वर क्या हैं, उसकी खोज कर पाएंगी, और परमेश्वर के इरादे देख पाएंगी, और इस प्रकार वे परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट पाएंगी। बेवकूफ कुंवारियाँ दुल्हन की वाणी क्यों नहीं सुन सकतीं? मूर्ख कुंवारियाँ मूर्ख हैं क्योंकि वे सत्य को नहीं समझ सकतीं। वे परमेश्वर की वाणी में अंतर नहीं कर सकतीं और सिर्फ नियमों का पालन करना जानती हैं। इसलिए वे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य से उजागर हो जाएंगी और हटा दी जाएंगी।
"राज्य के सुसमाचार पर उत्कृष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से
जब देहधारी परमेश्वर ने इस समय काम करना शुरू किया था, तब तक वह लंबे समय तक विनम्र और छिपा हुआ रहा, तब तक प्रतीक्षा करते हुए जब तक कि यह समाचार एक पराकाष्ठा पर नहीं पहुँच गया जहाँ लोगों पर विजय प्राप्त की गई। केवल तब ही पवित्र आत्मा ने मसीह को गवाही दी थी। मसीह ने कभी किसी को रूबरू यह नहीं बताया कि वह मसीह है, उसने कभी भी मसीह के रूप में अपनी स्थिति का इस्तेमाल लोगों को उपदेश देने के लिए नहीं किया है। वह विनम्र और छिपा रहा है, लोगों के जीवन की माँगों की आपूर्ति करने में, सच्चाई को व्यक्त करने में, मनुष्य के स्वभाव को बदलने से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने में, उसने स्वयं को तल्लीन रखा है। मसीह कभी इतराता नहीं है, वह हमेशा विनम्र और छिपा हुआ रहता है। यह कुछ ऐसा है जिसके साथ कोई प्राणी तुलना नहीं कर सकता है। मसीह ने कभी भी अपनी स्थिति का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया है कि लोग उसकी आज्ञा का पालन करें और उसका अनुसरण करें। बल्कि, वह मनुष्य के न्याय और उसकी ताड़ना के लिए और मनुष्य को बचाने के लिए सच्चाई को व्यक्त करता है, ताकि मनुष्य परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सके, परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सके और परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया जा सके। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर वास्तव में सम्माननीय है। …यदि तुम झूठे मसीहों का अनुसरण करते हो, तो तुम निश्चित रूप से नहीं बचाए जाओगे, तुम केवल शैतान के द्वारा अधिकाधिक भ्रष्ट हो जाओगे। तुम अपने विनाश के बिंदु तक अधिकाधिक सुस्त और मूढ़ हो जाओगे। जो लोग झूठे मसीह का अनुसरण करते हैं वे एक अंधे आदमी की तरह हैं जो चोरों की नाव में बैठता है—वे लोग अपनी तबाही को खुद ही चुन रहे हैं!
झूठे मसीह एवं मसीह विरोधियों के द्वारा बहकाने के मामलों के सूक्ष्म परीक्षण की प्रस्तावना से
फुटनोट्स:
अ. मूलपाठ में "के लिए" पढा जाता है।
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