परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो मनुष्य हमेशा से अधिक सामान्य बन जाता है, और उसकी मानवता हमेशा से अधिक सामान्य बन जाती है। मनुष्य को अपने स्वभाव का, जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है और मनुष्य के सार का बढ़ता हुआ ज्ञान होता है, और उसकी सत्य के लिए हमेशा से अधिक ललक होती है। अर्थात्, मनुष्य का जीवन अधिकाधिक बढ़ता जाता है और मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव अधिकाधिक बदलावों में सक्षम हो जाता है - जिस सब का अर्थ है परमेश्वर का मनुष्य का जीवन बनना। यदि एक मार्ग उन चीजों को प्रकट करने में असमर्थ है जो मनुष्य का सार हैं, मनुष्य के स्वभाव को बदलने में असमर्थ है, और, इसके अलावा, उसे परमेश्वर के सामने लाने में असमर्थ है या उसे परमेश्वर की सच्ची समझ प्रदान कराने में असमर्थ है, और यहाँ तक कि उसकी मानवता का हमेशा से अधिक निम्न होने और उसकी भावना का हमेशा से अधिक असामान्य होने का कारण बनता है, तो यह मार्ग अवश्य सच्चा मार्ग नहीं होना चाहिए और यह दुष्टात्मा का कार्य, या पुराना मार्ग हो सकता है। संक्षेप में, यह पवित्र आत्मा का वर्तमान का कार्य नहीं हो सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर को सन्तुष्ट कर सकते हैं" से
पवित्र आत्मा का कार्य कुल मिलाकर लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे लाभ प्राप्त कर सकें; यह कुल मिलाकर लोगों की उन्नति के विषय में है; ऐसा कोई कार्य नहीं है जो लोगों को लाभान्वित न करता हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सत्य गहरा है या उथला, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन लोगों की क्षमता किसके समान है जो सत्य को स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी पवित्र आत्मा करता है, यह सब लोगों के लिए लाभदायक है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय अगुवाई करना और सकारात्मक प्रकाशन है। यह लोगों को निष्क्रिय नहीं बनने देता है। यह उनको राहत पहुँचाता है, उन्हें विश्वास और दृढ़ निश्चय देता है और यह परमेश्वर के द्वारा सिद्ध किए जाने का अनुसरण करने के लिए उन्हें योग्य बनाता है। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग सक्रिय रूप से प्रवेश कर सकते हैं; वे निष्क्रिय नहीं होते और उन्हें बाध्य भी नहीं किया जाता, बल्कि वे सक्रिय रहते हैं। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है तो लोग प्रसन्न और इच्छापूर्ण होते हैं, और वे आज्ञा मानने के लिए तैयार होते हैं, और स्वयं को दीन करने में प्रसन्न होते हैं, और यद्यपि भीतर से पीड़ित और दुर्बल होते हैं, फिर भी उनमें सहयोग करने का दृढ़ निश्चय होता है, वे ख़ुशी-ख़ुशी दुःख सह लेते हैं, वे आज्ञा मान सकते हैं, और वे मानवीय इच्छा से निष्कलंक रहते हैं, मनुष्य की विचारधारा से निष्कलंक रहते हैं, और निश्चित रूप से मानवीय अभिलाषाओं और अभिप्रेरणाओं से निष्कलंक रहते हैं। जब लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं, तो वे भीतर से विशेष रूप से पवित्र हो जाते हैं। जो पवित्र आत्मा के कार्य को अपने अंदर रखते हैं वे परमेश्वर के प्रेम को और अपने भाइयों और बहनों के प्रेम को अपने जीवनों से दर्शाते हैं, और ऐसी बातों में आनंदित होते हैं जो परमेश्वर को आनंदित करती हैं, और उन बातों से घृणा करते हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, उनमें सामान्य मनुष्यत्व होता है, और वे मनुष्यत्व को रखते हैं और निरंतर सत्य का अनुसरण करते हैं। जब पवित्र आत्मा लोगों के भीतर कार्य करता है, तो उनकी परिस्थितियाँ और अधिक बेहतर हो जाती हैं और उनका मनुष्यत्व और अधिक सामान्य हो जाता है, और यद्यपि उनका कुछ सहयोग मूर्खतापूर्ण हो सकता है, परंतु फिर भी उनकी प्रेरणाएँ सही होती हैं, उनका प्रवेश सकारात्मक होता है, वे रूकावट बनने का प्रयास नहीं करते और उनमें कुछ भी दुर्भाव नहीं होता। पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और वास्तविक होता है, पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के अनुसार कार्य करता है, और वह सामान्य लोगों के वास्तविक अनुसरण के अनुसार लोगों को प्रकाशित करता है और उन्हें अगुवाई देता है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है तो वह सामान्य लोगों की आवश्यकता के अनुसार अगुवाई करता और प्रकाशित करता है, वह उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी जरूरतों को पूरा करता है, और वह सकारात्मक रूप से उनकी कमियों और अभावों के आधार पर उनकी अगुवाई करता है और उनको प्रकाशित करता है; जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो यह कार्य मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के साथ सांमजस्यपूर्ण होता है, और यह केवल वास्तविक जीवन में ही होता है कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य को देख सकते हैं। यदि अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग सकारात्मक अवस्था में हों और उनके पास एक सामान्य आत्मिक जीवन हो, तो उनमें पवित्र आत्मा के कार्य पाए जाते हैं। ऐसी अवस्था में, जब वे परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं तो उनमें विश्वास आता है, जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं, जब उनके साथ कुछ घटित होता है तो वे निष्क्रिय नहीं होते, और उनके साथ कुछ घटित होते समय वे उन सबकों या सीखों को देख सकते हैं जो परमेश्वर चाहता है कि वे सीखें, और वे निष्क्रिय, या कमजोर नहीं होते, और यद्यपि उनके जीवन में वास्तविक कठिनाइयाँ होती हैं, फिर भी वे परमेश्वर के सभी प्रबंधनों की आज्ञा मानने के लिए तैयार रहते हैं।
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शैतान की ओर से कौनसे कार्य आते हैं? उस कार्य में जो शैतान की ओर से आता है, ऐसे लोगों में दर्शन अस्पष्ट और धुंधले होते हैं, और वे सामान्य मनुष्यत्व के बिना होते हैं, उनमें उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएँ गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सैदव दोषारोपण रहते हैं, और ये दोषारोपण और विचार उनमें सदैव हस्तक्षेप करते रहते हैं, जिससे वे उनके जीवन की बढ़ोतरी को सीमित कर देते हैं और परमेश्वर के समक्ष सामान्य परिस्थितियों को रखने से उन्हें रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं हो सकते, उन्हें नहीं पता होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें, सभा का दृश्य उन्हें वहाँ से भाग जाने को बाध्य करता है, और वे तब अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते जब दूसरे प्रार्थना करते हैं। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच के सामान्य संबंध को तोड़ देता है, और लोगों के पहले के दर्शनों और उस मार्ग को बिगाड़ देता है जिनमें उनके जीवन ने प्रवेश किया था, अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें निरंतर होती रहती हैं जो उनमें बाधा उत्पन्न करती हैं और उन्हें बंधन में बाँध देती हैं, और उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते, जिससे उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की कोई शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएँ पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्यों के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान का कार्य निम्न रूपों में प्रकट होता है: अपने स्थान और गवाही में स्थिर खड़े नहीं रह सकना, तुम्हें ऐसा बना देना जो परमेश्वर के समक्ष दोषी हो, और जिसमें परमेश्वर के प्रति कोई विश्वासयोग्यता न हो। शैतान के हस्तक्षेप के समय तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफ़ादारी को खो देते हो, तुम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध से वंचित कर दिए जाते हो, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो, और निष्क्रिय बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो, और पाप से घृणा भी नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, यह तुम्हारे भीतर से परमेश्वर के स्पर्श को हटा देता है, और तुम्हें परमेश्वर के प्रति शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो, और फिर तुम परमेश्वर को त्यागने तक को तैयार होने लगते हो। यह सब शैतान का कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य" से
अतः इन तरीकों से जिसके अंतर्गत परमेश्वर कार्य करता है, आपको क्या महसूस होता है कि आपका परमेश्वर के साथ किस प्रकार का रिश्ता है? … जब परमेश्वर आपकी अगुवाई करता है, जब वह आपको प्रदान करता है, आपकी सहायता करता है और आपको सहारा देता है, तो आप परमेश्वर के मिलनसार स्वभाव, एवं उसकी प्रतिष्ठा को महसूस करते हैं, और आप महसूस करते हैं कि वह कितना प्यारा है, और कितना स्नेही है। किन्तु जब परमेश्वर आपकी भ्रष्टता के लिए आपकी भर्त्सना करता है, या जब वह अपने विरुद्ध विद्रोह करने के लिए आपका न्याय करता है एवं आपको अनुशासित करता है, तो परमेश्वर किन तरीकों का उपयोग करता है? क्या वह शब्दों से आपकी भर्त्सना करता है? (हाँ।) क्या वह वातावरण एवं लोगों, मामलों, एवं चीज़ों के माध्यम से आपको अनुशासित करता है? (हाँ।) तो यह अनुशासन किस स्तर तक पंहुचता है? (उस स्तर तक जिसे मनुष्य सह सकता है।) क्या अनुशासन करने का उसका स्तर वहाँ तक पहुंचता है जहाँ शैतान मनुष्य को नुकसान पहुंचाता है? (नहीं।) परमेश्वर सौम्यता, प्रेम, कोमलता एवं सावधानी से कार्य करता है, ऐसा तरीका जो विशेष रूप से नपा-तुला और उचित है। उसका तरीका आपमें तीव्र भावनाओं को उत्पन्न नहीं करता है, यह कहते हुए कि, "परमेश्वर इसे करने के लिए मुझे अनुमति नहीं देगा" या "परमेश्वर उसे करने के लिए मुझे ज़रूर अनुमति देगा।" परमेश्वर आपको कभी भी उस किस्म की तीव्र मानसिकता या तीव्र भावनाएं नहीं देता है जो चीज़ों को असहनीय बना देती हैं। क्या स्थिति ऐसी ही नहीं है? (हाँ।) यहाँ तक कि जब आप न्याय एवं ताड़ना के विषय में परमेश्वर के वचनों को ग्रहण करते हैं, तब आप कैसा महसूस करते हैं? जब आप परमेश्वर के अधिकार एवं सामर्थ को महसूस करते हैं, तब आप कैसा महसूस करते हैं? क्या आप परमेश्वर की अलंघनीय ईश्वरीयता को महसूस करते हैं? (हाँ।) क्या आप इन समयों में परमेश्वर से दूरी महसूस करते हैं? क्या आपको परमेश्वर से भय महसूस होता है? (नहीं।) इसके बजाए, आप परमेश्वर के लिए भययुक्त सम्मान महसूस करते हैं। क्या लोग परमेश्वर के कार्य के कारण इन सब चीज़ों को महसूस करते हैं? (हाँ।) …
मनुष्य पर किए गए शैतान के कार्य के द्वारा किस प्रकार का प्रतीकात्मक लक्षण दिखाया गया है? …(हर एक चीज़ जिसे वह करता है उसे मनुष्य को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है।) वह मनुष्य को नुकसान पहुंचाने के लिये कार्य करता है। वह मनुष्य को कैसे नुकसान पहुंचाता है? क्या तुम सब मुझे और अधिक विशिष्टता से तथा और अधिक विस्तार से दिखा सकते हो? (वह मनुष्य को लुभाता, फुसलाता एवं प्रलोभन देता है।) यह सही है, यह विभिन्न पहलुओं को दिखाता है। और कुछ? (यह मनुष्य को ठगता है।) वह ठगता है, आक्रमण करता है एवं दोष लगाता है। हाँ, इनमें से सब कुछ। क्या और भी कुछ है? (वह झूठ बोलता है।) धोखा देना और झूठ बोलना शैतान में स्वाभाविक रीति से आता है। वह ऐसा इतनी बार करता है कि झूठ उसके मुंह से होकर बहता है और इसके विषय में सोचने की जरुरत भी नहीं है। और कुछ? (वह मतभेद प्रकट करता है।) यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। मैं तुम लोगों को कुछ चीज़ें बताऊंगा जो तुम लोगों को भयभीत कर देगा, परन्तु मैं तुम लोगों को डराने के लिए इसे नहीं करूंगा। परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करता और मनुष्य परमेश्वर की मनोवृत्ति एवं उसके हृदय में पोषित होता है। इसके विपरीत, क्या शैतान मनुष्य को पोषित करता है? वह मनुष्य को पोषित नहीं करता है। वह मनुष्य से क्या चाहता है? वह मनुष्य को हानि पहुंचाना चाहता है, वह जो कुछ सोचता है वह मनुष्य को हानि पहुंचाने के विषय में होता है। क्या यह सही नहीं है? अतः जब वह मनुष्य को हानि पहुंचाने का विचार करता है, तो क्या वह ऐसा मस्तिष्क के दबाव की स्थिति में करता है? (हाँ।) अतः जब मनुष्य पर शैतान के कार्य की बात आती है, तो यहाँ मेरे पास दो शब्द हैं जो शैतान की दुर्भावना एवं दुष्ट स्वभाव की बहुतायत से व्याख्या कर सकते हैं, जो सचमुच में तुम लोगों को शैतान की घृणा को जानने की अनुमति दे सकता है: मनुष्य तक शैतान की पहुंच में, वह हमेशा बलपूर्वक "कब्जा" करता है और स्वयं को उनमें से प्रत्येक के साथ "जोड़ता" है ताकि वह उस बिन्दु तक पहुंच सके जहाँ वह मनुष्य को पूरी तरह से नियन्त्रण में रखता है, और मनुष्य को नुकसान पहुंचता है, ताकि वह इस उद्देश्य एवं अनियन्त्रित महत्वाकांक्षाओं को हासिल कर सके। "बलपूर्वक कब्जा" करने का अर्थ क्या है? क्या यह आपकी सहमति के साथ होता है, या बिना आपकी सहमति से होता है? क्या यह तुम्हारी जानकारी से होता है, या तुम्हारी जानकारी के बगैर होता है? यह पूरी तरह से तुम्हारी जानकारी के बगैर होता है। ऐसी परिस्थितियों में जहाँ तू अनजान रहता है, संभवतः जब उसने कुछ भी नहीं कहा है या संभवतः जब उसने कुछ भी नहीं किया है, जब कोई प्रतिज्ञा नहीं है, और कोई सन्दर्भ नहीं है, वहाँ वह आपके चारों ओर है, और आपको घेरे हुए है। वह तेरा शोषण करने के लिए एक अवसर तलाशता है, तब वह बलपूर्वक तुझ पर कब्जा करता है, स्वयं को तुझसे जोड़ देता है, और पूरी तरह से तुझ पर नियन्त्रण करने एवं तुझे नुकसान पहुँचाने के अपने उद्देश्य को हासिल करता है। मानवजाति के लिए परमेश्वर के विरुद्ध शैतान की लड़ाई में यह एक अति प्रतीकात्मक इरादा एवं व्यवहार है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV" से
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