परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
पवित्र आत्मा का कार्य दिन ब दिन बदलता जाता है, हर एक कदम के साथ ऊँचा उठता जाता है; आने वाले कल का प्रकाशन आज से भी कहीं ज़्यादा ऊँचा होता है, कदम दर कदम और ऊपर चढ़ता जाता है। जिस कार्य के द्वारा परमेश्वर मनुष्य मनुष्य को सिद्ध करता है वह ऐसा ही है। यदि मनुष्य उस गति से चल न पाए, तो उसे किसी भी समय पीछे छोड़ा सकता है। यदि मनुष्य के पास आज्ञाकारी हृदय न हो, तो वह अंत तक अनुसरण नहीं कर सकता है। पूर्व का युग गुज़र गया है; यह एक नया युग है। और नए युग में, नया कार्य करना होगा। विशेषकर अंतिम युग में जिसमें मनुष्य को सिद्ध किया जाएगा, परमेश्वर पहले से ज़्यादा तेजी से नया कार्य करेगा। इसलिए, अपने हृदय में आज्ञाकारिता को धारण किए बिना, मनुष्य के लिए परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करना कठिन होगा। परमेश्वर किसी भी नियम का पालन नहीं करता है, न ही वह अपने कार्य के किसी स्तर को अपरिवर्तनीय मानता है। बल्कि, वह जिस कार्य को करता है वह हमेशा नया और हमेशा ऊँचा होता है। उसका कार्य हर एक कदम के साथ और भी अधिक व्यावहारिक होता जाता है, और मनुष्य की वास्तविक ज़रूरतों के और भी अधिक अनुरूप होता जाता है। जब मनुष्य इस प्रकार के कार्य का अनुभव करता है केवल तभी वह अपने स्वभाव के अंतिम रूपान्तरण को हासिल कर पाता है। … वे सभी जो अवज्ञाकारी प्रकृति के हैं जो जानबूझ कर विरोध करते हैं उन्हें परमेश्वर के इस द्रुतगामी और प्रचंडता से आगे बढ़ते हुए कार्य के इस चरण द्वारा पीछे छोड़ दिया जाएगा; केवल जो स्वेच्छा से आज्ञापालन करते हैं और जो अपने आप को प्रसन्नतापूर्वक दीन बनाते हैं वे ही मार्ग के अंत तक प्रगति कर सकते हैं। इस प्रकार के कार्य में, तुम सभी लोगों को सीखना चाहिए कि समर्पण कैसे करें और अपनी अवधारणाओं को कैसे अलग रखें। तुम लोगों को उस हर कदम पर सतर्क रहना चाहिए जो तुम उठाते हो। यदि तुम लोग लापरवाह हो, तो तुम लोग निश्चित रूप से उनमें से एक बन जाओगे जिसे पवित्र आत्मा द्वारा ठुकराया जाता है, और एक ऐसे व्यक्ति बन जाओगे जो परमेश्वर के कार्य में उसे बाधित करता है। … परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य अलग-अलग अवधियों में भिन्न होता है। यदि तुम एक चरण में बड़ी आज्ञाकारिता दिखाते है, मगर अगले चरण में कम दिखाते हो या कुछ भी नहीं दिखाते हो, तो परमेश्वर तुम्हें त्याग देगा। जब परमेश्वर यह कदम उठाता है तब यदि तुम परमेश्वर के साथ समान गति से चलते हो, तो जब वह अगला कदम उठाता है तब तुम्हें समान गति से अवश्य चलते रहना चाहिए। केवल तभी तुम ऐसे एक हो जो पवित्र आत्मा के प्रति आज्ञाकारी है। चूँकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें अपनी आज्ञाकारिता में अचल अवश्य बने रहना चाहिए। तुम यूँ ही जब अच्छा लगे तभी आज्ञा नहीं मान सकते हो और जब अच्छा न लगे तब अवज्ञा नहीं कर सकते हो। इस प्रकार की अवज्ञा को परमेश्वर का अनुमोदन नहीं मिलता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" से
परमेश्वर द्वारा मनुष्य को सिद्ध किए जाने के सही मार्ग में प्रवेश करना पवित्र आत्मा के वास्तविक कार्य के सही मार्ग में प्रवेश करना है; और यही पवित्र आत्मा के मार्ग पर चलना भी है। इस वक्त पवित्र आत्मा जिस मार्ग को अपनाता है वह परमेश्वर के वास्तविक वचन हैं। अतः उस मार्ग पर चलने के इच्छुक व्यक्ति को देहधारी परमेश्वर के वास्तविक वचनों का पालन करना चाहिए, और उन्हें खाना तथा पीना चाहिए। वह वचनों का कार्य कर रहा है, और सब कुछ उसके वचनों से कहा जाता है, और सब कुछ उसके वचनों, उसके वास्तविक वचन, पर स्थापित है। परमेश्वर का सत्य वचन। चाहे बात बिना संदेह परमेश्वर के देह-धारण की हो या उसे जानने की, हमें उसके वचनों पर ध्यान देने का अधिक प्रयास करना चाहिए। अन्यथा हम कुछ प्राप्त नहीं कर पाएंगे और हमारे पास कुछ शेष नहीं रहेगा। सिर्फ परमेश्वर को जान करके ही और उसके वचनों को खाने और पीने के आधार पर उसे संतुष्ट करके ही कोई व्यक्ति धीरे-धीरे उसके साथ उचित संबंध स्थापित कर सकता है। उसके वचनों को खाना और पीना तथा उन्हें अभ्यास में लाना ही परमेश्वर के साथ श्रेष्ठ सहयोग है, और यह अभ्यास ही परमेश्वर के जन होने की गवाही देगा। जब एक व्यक्ति परमेश्वर के वास्तविक वचनों को समझता है और उसके सार का पालन करने में सक्षम होता है, तो वह पवित्र आत्मा द्वारा दिखाए मार्ग पर जीवन जी रहा होता है और वह परमेश्वर द्वारा मनुष्य को सिद्ध करने के सही मार्ग में प्रवेश कर चुका है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वो वे लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं" से
परमेश्वर द्वारा लोगों से माँग किया जाने वाला सबसे निम्नतम स्तर यह है कि वे अपने हृदयों को परमेश्वर के प्रति खोल सकें। यदि मनुष्य अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दे दे और परमेश्वर से वह कहे जो वास्तव में उसके हृदय में परमेश्वर के लिए है, तो परमेश्वर मनुष्य में कार्य करने के लिए तैयार है; परमेश्वर मनुष्य का विकृत हृदय नहीं चाहता, बल्कि उसका शुद्ध और खरा हृदय चाहता है। यदि मनुष्य सच्चाई के साथ परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय से नहीं बोलता है, तो परमेश्वर मनुष्य के हृदय को स्पर्श नहीं करता या उसके भीतर कार्य नहीं करता।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "प्रार्थना की क्रिया के विषय में" से
तहेदिल से परमेश्वर की आत्मा को स्पर्श करके लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उससे प्रेम करते हैं, और उसे संतुष्ट करते हैं, और इस प्रकार वे परमेश्वर की संतुष्टि प्राप्त करते हैं; जब वे तहेदिल से परमात्मा के शब्दों को समझते हैं, तो परमेश्वर की आत्मा का उन पर भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि तुम एक उचित आध्यात्मिक जीवन प्राप्त करना चाहते हो और परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध स्थापित करना चाहते हैं, तो तुमको पहले उसे अपना हृदय अर्पित करना होगा, और अपने हृदय को उनके सामने शांत करना होगा। अपने पूरे हृदय को परमेश्वर की स्तुति में डुबोकर ही तुम धीरे-धीरे एक उचित आध्यात्मिक जीवन का विकास कर सकते हो। … यदि तुम्हारा हृदय परमेश्वर में डूब सकता है और उसके सामने शांत रह सकता है, तो तुम्हारे पास यह अवसर और वह योग्यता होगी कि पवित्र आत्मा तुम्हारा उपयोग करे, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी को तुम प्राप्त करो, और इससे भी ज़्यादा, तुम्हारे पास अवसर होगा कि पवित्र आत्मा तुम्हारी कमियों को दूर करे। जब तुम अपने हृदय को परमेश्वर के सामने अर्पित करते हो, तो सकारात्मक पहलू में, तुम अधिक गहराई से प्रवेश कर सकोगे और समझ के उच्च स्तर पर पहुंच सकोगे; नकारात्मक पहलू में, तुम अपनी गलतियों और कमियों की अधिक समझ प्राप्त कर सकोगे, तुम परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति करने के लिए ज़्यादा उत्सुक रहोगे, और तुम निष्क्रिय नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से प्रवेश करोगे। इसका मतलब होगा कि तुम एक सही व्यक्ति हो।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है" से
पवित्र आत्मा इस सिद्धांत के अनुसार काम करता है: लोगों के सहयोग के माध्यम से, उनके परमेश्वर की सक्रियता से प्रार्थना करने, परमेश्वर को खोजने एवं उसके करीब आने के माध्यम से, परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है और पवित्र आत्मा द्वारा उन्हें प्रबुद्ध और रोशन किया जा सकता है। यह ऐसा मामला नहीं है कि पवित्र आत्मा एकतरफ़ा कार्य करता है, या कि मनुष्य एकतरफ़ा कार्य करता है। दोनों ही अपरिहार्य हैं, और लोग जितना अधिक सहयोग करते हैं, और वे जितना अधिक परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों को प्राप्त करने की खोज करते हैं, पवित्र आत्मा का कार्य उतना ही अधिक विशाल होता है। पवित्र आत्मा के कार्य के साथ जोड़ा गया केवल लोगों का वास्तविक सहयोग ही, परमेश्वर के वचनों के वास्तविक अनुभवों एवं सारभूत ज्ञान को उत्पन्न कर सकता है। धीरे-धीरे, इस तरीके से अनुभव करने के माध्यम से, अंततः एक पूर्ण व्यक्ति उत्पन्न होता है। परमेश्वर अलौकिक चीज़ें नहीं करता है; लोगों की धारणाओं में, परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, और सब कुछ परमेश्वर के द्वारा किया जाता है-परिणामस्वरूप लोग निष्क्रियता से प्रतीक्षा करते हैं, परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते हैं या प्रार्थना नहीं करते हैं, और मात्र पवित्र आत्मा के स्पर्श की प्रतीक्षा करते हैं। हालाँकि, जिनके पास सही समझ है, वे यह विश्वास करते हैं कि: परमेश्वर के कार्यकलाप केवल वहाँ तक जा सकते हैं जहाँ तक मेरा सहयोग होता है, और मुझ पर परमेश्वर के कार्य का जो प्रभाव पड़ता है इस बात पर निर्भर करता है कि मैं किस प्रकार सहयोग करता हूँ। जब परमेश्वर बोलता है, तो परमेश्वर के वचनों को ढूँढ़ने और उनकी ओर प्रयत्न करने के लिए मुझे वह सब करना चाहिए जो मैं कर सकता हूँ; यही है वह जो मुझे प्राप्त करना चाहिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वास्तविकता को कैसे जानें" से
तुम परमेश्वर के सामने बोझ से दबे हुए आते हो और तुम हमेशा महसूस करते हो कि तुम्हारे जीवन में बहुत कमियाँ हैं, ऐसे कई सत्य हैं जिन्हें तुमको जानना है, ऐसी कई वास्तविकताएं हैं जो तुमको अनुभव करने की आवश्यकता है, और यह कि तुमको अपनी हर चिंता परमेश्वर की इच्छा पर छोड़ देनी चाहिए-ये बातें हमेशा तुम्हारे दिमाग़ में चलती रहती हैं, और ऐसा लगता है जैसे ये बातें तुम पर इतना दबाव डाल रही हैं कि तुम्हारे लिए साँस लेना मुश्किल हो गया है, और यही वजह है कि तुम्हारा दिल भारी-भारी महसूस करता है (लेकिन एक नकारात्मक तरह से नहीं)। केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता को स्वीकार करने और परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित होने के योग्य हैं। यह उनके बोझ की वजह से है, क्योंकि उनका दिल भारी-भारी महसूस करता है, और, कहा जा सकता है कि परमेश्वर के सामने जो कीमत वे अदा कर चुके हैं और जिस पीड़ा से वे गुज़र चुके हैं उसके कारण वे उसकी प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त करते हैं, क्योंकि परमेश्वर किसी का विशेष रूप से सत्कार नहीं करता है। लोगों के प्रति अपने व्यवहार में वह हमेशा निष्पक्ष रहता है, लेकिन वह लोगों को जो प्रदान करता है वह उसे मनमाने ढंग से और बिना किसी शर्त के नहीं देता है। यह उसके धर्मी स्वभाव का एक पहलू है। … लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर इन मानदंडों का इस्तेमाल करता है: उनका दिल परमेश्वर की ओर झुका होता है, परमेश्वर के वचनों का उनपर बोझ पड़ता है, उनके पास तड़पता हुआ दिल और सत्य को तलाशने का संकल्प होता है। केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त कर सकते हैं और अक्सर प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त कर पाते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है" से
तुम सरल और उदार, स्वयं को जानने और सत्य का अभ्यास करने के इच्छुक हो। परमेश्वर देखता है कि तुम स्वयं जानने और सत्य का अभ्यास करने के इच्छुक हो, अतः जब तुम दुर्बल और नकारात्मक होते हो, वह दोहरे रूप से तुम्हें प्रबुद्ध करता है, स्वयं को और जानने में तुम्हारी सहायता करता है, स्वयं के लिए पश्चाताप के और अधिक इच्छुक होने, और उन बातों का अभ्यास करने के योग्य करता है, जिन बातों का अभ्यास तुम्हें करना चाहिए। मात्र इसी रीति से तुम्हारा हृदय शांतिपूर्ण और आराम में होता है। एक व्यक्ति, जो साधारणतः परमेश्वर और स्वयं को जानने और अपने अभ्यास करने पर ध्यान देता है, वही परमेश्वर के कार्य को निरन्तर प्राप्त करने और परमेश्वर से निरन्तर मार्गदर्शन और प्रबुद्धता प्राप्त करने के योग्य होगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मात्र वे लोग जो अभ्यास करने पर केन्द्रित रहते हैं, उन्हें ही सिद्ध बनाया जा सकता है" से
अपने दैनिक जीवन में तुम्हें उन शब्दों को जो तुम कहते हो और उन कार्यों को जो तुम करते हो समझना आवश्यक है जो परमेश्वर के साथ तुम्हारे संबंध को असामान्य कर देंगे, तब स्वयं को सुधारो और सही तरीके में प्रवेश करो। अपने शब्दों, अपने कार्यों, अपने हर चाल-चलन को, और अपने विचारों और धारणाओं को हर समय जाँचो। अपनी सच्ची अवस्था को समझो और पवित्र आत्मा के कार्य के मार्ग में प्रवेश करो। केवल इसी प्रकार से तुम परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध रख सकते हो। यह आकलन करने के द्वारा कि क्या परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है, तुम अपने इरादों को सुधार पाओगे, मनुष्य के सार को समझ पाओगे, और स्वयं को समझ पाओगे; इसके द्वारा तुम वास्तविक अनुभवों में प्रवेश कर पाओगे, स्वयं को सही रूप में त्याग पाओगे, और इच्छित समर्पण कर पाओगे। ऐसे विषयों में जब तुम यह अनुभव कर रहे हो कि क्या परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है, तो तुम परमेश्वर के द्वारा सिद्ध किए जाने के अवसरों को प्राप्त कर पाओगे, तुम ऐसी कई परिस्थितियों को समझ पाओगे जिनमें पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है, और तुम शैतान की कई चालों और उसके षडयंत्रों को देख पाओगे। केवल इसी प्रकार से तुम परमेश्वर के द्वारा सिद्ध किए जा सकते हो। तुम परमेश्वर के साथ अपने संबंध को सही करते हो ताकि अपने आपको परमेश्वर के सभी प्रबंधनों के प्रति समर्पित कर दो। यह इसलिए है कि तुम और भी गहराई से सच्चे अनुभवों में प्रवेश करो, और पवित्र आत्मा के और अधिक कार्य को प्राप्त करो। …
… इसको पढ़ने के बाद और एक समझ प्राप्त कर लेने के बाद तुम परमेश्वर की हर वाणी को कार्य में लाओगे। इसके बारे में सोचे बिना कि तुम पहले इसे कैसे कार्य में लाते थे - शायद अतीत में तुम्हारी देह कमजोर थी, तुम विद्रोही थे, और तुम विरोध करते थे - यह कोई बड़ी बात नहीं है, और यह आज तुम्हारे जीवन को बढ़ने से नहीं रोक सकती। जब तक तुम वर्तमान में परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध रख सकते हो, तो एक आशा है। यदि हर बार जब तुम परमेश्वर के वचन को पढ़ते हो, और तुम में परिवर्तन होते हैं और तुम दूसरे लोगों को अनुमति देते हो कि वे देखें कि तुम्हारा जीवन बेहतरी के लिए बदल गया है, तो यह दिखाता है कि तुम्हारा परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध है और यह एक सही रूप में है। परमेश्वर लोगों से उनके अपराधों के आधार पर व्यवहार नहीं करता। समझ लेने और जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद जब तक तुम उसके विरुद्ध फिर से विद्रोह नहीं करते और फिर से उसका विरोध नहीं करते, तब तक परमेश्वर तुम पर दया करता रहेगा। जब तुम इस समझ को प्राप्त कर लेते हो और परमेश्वर के द्वारा सिद्ध किए जाने की इच्छा को रखते हो तो परमेश्वर की उपस्थिति में तुम्हारी स्थिति सामान्य रहेगी। तुम चाहे कुछ भी करते हो, बस इस बात पर ध्यान दो : यदि मैं यह कार्य करूँगा तो परमेश्वर क्या सोचेगा? यह भाइयों और बहनों को कैसे प्रभावित करेगा? अपनी प्रार्थना, संगति, बोलचाल, कार्य और लोगों के साथ संपर्क में अपने इरादों या अभिप्रायों को जाँचो, और जाँचो कि क्या परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है या नहीं। यदि तुम अपने इरादों और विचारों में भेद कर पाने में अयोग्य हो, तो तुम में जाँचने की शक्ति नहीं है, जो प्रमाणित करता है कि तुम सत्य के बारे में बहुत कम जानते हो। उन सब बातों की स्पष्ट समझ रखो जो परमेश्वर करता है, परमेश्वर के वचन के अनुसार बातों को देखो, और परमेश्वर की ओर खड़े होकर बातों को देखो। इस प्रकार से तुम्हारे दृष्टिकोण सही होंगे। अतः, परमेश्वर के साथ एक सही संबंध बनाना हर उस व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है जो परमेश्वर पर विश्वास करता है; प्रत्येक व्यक्ति को इसे सबसे महत्वपूर्ण कार्य के रूप में, और उनके जीवन की एक मुख्य घटना के रूप में मानना चाहिए। जो कुछ भी तुम करते हो उसका आकलन इसके सामने किया जाना चाहिए कि क्या परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है या नहीं। यदि परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है और तुम्हारे इरादे सही हैं, तब वह कार्य करो। परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध बनाए रखने के लिए तुम अपने व्यक्तिगत लाभों को खो देने का भय नहीं रख सकते, तुम शैतान को सफल होने की अनुमति नहीं दे सकते, तुम शैतान को अपने पर नियंत्रण रखने की अनुमति नहीं दे सकते, तुम शैतान को यह अनुमति नहीं दे सकते कि वह तुम्हें हँसी का पात्र बनाए। ऐसा इरादा इस बात का प्रकटीकरण है कि परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है। यह देह के कार्यों के लिए नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शांति के लिए है, यह पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करने के लिए है और परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने के लिए है। यदि तुम्हें एक उचित या सही दशा में प्रवेश करना है, तो तुम्हें परमेश्वर के साथ एक अच्छा संबंध बनाना आवश्यक है, तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास करने के दृष्टिकोणों को सही रखना आवश्यक है। यह परमेश्वर को अनुमति देना है कि वह तुम्हें प्राप्त करे, परमेश्वर को अनुमति देना है कि वह अपने वचन के फलों को तुम में प्रकट करे, और तुम्हें और अधिक प्रकाशित और प्रज्ज्वलित करे। इस प्रकार से तुम सही आचरण में प्रवेश करोगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?" से
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