परमेश्वर के वचन से जवाब:
मनुष्य के पापों को देहधारी परमेश्वर के द्वारा क्षमा किया गया था, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य के भीतर कोई पाप नहीं है। पाप बलि के माध्यम से मनुष्य के पापों को क्षमा किया जा सकता है, परन्तु मनुष्य इस मसले को हल करने में असमर्थ रहा है कि वह कैसे आगे और पाप नहीं कर सकता है और कैसे उसके पापी स्वभाव को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है और उसे रूपान्तरित किया जा सकता है। परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से मनुष्य के पापों को क्षमा किया गया था, परन्तु मनुष्य पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीवन बिताता रहा। वैसे तो, मनुष्य को भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से अवश्य पूरी तरह से बचाया जाना चाहिए ताकि मनुष्य का पापी स्वभाव पूरी तरह से दूर किया जाए और फिर कभी विकसित न हो, इस प्रकार मनुष्य के स्वभाव को बदले जाने की अनुमति दी जाए। इसके लिए मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह जीवन में उन्नति के पथ को, जीवन के मार्ग को, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझे। साथ ही इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है ताकि मनुष्य के स्वभाव को धीरे-धीरे बदला जा सके और वह प्रकाश की चमक में जीवन जी सके, और यह कि वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सभी चीज़ों को कर सके, और भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके, और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, उसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा। …इसलिए, उस चरण के पूरा हो जाने के पश्चात्, अभी भी न्याय और ताड़ना का काम है। यह चरण वचन के माध्यम से मनुष्य को शुद्ध बनाता है ताकि मनुष्य को अनुसरण करने का एक मार्ग प्रदान किया जाए। …यह चरण पिछले चरण की अपेक्षा अधिक अर्थपूर्ण और साथ ही अधिक लाभदायक भी है, क्योंकि अब वचन ही है जो सीधे तौर पर मनुष्य के जीवन की आपूर्ति करता है और मनुष्य के स्वभाव को पूरी तरह से नया बनाए जाने में सक्षम बनाता है; यह कार्य का ऐसा चरण है जो अधिक विस्तृत है। इसलिए, अंत के दिनों में देहधारण ने परमेश्वर के देहधारण के महत्व को पूरा किया है और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना का पूर्णतः समापन किया है।
…न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से, मनुष्य अपने भीतर के गन्दे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने में समर्थ हो सकता है। वह सब कार्य जिसे आज किया गया है वह इसलिए है ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से, मनुष्य अपनी भ्रष्टता को दूर फेंक सकता है और उसे शुद्ध किया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाए, कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्ध करने का कार्य है। सच में, यह चरण विजय का और साथ ही उद्धार का दूसरा चरण है। मनुष्य को वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से परमेश्वर के द्वारा प्राप्त किया जाता है; शुद्ध करने, न्याय करने और खुलासा करने के लिए वचन के उपयोग के माध्यम से मनुष्य के हृदय के भीतर की सभी अशुद्धताओं, अवधारणाओं, प्रयोजनों, और व्यक्तिगत आशाओं को पूरी तरह से प्रकट किया जाता है। यद्यपि मनुष्य को छुटकारा दिया गया है और उसके पापों को क्षमा किया गया है, फिर भी इसे केवल इतना ही माना जाता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता है और मनुष्य के अपराधों के अनुसार मनुष्य से व्यवहार नहीं करता है। हालाँकि, जब मनुष्य देह में रहता है और उसे पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को अंतहीन रूप से प्रकट करते हुए, केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है जो मनुष्य जीता है, पाप और क्षमा का एक अंतहीन चक्र। अधिकांश मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं ताकि शाम को स्वीकार कर सकें। वैसे तो, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए सदैव प्रभावी है, फिर भी यह मनुष्य को पाप से बचाने में समर्थ नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (4)" से
अपने जीवन में, यदि मनुष्य शुद्ध होना चाहता है और अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करना चाहता है, यदि वह एक सार्थक जीवन बिताना चाहता है, और एक जीवधारी के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहता है, तो उसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और उसे परमेश्वर के अनुशासन और परमेश्वर के प्रहार को अपने आप से दूर नहीं होने देना चाहिए, इस प्रकार वह अपने आपको शैतान के छल प्रपंच और प्रभाव से मुक्त कर सकता है और परमेश्वर के प्रकाश में जीवन बिता सकता है। यह जानो कि परमेश्वर की ताड़ना और न्याय वह ज्योति है, और वह मनुष्य के उद्धार की ज्योति है, और यह कि मनुष्य के लिए उस से बेहतर कोई आशीष, अनुग्रह या सुरक्षा नहीं है। मनुष्य शैतान के प्रभाव के अधीन जीता है, और देह में रहता है; यदि उसे शुद्ध नहीं किया जाता है और उसे परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है, तो वह पहले से कहीं ज़्यादा भ्रष्ट बन जाएगा। यदि वह परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो उसे शुद्ध होना और उद्धार पाना होगा। …
…यदि मनुष्य को स्वच्छ नहीं किया जाता है, तो वह गन्दा हो जाता है; यदि परमेश्वर के द्वारा उसकी सुरक्षा और देखभाल नहीं की जाती है, तो वह अभी भी शैतान का बन्धुआ है; यदि उसका न्याय और उसकी ताड़ना नहीं की जाती है, तो उसके पास शैतान के बुरे प्रभाव के अत्याचार के बचने का कोई उपाय नहीं होगा। वह भ्रष्ट स्वभाव जो तू दिखाता है और वह अनाज्ञाकारी व्यवहार जो तू करता है वे इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि तू अभी भी शैतान के शासन के अधीन जी रहा है। यदि तेरे मस्तिष्क और विचारों को शुद्ध नहीं किया गया है, और तेरे स्वभाव का न्याय और उसकी ताड़ना नहीं की गई है, तो तेरी पूरी हस्ती को अभी भी शैतान के प्रभुत्व के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, तेरा मस्तिष्क शैतान के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, तेरे विचार शैतान के द्वारा कुशलता से इस्तेमाल किए जाते हैं, और तेरी पूरी हस्ती शैतान के हाथों नियन्त्रित होती है। …
…आज की सच्चाई उन्हें दी जाती है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं। यह उद्धार उन्हें दिया जाता है जो परमेश्वर के द्वारा उद्धार पाने की लालसा करते हैं, और यह उद्धार सिर्फ तुम लोगों द्वारा ग्रहण करने के लिए नहीं है, परन्तु यह इसलिए भी है ताकि तुम लोग परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाओ। तुम लोग परमेश्वर को ग्रहण करते हो ताकि परमेश्वर भी तुम लोगों को ग्रहण कर सके। आज मैं ने ये वचन तुम लोगों से कहे हैं, और तुम लोगों ने इन्हें सुना है, और तुम लोगों को इन वचनों के अनुसार व्यवहार करना है। अंत में, जब तुम लोग इन वचनों को व्यवहार में लाते हो तो यह तब होगा जब मैं इन वचनों के द्वारा तुम लोगों को ग्रहण कर लूँगा; उस समय, तुम लोगों ने भी इन वचनों को ग्रहण लिया होगा, दूसरे शब्दों में, तुम लोगों ने इस सर्वोच्च उद्धार को ग्रहण कर लिया होगा। तुम लोगों को शुद्ध कर दिए जाने के बाद, तो तुम लोग सच्चे मानव हो जाओगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" से
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