25. परमेश्वर आज मनुष्यों के विचारों और उनके आत्माओं को, और साथ ही उनके दिलों में हजारों सालों से रही परमेश्वर की छवि को, बदलने के उद्देश्य से उनके बीच आता है। इस अवसर के माध्यम से, वह मनुष्य को पूर्ण बनाएगा। अर्थात, वह मनुष्यों के ज्ञान के माध्यम से, वे जिस तरह से उसके बारे में जानकारी पाते हैं और उसके प्रति उनका जो दृष्टिकोण है, उन्हें बदल देगा, ताकि परमेश्वर के बारे में उनका ज्ञान एक नए सिरे से शुरू हो सके, और उनके दिल इसके माध्यम से नवीकृत और परिवर्तित हो सकें। निपटना और अनुशासन साधन हैं, जबकि विजय और नवीकरण लक्ष्य हैं। मनुष्य ने एक अस्पष्ट परमेश्वर के बारे में जिन अंधविश्वासी विचारों को पकड़ रखा है, उन्हें दूर करना हमेशा परमेश्वर का इरादा रहा है, और हाल ही में उसके लिए यह एक तत्कालिक आवश्यकता का मुद्दा बन गया है। मुझे आशा है कि सभी लोग इस पर आगे चिंतन करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति कैसे अनुभव करता है इसे बदलो, ताकि परमेश्वर का यह अत्यावश्यक इरादा जल्द ही पूरा किया जा सके और पृथ्वी पर परमेश्वर के काम का अंतिम चरण एक फलदायी निष्कर्ष पर लाया जा सके। तुम सब की वफादारी को वैसे दिखाओ जैसे कि तुम लोगों को इसे दिखाना चाहिए, और एक अंतिम बार परमेश्वर के दिल को सकून दे दो। मुझे आशा है कि भाइयों और बहनों में से कोई भी इस जिम्मेदारी से जी नहीं चुराएगा या केवल दिखावे के लिए हाथ-पैर नहीं हिलाएगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (7)" से
26. परमेश्वर ने इस बार निमंत्रण पर, और मनुष्य की स्थिति को देखते हुए, देह धारण किया है। अर्थात, वह मनुष्य को वह मुहैय्या कराने आया है जिसकी उसे ज़रूरत है। वह हर व्यक्ति को, चाहे उसका सामर्थ्य या लालन-पालन कैसा भी हो, परमेश्वर के वचन को देखने के लिए, और उसके वचन से, परमेश्वर के अस्तित्व और उसकी अभिव्यक्ति को देखने के लिए और परमेश्वर द्वारा उन्हें परिपूर्ण बनाने को स्वीकार करने के लिए, सक्षम बनाता है। उसका वचन मनुष्य के विचारों और धारणाओं को बदल देगा जिससे कि परमेश्वर का सच्चा चेहरा मनुष्यों के दिल की गहराई में दृढ़ता से जड़ित हो सके। यह पृथ्वी पर परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है। मनुष्य का स्वभाव चाहे कितना ही महान हो, मनुष्य का सार चाहे कितना भी ओछा हो, या मनुष्य ने अतीत में जैसा भी व्यवहार किया हो, परमेश्वर इन बातों पर कोई ध्यान नहीं देता। वह मनुष्यों के लिए केवल यह उम्मीद करता है कि वे अपने दिल में परमेश्वर की छवि का पूरी तरह से नवीकरण करें और मानव जाति के सार को जान सकें, जिससे मनुष्य के सैद्धांतिक दृष्टिकोण को बदला जा सके। वह आशा करता है कि मनुष्य परमेश्वर के लिए गहराई से ललक रख सके और उसके प्रति एक अनन्त अनुराग रख सके। परमेश्वर मनुष्य से बस इतना ही चाहता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (7)" से
27. हजारों वर्षों की प्राचीन संस्कृति और इतिहास के ज्ञान ने मानव की सोच और अवधारणाओं तथा मानसिक दृष्टिकोण को अभेद्य और अध्वंस्य हो जाने की सीमा तक बंद कर दिया है। मनुष्य नरक के अट्ठारहवें स्तर में रहता है, मानो कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा कालकोठरियों में निर्वासित कर दिया गया हो, जहाँ वे रोशनी को कभी न देख सकें। सामंतवादी सोच ने मनुष्यों का इस तरह दमन किया है कि वे मुश्किल से साँस ले पाते हैं और उनका दम घुट रहा है। उनमें विरोध करने की थोड़ी-सी भी ताकत नहीं है और वे बस चुपचाप सहते और सहते हैं ...। धर्म और न्याय के लिए लड़ने या खड़े होने का किसी ने भी साहस नहीं किया है; सालों-साल, दिन-ब-दिन सामंती मालिकों के उत्पीड़न और हमलों तले, वे बस एक जीवन जीते हैं जो एक जानवर के जीवन से बेहतर नहीं होता। मनुष्य ने कभी धरती पर खुशी पाने के लिए परमेश्वर की तलाश नहीं की है। ऐसा लगता है कि मनुष्य को पीट कर गिरा दिया गया है, शरद ऋतु में गिरने वाले सूखे और भूरे पत्तों की तरह। मनुष्यों ने बहुत पहले ही अपनी याददाश्त खो दी है और मानव जाति नामक नरक में वे असहाय रहते हैं, आखिरी दिन के इंतजार में ताकि वे नरक के साथ ही मर-मिट जाएँ, मानो कि वह आखिरी दिन जिस की वे चाह रखते हैं वो दिन हो जब वे आरामदायक शान्ति का आनंद लेंगे। सामंती नैतिकता ने मनुष्य का जीवन "अधोलोक" में पहुंचा दिया है, जिससे व्यक्ति की विरोध करने की क्षमता और भी कम हो गई है। विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न के तले मनुष्य धीरे-धीरे अधोलोक में और गहरा गिर गया तथा परमेश्वर से और दूर हो गया। अब, परमेश्वर मनुष्य के लिए एक पूर्ण अजनबी रह गया है, और जब वे मिलते हैं तो मनुष्य अब भी कतरा कर उससे बच निकलने की जल्दी करते हैं। मनुष्य उसे स्वीकार नहीं करता है और उसे इस तरह अलग कर देता है जैसे कि उसे पहले कभी जाना या देखा ही न हो। … चीन संस्कृति के ज्ञान ने चुपचाप मनुष्य को परमेश्वर की उपस्थिति से चुरा लिया है और मनुष्य को दुष्टों के राजा और उसके पुत्रों को सौंप दिया है। चार पुस्तकों और पाँच क्लासिक्स ने मनुष्य की सोच और अवधारणाओं को विद्रोह के एक और युग में पहुँचा दिया है, जिससे मनुष्य उनकी और भी आराधना करता है जिन्होंने उन पुस्तकों और क्लासिक्स को लिखा था, परमेश्वर के बारे में उनकी धारणा को बढ़ाते हुए। दुष्टों के राजा ने निर्दयतापूर्वक मानव जाति के दिल से, उनकी जागरूकता के बिना, परमेश्वर को बाहर निकाल दिया, जबकि उसने मनुष्य के दिल को हर्षपूर्वक हथिया लिया। तब से मनुष्य, दुष्टों के राजा का चेहरा धारण करने वाले एक बदसूरत और दुष्ट आत्मा के अधीन हो गया था। परमेश्वर के प्रति एक घृणा उनके सीनों में भर गई, और दुष्टों के राजा की दुर्भावना दिन-ब-दिन आदमी के भीतर फैलती गई, जब तक कि मनुष्य पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो गया। मनुष्य को अब स्वतंत्रता नहीं थी, और वह दुष्टों के राजा के चंगुल से मुक्त होने में असमर्थ था। इसलिए, मनुष्य केवल उसी जगह ठहर कर ज़ब्त हो सकता था, आत्मसमर्पण करते हुए और उसके अधीन होते हुए। इसने बहुत पहले मनुष्य के युवा दिल के भीतर नास्तिकता के फोड़े का बीज बोया था, उसे इस तरह की भ्रांतियाँ सिखाते हुए जैसे कि "विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बारे में सीखो, चार आधुनिकीकरणों को समझो, दुनिया में कोई परमेश्वर नहीं है।" न केवल यह, इसने बार-बार घोषित किया, "आओ, हम अपने मेहनती श्रमिकों के माध्यम से एक खूबसूरत मातृभूमि का निर्माण करें", सभी को अपने देश की सेवा करने के लिए बचपन से तैयार होने के लिए कहते हुए। मनुष्य को अनजाने में इसके सामने लाया गया था, और इसने बेझिझक सारा श्रेय ले लिया (परमेश्वर द्वारा सभी मनुष्यों को अपने हाथों में रखने का उल्लेख करते हुए)। कभी एक बार भी इसने शर्म महसूस नहीं की, न ही शर्मिंदगी की कोई भावना रखी। इसके अलावा, इसने निर्लज्जतापूर्वक परमेश्वर के लोगों को लाकर अपने घर में बंदी बना लिया, जबकि यह मेज पर एक चूहे की तरह उछलता रहा और मनुष्यों से परमेश्वर के रूप में इसकी आराधना करवाई। एक ऐसा आततायी है यह! ऐसे चौंकाने वाले लांछनों को यह चीख-चीखकर कहता है, "दुनिया में कोई परमेश्वर नहीं है। हवा प्राकृतिक नियमों के कारण बहती है; बारिश वो नमी है जो द्रवीभूत होकर पृथ्वी पर बूंदों में गिर जाती है; भूविज्ञान सम्बन्धी परिवर्तनों के कारण पृथ्वी की सतह का हिलना ही भूकंप है; सूरज की सतह पर नाभिक खलल के कारण हवा का शुष्क हो जाना ही सूखा पड़ने की वजह है। ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं। कौन-सा हिस्सा परमेश्वर का कार्य है?" यहाँ तक कि चिल्लाते[क] हुए यह ऐसी बेशर्म बातें भी करता है: "मनुष्य प्राचीन वानरों से विकसित हुआ है, और लगभग एक अरब साल पहले के एक आदिम समाज से प्रगति करते हुए आज की दुनिया विकसित हुई है। किसी देश के बढ़ने या गिरने का फैसला उसके लोगों के हाथों द्वारा किया जाता है।" पीछे, मनुष्यों से इसे दीवारों पर उल्टा लटकाने के लिए कहा जाता है और इसे मेज पर संजोकर रख दिया जाता है और इसकी आराधना की जाती है। जब यह चीखता है कि "कोई परमेश्वर नहीं है," तो वह खुद को परमेश्वर के रूप में मानता है, परमेश्वर को धरती की सीमाओं से लगातार बाहर धकेलते हुए। यह परमेश्वर की जगह में खड़ा होता है और दुष्टों के राजा के रूप में कार्य करता है। यह तो निपट हास्यास्पद है! इसकी वज़ह से कोई व्यक्ति जहरीली नफरत से भर सकता है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर इसका कट्टर दुश्मन है, और परमेश्वर इसके साथ असंगत है। यह परमेश्वर को दूर भगाने के षड्यंत्र बनाता है जबकि यह अदंडित और स्वतंत्र रहता है।[1] ऐसा है यह दुष्टों का राजा! हम इसके अस्तित्व को कैसे सह सकते हैं? जब तक यह परमेश्वर के काम को छेड़कर उसे फटेहाल, उलट-पुलट[2] नहीं कर लेता है, तब तक यह चैन से नहीं रहेगा, मानो कि यह अंत तक परमेश्वर का विरोध करना चाहता हो, जब तक कि या तो मछली मर जाए या जाल ही फट जाए। यह जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करता है और लगातार करीब आता जाता है। इसके घिनौने चेहरे को बहुत पहले से पूरी तरह से बेनक़ाब किया गया है और अब वह आहत और पिटा हुआ है[3], एक भयानक दुर्दशा में, फिर भी यह परमेश्वर से नफरत करने में नरम नहीं पड़ता है, मानो कि वह यह चाहता हो कि अपने दिल में रही घृणा से मुक्ति पाने के लिए, वह परमेश्वर को पूरी तरह से एक ही कौर में पूरा निगल जाए। हम इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, परमेश्वर के इस घृणित शत्रु को! केवल इसका उन्मूलन और पूर्ण विनाश हमारे जीवन की इच्छा को पूरा कर सकता है। इसे यूँ ही उच्छृंखल रूप से बढ़ते रहने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह मनुष्य को इस सीमा तक भ्रष्ट कर चुका है कि मनुष्य स्वर्ग के सूर्य को नहीं जानता, और वह अचेत और कुंठित हो जाता है। मनुष्य ने सामान्य मानवीय विवेक को खो दिया है। इसे नष्ट और भस्म करने के लिए क्यों न हम अपनी पूरी हस्ती का बलिदान कर दें ताकि बचे हुए खतरे को हम दूर कर सकें और परमेश्वर का कार्य अभूतपूर्व भव्यता तक शीघ्रतर पहुँच सके? दुष्टों का यह गिरोह मनुष्यों के बीच आ गया है और इसने बहुत खलबली और अशांति फैलाई है। ये सभी मनुष्यों को एक खड़ी चट्टान के कगार पर ले आये हैं, उन्हें धकेल कर टुकड़ों में धराशायी करने के बाद, उनके शवों को खा जाने की गुप्त योजना बना कर। वे परमेश्वर की योजना को बाधित कर पाने की और परमेश्वर के साथ एक लम्बा जुआ[4] खेलकर प्रतिस्पर्धा करने की निरर्थक आशा करते हैं। यह किसी तरह से आसान नहीं है! क्रूस को आखिरकार दुष्टों के राजा के लिए ही तैयार किया गया है जो सबसे घृणित अपराधों का दोषी है। परमेश्वर का उस क्रूस से सरोकार नहीं है और वह पहले से ही शैतान के लिए उसे छोड़ चुका है। परमेश्वर काफी पहले ही विजयी हो चुका है और अब मानव जाति के पापों पर दुख महसूस नहीं करता है। वह सभी मानव जाति के लिए उद्धार लाएगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (7)" से
28. ऊपर से नीचे तक और शुरुआत से अंत तक, यह परमेश्वर के कार्य को बाधित कर रहा है और उसके साथ विवाद में बर्ताव कर रहा है। प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की सभी बातें, प्राचीन संस्कृति का मूल्यवान ज्ञान, ताओवाद और कन्फ्यूशीवाद की शिक्षाएँ, और कन्फ्यूशियस के क्लासिक्स और सामंती संस्कारों ने मनुष्य को नरक में पहुँचा दिया है। उन्नत आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, साथ ही विकसित उद्योग, कृषि और व्यवसाय कहीं भी नज़र नहीं आते हैं। इसके बजाय, परमेश्वर के कार्य को जानबूझकर बाधित, प्रतिरोधित और नष्ट करने के लिए यह प्राचीन "वानरों" द्वारा प्रचारित केवल सामंती रिवाजों पर जोर देता है। आज तक इसने मनुष्य को केवल पीड़ित ही नहीं किया है, बल्कि यह मनुष्य को पूरी तरह से खा जाना[5] चाहता है। सामंती नीति-संहिता की शिक्षा और प्राचीन संस्कृति के ज्ञान की विरासत ने लंबे समय से मनुष्य को संक्रमित किया गया है और मनुष्यों को बड़े और छोटे दुष्टों में बदल दिया है। कुछ ही ऐसे हैं जो आसानी से परमेश्वर को स्वीकार करते हैं और परमेश्वर के आगमन का उत्साहपूर्वक स्वागत करते हैं। मनुष्य का चेहरा हत्या से भर गया है, और सभी जगहों पर, मृत्यु हवा में है। वे इस भूमि से परमेश्वर को निष्कासित करने की कोशिश करते हैं; हाथों में चाकू और तलवारें के साथ, वे परमेश्वर का विनाश करने के लिए खुद को युद्ध के गठन में व्यवस्थित करते हैं। दुर्जनों की भूमि में जहाँ मनुष्य को लगातार सिखाया जाता है कि कहीं कोई परमेश्वर नहीं है, मूर्तियां फैली हुई हैं। इस जमीन के ऊपर जलते हुए कागज और धूप की एक घृणास्पद गंध फैली हुई है, इतनी घनी कि दम घुटता है। ऐसा लगता है मानो सर्प के मुड़ते और कुंडली मारते समय कीचड़ से ऊपर उठती हुई बदबू हो, और यह मनुष्य से बरबस कै कराने के लिए पर्याप्त है। इसके अलावा, दुष्ट राक्षसों द्वारा ग्रंथों से किये गए मंत्रोच्चार की हलकी आवाज़ को सुना जा सकता है। यह आवाज़ दूर नरक से आती हुई प्रतीत होती है, और मनुष्य अपनी रीढ़ की हड्डी से होकर नीचे जाती एक थरथराहट को महसूस किये बिना नहीं रह सकता है। इस देश भर में इंद्रधनुष के सभी रंगों वाली मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं, जिसने इस देश को एक चमचमाती दुनिया में बदल दिया है, और दुष्टों का राजा अपने चेहरे पर एक मूर्खतापूर्ण हँसी लिए हुए है, मानो कि उसकी शैतानी योजना सफल हो गई हो। इस बीच, मनुष्य पूरी तरह से इसके बारे में बेखबर है, और न ही मनुष्य को यह पता है कि इस दुष्ट ने पहले से ही उसे इस हद तक भ्रष्ट कर दिया है कि वह मूढ़ और पराजित हो गया है। यह परमेश्वर का सब कुछ एक झटके में मिटा देना, फिर से उसका अपमान करना और उसे मार डालना चाहता है, और उसके कार्य को ढहाने और उलट-पुलट करने का प्रयास करता है। वह कैसे परमेश्वर को समान दर्जे का मान सकता है? कैसे वह पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच अपने काम में परमेश्वर के "हस्तक्षेप" को बर्दाश्त कर सकता है? कैसे उसके घिनौने चेहरे को उजागर करने के लिए वह परमेश्वर को अनुमति दे सकता है? वह कैसे परमेश्वर को अपने काम को बाधित करने की अनुमति दे सकता है? क्रोध के साथ भभक रहा यह दुष्ट कैसे पृथ्वी पर अपनी शक्ति के दरबार में परमेश्वर को शासन करने की इजाजत दे सकता है? यह कैसे स्वेच्छा से हार स्वीकार कर सकता है? इसके कुत्सित चेहरे की असलियत को उजागर किया जा चुका है, इसलिए किसी को यह पता नहीं है कि वह हँसे या रोये, और इसकी तो बात करना ही वास्तव में मुश्किल है। क्या यही इसका सार नहीं है? एक बदसूरत आत्मा लिए वह अभी भी यही मानता है कि वह अविश्वसनीय रूप से सुंदर है। सह-अपराधियों का यह गिरोह! वे नश्वर भोग के सुख में लिप्त होने और विकार को फ़ैलाने के लिए मनुष्यों के बीच आते हैं। उनका उपद्रव दुनिया में अस्थिरता[6] का कारण बनता है और मनुष्य के दिल में आतंक ले आता है, और उन्होंने मनुष्य को विकृत कर दिया है ताकि मनुष्य असहनीय कुरूपता वाले जानवरों के समान दिखे, मूल पवित्र व्यक्ति की थोड़ी-सी भी पहचान रखे बिना। यहाँ तक कि वे धरती पर अत्याचारियों की तरह ताकत ग्रहण करना चाहते हैं। वे परमेश्वर के कार्य में बाधा डालते हैं ताकि यह मुश्किल से आगे बढ़ सके और मानव को जैसे तांबे और इस्पात की दीवारों के पीछे बंद कर दिया जा सके। इतने सारे पाप करने और इतनी परेशानी का कारण बनने के बाद वे ताड़ना की प्रतीक्षा करने के अलावा कैसे अन्य किसी भी बात की उम्मीद कर सकते हैं? राक्षसों और बुरी आत्माओं ने सिर पर खून सवार कर धरती पर आतंक फैला रखा है और परमेश्वर की इच्छा और श्रमसाध्य प्रयास को रोक दिया है, जिससे वे अभेद्य बन गए हैं। कैसा नश्वर पाप है! परमेश्वर कैसे चिंतित महसूस न करता? परमेश्वर कैसे क्रोधित महसूस नहीं करता? वे परमेश्वर के कार्य के लिए गंभीर बाधा और विरोध का कारण बनते हैं। अत्यधिक विद्रोही! यहाँ तक कि अधिक शक्तिशाली दुष्ट की ताकत पर छोटे-बड़े राक्षस भी अभिमानी हो जाते हैं और मुश्किलें पैदा करते हैं। वे स्पष्ट जानकारी के बावजूद जानबूझकर सच्चाई का विरोध करते हैं। विद्रोह के बेटे! ऐसा लगता है कि अब, जब नरक का राजा राजसी सिंहासन पर चढ़ गया है, तो वे दम्भी हो गए हैं और दूसरों के प्रति घृणा करते हैं। कितने सच्चाई की खोज करते हैं और धर्मिकता का पालन करते हैं? वे सभी सूअरों और कुत्तों की तरह जानवर हैं, गोबर के एक ढेर में अपने सिरों को हिलाते हैं और उपद्रव भड़काने [7] के लिए बदबूदार मक्खियों के गिरोह का नेतृत्व करते हैं। उनका मानना है कि नरक का उनका राजा राजाओं में सर्वश्रेष्ठ है, इस बात को समझे बिना कि वे सड़न पर भिनभिनाती मक्खियों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इतना ही नहीं, वे सूअरों और कुत्तों जैसे अपने माता-पिता पर निर्भर करते हुए परमेश्वर के अस्तित्व के विरुद्ध निंदनीय टिप्पणी करते हैं। अति तुच्छ मक्खियों को लगता है कि उनके माता-पिता एक दांतों वाली व्हेल[8] की तरह विशाल हैं। क्या उन्हें एहसास नहीं है कि वे बहुत नन्हीं हैं, फिर भी उनके माता-पिता उनकी तुलना में अरबों गुना बड़े गंदे सूअर और कुत्ते हैं? अपनी नीचता से अनजान होकर, वे उन सूअरों और कुत्तों की दुर्गन्ध के सहारे उच्छृंखल व्यवहार करती हैं और भविष्य की पीढ़ियों को पैदा करने का भ्रामक विचार रखती हैं। वह तो बिल्कुल बेशर्म है! अपनी पीठों पर हरी पंखों के साथ (यह परमेश्वर पर उनके विश्वास करने के दावे को संदर्भित करता है), वे घमंडी हो जाती हैं और हर जगह पर अपनी सुंदरता और आकर्षण का अभिमान करती हैं, मनुष्य पर अपनी अशुद्धताओं को चुपके से डालती हैं। और वे दम्भी भी हैं, मानो कि इंद्रधनुष के रंगों वाले पंखों का एक जोड़ा उनकी अपनी अशुद्धताओं को छिपा सकता है, और इस तरह वे सच्चे परमेश्वर के अस्तित्व को सताती हैं (यह धार्मिक दुनिया की अंदर की कहानी को संदर्भित करता है)। मनुष्य को बहुत कम पता है कि हालांकि मक्खी के पंख खूबसूरत और आकर्षक हैं, यह अंततः केवल एक छोटी मक्खी से बढ़कर कुछ नहीं है जो गंदगी से भरी हुई और रोगाणुओं से ढकी हुई है। अपने माता-पिता के सूअरों और कुत्तों की ताकत पर, वे देश भर में अत्यधिक उग्रता के साथ आतंक मचाती हैं (यह उन धार्मिक अधिकारियों को संदर्भित करता है, जो सच्चे परमेश्वर और सत्य को धोखा देते हुए, देश से मिले मजबूत समर्थन के आधार पर, परमेश्वर को सताते हैं)। ऐसा लगता है कि यहूदी फरीसियों के भूत परमेश्वर के साथ बड़े लाल अजगर के देश में, अपने पुराने घोंसले में, वापस आ गए हैं। उन्होंने अपने हजारों वर्षों के कार्य को जारी रखते हुए फिर से उनके उत्पीड़न का कार्य शुरू कर दिया है, भ्रष्ट हो चुके इस समूह का अंततः पृथ्वी पर नष्ट हो जाना निश्चित है! ऐसा प्रतीत होता है कि कई सहस्राब्दियों के बाद, अशुद्ध आत्माएँ और भी चालाक और धूर्त हो गई हैं। वे परमेश्वर के काम को चुपके से क्षीण करने के तरीकों के बारे में लगातार सोचती हैं। वे बहुत कुटिल और धूर्त हैं और अपने देश में कई हजार साल पहले की त्रासदी की पुनरावृत्ति करना चाहती हैं। यह बात परमेश्वर को जोर से चीखने की ओर लगभग उकसाती है, और उनको नष्ट करने के लिए वह तीसरे स्वर्ग में लौट जाने से खुद को मुश्किल से रोक पाता है। परमेश्वर से प्रेम करने के लिए, मनुष्य को उसकी इच्छा, उसकी खुशी और उसके दुःख को समझना चाहिए, साथ ही साथ यह भी कि वह किससे घृणा करता है। इससे मनुष्य का प्रवेश बेहतर अग्रसर होगा। मनुष्य का प्रवेश जितना तेज होगा, परमेश्वर का हृदय उतना ही अधिक संतुष्ट होगा; दुष्टों के राजा के बारे में मनुष्य को जितनी अधिक सूझ-बूझ होगी, परमेश्वर से वह उतना ज्यादा करीब होगा, ताकि उसकी इच्छा पूर्ण हो सके।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (7)" से
29. मैंने कई बार कहा है कि परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य का उद्देश्य है प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा को बदलना, प्रत्येक व्यक्ति की रूह को बदलना, ताकि उनके दिल में, जिसने अत्यंत आघात को सहा है, सुधार लाया जा सके, जिससे उनकी उस आत्मा को बचाया जा सके जिसे गंभीर रूप से बुराई द्वारा हानि पहुंचाई गई है; इसका उद्देश्य लोगों की आत्माओं को जगाना है, उनके बर्फ़ जैसे जमे हुए दिलों को पिघलाना है, और उनका जीर्णोद्धार करना है। यही है परमेश्वर की महानतम इच्छा। मनुष्य का जीवन और उसके अनुभव कितने ऊँचे या गहरे हैं, उनकी बातें करना बंद करो; जब लोगों के दिलों को जागृत किया जाता है, तब उन्हें अपने सपनों से जगा दिया जाता है और बड़े लाल अजगर द्वारा पहुँचाई गई हानि के बारे में वह पूरी तरह अवगत हो जाते हैं, तो परमेश्वर की सेवा का काम पूरा हो जाएगा। जिस दिन परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाता है, यही वह दिन होता है जब मनुष्य भी परमेश्वर में सही विश्वास की राह पर आधिकारिक तौर पर चलना शुरू करता है। इस समय, परमेश्वर की सेवा समाप्त हो जाएगी: परमेश्वर का देहधारी कार्य पूरी तरह पूर्ण हो चुका होगा, और मनुष्य आधिकारिक तौर पर उस कर्तव्य को पूरा करना शुरू कर देगा जो उसे करना चाहिए—वह अपनी सेवकाई का कार्य करेगा। ये परमेश्वर के कार्य के कदम हैं। इस प्रकार, इन बातों को जानने की नींव पर तुम लोगों को प्रवेश की अपनी राह की तलाश करनी चाहिए। यह सब कुछ तुम लोगों को समझना चाहिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (8)" से
और पढ़ें:क्या आप पवित्र आत्मा के कार्य और शैतान के कार्य के बीच भेद कर सकते हैं? विवेक प्राप्त करना और आध्यात्मिक लड़ाई जीतना सीखने के लिए परमेश्वर के वचनों को पढ़ें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें