30. मनुष्य की प्रविष्टि में तब ही सुधार आएगा जब परिवर्तन उसके दिल की गहराई में होगा, क्योंकि परमेश्वर का कार्य मनुष्य का—वह मनुष्य जिसे छुड़ा लिया गया है, जो अभी भी अंधेरे की शक्तियों के बीच रहता है, और जिसने कभी भी स्वयं को जगाया नहीं है—राक्षसों के एकत्रित होने के इस स्थान से पूर्ण उद्धार है; यह हो सकता है कि मनुष्य सदियों के पापों से मुक्त हो जाए, और परमेश्वर का चहेता बन जाए, और बड़े लाल अजगर को पूरी तरह से मार डाले, परमेश्वर के राज्य को स्थापित करे, और परमेश्वर के दिल को जल्द आराम पहुँचाए, यह बिना किसी रोकटोक के उस घृणा को अपने सीने से निकाल देना है, उन फफुंद से ढके रोगाणुओं को हटा देना है, तुम लोगों के लिए इस जीवन को छोड़ पाना संभव करना है जो एक बैल या घोड़े के जीवन से कुछ अलग नहीं, एक दास बनकर रहना छोड़ देना है, बड़े लाल अजगर से स्वतंत्रता से कुचले जाने या उसकी आज्ञा मानने को त्याग देना है; अब तुम लोग इस असफल राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहोगे, अब घृणित बड़े लाल अजगर से नहीं जुड़े रहोगे, अब तुम लोग उसके दास नहीं रहोगे।राक्षसों का घोंसला निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा, और तुम लोग परमेश्वर के साथ खड़े रहोगे—तुम लोग परमेश्वर के होगे, और दासों के इस साम्राज्य के नहीं रहोगे। परमेश्वर इस अंधियारे समाज से लंबे समय से घृणा करता आया है। इस दुष्ट, घिनौने बूढ़े सर्प पर अपने पैरों को रखने के लिए वह अपने दांतों को पीसता है, ताकि वह फिर से कभी न उठ पाए, और फिर कभी मनुष्य का दुरुपयोग न कर पाए; वह उसके अतीत के कर्मों को क्षमा नहीं करेगा, वह मनुष्य को दिए गए धोखे को बर्दाश्त नहीं करेगा, वह प्रत्येक युग में उसके सभी पापों के लिए उसका हिसाब करेगा; सभी बुराईयों के इस सरगना के प्रति परमेश्वर थोड़ी भी उदारता नहीं दिखाएगा,[1] वह पूरी तरह से इसे नष्ट कर देगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (8)" से
31. हज़ारों सालों से यह गंदगी की भूमि रही है, यह असहनीय रूप से मैली है, कष्ट से भरी हुई है, प्रेत यहाँ हर कोने में घूमते हैं, चाले चलते हुए और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए,[2] क्रूर और भयावह बनते हुए, इस भूतिया शहर को कुचलते हुए और मृत शरीरों से भरते हुए; क्षय की बदबू ज़मीन को ढक चुकी है और हवा में शामिल हो गई है, और इसे भारी रूप से संरक्षित रखा जाता है।[3]आसमान से परे की दुनिया को कौन देख सकता है? सभी मनुष्यों के शरीर को शैतान कसकर बांध देता है, उसकी दोनों आँखें निकाल देता है, और उसके होंठों को मज़बूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हज़ारों वर्षों तक तबाही मचाई है, और आज भी वह तबाही मचा रहा है और इस भूतिया शहर पर करीब से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; नज़र रखने वाले प्रहरी इस दौरान चमकती हुई आँखों से घूरते हैं, इस बात से अत्यंत भयभीत कि परमेश्वर उन्हें अचानक पकड़ लेगा और उन सभी को मिटा कर रख देगा, और उन्हें शांति और ख़ुशी के स्थान से वंचित कर देगा। ऐसे भूतिया शहर के लोग कैसे कभी परमेश्वर को देख सकते हैं? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और सुंदरता का आनंद लिया है? मानवीय दुनिया के मामलों की क्या कद्र है उन्हें? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्सुक इच्छा को समझ सकता है? यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा हुआ है: इस तरह के अंधियारे समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, शैतानों का राजा, जो पलक झपकते ही लोगों को मार डालता है, वो ऐसे परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है जो प्यारा, दयालु और पवित्र भी है? वह परमेशवर के आगमन की वाहवाही और जयकार कैसे कर सकता है? ये दास! ये दयालुता का बदला घृणा से चुकाते हैं, उन्होंने लंबे समय से परमेश्वर की निंदा की है, वे परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, वे चरमसीमा तक क्रूर हैं, उनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, वे लूटते हैं और डाका डालते हैं, वे सभी विवेक खो चुके हैं, और उनमें दयालुता का कोई निशान नहीं बचा, और वे निर्दोषों को अचेतावस्था की ओर मुग्ध करते हैं। प्राचीनों के पूर्वज? प्रिय नेता? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे के सभी लोगों को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने के तरीके हैं! किसने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया है? किसने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित किया है या रक्त बहाया है? पीढ़ी दर पीढ़ी, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, दास मनुष्य ने परमेश्वर को अनुचित तरीके से गुलाम बना लिया है—ऐसा कैसे हो सकता है कि यह रोष उत्तेजित नहीं करता है? दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, पापीपन की सहस्राब्दियाँ दिल पर अंकित हैं—यह कैसे घृणा को प्रेरित नहीं करेगा? परमेश्वर का बदला लो, अपने शत्रु को पूरी तरह समाप्त कर दो, उसे अब अनियंत्रित ढंग से फैलने की अनुमति न दो, और उसे अपनी इच्छानुसार परेशानी पैदा मत करने दो! यही समय है: मनुष्य अपनी सभी शक्तियों को लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए अपने सभी प्रयासों को समर्पित किया है, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे को तोड़ सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अनुमति दे कि वे अपने दर्द से उठें और इस दुष्ट प्राचीन शैतान को अपनी पीठ दिखाएं। परमेश्वर के कार्य के सामने ऐसी अभेद्य बाधा क्यों डालना? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालों को क्यों आज़माना? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार और हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहाँ है? स्नेह कहाँ है? धोखेबाज़ योजनाओं का उपयोग करके परमेश्वर के लोगों को क्यों छलना? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को तब तक परेशान किया जाए जब तक उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह न रहे? मनुष्यों के बीच का स्नेह कहाँ है? लोगों के बीच स्वागत की भावना कहां है? परमेश्वर में इस तरह की हताश तड़प क्यों पैदा करना? परमेवर को क्यों बार-बार पुकारने पर मजबूर करना? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने के लिए क्यों मजबूर करना? यह अंधकारमय समाज और उसके शत्रुओं के संरक्षक कुत्ते क्यों परमेश्वर को स्वतंत्रता से इस दुनिया में आने और जाने से रोकते हैं जिसे उसने बनाया? मनुष्य क्यों नहीं समझता, वह मनुष्य जो दर्द और पीड़ा के बीच रहता है? तुम लोगों के लिए, परमेश्वर ने अत्यंत यातना सही है, और अपने प्यारे पुत्र, उसके अपने देह और रक्त को अत्यंत दर्द के साथ तुम लोगों को सौंपा है—तो फिर क्यों तुम लोग अभी भी अपनी आँखें फेर लेते हो? हर किसी के सामने, तुम लोग परमेश्वर के आगमन को अस्वीकार करते हो, और परमेश्वर की दोस्ती को मना करते हो। तुम लोग इतने अभद्र क्यों हो? क्या तुम लोग ऐसे अंधियारे समाज में अन्याय को सहन करने के लिए तैयार हो? शत्रुता की सहस्राब्दियों के साथ स्वयं को भरने के बजाय, तुम लोग क्यों शैतानों के राजा के "बकवास" के साथ स्वयं को छलते हो?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (8)" से
32. पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्यों के कदमों में बड़ी कठिनाई शामिल है: मनुष्य की कमज़ोरी, कमियाँ, बचपना, अज्ञानता और मनुष्य का सब कुछ—प्रत्येक पर परमेश्वर सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध और ध्यानपूर्वक विचार करता है। मनुष्य एक कागज़ी बाघ की तरह है जिसे कोई पकड़ने या भड़काने की हिम्मत नहीं करता; हल्के-से स्पर्श से वह काट लेता है, या फिर नीचे गिर जाता है और अपना रास्ता खो देता है, और ऐसा लगता है कि एकाग्रता की थोड़ी-सी कमी पर वह पुनः वापस चला जाता है, या फिर परमेश्वर की उपेक्षा करता है, या फिर अपने शरीर की अशुद्ध चीज़ों का आनंद उठाने के लिए अपने सुअर पिता और कुत्ती मां के पास चला जाता है। यह कितनी बड़ी बाधा है! अपने कार्य के लगभग प्रत्येक व्यावहारिक कदम पर, परमेश्वर को आज़माया जाता है, और लगभग प्रत्येक कदम बड़े खतरे को पैदा करता है। उसके वचन निष्कपट और ईमानदार हैं, और बिना द्वेष के हैं, फिर भी कौन हैं जो उन्हें स्वीकार करने को तैयार हैं? कौन है जो पूरी तरह से स्वयं को अर्पित करने को तैयार है? यह परमेश्वर के दिल को तोड़ देता है। वह मनुष्यों के लिए दिन-रात कष्ट सहता है, वह मनुष्यों के जीवन के लिए चिंता से घिरा रहता है, और वह मनुष्य की कमज़ोरी के साथ सहानुभूति रखता है। अपने बोले गए सभी वचनों के लिए उसने अपने कार्य के प्रत्येक चरण में कई मोड़ और मुश्किलों का सामना किया है; वह हमेशा एक चट्टान और सख्त जगह के बीच फंसा रहता है, और मनुष्य की कमज़ोरी, अवज्ञा, बचपने और भेद्यता के बारे में सोचता है ... दिन-रात बार-बार। यह किसे पता है? वह किस पर विश्वास कर सकता है? कौन समझ सकेगा? वह मनुष्यों के पापों और हिम्मत की कमी, और दुर्बलता से हमेशा घृणा करता है, और वह हमेशा मनुष्य की भेद्यता के बारे में चिंता करता है, और उस राह के बारे में विचार करता है जो भविष्य में मनुष्य के सामने आने वाला है; हमेशा, जब वह मनुष्य के वचनों और कर्मों को देखता है, तो वह दया, और क्रोध से भर जाता है, और हमेशा इन चीज़ों के देखने से उसके दिल में दर्द पैदा होता है। निर्दोष, आखिरकार, कठोर हो चुके हैं; क्यों परमेश्वर को हमेशा उनके लिए चीज़ों को मुश्किल करना होता है? कमज़ोर मनुष्य में पूरी तरह से दृढ़ता की कमी है; क्यों परमेश्वर हमेशा उसके लिए ऐसा क्रोध रखता है जो कभी समाप्त नहीं होता? कमज़ोर और निर्बल मनुष्य में अब थोड़ी-सी भी जीवन-शक्ति नहीं बची है; क्यों परमेश्वर को हमेशा उसकी अवज्ञा के लिए उसे डाँटना होता है? स्वर्ग में परमेश्वर की धमकियों का सामना कौन कर सकता है? आखिरकार, मनुष्य नाज़ुक और हताशा की स्थिति में है, परमेश्वर ने अपना गुस्से अपने दिल में गहराई तक पहुँचा दिया है, ताकि मनुष्य धीरे-धीरे स्वयं पर विचार कर सके। फिर भी मनुष्य, जो गंभीर संकट में है, परमेश्वर की इच्छा की थोड़ी-सी भी सराहना नहीं करता; उसे शैतानों के बूढ़े राजा के पैरों तले कुचल दिया गया है, फिर भी वह पूरी तरह से अनजान है, वह हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध स्वयं को रख देता है, या फिर उसकी परवाह नहीं करता। परमेश्वर ने कई वचन कहे हैं, फिर भी किसने उन्हें कभी गंभीरता से लिया है? मनुष्य परमेश्वर के वचनों को नहीं समझता, फिर भी वह बेफ़िक्र और बिना किसी तड़प के रहता है, और कभी भी उसने बूढ़े शैतान का सार असल में नहीं जाना है। लोग अधोलोक में, नरक में रह रहे हैं, लेकिन मानते हैं कि वे समुद्र तल के महल में रह रहे हैं; उन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा सताया जाता है, फिर भी उन्हें लगता है कि उन्हें अजगर के राज्य द्वारा कृपा प्राप्त हो रही है[5]; शैतान उनका उपहास करता है, फिर भी उन्हें लगता है कि वे शरीर की उत्कृष्ट कलात्मकता का आनंद ले रहे हैं। कितने मैले, नीच व्यक्तियों का यह समूह है! मनुष्य दुर्भाग्य का सामना कर चुका है, लेकिन उसे पता नहीं है, और इस अंधियारे समाज में उसे एक के बाद एक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है,[6] फिर भी वह इससे जाग नहीं पाया है। कब वह अपनी आत्म-दया और दासता के स्वभाव से छुटकारा पाएगा? क्यों उसे परमेश्वर के दिल की कोई चिंता नहीं है? क्या वह चुपचाप इस दमन और कठिनाई को अपना लेता है? क्या वह उस दिन की इच्छा नहीं रखता जब वह अंधेरे को प्रकाश में बदल सके? क्या वह एक बार फिर धार्मिकता और सत्य के विरुद्ध हो रहे अन्याय को रोकना नहीं चाहता? जब लोग सत्य को त्याग देते हैं और तथ्यों को तोड़-मरोड़ देते हैं, तो क्या वह देखते रहने और कुछ न करने के लिए तैयार है? क्या वह इस दुर्व्यवहार को सहते रहने में खुश है? क्या वह दास बने रहना चाहता है? क्या वह इस असफल राज्य के परिसर के साथ परमेश्वर के हाथ नष्ट होने को तैयार है? तुम्हारा संकल्प कहां है? तुम्हारी महत्वाकांक्षा कहां है? तुम्हारी गरिमा कहां है? तुम्हारा सम्मान कहां है? तुम्हारी स्वतंत्रता कहां है? क्या तुम शैतानों के राजा, बड़े लाल अजगर के लिए अपना पूरे जीवन अर्पित करना चाहते हो? क्या तुम ख़ुश हो कि वह तुम्हें यातना देते-देते मौत के घाट उतार दे? गहराई का चेहरा अराजक और अंधियारा है, सामान्य लोग ऐसे दुखों का सामना करते हुए, स्वर्ग की ओर देखकर रोते हैं और पृथ्वी को शिकायत करते हैं। मनुष्य कब अपने सिर को ऊँचा रख पाएगा? मनुष्य कमज़ोर और दुर्बल है, वह इस क्रूर और अत्याचारी शैतान से कैसे संघर्ष कर सकता है? वह क्यों नहीं जितनी जल्दी हो सके परमेश्वर को अपना जीवन सौंप देता है? वह क्यों अभी भी डगमगाता है, जब वह परमेश्वर का कार्य समाप्त कर सकता है? इस प्रकार बिना किसी उद्देश्य से दंड और दमन सहते हुए, उसका पूरा जीवन अंततः व्यर्थ हो जाएगा; वह आने के लिए इतनी जल्दी में क्यों है, और जाने की उसे इतनी जल्दी क्यों है? क्यों नहीं वह परमेश्वर को देने के लिए कुछ अनमोल रखता है? क्या वह घृणा की सहस्त्राब्दियों को भूल गया है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (8)" से
33. इस समय, परमेश्वर इस तरह का कार्य करने के लिए देहधारी बना है, उस कार्य को पूरा करने के लिए जो उसने अभी पूर्ण नहीं किया है, इस युग को समाप्ति की तरफ़ ले जाने के लिए, इस युग का न्याय करने के लिए, दुख के समुन्दर की दुनिया से अत्यंत पापियों को बचाने के लिए और पूरी तरह उन्हें बदलने के लिए। यहूदियों ने परमेश्वर को क्रूस पर चढ़ा दिया, और इस प्रकार यहूदिया में परमेश्वर की यात्रा समाप्त कर दी। उसके कुछ ही समय के बाद, परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से एक बार फिर मनुष्य के बीच आया, चुपचाप बड़े लाल अजगर के देश में। वास्तव में, यहूदी राज्य के धार्मिक समुदाय ने लंबे समय से अपनी दीवारों पर यीशु की छवि को लटका दिया था, और अपने मुंह से लोगों ने चिल्लाया "प्रभु यीशु मसीह"। उन्हें नहीं पता था कि यीशु ने बहुत समय पहले ही मनुष्य के बीच वापस आकर अपने अपूर्ण कार्य के दूसरे चरण को पूरा करने के अपने पिता के आदेश को स्वीकार कर लिया था। परिणामस्वरूप, जब लोगों ने उसे देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए: वह एक ऐसी दुनिया के बीच पैदा हुआ था जिसमें कई युग गुज़र चुके थे, और वह मनुष्य के सामने एक बहुत ही साधारण व्यक्ति का रूप धारण करके प्रकट हुआ। वास्तव में, जैसे-जैसे युग गुज़रे, उसके कपड़े और उसका पूरा स्वरूप बदल गया, मानो उसका पुनर्जन्म हुआ हो। लोग कैसे जान सकते थे कि यह वही प्रभु यीशु मसीह है जो क्रूस से नीचे आया और पुनर्जीवित हुआ था? उसे थोड़ी-सी भी चोट नहीं लगी थी, बिल्कुल वैसे ही जैसे यीशु यहोवा के समान नहीं दिखता था। आज का यीशु बहुत समय से गुज़रे हुए युगों के बोझ के बिना है। लोग उसे कैसे जान सकते थे? कपटी "थॉमस" को हमेशा संदेह था कि वह पुनर्जीवित यीशु है, इससे पहले कि वह अपने मस्तिष्क को समझा सके उसे हमेशा से पहले यीशु के हाथों पर कीलों के निशान देखने होते हैं; बिना उन्हें देखे, वह हमेशा संदेह से उसे देखता रहता है, और ठोस ज़मीन पर अपने पैरों को रखने और यीशु का अनुसरण करने में असमर्थ रहता है। बेचारा "थॉमस"—वह कैसे जान सकता था कि यीशु पिता परमेश्वर द्वारा अधिकृत कार्य करने के लिए आया है? यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने के निशानों को धारण करने की ज़रूरत क्यों है? क्या क्रूस पर चढ़ाए जाने के निशान यीशु के निशान हैं? वह अपने पिता की इच्छा के लिए कार्य करने आया है; वह हज़ारों साल पहले के यहूदी के पहनावे और रूप में क्यों आएगा? जो रूप देहधारी परमेश्वर लेता है, क्या वह उसके कार्य में बाधा डाल सकता है? यह किसका सिद्धांत है? ऐसा क्यों है कि जब भी परमेश्वर कार्य करे, तो वह मनुष्य की कल्पना के अनुसार हो? परमेश्वर अपने कार्य में केवल एक ही चीज़ का प्रयास करता है, और वह है कि उसका प्रभाव हो। वह कानून का पालन नहीं करता है, और उसके कार्य के कोई नियम नहीं हैं—मनुष्य यह कैसे समझ सकता है? मनुष्य की धारणाएं परमेश्वर के कार्य को कैसे देख सकती हैं? तो बेहतर होगा कि तुम लोग ठीक से समझ जाओ: छोटी-छोटी बातों के बारे में हंगामा मत करो, और उन चीज़ों के बारे में शोर न मचाओ जो तुम लोगों के लिए नई हैं—ये तुम्हें अपना मज़ाक बनवाने से और लोगों को तुम लोगों पर हँसने से रोकेगा। तुमने परमेश्वर पर इतने वर्षों से विश्वास किया है और फिर भी तुम परमेश्वर को नहीं जानते; आखिरकार, तुम ताड़ना का सामना करते हो, तुम्हें, जो "श्रेणी में सबसे ऊपर" हो,[7] उसे ताड़ना से गुज़रने वालों के बीच पहुँचा दिया जाता है। अपनी छोटी-छोटी चालों को दिखाने के लिए चालाक साधनों का उपयोग नहीं करना; क्या तुम्हारी अल्पदृष्टि वास्तव में परमेश्वर का अनुभव कर सकती है, जो अनंत काल से अनंत काल तक देखता है? क्या तुम्हारा सतही अनुभव पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा को सामने रख सकता है? अहंकार न करो। अखिरकार, परमेश्वर इस दुनिया का नहीं है—तो कैसे उसका कार्य वह हो सकता है जिसकी आशा तुम करते हो?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (8)" से
34. गहरी नस्लीय परंपराओं और मानसिक दृष्टिकोण ने लंबे समय से मनुष्य के शुद्ध और बाल-सुलभ उत्साह पर ग्रहण लगा रखा है, मनुष्य की आत्मा पर उन्होंने थोड़ी-सी भी मानवता के बिना हमला किया है, जैसे कि कोई भावना या आत्म-बोध ही न हो। इन राक्षसों के तरीक़े बेहद बेरहम हैं, और ऐसा लगता है कि "शिक्षा" और "पोषण" पारंपरिक तरीके बन गए हैं जिनके द्वारा दुष्टों का राजा मनुष्य की हत्या करता है; अपनी "गहन शिक्षा" का उपयोग कर यह पूरी तरह से अपनी बदसूरत आत्मा को छिपा लेता है, भेड़ के पहनावे में खुद को सँवार कर, ताकि मनुष्य को भरोसा हो जाए और उसके बाद यह उसका लाभ उठाता है जब वह सो रहा हो, पूरी तरह से उसे खा जाने के लिए। बेचारे मानव-वे यह कैसे जान पाते कि जिस भूमि पर उन्हें पाला-पोसा गया था वह शैतान का देश है, कि जिसने उन्हें पाला था, वह वास्तव में एक दुश्मन है जो उन्हें दुख देता है। फिर भी मनुष्य बिल्कुल जागता नहीं है; अपनी भूख और प्यास को बुझाकर, वह अपने "माता-पिता" द्वारा परवरिश की "दया" का ऋण चुकाने के लिए तैयार होता है। मनुष्य ऐसा ही है। वह आज भी नहीं जानता है कि जिस राजा ने उसे बड़ा किया, वह उसका दुश्मन है। धरती पर मृतकों की हड्डियाँ बिखरी पड़ी हैं, शैतान बिना रुके पागलों की तरह जश्न मनाता है, और "अधोलोक" में मनुष्यों के मांस को निगलता जाता है, मानव कंकालों के साथ कब्र को साझा करते हुए और मनुष्यों के क्षत-विक्षत देह के अंतिम अवशेषों का उपभोग करने का निरर्थक प्रयास करते हुए। फिर भी मनुष्य सदैव अनजान है, और शैतान को अपने दुश्मन के रूप में कभी नहीं मानता है, बल्कि पूरे दिल से उसकी सेवा करता है। इस तरह के भ्रष्ट लोग परमेश्वर को जानने में बिलकुल असमर्थ होते हैं। क्या परमेश्वर के लिए देह धारण कर उनके बीच में आना, और उद्धार के अपने सारे कार्य को पूरा करना आसान है? कैसे मनुष्य, जो पहले से ही अधोलोक में गिर चुका है, परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हो सकता था?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (9)" से
35. मानव जाति के कार्य के लिए परमेश्वर ने बहुत सारी रातों को बिना नींद के गुजारना सहन किया है। बहुत ऊपर से सबसे नीची गहराई तक, जीवित नरक में जहाँ मनुष्य रहता है, वह मनुष्य के साथ अपने दिन गुजारने के लिए उतर आया है, कभी भी मनुष्य के बीच फटेहाली की शिकायत नहीं की है, उसकी अवज्ञा के लिए कभी भी मनुष्य को तिरस्कृत नहीं किया है, बल्कि वह व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को करते हुए सबसे बड़ा अपमान सहन करता है। परमेश्वर कैसे नरक से संबंधित हो सकता है? वह नरक में अपना जीवन कैसे बिता सकता है? लेकिन समस्त मानव जाति के लिए, पूरी मानवजाति को जल्द ही आराम मिल सके इसके लिए, उसने अपमान को सहन किया और पृथ्वी पर आने के अन्याय का सामना किया, और मनुष्य को बचाने की खातिर व्यक्तिगत रूप से "नरक" और "अधोलोक" में, बाघ की माँद में, प्रवेश किया। परमेश्वर का विरोध करने के लिए मनुष्य कैसे योग्य हो सकता है? परमेश्वर के बारे में एक बार और शिकायत करने के लिए उसके पास क्या कारण है? कैसे वह फिर से परमेश्वर की ओर नज़र उठाकर देखने की हिम्मत कर सकता है? स्वर्ग का परमेश्वर बुराई की इस सबसे गंदी भूमि में आया है, और कभी भी उसने अपने कष्टों के बारे में शिकायत नहीं की है, या मनुष्य के बारे में गिला नहीं किया है, बल्कि वह चुपचाप मनुष्य द्वारा किये गए विनाश [1] और अत्याचार को स्वीकार करता है। कभी भी उसने मनुष्य की अनुचित मांगों का प्रतिकार नहीं किया, कभी भी उसने मनुष्य से अत्यधिक मांगें नहीं की, और कभी भी उसने मनुष्य से ग़ैरवाजिब तकाज़े नहीं किये; वह केवल बिना किसी शिकायत के मनुष्य द्वारा अपेक्षित सभी कार्य करता है: शिक्षा देना, ज्ञान प्रदान करना, डाँटना-फटकारना, शब्दों का परिशोधन करना, याद दिलाना, प्रोत्साहन देना, सांत्वना देना, न्याय करना, और प्रकट करना। उसका कौन-सा कदम मनुष्य के जीवन की खातिर नहीं है? यद्यपि उसने मनुष्यों की संभावनाओं और प्रारब्ध को हटा दिया है, परमेश्वर द्वारा उठाया गया कौन-सा कदम मनुष्य के भाग्य के लिए नहीं रहा हैं? उनमें से कौन-सा मनुष्य के अस्तित्व के लिए नहीं रहा है? उनमें से कौन-सा कदम रातों की तरह काली अँधेरी ताकतों के उत्पीड़न और अत्याचार से मनुष्य को मुक्त करने के लिए नहीं रहा है? उनमें से कौन-सा मनुष्य की खातिर नहीं है? परमेश्वर के हृदय को कौन समझ सकता है, जो एक प्रेमपूर्ण मां की तरह है? कौन परमेश्वर के उत्सुक हृदय को समझ सकता है? परमेश्वर के भावुक हृदय और उसकी उत्कट आशाओं का प्रतिफल ठंडे दिलों के साथ, कठोर, उदासीन आँखों के साथ, लोगों की दोहराई जाने वाली प्रतिक्रियाओं और अपमानों के साथ, तीक्ष्ण आलोचना के साथ, उपहास, और अनादर के साथ दिया गया है, इनके बदले में मनुष्य का व्यंग, उसकी कुचलन और अस्वीकृति, उसकी गलतफहमी, उसका विलाप, मनो-मालिन्य, परिहार, उसके धोखे, हमले और उसकी कड़वाहट के अलावा अन्य कुछ भी नहीं मिला है। स्नेही शब्दों को मिली हैं उग्र भौंहें और हजारों मचलती अँगुलियों की ठंडी अवज्ञा। परमेश्वर केवल सिर झुका कर, लोगों की सेवा करते हुए एक अनुकूल बैल[2] की तरह सहन कर सकता है। कितने सूर्य और चन्द्रमा का उसने सामना किया है, कितनी बार सितारों का, कितनी बार वह भोर में निकल कर गोधूलि में लौटा है, छटपटाया है और करवटें बदलीं हैं, अपने पिता से विरह की तुलना में हजार गुना ज्यादा पीड़ा को सहते हुए, मनुष्य के हमलों और तोड़-फोड़, और मनुष्य से निपटने और उसकी छंटाई करने को बर्दाश्त करते हुए। परमेश्वर की विनम्रता और अदृष्टता का प्रतिफल मनुष्य के पूर्वाग्रह[3] से चुकाया गया है, मनुष्य के अनुचित विचारों और व्यवहार के साथ,से और परमेश्वर की गुमनामी, तितिक्षा और सहिष्णुता का ऋण मनुष्य की लालची निगाह से चुकाया गया है; मनुष्य परमेश्वर को बिना किसी मलाल के, घसीट कर मार डालने की कोशिश करता है और परमेश्वर को जमीन में कुचल देने का प्रयास करता है। परमेश्वर के प्रति अपने व्यवहार में मनुष्य का रवैया "अजीब चतुराई" का है, और परमेश्वर को, जिसे मनुष्य द्वारा डराया-धमकाया गया है और जो घृणित है, हजारों लोगों के पैरों के नीचे कुचलकर निर्जीव कर दिया जाता है, जबकि मनुष्य स्वयं ऊंचा खड़ा होता है, जैसे कि वह किले का राजा हो, जैसे कि वह परदे के पीछे से अपना दरबार चलाने के लिए, सम्पूर्ण सत्ता हथियाना[4] चाहता हो, परमेश्वर को रंगमंच के पीछे एक नेक और नियम-बद्ध निदेशक बनाने के लिए, जिसे पलट कर लड़ने या मुश्किलें पैदा करने की अनुमति नहीं है; परमेश्वर को अंतिम सम्राट की भूमिका अदा करनी होगी, उसे हर तरह की स्वतंत्रता से रहित एक कठपुतली[5] बनना होगा। मनुष्य के कर्म अकथनीय हैं, तो कैसे वह परमेश्वर से यह या वह मांगने के योग्य है? वह कैसे परमेश्वर को सुझाव देने के योग्य है? वह कैसे यह माँग करने के योग्य है कि परमेश्वर उसकी कमजोरियों के साथ सहानुभूति रखे? वह कैसे परमेश्वर की दया पाने के योग्य है? वह कैसे बार-बार परमेश्वर की उदारता प्राप्त करने के योग्य है? वह कैसे बार-बार परमेश्वर की क्षमा पाने के योग्य है? उसकी अंतरात्मा कहाँ है? उसने बहुत पहले परमेश्वर का दिल तोड़ दिया था, एक लंबे समय से उसने परमेश्वर का दिल टुकड़े-टुकड़े करके छोड़ दिया है। परमेश्वर उज्ज्वल आँखें और अदम्य उत्साह लिए मनुष्यों के बीच आया था, यह आशा करते हुए कि मनुष्य उसके प्रति दयालु होगा, भले ही उसकी गर्मजोशी थोड़ी-सी ही रही हो। फिर भी, परमेश्वर के दिल के लिए मनुष्य का आश्वासन धीमा है, जो कुछ उसने प्राप्त किया है वे केवल तेजी से बढ़ते[6] हमले और यातना हैं; मनुष्य का दिल बहुत लालची है, उसकी इच्छा बहुत बड़ी है, वह कभी भी संतृप्त नहीं होगा, वह हमेशा शरारती और उजड्ड होता है, वह कभी भी परमेश्वर को बोलने की कोई आज़ादी या अधिकार नहीं देता, और अपमान के सामने सिर झुकाने, और मनुष्य द्वारा उसके साथ की गई मनमानी को स्वीकार करने के अलावा परमेश्वर के लिए कोई भी विकल्प नहीं छोड़ता।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (9)" से
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
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