आज, यदि आप विजयी बनने और सिद्ध किये जाने का अनुसरण नहीं करते हैं, तो भविष्य में, जब पृथ्वी पर मानवजाति एक सामान्य जीवन व्यतीत करेगी, तो ऐसे अनुसरण के लिए कोई अवसर नहीं होगा। उस समय, हर किस्म के व्यक्ति के अन्त को प्रकट कर दिया जाएगा। उस समय, यह स्पष्ट हो जाएगा की आप किस प्रकार के प्राणी हैं, और यदि आप विजयी होने की इच्छा करते हैं या सिद्ध बनने की इच्छा करते हैं तो यह असंभव होगा। यह केवल ऐसा है कि प्रगट किये जाने के पश्चात् मनुष्य के विद्रोहीपन के कारण उसे दण्ड दिया जाएगा। उस समय, कुछ लोगों के लिए विजयी बनने और दूसरों के लिए सिद्ध बनने हेतु, या कुछ लोगों के लिए परमेश्वर का पहिलौठा पुत्र बनने और दूसरों के लिए परमेश्वर के पुत्र बनने हेतु मनुष्य का अनुसरण दूसरों की अपेक्षा ऊंचे दर्जे का नहीं होगा; वे इन चीज़ों का अनुसरण नहीं करेंगे। सभी परमेश्वर के प्राणी होंगे, सभी पृथ्वी पर जीवन बिताएंगे, और सभी परमेश्वर के साथ पृथ्वी पर एक साथ जीवन बिताएंगे।अभी परमेश्वर और शैतान के बीच युद्ध का समय है, यह ऐसा समय है जिसमें यह युद्ध अभी तक समाप्त नहीं हुआ है, ऐसा समय है जिसमें मनुष्य को अभी तक पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया गया है, और यह संक्रमण काल है। और इस प्रकार, मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह एक विजेता बनने या परमेश्वर के लोगों में से एक जन बनने का अनुसरण करे। आज रुतबे में भिन्नताएं हैं, परन्तु जब समय आएगा तब ऐसी कोई भिन्नता नहीं होगी: उन सभी लोगों का रुतबा जो विजयी हुए हैं एक जैसा ही होगा, वे सभी योग्य मानवजाति होंगे, और पृथ्वी पर समानता से जीवन बिताएंगे, अर्थात् वे सभी योग्य प्राणी होंगे, और जो कुछ उन्हें दिया जाएगा वह सब एक जैसा ही होगा। क्योंकि परमेश्वर के कार्य के युग अलग अलग हैं, और उसके कार्य के विषय भी अलग अलग हैं, यदि इस कार्य को आप लोगों में किया जाता है तो आप सब सिद्ध किये जाने और विजयी बनने के योग्य हो जाते हैं; यदि इसे बाहर विदेश में किया जाता, तो वे लोगों का पहला समूह बनने के योग्य होते जिन पर विजय पाया जाता, और लोगों का पहला समूह बनते जिन्हें सिद्ध किया जाता। आज इस कार्य को बाहर विदेश में नहीं किया गया है, अतः वे सिद्ध बनाए जाने एवं विजयी बनने के योग्य नहीं हैं, और पहला समूह बनना उनके लिए असंभव है। क्योंकि परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य अलग है, परमेश्वर के कार्य का युग अलग है, और इसका दायरा भी अलग है, अतः यह पहला समूह है, अर्थात्, विजयी लोग हैं, और साथ ही दूसरा समूह भी होगा जिसे सिद्ध बनाया जाता है। जब एक बार पहला समूह बन जाता है जिसे सिद्ध बनाया गया है, तो एक नमूना एवं आदर्श होगा, और इस प्रकार भविष्य में उन लोगों का दूसरा और तीसरा समूह भी होगा जिन्हें पूर्णकिया गया है, परन्तु अनंतकाल में वे सभी एक जैसे होंगे, और रुतबे में कोई वर्गीकरण नहीं होगा। उन्हें बस विभिन्न समयों में सिद्ध बनाया गया होगा, और रुतबे में कोई भिन्नताएं नहीं होंगी। जब वह समय आएगाकि प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण बना लिया जाएगा और सम्पूर्ण विश्व के कार्य को समाप्त कर लिया जाएगा, तो रुतबे में कोई भिन्नताएं नहीं होंगी, और सभी एक ही रुतबे (हैसियत) के होंगे। आज, इस कार्य को आप लोगों के बीच में किया जाता है जिससे आप विजयी बन जाएंगे। यदि इसे इंग्लैंड में किया जाता, तो इंग्लैंड के पास पहला समूह होता, इसी रीति से आप लोग भी होते। आज आप लोगों में अपने कार्य को सम्पन्न करने के द्वारा मैं महज विशेष रुप से कृपालु हूँ, और यदि मैंने इस कार्य को आप सब में नहीं किया , तो आप लोग भी समान रूप से दूसरा समूह, या तीसरा, या चौथा, या पांचवा समूह होंगे। यह महज कार्य के क्रम में अन्तर के कारण है; पहला समूह और दूसरा समूह यह सूचित नहीं करता है कि एक दूसरे से ऊँचा है या नीचा है, यह सिर्फ उस क्रम को सूचित करता है जिसके अंतर्गत इन लोगों को पूर्णबनाया जाता है। आज इन वचनों को आप लोगों को बताया जाता है, परन्तु आप लोगों को पहले से सूचित क्यों नहीं किया गया था? क्योंकि, बिना किसी प्रक्रिया के, लोग चरम स्थितियों तक जाने के लिए प्रवृत्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, यीशु ने उस समय कहा था, "जैसे मैं जाता हूँ, वैसे ही फिर आऊंगा।" आज, बहुत से लोग इन शब्दों से मोहित हो गए हैं, और वे केवल सफेद वस्त्र ही पहनना चाहते हैं और स्वर्गारोहण का इंतजार करते हैं। इस प्रकार, ऐसे बहुत से वचन हैं जिन्हें बहुत पहले से ही बोला नहीं जा सकता है; यदि उन्हें बहुत पहले से ही बोल दिया जाए तो मनुष्य चरम स्थितियों तक चला जाएगा। मनुष्य क्षमता बहुत थोड़ी-सी है, और वह इन वचनों की सच्चाई के आर-पार देखने में असमर्थ है।
जब मनुष्य पृथ्वी पर मनुष्य के असली जीवन को हासिल करता है, तो शैतान की सारी ताकतों को बांध दिया जाएगा, और मनुष्य आसानी से पृथ्वी पर जीवन यापन करेगा। परिस्थितियां उतनी जटिल नहीं होंगी जितनी आज हैं: मानवीय रिश्ते, सामाजिक रिश्ते, जटिल पारिवारिक रिश्ते... , वे इस प्रकार परेशान करने वाले और कितने दुखदायी हैं! यहाँ पर मनुष्य का जीवन कितना दयनीय है! एक बार मनुष्य पर विजय प्राप्त कर ली जाए तो, उसका दिल और दिमाग बदल जाएगा: उसके पास ऐसा हृदय होगा जो परमेश्वर पर श्रद्धा रखता है और ऐसा हृदय होगा जो परमेश्वर से प्रेम करता है। जब एक बार ऐसे लोग जो इस विश्व में हैं जो परमेश्वर से प्रेम करने की इच्छा रखते हैं उन पर विजय पा ली जाती है, कहने का तात्पर्य है, जब एक बार शैतान को हरा दिया जाता है, और जब एक बार शैतान को - अंधकार की सारी शक्तियों को बांध लिया जाता है, तो फिर पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन कष्टरहित होगा, और वह पृथ्वी पर आज़ादी से जीवन जीने में सक्षम होगा। यदि मनुष्य का जीवन शारीरिक रिश्तों के बगैर हो, और देह की जटिलताओं के बगैर हो, तो यह कितना अधिक आसान होगा। मनुष्य के देह के रिश्ते बहुत ही जटिल होते हैं, और मनुष्य के लिए ऐसे रिश्तों का होना इस बात का प्रमाण है कि उसने स्वयं को अभी तक शैतान के प्रभाव से स्वतन्त्र नहीं कराया है। यदि आपका भाइयों एवं बहनों के साथ ऐसा ही रिश्ता होता, यदि आपका अपने नियमित परिवार के साथ ऐसा ही रिश्ता होता, तो आपके पास कोई चिंता नहीं होती, और किसी के भी विषय में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। इस से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता था, और इस रीति से मनुष्य को उसकी आधी तकलीफों से मुक्ति मिल गई होती। पृथ्वी पर एक सामान्य मानवीय जीवन जीने से, मनुष्य स्वर्गदूत के समान होगा: हालाँकि अभी भी देह का प्राणी होगा, फिर भी वह काफी हद तक स्वर्गदूत के समान होगा। यही वह अंतिम प्रतिज्ञा है, यह वह अंतिम प्रतिज्ञा है जो मनुष्य को प्रदान की गई है। आज मनुष्य ताड़ना एवं न्याय से होकर गुज़रता है; क्या आप सोचते हैं कि ऐसी चीज़ों के विषय में मनुष्य का अनुभव अर्थहीन है? क्या ताड़ना एवं न्याय के कार्य को बिना किसी कारण के किया जा सकता है? पहले ऐसा कहा गया है कि मनुष्य को ताड़ना देना और उसका न्याय करना उसे अथाह कुंड में डालना है, जिसका अर्थ है कि उसकी नियति और उसके भविष्य की संभावनाओं का ले लिया जाना। यह एक चीज़ के लिए हैः मनुष्य का शुद्धिकरण। मनुष्य को जानबूझकर अथाह कुंड में नहीं डाला जाता है, जिसके बाद परमेश्वर उससे अपना पीछा छुड़ा लेता है। इसके बजाय, यह मनुष्य के भीतर के विद्रोहीपन से निपटने के लिए है, ताकि अन्त में मनुष्य के भीतर की चीज़ों को शुद्ध किया जा सके, ताकि उसके पास परमेश्वर का सच्चा ज्ञान हो सके, और वह एक पवित्र इंसान के समान हो सके। यदि इसे कर लिया जाता है, तो सब कुछ पूरा हो जाएगा। वास्तव में, जब मनुष्य के भीतर की उन चीज़ों से निपटा जाता है जिनसे निपटा जाना है, और मनुष्य ज़बर्दस्त गवाही देता है, तो शैतान भी हार जाएगा, और यद्यपि उन चीज़ों में से कुछ चीज़ें हो सकती हैं जो मूल रूप से मनुष्य के भीतर हैं जिन्हें पूरी तरह से शुद्ध नहीं किया गया है, तो जब एक बार शैतान को हराया जाता है, तो वह आगे से समस्या खड़ी नहीं करेगा, और उस समय मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध कर लिया जाएगा। मनुष्य ने कभी ऐसे जीवन का अनुभव नहीं किया है, परन्तु जब शैतान को हराया जाता है, तब सब कुछ ठीक कर दिया जाएगा और मनुष्य के भीतर की उन सभी छोटी-मोटी चीज़ों का समाधान कर दिया जाएगा; अन्य सभी परेशानियां समाप्त हो जाएंगी जब एक बार मुख्य समस्या को सुलझा दिया जाता है। पृथ्वी पर परमेश्वर के इस देहधारण के दौरान, जब वह मनुष्य के बीच व्यक्तिगत तौर पर अपना कार्य करता है, तो वह सब कार्य जिसे वह करता है वह शैतान को हराने के लिए है, और वह मनुष्य पर विजय पाने एवं तुम लोगों को पूर्ण करने के माध्यम से शैतान को हराएगा। जब तुमसब ज़बर्दस्त गवाही देते हो, तो यह भी शैतान की हार का एक चिन्ह होगा। मनुष्य पर सबसे पहले विजय पाई जाती है और अन्ततः शैतान को हराने के लिए उसे पूरी तरह से पूर्ण बनाया जाता है। सार यह कि शैतान की हार के साथ-साथ यह ठीक उसी समय कष्ट के इस खोखले सागर से सम्पूर्ण मानवजाति का उद्धार भी है। इसकी परवाह किये बगैर कि इस कार्य को सम्पूर्ण जगत में क्रियान्वित किया जाता है या चीन में, यह सब कुछ शैतान को हराने और समूची मानवजाति का उद्धार करने के लिए है ताकि मनुष्य विश्राम के स्थान में प्रवेश कर सके। देखिये, देहधारी परमेश्वर का सामान्य शरीर बिलकुल शैतान को हराने के लिए है। देह के परमेश्वर के कार्य को उन सभी लोगों का उद्धार करने के लिए उपयोग किया जाता है जो स्वर्ग के नीचे हैं जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, यह सम्पूर्ण मानवजाति पर विजय पाने के लिए है और इसके अतिरिक्त, शैतान को हराने के लिए है। परमेश्वर के प्रबधंकीय कार्य का मर्म सम्पूर्ण मानवजाति का उद्धार करने के लिए शैतान की पराजय से अभिन्न है। इस कार्य के विषय में अधिकांशतः, आप लोगों के लिए हमेशा क्यों कहा जाता है कि गवाही दें? और इस गवाही को किस की ओर निर्देशित किया गया है? क्या इसे शैतान की ओर निर्देशित नहीं किया गया है? इस गवाही को परमेश्वर के लिए दिया गया है, और इसे यह प्रमाणित करने के लिए दिया गया है कि परमेश्वर के कार्य ने अपने प्रभाव को हासिल कर लिया है। गवाही देना शैतान को हराने के कार्य से सम्बन्धित है; यदि शैतान के साथ कोई युद्ध न हुआ होता, तो मनुष्य से गवाही देने की अपेक्षा नहीं की गई होती। यह इसलिए है क्योंकि शैतान को हराना ही होगा, ठीक उसी समय मनुष्य को बचाते हुए, परमेश्वर चाहता है कि मनुष्य शैतान के सामने उसकी गवाही दे, जिसे वह मनुष्य का उद्धार करने और शैतान के साथ युद्ध करने के लिए उपयोग करता है। परिणामस्वरूप, मनुष्य उद्धार का लक्ष्य और शैतान को हराने के लिए एक यन्त्र दोनों है, और इस प्रकार मनुष्य परमेश्वर के सम्पूर्ण प्रबधंन के कार्य के केन्द्रीय भाग में है, और शैतान महज विनाश का लक्ष्य है और शत्रु है। शायद आप महसूस करते हैं कि आपने कुछ भी नहीं किया है, परन्तु आपके स्वभाव में बदलावों के कारण, ऐसी गवाही दी गई है, और इस गवाही को शैतान की ओर निर्देशित किया गया है और इसे मनुष्य के लिए नहीं दिया गया है। मनुष्य एक ऐसी गवाही का आनन्द लेने के लिए उपयुक्त नहीं है। वह परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य को किस प्रकार समझ सकता है? परमेश्वर की लड़ाई का लक्ष्य शैतान है; इसी बीच मनुष्य केवल उद्धार का लक्ष्य है। मनुष्य के पास भ्रष्ट शैतानी स्वभाव है, और वह इस कार्य को समझने में असमर्थ है। यह शैतान की भ्रष्टता के कारण है। यह स्वभाविक रूप से मनुष्य के भीतर नहीं होता है, परन्तु इसे शैतान के द्वारा निर्देशित किया जाता है। आज, परमेश्वर का मुख्य कार्य शैतान को हराना है, अर्थात्, मनुष्य पर पूरी तरह से विजय पाना है, ताकि मनुष्य शैतान के सामने परमेश्वर की अंतिम गवाही दे सके। इस रीति से, सभी चीज़ों को पूरा कर लिया जाएगा। बहुत से मामलों में, आपकी खुली आंखों को प्रतीत होता है कि कुछ भी नहीं किया गया है, किन्तु वास्तव में, उस कार्य को पहले से ही पूरा किया जा चुका है। मनुष्य अपेक्षा करता है कि पूर्णता का सम्पूर्ण कार्य दृश्यमान हो, फिर भी आपके लिए इसे दृश्यमान किये बिना ही, मैंने अपने कार्य को पूरा कर लिया है, क्योंकि शैतान ने समर्पण कर दिया है, जिसका मतलब है कि उसे पूरी तरह से पराजित किया जा चुका है, यह कि परमेश्वर की सम्पूर्ण बुद्धि, सामर्थ एवं अधिकार ने शैतान को परास्त कर दिया है। यह बिलकुल वही गवाही है जिसे दिया जाना चाहिए, और हालाँकि मनुष्य में इसकी कोई स्पष्ट अभिव्यक्ति नहीं है, हालाँकि यह खुली आंखों के लिए दृश्यमान नहीं है, फिर भी शैतान को पहले से ही पराजित किया जा चुका है। इस कार्य की सम्पूर्णता को शैतान के विरुद्ध निर्देशित किया गया है, एवं शैतान के साथ युद्ध के कारण सम्पन्न किया गया है। और इस प्रकार, ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिन्हें मनुष्य इस रूप में नहीं देखता है कि वे सफल हो चुकी हैं, परन्तु उन्हें देखता है जो, परमेश्वर की नज़रों में, बहुत समय पहले ही सफल हो गई थीं। यह परमेश्वर के सम्पूर्ण कार्य की एक भीतरी सच्चाई है।
जब एक बार शैतान को पराजित कर दिया जाता है, कहने का तात्पर्य है, जब एक बार मनुष्य पर पूरी तरह से विजय पा लीजाती है, तो मनुष्य समझेगा कि यह सब कार्य उद्धार की खातिर है, और यह कि इस उद्धार का उपाय यह है कि शैतान के हाथों से पुनः प्राप्त किया जाए। 6000 वर्षों के परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य को तीन चरणों में बांटा गया है: व्यवस्था का युग, अनुग्रह का युग, और राज्य का युग। इन तीन चरणों का सम्पूर्ण कार्य मानवजाति के उद्धार के लिए है, कहने का तात्पर्य है, वे ऐसी मानवजाति के उद्धार के लिए हैं जिसे शैतान के द्वारा बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया गया है। फिर भी, ठीक उसी समय वे इसलिए भी हैं ताकि परमेश्वर शैतान के साथ युद्ध कर सके। इस प्रकार, जैसे उद्धार के कार्य को तीन चरणों में बांटा गया है, वैसे ही शैतान के साथ युद्ध को भी तीन चरणों में बांटा गया है, और परमेश्वर के कार्य के इन दो चरणों को एक ही समय में संचालित किया जाता है। शैतान के साथ युद्ध वास्तव में मानवजाति के उद्धार के लिए है, और इसलिए क्योंकि मानवजाति के उद्धार का कार्य कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे एक ही चरण में सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है, शैतान के साथ युद्ध को भी चरणों एवं अवधियों में विभाजित किया जाता है, और मनुष्य की आवश्यकताओं और मनुष्य के प्रति शैतान की भ्रष्टता की मात्रा के अनुसार ही शैतान के साथ युद्ध छेड़ा जाता है। कदाचित्, मनुष्य अपनी कल्पनाओं में, यह विश्वास करता है कि इस युद्ध में परमेश्वर शैतान के विरुद्ध शस्त्र उठाएगा, उसी रीति से जैसे दो सेनाएं आपस में लड़ती हैं। मनुष्य की बुद्धि मात्र इसी चीज़ की कल्पना करने में सक्षम है, और यह अत्यंत अस्पष्ट एवं अवास्तविक विचार है, फिर भी इसी पर मनुष्य विश्वास करता है। और क्योंकि मैं यहाँ पर कहता हूँ कि मनुष्य के उद्धार का उपाय (साधन) शैतान के साथ युद्ध करने के माध्यम से है, इसलिए मनुष्य कल्पना करता है कि इसी रीति से युद्ध को संचालित किया जाता है। मनुष्य के उद्धार के कार्य में, तीन चरणों को सम्पन्न किया जा चुका है, कहने का तात्पर्य है कि शैतान की सम्पूर्ण पराजय से पहले शैतान के साथ युद्ध को तीन चरणों में विभक्त किया गया है। फिर भी शैतान के साथ युद्ध के सम्पूर्ण कार्य की भीतरी सच्चाई यह है कि मनुष्य को अनुग्रह प्रदान करने, और मनुष्य के लिए पापबलि बनने, मनुष्य के पापों को क्षमा करने, मनुष्य पर विजय पाने, और मनुष्यों को सिद्ध बनाने के माध्यम से इसके प्रभावों को हासिल किया जाता है। सच तो यह है कि शैतान के साथ युद्ध करना उसके विरुद्ध हथियार उठाना नहीं है, बल्कि मनुष्य का उद्धार है, मनुष्य के जीवन में कार्य करना है, और मनुष्य के स्वभाव को बदलना है ताकि वह परमेश्वर के लिए गवाही दे सके। इसी रीति से शैतान को पराजित किया जाता है। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को बदलकर ही शैतान को पराजित किया जाता है। जब शैतान को पराजित कर दिया जाता है, अर्थात्, जब मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाता है, तो लज्जित शैतान पूरी तरह से लाचार हो जाएगा, और इस रीति से, मनुष्य को पूरी तरह से बचाया लिया जाएगा। और इस प्रकार, मनुष्य के उद्धार का मूल-तत्व शैतान के साथ युद्ध है, और शैतान के साथ युद्ध मुख्य रूप से मनुष्य के उद्धार में प्रतिबिम्बित होता है। अंतिम दिनों का चरण, जिसमें मनुष्य पर विजय पानी है, शैतान के साथ युद्ध में अंतिम चरण है, और साथ ही शैतान के प्रभुत्व से मनुष्य के सम्पूर्ण उद्धार का कार्य भी है। मनुष्य पर विजय का आन्तरिक अर्थ है मनुष्य पर विजय पाने के बाद शैतान के मूर्त रूप, इंसान का सृष्टिकर्ता के पास वापस लौटना जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, जिसके माध्यम से वह शैतान को छोड़ देगा और पूरी तरह से परमेश्वर के पास वापस लौटेगा। इस रीति से, मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा। और इस प्रकार, विजय का कार्य शैतान के विरुद्ध युद्ध में अंतिम कार्य है, और शैतान की पराजय के लिए परमेश्वर के प्रबंधन में अंतिम चरण है। इस कार्य के बिना, मनुष्य का सम्पूर्ण उद्धार अन्ततः असंभव होगा, शैतान की सम्पूर्ण पराजय भी असंभव होगी, और मानवजाति कभी अपनी बेहतरीन मंज़िल में प्रवेश करने में, या शैतान के प्रभाव से छुटकारा पाने में सक्षम नहीं होगी। परिणामस्वरुप, शैतान के साथ युद्ध की समाप्ति से पहले मनुष्य के उद्धार के कार्य को समाप्त नहीं किया जा सकता है, क्योंकि परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य का केन्द्रीय भाग मानवजाति के उद्धार के लिए है। एकदम आरंभ में मानवजाति परमेश्वर के हाथों में थी, परन्तु शैतान के प्रलोभन एवं भ्रष्टता की वजह से, मनुष्य को शैतान के द्वारा बांधा गया था और वह उस दुष्ट जन के हाथों में पड़ गया था। इस प्रकार, शैतान वह लक्ष्य बन गया था जिसे परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य में पराजित किया जाना था। क्योंकि शैतान ने मनुष्य पर कब्ज़ा कर लिया था, और क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के सम्पूर्ण प्रबंधन की पूंजी (सम्पदा) है, यदि मनुष्य का उद्धार करना है, तो उसे शैतान के हाथों से वापस छीनना होगा, कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य को शैतान के द्वारा बन्दी बना लिए जाने के बाद उसे वापस लेना होगा। मनुष्य के पुराने स्वभाव में बदलावों के माध्यम से शैतान को पराजित किया जाता है जो उसके मूल एहसास को पुनः स्थापित करता है, और इस रीति से मनुष्य को, जिसे बन्दी बना लिया गया था, शैतान के हाथों से वापस छीना जा सकता है। यदि मनुष्य को शैतान के प्रभाव एवं दासता से स्वतन्त्र किया जाता है, तो शैतान शर्मिन्दा होगा, मनुष्य को अंततः वापस ले लिया जाएगा और शैतान को हरा दिया जाएगा। और क्योंकि मनुष्य को शैतान के अंधकारमय प्रभाव से स्वतन्त्र किया गया है, इसलिए मनुष्य इस सम्पूर्ण युद्ध का लूट का सामान बन जाएगा, और जब एक बार यह युद्ध समाप्त हो जाता है तो शैतान वह लक्ष्य बन जाएगा जिसे दण्डित किया जाएगा, जिसके पश्चात् मनुष्य के उद्धार के सम्पूर्ण कार्य को पूरा कर लिया जाएगा।
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