उत्तर:
चूंकि आप सब यह मानते हैं कि प्रभु यीशु ने जो कार्य किया वह छुटकारे का था, और जो मार्ग उन्होंने दिखाया, वह था, "मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।" तो फिर आप सबने यह कैसे निर्धारित कर लिया कि पवित्र आत्मा पिंतेकुस्त में आया था, अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए? आप सबने प्रभु यीशु के इस वचन को आधार बनाया था, जिसमें कहा गया है, "क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आयेगा; परंतु यदि मैं जाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेजूंगा। और वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर कर देगा" (यूहन्ना16:7-8)। आप सब यह निश्चित रूप से मानने की हिम्मत कर रहे हैं कि पवित्र आत्मा द्वारा किया गया कार्य अंतिम दिनों का न्याय कार्य था, तो परमेश्वर के वचन के अनुसार क्या कोई आधार है? क्या प्रभु यीशु ने कहा था, "पवित्र आत्मा आ गया है। वह जो करेगा, अंत के दिनों का न्याय कार्य होगा"? प्रभु यीशु ने यह कभी नहीं कहा। प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा था, "यदि कोई मेरी बात सुन कर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता: क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिए नहीं, परंतु जगत का उद्धार करने के लिए आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है, उसको दोषी ठहराने वाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैंने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। प्रभु यीशु ने यह स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने जो किया वह न्याय का कार्य नहीं था। अंत के दिनों में पुनरागमन पर प्रभु यीशु न्याय का कार्य करने के लिये, केवल सत्य ही व्यक्त करेंगे। निश्चित होने के लिए, कुछ लोगों का अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा के कार्य को परमेश्वर का न्याय कार्य कहना गलत है। जाहिर है, जब हम अपने पापों को स्वीकार कर प्रभु के सामने पश्चाताप करते हैं, तो हमारे पास पवित्र आत्मा की गति तथा कार्य होना चाहिए ताकि हम परमेश्वर का अनुग्रह ग्रहण कर शांति और आनंद का अनुभव कर सकें। परंतु जब कोई प्रभु के सामने पश्चाताप करता है, बिलख-बिलख कर रोने लगता है, तो इसका यही अर्थ है कि पवित्र आत्मा ने उसको हिला कर रख दिया है। इसका प्रभाव यह है कि यह मनुष्य को स्वीकार करने और पश्चाताप करने के बाद परमेश्वर के अनुग्रह के योग्य बना देता है। यह परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय से प्राप्त प्रभाव नहीं है - शुद्धिकरण के बाद पूर्ण बनाए जाने का। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के कुछ अंशों को पढ़ें और समझ लें कि न्याय क्या है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जब "न्याय" शब्द की बात आती है, तो तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे जो यहोवा ने सभी स्थानों के लिए कहे थे और फटकार के उन वचनों के बारे में सोचोगे जो यीशु ने फरीसियों को कहे थे। यद्यपि ये वचन कठोर हैं, किंतु ये मनुष्यों के बारे में परमेश्वर का न्याय नहीं हैं; ये परमेश्वर के द्वारा केवल विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात्, विभिन्न हालातों में कहे गए वचन हैं, और ये मसीह द्वारा तब कहे गए वचनों के असमान हैं जब वह अन्त के दिनों में मनुष्यों का न्याय करता है। अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को प्रकट करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्य शामिल हैं, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर केन्द्रित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह प्रगट करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का अवतार और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। जब परमेश्वर न्याय का कार्य करता है, तो वह केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है, बल्कि लम्बे समय तक प्रकाशन, व्यवहार, और काँट-छाँट कार्यान्वित करता है। इस प्रकार का प्रकाशन, व्यवहार और काँट-छाँट साधारण वचनों से नहीं बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके का कार्य ही न्याय समझा जाता है, केवल इसी प्रकार के न्याय के द्वारा ही मनुष्य को समझाया जा सकता है, परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य परमेश्वर के असली चेहरे और उसके विद्रोहीशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ उत्पन्न करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और मनुष्य की समझ में न आ सकने वाले रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसके भ्रष्टाचार के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस तरह के कार्य का सार ही उन सभी के लिए वास्तव में परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से)।
"न्याय का कार्य परमेश्वर का स्वयं का कार्य है, इसलिए स्वभाविक तौर पर इसे परमेश्वर के द्वारा ही अवश्य किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सत्य के माध्यम से मनुष्य को जीतना न्याय है, इसलिए यह निर्विवाद है कि तब भी परमेश्वर मनुष्यों के मध्य अपना कार्य करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होता है। अर्थात्, अंत के दिनों में, मसीह पृथ्वी के चारों ओर मनुष्यों को सिखाने के लिए और सभी सत्यों को उन्हें ज्ञात करवाने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यही परमेश्वर के न्याय का कार्य है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को सुन कर आप सब कैसा अनुभव करते हैं? परमेश्वर का न्याय कार्य एक रहस्य है। परमेश्वर के प्रकाशन के बिना, कोई उसके अन्दर नहीं झाँक सकता। सच है न? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से व्याख्या की है कि न्याय क्या है और उसके क्या प्रभाव होते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को सुनने के बाद, क्या आप सब परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य को थोड़ा-बहुत समझ पाए हैं? अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य मानवजाति को संपूर्ण रूप से शुद्ध करने और बचाने के लिए है। यह मनुष्य को महज थोड़ी फटकार और लानत लगाने के लिए नहीं है। न ही शब्दों के कुछ अनुच्छेदों की अभिव्यक्ति, लोगों को परमेश्वर से शुद्धिकरण और उद्धार ग्रहण करने के लिए, पापों के चंगुल से छुड़ा सकती है। परमेश्वर को पर्याप्त वचन व्यक्त करने होते हैं, सत्य के तमाम पहलू समझाने के लिए, जिनको समझ कर और अपना कर भ्रष्ट मानवजाति शुद्धिकरण और उद्धार पा सके, और मानवजाति के सामने अपनी प्रबंधन योजना के तमाम रहस्य उजागर करने के लिए। यह अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा अभिव्यक्त वचन से सैकड़ों-हज़ारों गुना अधिक है। अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य, सत्य और न्याय के वचन को अभिव्यक्त करने पर केंद्रित है, ताकि परमेश्वर का प्रतिरोध कर विश्वासघात करने वाली मनुष्य की शैतानी प्रवृत्ति, और शैतान द्वारा मनुष्य के भ्रष्ट होने की सच्चाई का न्याय कर उसे उजागर किया जा सके, और परमेश्वर के पवित्र, धार्मिक और रुष्ट न होने वाले स्वभाव को संपूर्ण रूप में प्रकट किया जा सके। परमेश्वर के इरादे और मानवजाति की ज़रूरतों के सत्य के सभी पहलू, और किस प्रकार के लोग उद्धार या सजा पायेंगे, आदि-आदि हमारे समक्ष प्रकट किये गए है। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य का अनुभव कर के, हम उनकी प्रबंधन योजना का उद्देश्य समझ पाते हैं। हम सकारात्मक और नकारात्मक चीजों में अंतर समझ सकते हैं, और पागलपन की हद तक परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले शैतान के राक्षसी रूप को स्पष्ट देख सकते हैं। हम शैतान द्वारा मनुष्य के गहराई तक भ्रष्ट होने का सच देख सकते हैं, और परमेश्वर का प्रतिरोध कर विश्वासघात करने वाली हमारी शैतानी प्रवृत्ति को पहचान सकते हैं। परमेश्वर की धार्मिक प्रवृत्ति, सर्वशक्तिमत्ता, बुद्धिमत्ता, और उनकी संपत्ति और हस्ती को ले कर, हम एक सच्ची समझ प्राप्त करते हैं और परमेश्वर के प्रति धर्मभीरू हृदय पाते हैं। हम शर्म से जमीन पर गिर जाते हैं, इस अनुभूति से कि हम परमेश्वर के सामने जीवित रहने योग्य नहीं हैं। हम स्वयं से घृणा कर खुद को त्याग देते हैं, हम धीरे-धीरे पाप के चंगुल से छुटकारा पाते हैं, एक वास्तविक मनुष्य की भाँति रह कर, परमेश्वर से सचमुच भयग्रस्त हो कर, उनके आज्ञाकारी बन जाते हैं। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य का अनुभव करने पर ये प्रभाव होते हैं। केवल इस प्रकार का कार्य ही परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय कार्य है। क्या आप सब यह समझ रहे हैं?
तो आइये अनुग्रह का युग देखें। प्रभु यीशु ने केवल छुटकारे का कार्य किया और पश्चाताप के मार्ग का उपदेश दिया। मनुष्य को, परमेश्वर के स्वभाव के केवल कृपालु और स्नेही आयाम दिखा कर। हालांकि प्रभु यीशु ने मनुष्य के साथ न्याय करने, फारसियों को निंदित कर उनको कोसने के कुछ शब्द भी कहे। प्रभु यीशु ने केवल छुटकारे का कार्य किया, जो पापों को क्षमा करने, पश्चाताप का उपदेश देने और अनुग्रह प्रदान करने पर केंद्रित था। वह मनुष्य के पापों के शुद्धिकरण और न्याय पर केंद्रित कार्य नहीं था। यानी प्रभु यीशु का कार्य केवल छुटकारे के कार्य के इर्द-गिर्द ही था और उन्होंने सीमित वचन ही व्यक्त किये, जिनसे मनुष्य को पश्चाताप करने, पाप स्वीकारने, विनम्र और धैर्यवान बनने, बपतिस्मा लेने, सूली उठाने, दु:ख सहने, आदि की विधि की शिक्षा मिली। प्रभु में विश्वास करने पर, हमें स्वीकृति और पश्चाताप हेतु, केवल प्रभु के वचन पर निर्भर होना होगा, जिससे हमारे पापों को क्षमा मिलेगी। तब हमें कानून से सजा नहीं होगी, और मृत्युदंड नहीं मिलेगा। हम परमेश्वर से प्रार्थना कर उनका अनुग्रह और आशीष ग्रहण करने योग्य बन जायेंगे। अनुग्रह के युग में परमेश्वर के छुटकारे के कार्य से ये प्रभाव प्राप्त हुए थे, जो अंत के दिनों में न्याय कार्य से हुए प्रभावों से बिलकुल अलग थे। फिर भी, कुछ लोग यह मानते हैं कि, अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करना और उससे प्रबुद्धता, फटकार और अनुशासन पाना, आंसू बहाते हुए प्रार्थना करना, पाप स्वीकार करना और अच्छा व्यवहार करना, दरअसल परमेश्वर से शुद्धिकरण और न्याय पाने का अनुभव है। तो मैं आप सबसे पूछता हूँ, क्या हम अपने पापों की जड़ को जानते हैं? क्या हम परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले अपने स्वयं की शैतानी प्रवृत्ति के सत्व को जानते हैं? क्या हम मनुष्य के गहन भ्रष्टाचार का सच जानते हैं? क्या हम शैतान के बुरे सत्व को स्पष्ट देख सकते हैं? क्या हम परमेश्वर के धार्मिक, प्रतापी और रुष्ट न होने वाले स्वभाव को जानते हैं? क्या हम पापों के चंगुल से सचमुच छूट चुके हैं? क्या हमारी शैतानी प्रवृत्ति का शुद्धिकरण हो चुका है? क्या हम परमेश्वर के प्रति श्रद्धालु और आज्ञाकारी बन गए हैं? यदि हम ये सब नहीं कर सके, तो कैसे कह सकते हैं कि हमने परमेश्वर से शुद्धिकरण और न्याय पाने का अनुभव किया है? क्या आप सब मेरी बात समझ रहे हैं? समझ गए। अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु का कार्य न्याय कार्य नहीं था। राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य उनके अंत के दिनों का न्याय कार्य है।
"स्क्रीनप्ले प्रश्नों के उत्तर" से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें