संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)।
परमेश्वर के वचन से जवाब:
परमेश्वर ऐसे लोग चाहता है जो उसके पदचिन्हों का अनुसरण करें। भले ही जो तुमने पहले समझा था वह कितना ही अद्भुत और शुद्ध क्यों न हो, परमेश्वर उसे नहीं चाहता है, और यदि तुम ऐसी चीजों को अलग नहीं कर सकते, तो वे भविष्य में तुम्हारे प्रवेश के लिए एक बड़ी बाधा होंगी। वे सभी धन्य हैं जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के नक़्शेकदम पर चलते थे, फिर भी वे आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं, और जो परमेश्वर के नक्शेकदम पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँ कहीं भी ले जाए वे उसका अनुसरण करते ही हैं—वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है, और चाहे वे कितना भी काम करें, या उनकी पीड़ा कितनी भी बड़ी हो, या वे कितनी ही भाग-दौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं है, और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज, जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों का पालन करते हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा में हैं; जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों से अनभिज्ञ हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, और परमेश्वर की सराहना ऐसे लोगों के लिए नहीं है। वह सेवा जो पवित्र आत्मा की वास्तविक उक्तियों से विभाजित हो, वह देह की और धारणाओं की सेवा है, और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होने में असमर्थ है। यदि लोग धार्मिक अवधारणाओं में रहते हैं, तो वे ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं जो परमेश्वर की इच्छा के लिए उपयुक्त हो, और भले ही वे परमेश्वर की सेवा करें, वे अपनी कल्पना और अवधारणाओं के घेरे में सेवा करते हैं, और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं वे परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते। परमेश्वर ऐसी सेवा चाहता है जो उसके दिल के मुताबिक हो; वह ऐसी सेवा नहीं चाहता है जो कि धारणाओं और देह की हो। यदि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के चरणों का पालन करने में असमर्थ हैं, तो वे अवधारणाओं के बीच रहते हैं, और ऐसे लोगों की सेवा दखल देती है और परेशान करती है। ऐसी सेवा परमेश्वर के विरूद्ध चलती है, और इस प्रकार जो लोग परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की सेवा करने में असमर्थ हैं; जो लोग परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने में असमर्थ हैं, वे निश्चित रूप से परमेश्वर का विरोध करते हैं, और वे परमेश्वर के साथ सुसंगत होने में असमर्थ हैं। "पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण" करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना, और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल ऐसा व्यक्ति ही है जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा की धारा में है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने के लिए सक्षम हैं, बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं, और मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य के प्रकृति और सार को भी, परमेश्वर के नवीनतम कार्य से जान सकते हैं; इसके अलावा, वे अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं, और जो वास्तव में सही राह को हासिल कर चुके हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य से हटा दिए गए हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, और जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। ऐसा लोग खुले आम परमेश्वर का विरोध इसलिए करते हैं कि परमेश्वर ने नया कार्य किया है, और परमेश्वर की छवि उनकी धारणाओं के अनुरूप नहीं है—जिसके परिणामस्वरूप वे परमेश्वर का खुले आम विरोध करते हैं और परमेश्वर पर निर्णय देते हैं, जिससे वे स्वयं के लिए परमेश्वर की घृणा और अस्वीकृति उत्पन्न करते हैं। परमेश्वर के नवीनतम कार्य का ज्ञान रखना कोई आसान बात नहीं है, लेकिन अगर लोग स्वेच्छापूर्वक परमेश्वर के कार्य का अनुसरण कर पाते हैं और परमेश्वर के कार्य की तलाश कर सकते हैं, तो उन्हें परमेश्वर को देखने का मौका मिलेगा, और उन्हें पवित्र आत्मा का नवीनतम मार्गदर्शन प्राप्त करने का मौका मिलेगा। जो जानबूझकर परमेश्वर के कार्य का विरोध करते हैं, वे पवित्र आत्मा के प्रबोधन या परमेश्वर के मार्गदर्शन को प्राप्त नहीं कर सकते हैं; इस प्रकार, लोगों को परमेश्वर का नवीनतम कार्य प्राप्त होता है या नहीं, यह परमेश्वर की कृपा पर निर्भर करता है, यह उनके अनुसरण पर निर्भर करता है, और यह उनके इरादों पर निर्भर करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और परमेश्वर के चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" से
यदि तुम परमेश्वर के नए प्रकाश को स्वीकार करने में असमर्थ हो, और वह सब कुछ नहीं समझ सकते हो जिसे आज परमेश्वर करता है, और उसकी खोज नहीं करते हो, या अन्यथा उस पर सन्देह करते हो, उसकी आलोचना करते हो, या उसका अध्ययन एवं विश्लेषण करते हो, तो तुम्हारा आज्ञा मानने का मन नहीं है। यदि, जब वर्तमान समय का प्रकाश दिखाई देता है, तुम तब भी बीते हुए कल के प्रकाश को सँजोकर रखते हो और परमेश्वर के नए कार्य का विरोध करते हो, तो तुम एक मज़ाक से बढ़कर और कुछ भी नहीं हो, तुम उन में से एक हो जो जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करता है। नए प्रकाश की सराहना करना, उसे स्वीकार करने में समर्थ होना और उसे अभ्यास में लाना ही परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की कुंजी है। केवल यही सच्ची आज्ञाकारिता है। जो लोग परमेश्वर के लिए प्यासे होने की इच्छा नहीं रखते हैं वे परमेश्वर की आज्ञा मानने का मन रखने वाला होने में असमर्थ हैं, और वे केवल यथास्थिति के साथ अपनी संतुष्टि के फलस्वरूप केवल परमेश्वर का विरोध ही कर सकते हैं। मनुष्य परमेश्वर का आज्ञापालन इसलिए नहीं कर सकता है क्योंकि वह उसके द्वारा ग्रस्त है जो पहले आया था। ऐसी चीज़ें जो पहले आई थीं उन्होंने परमेश्वर के बारे में लोगों को हर प्रकार की धारणाएँ एवं भ्रांतियाँ दी हैं जो उनके मनों में परमेश्वर की छवि बन गई हैं। इस प्रकार, जिन में वे विश्वास करते हैं वे उनकी स्वयं की धारणाएँ, और उनकी स्वयं की कल्पनाओं के मानक हैं। यदि तुम अपनी कल्पनाओं के परमेश्वर के विरूद्ध उस परमेश्वर को मापते हैं जो आज वास्तविक कार्य करता है, तो तुम्हारा विश्वास शैतान से आता है, और तुम्हारी स्वयं की प्राथमिकताओं के अनुसार है—और परमेश्वर इस तरह का विश्वास नहीं चाहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि उनके परिचय पत्र कितने उत्कृष्ट हैं, और उनके समर्पण की परवाह किए बिना—भले ही उन्होंने उसके कार्य के लिए जीवन भर के प्रयासों का समर्पण किया हो, और अपने आपको शहीद कर दिया हो—परमेश्वर इस तरह के विश्वास वाले किसी को भी स्वीकार नहीं करता है। वह उन्हें मात्र थोड़ा सा अनुग्रह दिखाता है, और थोड़े समय के लिए उन्हें उसका आनन्द उठाने देता है। इस तरह के लोग सत्य का अभ्यास करने में असमर्थ हैं, पवित्र आत्मा उनके भीतर काम नहीं करता है, और परमेश्वर बारी-बारी से उन में प्रत्येक को हटा देगा। इस बात की परवाह किए बिना कि वे बुजुर्ग हैं या जवान, जो लोग अपने विश्वास में परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते हैं और जिनके पास ग़लत प्रेरणाएँ हैं, ये ऐसे लोग हैं जो विरोध और हस्तक्षेप करते हैं, और ऐसे लोग निर्विवाद रूप से परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाएँगे। ऐसे लोग जिनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ी सी भी आज्ञाकारिता नहीं है, जो केवल परमेश्वर के नाम को स्वीकार करते हैं, और जिनमें परमेश्वर की प्रीति एवं सुंदरता का थोड़ा सा भाव है फिर भी वे पवित्र आत्मा के कदमों के साथ समगति से नहीं चलते हैं, और पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य एवं वचनों का पालन नहीं करते हैं—ऐसे लोग परमेश्वर के अनुग्रह के बीच रहते हैं, और परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किए जाएँगे पूर्ण नहीं बनाए जाएँगे। परमेश्वर लोगों को उनकी आज्ञाकारिता के माध्यम से, परमेश्वर के वचन को उनके द्वारा खाए, पीए एवं उसका आनन्द उठाए जाने के माध्यम से, और उनके जीवन में कष्ट एवं शुद्धिकरण के माध्यम से पूर्ण बनाता है। केवल इस तरह के विश्वास के माध्यम से ही लोगों का स्वभाव परिवर्तित हो सकता है, केवल तभी वे परमेश्वर के सच्चे ज्ञान को धारण कर सकते हैं। परमेश्वर के अनुग्रहों के बीच रह कर सन्तुष्ट न होना, सत्य के लिए सक्रियता से प्यासे होना, और सत्य की खोज करना, और परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने खोज करना—सचेतनता से परमेश्वर की आज्ञा मानने का यही अर्थ है; यह ठीक उसी प्रकार का विश्वास है जो परमेश्वर चाहता है। जो लोग परमेश्वर के अनुग्रहों का आनन्द उठाने से अधिक और कुछ नहीं करते हैं वे पूर्ण नहीं बनाए जा सकते हैं, या परिवर्तित नहीं किए जा सकते हैं, और उनकी आज्ञाकारिता, धर्मनिष्ठता, और प्रेम तथा धैर्य सभी सतही हैं। जो लोग केवल परमेश्वर के अनुग्रहों का आनन्द लेते हैं वे वास्तव में परमेश्वर को नहीं जान सकते हैं, और यहाँ तक कि जब वे परमेश्वर को जान जाते हैं, तब भी उनका ज्ञान उथला होता है, और वे ऐसी बातें कहते हैं जैसे कि परमेश्वर मनुष्य से प्रेम करता है, या परमेश्वर मनुष्य के प्रति करूणामय है। यह मनुष्य के जीवन का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, और यह नहीं दिखाता है कि लोग सचमुच में परमेश्वर को जानते हैं। यदि, जब परमेश्वर के वचन उन्हें शुद्ध करते हैं, या जब परमेश्वर के परीक्षण उन पर आते हैं, तो लोग परमेश्वर की आज्ञा मानने में असमर्थ होते हैं—उसके बजाए, यदि वे सन्देहास्पद हो जाते हैं, और नीचे गिर जाते हैं—तो वे न्यूनतम आज्ञाकारी भी नहीं रहते हैं। उनके भीतर, परमेश्वर के विश्वास के बारे में बहुत सारे नियम और प्रतिबंध हैं, पुराने अनुभव हैं जो कई वर्षों के विश्वास के परिणामस्वरूप हैं, या बाईबल पर आधारित विभिन्न सिद्धांत हैं। क्या इस प्रकार के लोग परमेश्वर का आज्ञापालन कर सकते हैं? ये लोग मानवीय चीज़ों से भरे हुए हैं—वे परमेश्वर का आज्ञापालन कैसे कर सकते हैं? वे सभी अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार आज्ञापालन करते हैं—क्या परमेश्वर इस तरह की आज्ञाकारिता की इच्छा कर सकता है? यह परमेश्वर का आज्ञापालन करना नहीं है, बल्कि सिद्धांतों पर अटल रहना है, यह अपने आपको सन्तुष्ट करना और सांत्वना देना है। यदि तुम कहते हो कि यह परमेश्वर का आज्ञापालन है, तो क्या तुम उसके विरुद्ध ईशनिंदा नहीं करते हो? तुम एक मिस्री फिरौन हो, तुम दुष्टता करते हो, तुम स्पष्ट रूप से परमेश्वर का विरोध करने के काम में संलग्न रहते हो—क्या परमेश्वर इस तरह की सेवा चाह सकता है? तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होगा कि शीघ्रता करो और पश्चाताप करो और कुछ आत्म-जागरूकता रखो। यदि नहीं, तो तुम्हारे लिए घर चले जाना बेहतर होगा: परमेश्वर के प्रति तुम्हारी "सेवा" की अपेक्षा यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा होगा, तुम हस्तक्षेप नहीं करोगे और विघ्न नहीं ड़ालोगे, तुम अपनी जगह को जानोगे, और अच्छी तरह से रहोगे—और क्या यह बेहतर नहीं रहेगा? इस तरह से तुम परमेश्वर का विरोध करने और दण्डित किए जाने से बच जाओगे!
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए" से
पवित्र आत्मा का कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है, और वे सभी जो पवित्र आत्मा की मुख्य धारा में हैं उन्हें भी और अधिक गहराई में बढ़ना और कदम दर कदम बदलना चाहिए। उन्हें एक ही चरण पर रूकना नहीं चाहिए। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर के मूल कार्य के मध्य बने रहेंगे, और वे पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे लोग जो अनाज्ञाकारी हैं केवल वे ही पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। यदि मनुष्य का रीति व्यवहार पवित्र आत्मा के नए कार्य के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलता है, तो मनुष्य के रीति व्यवहार को निश्चित रूप से आज के कार्य से हानि पहुंचता है, और यह निश्चित रूप से आज के कार्य के अनुरूप नहीं है। ऐसे पुराने लोग साधारण तौर पर परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में असमर्थ होते हैं, और वे ऐसे अन्तिम लोग तो बिलकुल भी नहीं बन सकते हैं जो परमेश्वर की गवाही देने के लिए खड़े होंगे। इसके अतिरिक्त, सम्पूर्ण प्रबंधकीय कार्य को ऐसे लोगों के समूह के बीच में समाप्त नहीं किया जा सकता है। क्योंकि वे लोग जिन्होंने एक समय यहोवा की व्यवस्था को थामा था, और वे लोग जिन्होंने क्रूस के दुःख को सहा था, यदि वे अन्तिम दिनों के कार्य के चरण को स्वीकार नहीं कर सकते हैं, तो जो कुछ भी उन्होंने किया था वह सब बेकार एवं व्यर्थ होगा। पवित्र आत्मा के कार्य की अत्यंत स्पष्ट अभिव्यक्ति इस स्थान एवं इस समय को सम्मिलित करने में है, और अतीत से चिपके रहना नहीं है। ऐसे लोग जो आज के कार्य के साथ साथ बने नहीं रहते हैं, और जो आज के रीति व्यवहार से अलग हो गए हैं, ये ऐसे लोग हैं जो विरोध करते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के वर्तमान कार्य की अवहेलना करते हैं। यद्यपि वे अतीत के प्रकाश को पकड़े रहते हैं, फिर भी इसका अर्थ यह नहीं है कि इसका इंकार करना संभव है कि वे पवित्र आत्मा के कार्य नहीं जानते हैं। मनुष्य के रीति व्यवहार में परिवर्तनों के विषय में, भूतकाल एवं वर्तमान के बीच के रीति व्यवहार की भिन्नताओं के विषय में, पूर्वकालीन युग के दौरान किस प्रकार अभ्यास किया जाता था इसके विषय में, और इसे आज किस प्रकार किया जाता है इसके विषय में यह सब बातचीत क्यों की गई है। मनुष्य के रीति व्यवहार में ऐसे विभाजन के विषय में हमेशा बात की जाती है क्योंकि पवित्र आत्मा का कार्य लगातार आगे बढ़ रहा है, और इस प्रकार मनुष्य के रीति व्यवहार से अपेक्षा की जाती है कि वह निरन्तर बदलता रहे। यदि मनुष्य एक ही अवस्था में चिपका रहता है, तो इससे प्रमाणित होता है कि वह परमेश्वर के कार्य एवं नए प्रकाश के साथ साथ बने रहने में असमर्थ है; इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि प्रबंधन की परमेश्वर की योजना परिवर्तित नहीं हुई है। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा की मुख्य धारा के बाहर हैं वे सदैव सोचते हैं कि वे सही हैं, किन्तु वास्तव में, उसके भीतर परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही रूक गया था, और पवित्र आत्मा का कार्य उनमें अनुपस्थित है। परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही लोगों के एक अन्य समूह को हस्तान्तरित हो चुका था, ऐसा समूह जिस पर उसने अपने नए कार्य को पूरा करने का इरादा किया है। क्योंकि ऐसे लोग जो किसी धर्म में हैं वे परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, और वे केवल भूतकाल के पुराने कार्य को ही थामे रहते हैं, इस प्रकार परमेश्वर ने इन लोगों को छोड़ दिया है, और उन लोगों पर अपना कार्य करता है जो उसके नए कार्य को स्वीकार करते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो उसके नए कार्य में उसका सहयोग करते हैं, और केवल इसी रीति से ही उसके प्रबंधन को पूरा किया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" से
उत्पत्ति से लेकर आज तक, परमेश्वर ने बहुत कार्य किया है जो मनुष्य की समझ से बाहर है और जिसे मनुष्य ग्रहण करने में कठिनाई महसूस करता है, और परमेश्वर ने बहुत कुछ कहा है जो मनुष्य की धारणाओं को ठीक होने में कठिनाई प्रस्तुत करता है। फिर भी वह अपना कार्य करना कभी भी बंद नहीं करता है क्योंकि मनुष्य के पास कई सारी समस्याएं हैं; उसने कार्य करने और बोलने का कार्य जारी रखा है और हालांकि किनारे पर बहुत सारे "योद्धा" गिरे हैं, वह फिर भी अपना कार्य करता जाता है और लोगों के ऐसे समूहों को एक के बाद एक चुनना जारी रखता है जो उसके नए कार्य का पालन करने की इच्छा जताते हैं। वह उन गिरे हुए "नायकों" पर दया नहीं दिखाता है, परन्तु उन्हें सम्भाल कर रखता है जो उसके वचन और नए कार्य को स्वीकार करते हैं। लेकिन किस उद्देश्य के लिए वह इस तरह कार्य को कदम दर कदम करता है? वह क्यों हमेशा लोगों को ख़त्म करता और चुनता रहता है? वह क्यों हमेशा इस प्रकार के तरीकों का इस्तेमाल करता रहता है? उसके कार्य का लक्ष्य यह है कि मनुष्य उसे जानें, और इस प्रकार से उसके द्वारा प्राप्त किए जाएं। उसके कार्य का नियम उन लोगों पर कार्य करना है जो आज उसके किए गए कार्य को मानने के लिए तैयार हैं, और उन पर कार्य नहीं करता जो उसके अतीत के कार्य को तो मानते हैं, परन्तु आज उसके कार्य का विरोध करते हैं। यही मुख्य कारण है कि उसने इतने सारे लोगों को ख़त्म कर दिया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल वही जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही दे सकते हैं" से
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