परमेश्वर के वचन से जवाब:
सबसे पहले, चलो हम प्रत्येक वक्तव्य को सत्यापित नहीं करते हैं। इसके बजाय, चलो हम देखते हैं कि पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है। चलो हम यह देखने के लिए सच्चाई के साथ तुलना करते हैं कि हम जिस मार्ग पर चलते हैं वह पवित्र आत्मा के कार्य के अनुरूप है या नहीं, और यह जाँचने के लिए कि क्या यह मार्ग सही है पवित्र आत्मा के कार्य का उपयोग करते हैं। और जहाँ तक इस वक्तव्य या उस वक्तव्य के घटित होने की बात है, हम मनुष्यों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसके बजाय हमारे लिए यह बेहतर है कि हम पवित्र आत्मा के कार्य और उस नवीनतम कार्य के बारे में बात करें जिसे परमेश्वर अब कर रहा है। बाइबिल में भविष्यद्वक्ताओं द्वारा कहे गए परमेश्वर के वचनों और उस समय परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए गए मनुष्यों द्वारा लिखे गए वचनों का समावेश है; केवल परमेश्वर स्वयं ही उन वचनों की व्याख्या कर सकता है, केवल पवित्र आत्मा ही उन वचनों का अर्थ ज्ञात करवा सकता है, और केवल परमेश्वर स्वयं ही सात मुहरों को तोड़ सकता है और पुस्तक को खोल सकता है। तुम परमेश्वर नहीं हो, और न ही मैं हूँ, इसलिए परमेश्वर के वचनों की कौन इच्छानुसार व्याख्या करने का साहस करता है? क्या तुम उन वचनों की व्याख्या करने का साहस करते हो? यहाँ तक कि यदि भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह, यूहन्ना और एलिय्याह यहाँ होते, तो वे भी हिम्मत नहीं करते, क्योंकि वे मेम्ने नहीं हैं। केवल मेम्ना ही सात मुहरों को तोड़ सकता है और पुस्तक को खोल सकता है, और कोई भी अन्य उसके वचनों की व्याख्या नहीं कर सकता है। …
…अंत के दिन अंत के दिनों से बढ़कर नहीं हैं और राज्य के युग से बढ़कर नहीं हैं, जो अनुग्रह के युग या व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। अंत के दिन मात्र वह समय है जिसमें छ:-हज़ार-वर्षों की प्रबंधन योजना के समस्त कार्य को तुम लोगों पर प्रकट किया जाता है। यह रहस्य से पर्दा उठाना है। ऐसे रहस्य को किसी भी मनुष्य के द्वारा अनावृत नहीं किया जा सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य के पास बाइबल की कितनी अधिक समझ है, यह वचनों से बढ़कर और कुछ नहीं है, क्योंकि मनुष्य बाइबिल के सार को नहीं समझता है। जब मनुष्य बाइबल को पढ़ता है, तो वह कुछ सच्चाईयों को प्राप्त कर सकता है, कुछ वचनों की व्याख्या कर सकता है या कुछ प्रसिद्ध अंशों या उद्धरणों का सूक्ष्म परीक्षण कर सकता है, परन्तु वह उन वचनों के भीतर निहित अर्थ को निकालने में कभी भी समर्थ नहीं होगा, क्योंकि मनुष्य जो कुछ देखता है वे मृत वचन हैं, यहोवा और यीशु के कार्य के दृश्य नहीं हैं, और मनुष्य ऐसे कार्य के रहस्य को सुलझाने में असमर्थ है। इसलिए, छ:-हज़ार-वर्षों की प्रबंधन योजना का रहस्य सबसे बड़ा रहस्य है, एक ऐसा रहस्य जो मनुष्य से बिलकुल छिपा हुआ और उसके लिए सर्वथा अचिन्त्य है। कोई भी सीधे तौर पर परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझ सकता है, जब तक कि वह मनुष्य को स्वयं न समझाए और खुल कर न कहे, अन्यथा, वे सर्वदा मनुष्य के लिए पहेली बने रहेंगे और सर्वदा मुहरबंद रहस्य बने रहेंगे। जो धार्मिक जगत में हैं वे उन पर कभी ध्यान नहीं देते हैं; यदि तुम लोगों को आज नहीं बताया जाए, तो तुम लोग भी समझने में समर्थ नहीं। भविष्यद्वक्ताओं की सभी भविष्यवाणियों की तुलना में छः हज़ार वर्षों का यह कार्य अधिक रहस्यमय है। यह सृजन के बाद से सबसे बड़ा रहस्य है, और पहले का कोई भी भविष्यद्वक्ता कभी भी इसकी थाह पाने में सफल नहीं हुआ है, क्योंकि इस रहस्य को केवल अंत के युग में ही खोला जाता है और पहले कभी प्रकट नहीं किया गया है। यदि तुम लोग इस रहस्य को समझते हो और इसे पूरी तरह से प्राप्त करने में समर्थ हो, तो उन सभी धार्मिक व्यक्तियों को इस रहस्य से जीत लिया जाएगा। केवल यही सबसे बड़ा दर्शन है, जिसे समझने के लिए मनुष्य सबसे अधिक लालायित रहता है किन्तु जो उसके लिए सबसे अधिक अस्पष्ट भी है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (4)" से
उस समय के सभी यहूदियों ने पुराने विधान से पढ़ा था और यशायाह की भविष्यवाणी को जानते थे कि चरनी में एक नर शिशु जन्म लेगा। तो फिर क्यों, इस ज्ञान के साथ, उन्होंने तब भी यीशु को सताया? क्या यह उनकी विद्रोही प्रकृति और पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति अज्ञानता के कारण नहीं है? उस समय, फरीसियों को विश्वास था कि यीशु का कार्य उससे भिन्न था जो वे भविष्यवाणी किए गए नर शिशु के बारे में जानते थे; आज का मनुष्य परमेश्वर को अस्वीकार करता है क्योंकि देहधारी परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुरूप नहीं है। क्या परमेश्वर के विरुद्ध उनके विद्रोहीपन का सार एक ही बात नहीं है? क्या तुम इस प्रकार के हो सकते हो कि तुम पवित्र आत्मा के समस्त कार्य को बिना कोई प्रश्न किए स्वीकार करो? यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो यह सही "स्रोत" है। तुम्हें इसे बिना किसी आशंका के स्वीकार कर लेना चाहिये, बजाय इसके कि किसे चुनें और स्वीकार करें। यदि तुम्हें परमेश्वर से कुछ ज्ञान प्राप्त होता है और उसके विरुद्ध कुछ सावधानी प्रयोग करते हो, तो क्या यह कार्य वास्तव में अनुचित नहीं है? अगर कोई कार्य पवित्रात्मा का है, तो बिना बाइबल के प्रमाण की आवश्यकता के, तुम्हें उसे स्वीकार कर लेना चाहिये, जब तक कि यह पवित्र आत्मा का है, क्योंकि तुम परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हो, न कि उसकी जाँच-पड़ताल करने के लिए। मेरे यह दिखाने के लिए कि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ तुम्हें और सबूत नहीं खोजने चाहिए। इसके बजाय कि तुम्हें यह विचार करना चाहिए कि क्या मैं तुम्हारे लिए लाभ का हूँ, यही मुख्य बात है। भले ही तुम्हें बाइबल में बहुत सारे अखंडनीय सबूत प्राप्त हो जाएँ; ये तुम्हें पूरी तरह से मेरे सामने नहीं ला सकते हैं। तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो बाइबल के सीमा में ही रहता है, न कि मेरे सामने…; यद्यपि बाइबल में भविष्यवाणी की गई है कि एक नर शिशु जन्म लेगा, कोई थाह नहीं ले सकता है कि किस पर यह भविष्यवाणी घटित होगी, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर का कार्य नहीं पता, और फरीसियों का यीशु के विरोध में खड़े होने का यही कारण है। कुछ लोग जानते हैं कि मेरा कार्य मनुष्य के हितों में है, फिर भी वे निरंतर यह विश्वास करते रहते हैं कि यीशु और मैं दो पूरी तरह से अलग-अलग प्राणी हैं जो परस्पर असंगत हैं। उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को उपदेशों की एक श्रृंखला कही, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे माँगें, दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करें इत्यादि। जो कार्य उसने किया वह अनुग्रह के युग का था, और उन्होंने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया कैसे अभ्यास करें। उसने केवल अनुग्रह के युग का ही कार्य किया और अंत के दिनों का कोई कार्य नहीं किया। जब यहोवा ने व्यवस्था के युग में पुराने विधान के नियमों को निर्धारित किया, उसने अनुग्रह के युग के कार्य को तब क्यों नहीं किया? उसने अग्रिम में अनुग्रह के युग के कार्य को स्पष्ट क्यों नहीं किया? क्या यह मनुष्यों के स्वीकार करने के लिए लाभदायक नहीं हो गया होता? उसने केवल यह भविष्यवाणी की कि एक नर शिशु जन्म लेगा और सामर्थ्य में आएगा, परन्तु उसने अनुग्रह के युग का कार्य अग्रिम में नहीं किया। प्रत्येक युग में परमेश्वर के कार्य की स्पष्ट सीमाएँ हैं; वह केवल वर्तमान युग का कार्य करता है और वह कभी भी कार्य का आगामी चरण अग्रिम में नहीं करता है। केवल इस तरह से उसका प्रत्येक युग का प्रतिनिधि कार्य सामने लाया जा सकता है। यीशु ने अंत के दिनों के केवल चिह्नों के बारे में बात की, इस बारे में बात की कि किस प्रकार से धैर्यवान बनें और कैसे बचाए जाएँ, कैसे पश्चाताप करें और स्वीकार करें, और साथ ही सलीब को कैसे सहें, और साथ ही पीड़ाओं को कैसे सहन करें; उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि अंत के दिनों में मनुष्य को किस में प्रवेश करना चाहिए या परमेश्वर की इच्छा को किस प्रकार से संतुष्ट करें। वैसे तो, क्या अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को बाइबल के अंदर खोजना भ्रान्ति का कार्य नहीं होगा? बाइबल को केवल अपने हाथों में पकड़कर तुम क्या विचार कर सकते हो? बाइबल का व्याख्याता हो या उपदेशक, आज के कार्य को कौन पहले से जान सकता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वह मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर के प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है जिसने उसे अपनी ही धारणाओं में परिभाषित किया है?" से
परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण स्पष्ट रूप से प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों को पूरा करने के लिए नहीं था, वह सिद्धान्त में बने रहने या प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों का जान-बूझकर एहसास करने के लिए नहीं आया था। फिर भी उसके कार्यों ने प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों में अड़चन नहीं डाली थी, न ही उन्होंने उस कार्य में विघ्न डाला था जो उसने पहले किया था। उसके कार्य का प्रमुख बिन्दु किसी सिद्धान्त के द्वारा बने रहना, और उस कार्य को करना नहीं था जिसे उसे स्वयं करना चाहिए था। वह एक भविष्यवक्ता या दर्शी नहीं था, परन्तु कार्य करने वाला था, जो वास्तव में उस कार्य को करने आया था जिसे करने की अपेक्षा उससे की गई थी, और अपने नए युग को शुरू करने और अपने नये कार्य को सम्पन्न करने के लिए आया था। निश्चित रूप से, जब यीशु अपना कार्य करने के लिए आया, तो उसने पुराने नियम में प्राचीन भविष्यवक्ताओं के द्वारा कहे गए बहुत सारे वचनों को भी पूरा किया था। अतः आज के कार्य ने पुराने नियम के प्राचीन भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों को पूरा किया है। यह बस ऐसा है कि मैं उस "पीले पड़ चुके पुराने पंचांग" को पकड़े नहीं रहता हूँ, बस इतना ही। क्योंकि और भी अधिक कार्य हैं जिन्हें मुझे करना होगा, एवं और भी अधिक वचन हैं जिन्हें मुझे आप लोगों से कहना होगा; और यह कार्य एवं ये वचन बाईबिल के लेखांशों की व्याख्या करने की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ऐसे कार्य का आप लोगों के लिए कोई बड़ा महत्व एवं मूल्य नहीं है, और यह आप सब की सहायता नहीं कर सकता है, या आप लोगों को बदल नहीं सकता है। मैं नया कार्य करने का इरादा रखता हूँ किन्तु बाईबिल के किसी भी लेखांश को पूरा करने के लिए नहीं। यदि परमेश्वर सिर्फ बाईबिल के प्राचीन भविष्यवक्ताओं के वचनों को पूरा करने के लिए पृथ्वी पर आए, तो अधिक बड़ा कौन होता, देहधारी परमेश्वर या वे प्राचीन भविष्यवक्ता? आख़िरकार, क्या भविष्यवक्ताओं के पास परमेश्वर की ज़िम्मेदारी है, या परमेश्वर के पास भविष्यवक्ताओं की ज़िम्मेदारी है? आप इन वचनों की व्याख्या कैसे करते हैं?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पद नामों एवं पहचान के सम्बन्ध में" से
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