परमेश्वर के वचन से जवाब:
जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। तुम्हें किसी व्यक्ति को ऊँचा नहीं ठहराना चाहिए या किसी व्यक्ति पर श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए; तुम्हें पहला स्थान परमेश्वर को, दूसरा स्थान उन लोगों को जिनकी तुम श्रद्धा करते हो, और तीसरा स्थान अपने आपको नहीं देना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं लेना चाहिए, और तुम्हें लोगों को—विशेष रूप से उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य, उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "दस प्रशासनिक आज्ञाएँ जिनका परमेश्वर के चयनित लोगों द्वारा राज्य के युग में पालन अवश्य किया जाना चाहिए" से
हर पंथ और संप्रदाय के नेताओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ विद्या तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने नेताओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे तरीके से प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, "हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में उससे परामर्श करना है।" देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब नेता क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-शत्रु, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?…
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुमने पहले किसी और का अनुसरण किया था या तुमने परमेश्वर की इच्छा पूरी नहीं की थी, तुम को इस चरण में परमेश्वर के सामने आना ही होगा। इस स्तर पर, यदि कार्य के इस चरण का अनुभव करने के आधार पर तुम किसी और का अनुसरण करते रहोगे, तो तुम्हें अक्षम्य माना जाएगा…
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से "केवल सत्य का अनुसरण ही परमेश्वर में सच्चा विश्वास है" से
कुछ लोग सत्य में आनन्द नहीं मनाते हैं, न्याय की तो बात ही दूर है। बल्कि वे शक्ति और धन में आनन्द मनाते हैं; इस प्रकार के लोग मिथ्याभिमानी समझे जाते हैं। ये लोग अनन्य रूप से संसार के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनारियों से निकलने वाले पादरियों और शिक्षकों की खोज में लगे रहते हैं। सत्य के मार्ग को स्वीकार करने के बावजूद, वे उलझन में फंसे रहते हैं और अपने आप को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हैं। वे परमेश्वर के लिए बलिदान की बात करते हैं, परन्तु उनकी आखें महान पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं और मसीह को किनारे कर दिया जाता है। उनके हृदयों में प्रसिद्धि, वैभव और प्रतिष्ठा रहती है। उन्हें बिल्कुल विश्वास नहीं होता कि ऐसा छोटा-सा आदमी इतनोंपर विजय प्राप्त कर सकता है, यह कि वह इतना साधारण होकर भी लोगों को सिद्ध बनाने के योग्य है। वे बिल्कुल विश्वास नहीं करते कि ये धूल में पड़े मामूली लोग और घूरे पर रहने वाले ये साधारण मनुष्य परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हंसते। वे विश्वास करते हैं कि यदि परमेश्वर ऐसे सामान्य लोगों को सिद्ध बना सकता है, तो वे सभी महान लोग स्वयं में परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से भ्रष्ट हो गए हैं; दरअसल, अविश्वास से कोसों दूर वे बेहूदा जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और शक्ति का मूल्य जानते हैं; वे विशाल समूहों और सम्प्रदायों को ही ऊंचा सम्मान देते हैं। उनकी दृष्टि में उनका कोई सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह कर रहे हैं। वे सीधे तौर पर विश्वासघाती हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुंह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की तारीफ नहीं करते हो, बल्कि उन झूठे चरवाहों की करते हो जो विशेष हैसियत रखते हैं। तुम मसीह की सुन्दरता या ज्ञान से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन अधम लोगों से करते हो जो घृणित संसार से जुड़े हैं। तुम मसीह के दुख पर हंसते हो, जिसके पास अपना सिर रखने तक की जगह नहीं, परन्तु उन मुर्दों की तारीफ करते हो जो भेंट झपट लेते हैं और व्यभिचारी का जीवन जीते हैं। तुम मसीह के साथ-साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं, परन्तु उन धृष्ट मसीह विरोधियों की बाहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालांकि वे तुम्हें सिर्फ देह, अक्षरज्ञान और अंकुश ही दे सकते हैं अभी भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, सभी शैतानों के हृदय में उनकी हैसियत, उनके प्रभाव, उनके अधिकार की ओर लगा रहता है, फिर भी तुम विरोधी स्वभाव बनाए रखते हो और मसीह के कार्य को स्वीकार नहीं करते हो। इसलिए मैं कहता हूं कि तुम्हें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने उसका अनुसरण आज तक सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती की गई थी। तुम्हारे हृदय में हमेशा कई बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम उनके प्रत्येक कार्य और शब्दों को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को; वे तुम लोगों के हृदय में हैं, हमेशा के लिए सर्वोच्च और योद्धा की तरह। परन्तु आज के समय में मसीह के लिए ऐसा नहीं है। वह हमेशा से तुम्हारे हृदय में महत्वहीन और आदर के योग्य नहीं रहा है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण रहा है, बहुत ही कम प्रभावशाली और उच्चता से बहुत दूर रहा है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" से
ऐसे लोगों के लिये, जो यह कहते हैं कि वे परमेश्वर को मानते हैं, यह बेहतर होगा कि वे अपनी आंखें खोलें और देखें कि दरअसल वे विश्वास किस में करते हैं: तुम दरअसल परमेश्वर में विश्वास करते हो या शैतान में? यदि तुम्हें यह पता चल जाये कि तुम परमेश्वर में नहीं अपनी प्रतिमाओं में विश्वास करते हो, तो फिर बेहतर यही होगा कि तुम न कहो कि तुम विश्वासी हो। यदि तुम्हें पता ही नहीं की तुम किस में विश्वास करते हो तो फिर से, बेहतर होगा कि तुम न कहो कि तुम विश्वासी हो। वैसा कहना ईश-निंदा होगी! तुमसे कोई ज़बर्दस्ती नहीं कह रहा कि तुम परमेश्वर में विश्वास करो। मत कहो कि तुम लोग मुझमें विश्वास करते हो, क्योंकि मैं यह सब पहले बहुत सुन चुका हूं और कोई इच्छा नहीं है कि फिर से सुनूं, क्योंकि तुम जिसमें विश्वास करते हो वे तुम लोगों के मन की प्रतिमाएं और तुम सबके मध्य स्थानीय दुर्दांत सांप हैं। वे जो सच्चाई सुनकर अपनी गर्दन न में हिलाते हैं, जो मौत की बातें सुनकर अत्यधिक मुस्कराते हैं, वे शैतान की संतान हैं, और नष्ट कर दी जाने वाली वस्तुएं हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सत्य का पालन नहीं करते, उनके लिये चेतावनी" से
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