संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"क्योंकि यह उस मनुष्य की सी दशा है जिसने परदेश जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। उसने एक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। तब, जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन-देन किया, और पाँच तोड़े और कमाए। इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी के रुपये छिपा दिए। बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने पाँच तोड़े और लाकर कहा, 'हे स्वामी, तू ने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे, देख, मैं ने पाँच तोड़े और कमाए हैं।' उसके स्वामी ने उससे कहा, 'धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।' 'और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा, 'हे स्वामी, तू ने मुझे दो तोड़े सौंपे थे, देख, मैं ने दो तोड़े और कमाए।' उसके स्वामी ने उससे कहा, 'धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।' 'तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, 'हे स्वामी, मैं तुझे जानता था कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहाँ कहीं नहीं बोता वहाँ काटता है, और जहाँ नहीं छींटता वहाँ से बटोरता है। इसलिये मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है, वह यह है। उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, 'हे दुष्ट और आलसी दास, जब तू यह जानता था कि जहाँ मैं ने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ, और जहाँ मैं ने नहीं छींटा वहाँ से बटोरता हूँ; तो तुझे चाहिए था कि मेरा रुपया सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता। 'इसलिये वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो। क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा" (मत्ती 25:14-30)।
परमेश्वर के वचन से जवाब:
मेरी दया उन पर व्यक्त होती है जो मुझसे प्रेम करते हैं और अपने आपको नकारते हैं। और दुष्टों को मिला दण्ड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध का साक्षी है। जब आपदा आएगी, तो उन सभी पर अकाल और महामारी आ पड़ेगी जो मेरा विरोध करते हैं और वे विलाप करेंगे। जो लोग सभी तरह की दुष्टता कर चुके हैं, किन्तु जिन्होंने बहुत वर्षों तक मेरा अनुसरण किया है, वे अभियोग से नहीं बचेंगे; वे भी, ऐसी आपदा जिसके समान युगों-युगों तक कदाचित ही देखी गई होगी, में पड़ते हुए, लगातार आंतक और भय की स्थिति में जीते रहेंगे। और केवल मेरे वे अनुयायी ही जिन्होंने मेरे प्रति निष्ठा दर्शायी है मेरी सामर्थ्य का आनंद लेंगे और तालियाँ बजाएँगे। वे अवर्णनीय संतुष्टि का अनुभव करेंगे और ऐसे आनंद में रहेंगे जो मैंने पहले कभी मानवजाति को प्रदान नहीं किया है। क्योंकि मैं मनुष्यों के अच्छे कर्मों को सँजोए रखता हूँ और उनके बुरे कर्मों से घृणा करता हूँ। जबसे मैंने सबसे पहले मानवजाति की अगुवाई करनी आरंभ की, तब से मैं उत्सुकतापूर्वक मनुष्यों का ऐसे समूह की आशा करता आ रहा हूँ जो मेरे साथ एक से मन वाले हों। मैं उन लोगों को नहीं भूला हूँ जो मेरे साथ एक से मन वाले नहीं है; केवल उन्हें अपना प्रतिफल देने के अवसर की प्रतीक्षा करते हुए, जिसे देखना मुझे आनंद देगा, मैंने उन्हें अपने हृदय में घृणा के साथ धारण किया हुआ है। अंततः आज मेरा दिन आ गया है, और मुझे अब और प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है!
मेरा अंतिम कार्य न केवल मनुष्यों को दण्ड देने के वास्ते है बल्कि मनुष्य की मंजिल की व्यवस्था करने के वास्ते भी है। इससे भी अधिक, यह उन सभी चीज़ों के लिए सभी से अभिस्वीकृति प्राप्त करने के वास्ते है जो कार्य मैं कर चुका हूँ। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है; यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और प्रकृति का तो बिल्कुल नहीं है, जिसने मानवजाति को उत्पन्न किया है। इसके विपरीत, यह मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीवित प्राणी का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना, मानव जाति केवल नष्ट होगी और विपत्तियों के दण्ड से गुज़रेगी। कोई भी मानव सुन्दर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को फिर कभी नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी का सामना करेगी। मैं ही मनुष्यजाति का एक मात्र उद्धार हूँ। मैं ही मनुष्यजाति की एकमात्र आशा हूँ और, इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना, मानवजाति तुरंत निस्तब्ध हो जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी, भले ही कोई भी मुझ पर ध्यान नहीं देगा। मैंने वह काम किया है जो किसी दूसरे के द्वारा नहीं किया जा सकता है, मेरी एकमात्र आशा है कि मनुष्य कुछ अच्छे कर्मों के साथ मेरा बदला चुका सके। यद्यपि जो मेरा बदला चुका सकते हैं बहुत कम हैं, तब भी मैं मनुष्यों के संसार में अपनी यात्रा पूर्ण करता हूँ और विकास के अपने कार्य के अगले चरण को आरंभ करता हूँ, क्योंकि इन अनेक वर्षों में मनुष्यों के बीच मेरी इधर-उधर की सारी दौड़ फलदायक रही है, और मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं जिस चीज़ की परवाह करता हूँ वह मनुष्यों की संख्या नहीं, बल्कि उनके अच्छे कर्म हैं। हर हाल में, मुझे आशा है कि तुम लोग अपनी मंज़िल के लिए अच्छे कर्मों की पर्याप्तता तैयार करोगे। तब मुझे संतुष्टि होगी; अन्यथा तुम लोगों में से कोई भी उस आपदा से नहीं बचेगा जो तुम लोगों पर पड़ेगी। आपदा मेरे द्वारा उत्पन्न की जाती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही गुप्त रूप से आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नज़रो में अच्छे के रूप में नहीं दिखाई दे सकते हो, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते हो। क्लेश के बीच में, तुम लोगों के कार्य और कर्म पूरी तरह से उचित नहीं थे, क्योंकि तुम लोगों का विश्वास और प्रेम खोखला था, और तुम लोगों ने अपने आप को केवल या तो डरपोक या रूखा प्रदर्शित किया। इस बारे में, मैं केवल भले या बुरे का ही न्याय करूँगा। मेरी चिंता उस तरीके को ले कर बनी रहती है जिसमें तुम लोगों में से प्रत्येक कार्य करता है और अपने आप को व्यक्त करता है, जिसके आधार पर मैं तुम लोगों अंत निर्धारित करूँगा। हालाँकि, मुझे तुम लोगों को यह स्पष्ट अवश्य कर देना चाहिए कि: मैं क्लेश के दिनों में उन लोगों पर और अधिक दया नहीं करूँगा जिन्होंने मुझे रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दी है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। साथ ही साथ, मुझे ऐसा कोई पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ संबद्ध होना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। यही मेरा स्वभाव है, इस बात की परवाह किए बिना कि व्यक्ति कौन हो सकता है। मुझे तुम लोगों को अवश्य बना देना चाहिए कि: जो कोई भी मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई भी मेरे प्रति निष्ठावान रहा है वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए" से
केवल स्वयं परमेश्वर ही मनुष्य से अपेक्षाएं कर सकता है, कहने का तात्पर्य है, केवल स्वयं परमेश्वर ही मनुष्य से अपेक्षाएं करने के लिए उपयुक्त है। मनुष्य के पास कोई विकल्प नहीं होना चाहिए, उसे पूरी तरह से अधीन होने और अभ्यास करने के सिवाए कुछ नहीं करना चाहिए; यही वह एहसास है जिसे मनुष्य के द्वारा धारण किया जाना चाहिए। जब एक बार वह कार्य पूरा हो जाता है जिसे स्वयं परमेश्वर के द्वारा किया जाना चाहिए, तो मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह कदम दर कदम इसका अनुभव करे। यदि, अंत में, जब परमेश्वर का सम्पूर्ण प्रबंधन पूरा हो जाता है, जब मनुष्य ने अब तक वह कार्य नहीं किया है जिसकी अपेक्षा परमेश्वर के द्वारा की गई है, तो मनुष्य को दण्ड दिया जाना चाहिए। यदि मनुष्य परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता है, तो यह मनुष्य की अनाज्ञाकारिता के कारण है; इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर ने अपने कार्य को सावधानी से नहीं किया है। वे सभी जो परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में नहीं ला सकते हैं, वे जो परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं, और वे जो अपनी वफादारी नहीं दे सकते हैं और अपने कर्तव्य को निभा नहीं सकते हैं—उन सभी को दण्ड दिया जाएगा। आज, जो कुछ हासिल करने की अपेक्षा तुम सब से की जाती है वे अतिरिक्त मांगे नहीं हैं, किन्तु मनुष्य के कर्तव्य हैं, और वह है जिसे समस्त लोगों के द्वारा किया जाना चाहिए। …परमेश्वर का कार्य मानवजाति के लिए है, तथा मनुष्य का सहयोग परमेश्वर के प्रबंधन के लिए है। जब परमेश्वर ने वह सब कुछ किया जिसको करने की उससे अपेक्षा की गई उसके पश्चात्, मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने रीति व्यवहार में उदार हो, और परमेश्वर के साथ सहयोग करे। परमेश्वर के कार्य में, मनुष्य को कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहिए, उसे अपनी वफादारी अर्पित करनी चाहिए, और अनगिनत अवधारणाओं में सलंग्न नहीं होना चाहिए, या निष्क्रिय होकर बैठना और मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर मनुष्य के लिए स्वयं को बलिदान कर सकता है, अतः मनुष्य क्यों परमेश्वर के प्रति अपनी वफादारी को अर्पित नहीं कर सकता है? परमेश्वर मनुष्य के प्रति एक हृदय एवं एक मस्तिष्क का है, अतः मनुष्य क्यों थोड़ा सा भी सहयोग अर्पित नहीं कर सकता है? परमेश्वर मानवजाति के लिए कार्य करता है, अतः मनुष्य क्यों परमेश्वर के प्रबंधन के लिए अपने कुछ कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता है? परमेश्वर का कार्य इतनी दूर तक आ गया है, फिर भी तुम लोग अभी भी देखते रहते हो किन्तु कोई कार्य नहीं करते हो, तुम लोग सुनते तो हो किन्तु हिलते नहीं। क्या ऐसे लोग विनाश के पात्र नहीं हैं? परमेश्वर ने पहले ही अपना सर्वस्व मनुष्य को अर्पित कर दिया है, अतः आज मनुष्य ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ क्यों है? परमेश्वर के लिए, उसका कार्य उसकी प्राथमिकता है, और उसके प्रबंधन का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनुष्य के लिए, परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना और परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करना ही उसकी प्राथमिकता है। तुम सब को इसे समझना चाहिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" से
तुम लोगों को ज्ञात होना चाहिये कि सफलता लोगों को उनके अपने कार्यों से मिलती है; जब लोग असफल हो जाते हैं, तो वह भी उनके अपने कार्यों के कारण ही होता है, किन्हीं अन्य वजहों से नहीं। …तुम्हें अपना दायित्व पूरी क्षमता से और खुले तथा निर्मल हृदय से पूरा करना चाहिये, एवं हर स्थिति में पूर्ण करना चाहिये। जैसा कि तुम सबने कहा है, जब दिन आयेगा, तो जिसने भी परमेश्वर के लिये कष्ट उठाए हैं, परमेश्वर उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा। इस प्रकार का दृढ़निश्चय बनाये रखना चाहिये और इसे कभी भूलना नहीं चाहिये। केवल इसी प्रकार से मैं तुम लोगों के बारे में निश्चिंत हो सकता हूं। वरना मैं कभी भी तुम लोगों के विषय में बेफिक्र नहीं हो पाऊंगा, और तुम सदैव मेरी घृणा के पात्र रहोगे। यदि तुम सभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सको और अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर सको, मेरे कार्य के लिये कोई कोर-कसर न छोड़ो, और मेरे सुसमाचार के कार्य के लिये अपने आजीवन किये गये प्रयास अर्पित कर सको, तो क्या फिर मेरा हृदय तुम्हारे लिये हर्षित नहीं होगा? क्या मैं तुम्हारी ओर से पूर्णत: निश्चिंत नहीं हो जाऊंगा?…
…मुझे चाटुकारिता या खुशामद या उत्साह से पेश आना पसंद नहीं है। मुझे ऐसे ईमानदार लोग पसंद हैं जो मेरे सत्य और अपेक्षाओं के समक्ष टिक सकें। और तो और, जब लोग मेरे हृदय के प्रति चिंता या आदर का भाव दिखाते हैं तो मुझे अच्छा लगता है, और तब मुझे और भी अच्छा लगता है जब लोग मेरी खातिर सब कुछ छोड़ सकें। केवल इसी तरह से मेरे हृदय को सुखद अनुभूति हो सकती है। …
…मुझे आशा है कि मेरे कार्य के अंतिम चरण में, तुम्हारी कार्यशीलता उल्लेखनीय हो, तुम सब पूर्ण समर्पित हो, और अधूरे मन से कार्य न करो। मैं यह भी आशा करता हूं कि तुम सभी को अच्छा गंतव्य प्राप्त हो। उसके बावजूद, अभी भी मेरी अपनी आवश्यकताएं हैं, और वो ये कि तुम्हें सर्वोत्तम निर्णय करना है कि तुम लोग अपनी एकमात्र और अंतिम भक्ति मुझे प्रदान करो। यदि किसी की एकनिष्ठ भक्ति नहीं है, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से शैतान की पूंजी बन जायेगा, और मैं उसका इस्तेमाल करना जारी नहीं रखूंगा। मैं उसे उसके माता-पिता के पास देखभाल के लिये घर भेज दूंगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "गंतव्य पर" से
मानवजाति का सदस्य और सच्चे ईसाई होने के नाते, अपने मन और शरीर को परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के लिए समर्पित करना हम सभी की ज़िम्मेदारी और दायित्व है, क्योंकि हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और यह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश के लिए नहीं हैं और मानवजाति के धर्मी कार्य के लिए नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के योग्य नहीं हैं जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए हैं, परमेश्वर के लिए तो और भी अधिक अयोग्य हैं, जिसने हमें सब कुछ प्रदान किया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है" से
आज जो अपने आप को मेरे लिए खपाते हैं, अपने आप को मेरे लिए अर्पित करते और मेरे लिए बोझ सहन हैं, मैं उनके साथ कभी भी अनुचित व्यवहार नहीं करूँगा और उससे मेरी धार्मिकता प्रकट होगी।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "अडतीसवाँ कथन" से
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सच्चे मार्ग की खोजबीन पर एक सौ प्रश्न और उत्तर
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