9. परमेश्वर ने मनुष्यों को बहुत कुछ सौंपा है और अनगिनत प्रकार से उनके प्रवेश को संबोधित किया है। परंतु क्योंकि लोगों की क्षमता बहुत कम है, इसलिए परमेश्वर के बहुत सारे वचन जड़ पकड़ने में असफल रहे हैं। क्षमता के कम होने के विभिन्न कारण हैं, जैसे कि मनुष्य के विचार और नैतिकता की भ्रष्टता, और उचित पालन-पोषण की कमी; सामंती अंधविश्वास जिन्होंने मनुष्य के हृदय को बुरी तरह से जकड़ लिया है; भ्रष्ट और पतनशील जीवन-शैलियाँ जिन्होंने मनुष्य के हृदय की गहराई में कई बुराइयों को स्थापित कर दिया है; सांस्कृतिक ज्ञान की सतही समझ, लगभग अठानवे प्रतिशत लोगों में सांस्कृतिक ज्ञान की शिक्षा की कमी और यही नहीं, बहुत कम लोगों का उच्च-स्तर की सांस्कृतिक शिक्षा को प्राप्त करना, इसलिए मूल रूप से लोगों को यह पता ही नहीं है कि परमेश्वर या पवित्र आत्मा का क्या अर्थ है, परंतु उनके पास सामंती अंधविश्वासों से प्राप्त परमेश्वर की केवल एक धुंधली और अस्पष्ट तस्वीर है; वे घातक प्रभाव जो हज़ारों वर्षो की "राष्ट्रवाद की अभिमानी आत्मा" द्वारा मनुष्य के हृदय की गहराई में छोड़े गए तथा सामंती विचारधारा जिसके द्वारा लोग बिना स्वतंत्रता के, महत्वकांक्षा रखने और आगे बढ़ने की इच्छा के बिना, प्रगति करने की अभिलाषा के बिना, बल्कि निष्क्रिय रहने और पीछे की ओर जाने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बंधे और जकड़े हुए हैं।ऐसी कई और बातों के साथ भी। इन वास्तविक कारणों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट मलिनता और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य अंधकार के आतंकी जगत में जी रहे हैं, उनमें से कोई भी इस जगत के पार जाने के लिए प्रयास नहीं कर रहा है, और उनमें से कोई भी आदर्श जगत की ओर आगे बढ़ने के लिए नहीं सोच रहा है; बल्कि, वे अपने जीवन में बहुतायत से संतुष्ट हैं, अपने दिनों को बच्चे जनने और उनके पालन-पोषण में, झगड़ने में, पसीना बहाने में, और अपने कामों में जाने में व्यय करते हैं; शांति से अपने जीवन को जीते हुए आरामदायक और आनंदमय परिवार, वैवाहिक स्नेह, अपने बच्चों के बारे में अपने अपने अंत के वर्षों में आनंद के सपने देखते हैं...। इसकी अपेक्षा कि अपने सिद्ध जीवन का निर्माण करें, दसियों, हज़ारों, लाखों वर्षों से अभी तक, लोग इसी तरह से समय को व्यर्थ कर रहे हैं, सभी प्रतिष्ठा और संपत्ति की दौड़ में, और एक दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में, इस अंधकारपूर्ण जगत में केवल एक दूसरे की हत्या काइरादा रखते हैं। क्या किसी ने कभी परमेश्वर की इच्छा को ढूंढा है? क्या कभी किसी ने परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है? एक लम्बे अर्से से मानवता के सभी अंगों पर अंधकार के प्रभाव ने कब्ज़ा जमा लिया है और वही मानवीय स्वभाव बन गए हैं, और इसलिए परमेश्वर के कार्य को करना कठिन हो गया है, और यहाँ तक कि जो परमेश्वर ने उन्हें आज सौंपा है उसपर लोग ध्यान भी देना नहीं चाहते हैं। वैसे भी, मैं विश्वास करता हूँ कि मेरे इन शब्दों को बोलने पर लोगों को आपत्ति नहीं होगी क्योंकि मैं हज़ारों वर्षों के इतिहास के बारे में बात कर रहा हूँ। इतिहास के बारे में बात करने का अर्थ तथ्यों के बारे में बात करना है, यही नहीं उन कलंकित कार्यों के बारे में भी जो सबके सामने प्रत्यक्ष हैं, इसलिए तथ्य के विरोध में बोलने का क्या अर्थ रह जाता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (3)" से
10. परमेश्वर अंधविश्वास की उन गतिविधियों से सबसे ज्यादा घृणा करता है जिनमें लोग लिप्त रहते हैं, परंतु अभी भी बहुत से लोग यह सोचकर कि अंधविश्वास की ये गतिविधियाँ परमेश्वर द्वारा दी गई हैं, इन्हें त्यागने में असमर्थ हैं, और आज तक उन्होंने इन्हें पूरी तरह से नहीं त्यागा है। ऐसी वस्तुएं जैसे कि जवान लोगों द्वारा विवाह के भोज और दुल्हन के साज-सामान का प्रबंध; नकद उपहार, प्रीतिभोज, और इन्हीं के समान अन्य तरीके जिनमें आनन्द के अवसरों को मनाया जाता है; वे प्राचीन तरीके जो हमें पूर्वजों से मिले हैं; और अंधविश्वास की वे सारी गतिविधियाँ जो मृतकों तथा उनके अंतिम संस्कार के लिए की जाती हैं: ये परमेश्वर के लिए और भी घृणास्पद हैं। यहाँ तक कि रविवार भी (सब्त, जैसा कि यहूदियों द्वारा मनाया जाता है) उसके लिए घृणास्पद है; और मनुष्य के बीच सामाजिक सम्बन्ध और सांसारिक बातचीत परमेश्वर द्वारा तुच्छ समझे जाते और अस्वीकार किए जाते हैं। यहाँ तक की वसंत का त्यौहार और क्रिसमस, जिनके बारे में सब जानते हैं, परमेश्वर की आज्ञास्वरूप नहीं हैं, तो इन त्यौहारों की छुट्टियों के लिए खिलौने और सजावट (गीत, नव वर्ष का केक, पटाखे, रौशनी की मालाएँ, क्रिसमस के उपहार, क्रिसमस के उत्सव, और प्रभु भोज) की तो बात ही छोड़ो - क्या वे मनुष्यों के मनों की मूर्तियाँ नहीं हैं? सब्त के दिन रोटी का तोड़ना, दाखरस, और उत्तम वस्त्र और भी अधिक प्रभावी मूर्तियाँ हैं। चीन में लोकप्रिय सारे पारम्परिक त्यौहार, जैसे ड्रैगन हैड्स-रेजिंग दिवस, ड्रैगन बोट महोत्सव, मध्य-शरद ऋतु महोत्सव, लाबा महोत्सव, और नव वर्ष उत्सव, और धार्मिक जगत के त्यौहार जैसे ईस्टर, बपतिस्मा दिवस, और क्रिसमस, आज इन सभी अनुचित त्यौहारों को प्राचीन काल से बहुत से लोगों द्वारा मनाया गया और हमें प्रदान कर दिया गया, और जिस मनुष्यजाति की परमेश्वर ने सृष्टि की उसके साथ यह पूर्णतः असंगत है। यह मनुष्यजाति की समृद्ध कल्पना और प्रवीण धारणा ही है जिसने उन्हें तब से लेकर आज तक आगे बढ़ाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें कोई दोष नहीं हैं, परंतु यह मनुष्यजाति के साथ शैतान द्वारा खेली गयी चालें हैं। जिस स्थान पर शैतानों की जितनी ज्यादा भीड़ होती है, उतना ही पुराने ढंग का और पिछड़ा हुआ वह स्थान होता है, उतनी ही गहराई से सामंती प्रथा दृढ़ होती है। यह वस्तुएं लोगों को इतनी कस कर बाँध देती हैं कि हिलने-डुलने के लिए कुछ भी स्थान नहीं रह जाता है। धार्मिक जगत के बहुत सारे त्यौहार मौलिकता का प्रदर्शन करते और परमेश्वर के कार्य के लिए एक सेतु का निर्माण करते प्रतीत होते हैं; किन्तु वास्तव में वे शैतान के अदृश्य बंधन हैं जिनसे शैतान लोगों को बाँध देता है ताकि वे परमेश्वर को न जान पाएं - वे सब शैतान की धूर्त रणनीतियाँ हैं। वास्तव में, जब परमेश्वर के कार्य का एक चरण समाप्त हो जाता है, तो वह पहले ही बिना कोई चिह्न छोड़े, उस समय के उपकरण और शैली को नष्ट कर चुका होता है। परंतु, "सच्चे विश्वासी" ठोस पदार्थ की वस्तुओं की आराधना करना जारी रखते हैं; इस दौरान वे आगे का अध्ययन न करते हुए, उन वस्तुओं को बिल्कुल भुला देते हैं जो परमेश्वर के पास हैं, प्रकटत: ऐसा लगता है कि उनके मन में परमेश्वर के प्रति अगाध प्रेम है जबकि वास्तव में वे उसे बहुत पहले ही घर के बाहर धकेल चुके हैं और शैतान को आराधना-स्थल पर स्थापित कर चुके हैं। यीशु, क्रूस, मरियम, यीशु का बपतिस्मा, अंतिम भोज के चित्रों को लोग पूरे समय बार-बार "पिता परमेश्वर" पुकारते हुए, उन्हें स्वर्ग के प्रभु के रूप में आदर देते हैं। क्या यह सब मज़ाक नहीं है? परमेश्वर को उन सभी समान कथनों और क्रियाओं से, जो पूर्वजों से मनुष्यजाति को आज तक सौंपी गई हैं, घृणा है; वे गंभीरतापूर्वक परमेश्वर के आगे के मार्ग में बाधा डालते हैं और, यही नहीं, वे मनुष्यजाति के प्रवेश में विघ्न डालते हैं। यह बात तो एकतरफ कि शैतान ने मनुष्यजाति को किस सीमा तक भ्रष्ट किया है, लोगों के अंतर्मन विटनेस ली के नियम, लॉरेंस के अनुभवों, वॉचमैन नी के सर्वेक्षणों, और पौलुस के कार्य जैसी वस्तुओं से पूर्णतः भरे हुए हैं। परमेश्वर के पास मनुष्यों पर कार्य करने के लिए कोई भी मार्ग नहीं है, क्योंकि उनके भीतर व्यक्तिवाद, कानून, नियम, विनियम, प्रणाली, और ऐसी ही अनेक चीज़ें भरी पड़ी हैं; लोगों के सामंती अंधविश्वास की प्रवृतियों के अतिरिक्त इन वस्तुओं ने मनुष्यजाति को बंदी बनाकर उसे निगल लिया है। यह बिल्कुल ऐसा है जैसे लोगों के विचार एक रूचिकर चलचित्र हैं और जो रंगों से भरपूर परियों की कहानी का वर्णन कर रहा है, जिसमें असाधारण प्राणी बादलों की सवारी कर रहें हैं, यह इतना कल्पनाशील है कि लोगों को स्तब्ध, मूक और विस्मित कर देता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (3)" से
11. मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन करने के लिए सबसे अच्छा तरीका लोगों के अंतर्मन के उन भागों को बदलना है जिन्हें गहन रूप से विषैला कर दिया गया है, ताकि लोग अपनी विचारधारा और नैतिकता को बदल सकें। सबसे पहले तो लोगों को स्पष्ट रूप से देखने की जरूरत है कि परमेश्वर के लिए धार्मिक संस्कार, धार्मिक गतिविधियाँ, वर्ष और महीने, और त्यौहार घृणास्पद हैं। उन्हें सामंती विचारधारा के बंधनों से मुक्त होना चाहिए और अंधविश्वास की गहरी प्रवृति के हर प्रभाव को जड़ से उखाड़ देना चाहिए। यह सब मनुष्यजाति के प्रवेश में सम्मिलित हैं। तुम लोगों को यह अवश्य समझना चाहिए कि क्यों परमेश्वर मनुष्यजाति को सांसारिक जगत से बाहर ले जाता है, और फिर क्यों वह मनुष्यजाति को नियमों और विनियमों से दूर ले जाता है। यही वह द्वार है जिससे तुम सब प्रवेश करोगे, और यद्यपि यह तुम्हारे आत्मिक अनुभव के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखता, परंतु ये सबसे बड़ी बाधाएँ हैं जो तुम लोगों के प्रवेश में और परमेश्वर को जानने में बाधा उत्पन्न करतीं हैं। वे ऐसा जाल बुनती हैं जिसमें लोग फंस जाते हैं। बहुत सारे लोग बाइबल को बहुत अधिक पढ़ते हैं और यहाँ तक कि अपनी स्मृति से बाइबिल के अनेक भागों को सुना भी सकते हैं। आज अनेक लोग प्रवेश में, परमेश्वर के कार्य को मापने के लिए अनजाने में बाइबल का प्रयोग करते हैं, मानो परमेश्वर के कार्य में इस चरण का आधार बाइबिल है और इसका स्रोत भी बाइबल है। जब परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुरूप होता है, तब लोग परमेश्वर के कार्य का दृढ़ता से समर्थन करते हैं और नई श्रद्धा के साथ उसका आदर करते हैं; जब परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुरूप नहीं होता है, तब लोग इतने व्याकुल हो जाते हैं कि उसमें परमेश्वर के कार्य का आधार खोजते-खोजते उनके पसीने छूटने लगते हैं; यदि बाइबल में परमेश्वर के कार्य का उल्लेख नहीं हैं, तो लोग परमेश्वर को अनदेखा कर देंगे। यह कहा जा सकता है कि जहाँ तक आज परमेश्वर के कार्य का प्रश्न है, उसे सर्वाधिक लोग डरते-डरते सावधानी से ग्रहण करते हैं, बहुत चुन-चुनकर पालन करते हैं, और यह जानने के प्रति उदासीन अनुभव करते हैं; जहाँ तक अतीत की बातों का प्रश्न है, वे आधे भाग को पकड़े रहते हैं और बचे हुए आधे को त्याग देते हैं। क्या यह प्रवेश कहला सकता है? दूसरों की पुस्तकें ऐसे पकड़े रहते हैं जैसे कोई खज़ाना हो, और उसके साथ ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि वह स्वर्ग के द्वार की सुनहरी कुंजी हो, आज लोग उसमें रुचि नहीं दर्शाते जो परमेश्वर उनसे चाहता है। इसके अतिरिक्त, बहुत सारे "बुद्धिमान विशेषज्ञ" अपने बाएँ हाथ में परमेश्वर के वचन को और अपने दाएँ हाथ में दूसरों की "उत्कृष्ट कृतियाँ" रखते हैं, जैसे कि वे इन उत्कृष्ट कृतियों में परमेश्वर के वचनों को पूर्ण रूप से सही सिद्ध करने के लिए परमेश्वर के वचनों का आधार खोजना चाहते हैं, और यहाँ तक कि वे दूसरों के सामने परमेश्वर के वचनों की व्याख्या उत्कृष्ट कृतियों के साथ एकीकृत करके करते हैं, जैसे कि वे बहुत बड़े काम में लगे हों। सच कहा जाए, तो मनुष्यजाति में ऐसे बहुत सारे "वैज्ञानिक शोधकर्ता" हैं जिन्होंने आज की वैज्ञानिक उपलब्धियों को कभी अधिक महत्व नहीं दिया, ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धियां जिनकी कोई मिसाल नहीं हैं (अर्थात्- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर के वचन, और जीवन प्रवेश का मार्ग), इसलिए लोग "आत्मनिर्भर" हैं, अपनी वाकपटुता के बल पर बड़े और व्यापक "उपदेश" देते हैं और "परमेश्वर के अच्छे नाम" पर घमंड करते हैं। इस दौरान, उनके स्वयं का प्रवेश संकट में है और वे परमेश्वर की अपेक्षाओं से उतनी ही दूर दिख रहे हैं जितनी दूर इस क्षण सृष्टि दिख रही है। कितना सहज है परमेश्वर का कार्य करना?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (3)" से
12. ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों ने स्वयं को आधा बीते हुए कल पर छोड़ देने के लिए और आधा आज लाने के लिए, आधा शैतान को सौंपने के लिए और आधा परमेश्वर को प्रस्तुत करने के लिए पहले से मन बना लिया है, जैसे कि यही उनके विवेक को शांति देने तथा सुख की चेतना का अनुभव करने का मार्ग है। लोगों की भीतरी दुनिया इतनी कपट से भरी है कि वे न सिर्फ आने वाले कल को परंतु बीते हुए कल को भी खोने से डरते हैं, आज के परमेश्वर और शैतान को जो कि हैं भी और नहीं भी प्रतीत होते हैं, उन दोनों को ठेस पहुँचाने से डरते हैं। क्योंकि लोग स्वयं की विचारधारा और नैतिकता को विकसित करने में विफल रहे हैं, इसलिए वे विशेषकर विवेक के अभाव में रहते हैं, और वे यह नहीं बता सकते कि आज का कार्य परमेश्वर का है या नहीं है। संभवतः यह इसलिए है क्योंकि लोगों की सामंती और अंधविश्वास की विचारधारा इतनी गहरी है कि उन्होंने इन वस्तुओं में भेद की परवाह न करते हुए अंधविश्वास और सत्य, परमेश्वर और मूर्तियों को एक ही श्रेणी में स्थापित कर दिया है और चाहे वे अपनी बुद्धि पर कितना भी जोर दें, फिर भी स्पष्टता से भेद करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। इसलिए मनुष्य अपने मार्ग पर ठहर गए हैं और अब और आगे नहीं बढ़ते। यह सब समस्याएँ लोगों में सही वैचारिक शिक्षा की कमी के कारण उत्पन्न हुई हैं, जो उनके प्रवेश में बहुत कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है। परिणामस्वरुप, लोग सच्चे परमेश्वर के कार्य में रुचि महसूस नहीं करते, परंतु मनुष्य के कार्य में दृढ़ता से जुड़े रहते हैं (जैसे कि जिनको वे देखते हैं वे महान पुरुष हों), जैसे कि उन पर किसी ब्रांड का नाम अंकित हो। क्या ये विषय नवीनतम नहीं हैं जिनमें मनुष्यजाति को प्रवेश करना चाहिए?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (3)" से
13. यदि मनुष्य वास्तव में पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार प्रवेश कर सके, तो उसका जीवन वसंत की वर्षा के बाद बांस की कली की तरह शीघ्र अंकुरित हो जाएगा। अधिकांश लोगों की मौज़ूदा हैसियतों से अनुमान लगाते हुए, कोई भी जीवन को किसी प्रकार का महत्व नहीं दे रहा है। इसके बजाय, लोग कुछ अप्रासंगिक सतही मामलों को महत्व दे रहे हैं। या यह नहीं जानते हुए कि किस दिशा में जाना है और किसके लिए तो बिल्कुल भी नहीं जानते हुए, वे इधर-उधर भागते रहे हैं और ध्यान केन्द्रित किए बिना उद्देश्यहीन और अंधाधुंध तरीके से कार्य कर रहे हैं। वे केवल "विनम्रतापूर्वक स्वयं को छुपा रहे हैं"। सच्चाई यह है, कि तुम लोगों में से कुछ ही लोग अंत के दिनों के लिए परमेश्वर के अभिप्राय को जानते हैं। तुम लोगों में से शायद ही कोई परमेश्वर के पदचिह्न को जानता है, और उससे भी कम को यह पता है कि परमेश्वर का चरम निष्पादन क्या होगा। फिर भी, हर कोई, विशुद्ध इच्छाशक्ति द्वारा, इस तरह अनुशासन को स्वीकार कर रहा है और दूसरों से व्यवहार कर रहा है, मानो कि उस दिन के लिए तैयार हो[1] रहा हो और प्रतीक्षा कर रहा हो जब उन्होंने इसे अंततः पूरा कर लिया है और आराम कर सकते हैं। लोगों के बीच इन "चमत्कारों" पर मैं कोई टिप्पणी नहीं दूँगा, लेकिन इसमें एक बात है जो तुम सभी को अवश्य समझनी चाहिए। अभी ज्यादातर लोग असामान्यता की दिशा में प्रगति कर रहे हैं,[2] उनके प्रवेश के कदम पहले से ही एक अंधी गली की ओर बढ़ रहे हैं।[3] शायद कई लोग सोचते हैं कि यह गुप्त जगह है, जिसे आज़ादी की जगह मानते हुए, मनुष्य इसकी लालसा करता है। वास्तव में, यह नहीं है। या कोई कह सकता है कि लोग पहले से ही भटक चुके हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (4)" से
14. परमेश्वर चीन की मुख्य भूमि में देहधारण किया है, जिसे हांगकांग और ताइवान में हमवतन के लोग अंतर्देशीय कहते हैं। जब परमेश्वर ऊपर से पृथ्वी पर आया, तो स्वर्ग और पृथ्वी में कोई भी इसके बारे में नहीं जानता था, क्योंकि यही परमेश्वर का एक गुप्त अवस्था में लौटने का वास्तविक अर्थ है। वह लंबे समय तक देह में कार्य करता और रहता रहा है, फिर भी इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है। आज के दिन तक भी, कोई इसे पहचानता नहीं है। शायद यह एक शाश्वत पहेली रहेगा। इस बार परमेश्वर का देह में आना कुछ ऐसा नहीं है जिसके बारे कोई भी जानने में सक्षम नहीं है। इस बात की परवाह किए बिना कि पवित्रात्मा का कार्य कितने बड़े-पैमाने का और कितना शक्तिशाली है, परमेश्वर हमेशा शांतचित्त बना रहता है, कभी भी स्वयं का भेद नहीं खोलता है। कोई कह सकता है कि यह ऐसा है मानो कि उसके कार्य का यह चरण स्वर्ग के क्षेत्र में हो रहा है। यद्यपि यह हर एक के लिए बिल्कुल स्पष्ट है, किन्तु कोई भी इसे पहचानता नहीं है। जब परमेश्वर अपने कार्य के इस चरण को समाप्त कर लेगा, तो हर कोई अपने लंबे सपने से जाग जाएगा और अपनी पिछली प्रवृत्ति को उलट देगा।[4] मुझे परमेश्वर का एक बार यह कहना याद है, "इस बार देह में आना शेर की माँद में गिरने जैसा है।" इसका अर्थ यह है कि क्योंकि परमेश्वर के कार्य का यह चक्र परमेश्वर का देह में आना है और बड़े लाल अजगर के निवास स्थान में पैदा होना है, इसलिए इस बार उसके पृथ्वी पर आने के साथ-साथ और भी अधिक चरम ख़तरे हैं। जिसका वह सामना करता है वे हैं चाकू और बंदूकें और लाठियाँ; जिसका वह सामना करता है वह है प्रलोभन; जिसका वह सामना करता है वह हत्यारी दिखाई देने वाली भीड़। वह किसी भी समय मारे जाने का जोख़िम लेता है। परमेश्वर कोप के साथ आया। हालाँकि, वह पूर्णता का कार्य करने के लिए आया, जिसका अर्थ है कि कार्य का दूसरा भाग करने के लिए जो छुटकारे के कार्य के बाद जारी रहता है। अपने कार्य के इस चरण के वास्ते, परमेश्वर ने अत्यंत विचार और ध्यान समर्पित किया है और, स्वयं को विनम्रतापूर्वक छिपाते हुए और अपनी पहचान का कभी भी घमण्ड नहीं करते हुए, प्रलोभन के हमले से बचने के लिए हर कल्पनीय साधन का उपयोग कर रहा है। सलीब से आदमी को बचाने में, यीशु केवल छुटकारे का कार्य पूरा कर रहा था; वह पूर्णता का कार्य नहीं कर रहा था। इस प्रकार परमेश्वर का केवल आधा कार्य ही किया जा रहा था, परिष्करण और छुटकारे का कार्य उसकी संपूर्ण योजना का केवल आधा ही था। चूँकि नया युग शुरू होने ही वाला था और पुराना युग पीछे हटने ही वाला था, इसलिए परमपिता परमेश्वर ने अपने कार्य के दूसरे हिस्से पर विवेचन करना शुरू किया और इसके लिए तैयारी करनी शुरू कर दी। अतीत में, कदाचित अंत के दिनों में इस देहधारण की भविष्यवाणी नहीं की गई हो, और इसलिए उसने इस बार परमेश्वर के देह में आने के आस-पास बढ़ी हुई गोपनीयता की नींव रखी। उषाकाल में, किसी को भी बताए बिना, परमेश्वर पृथ्वी पर आया और देह में अपना जीवन शुरू किया। लोग इस क्षण से अनभिज्ञ थे। कदाचित वे सब घोर निद्रा में थे, कदाचित बहुत से लोग जो सतर्कतापूर्वक जागे हुए थे वे प्रतीक्षा कर रहे थे, और कदाचित कई लोग स्वर्ग के परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना कर रहे थे। फिर भी इन सभी कई लोगों के बीच, कोई नहीं जानता था कि परमेश्वर पहले से ही पृथ्वी पर आ चुका है। परमेश्वर ने अपने कार्य को अधिक सुचारू रूप से पूरा करने और बेहतर परिणामों को प्राप्त करने के लिए इस तरह से कार्य किया, और यह अधिक प्रलोभनों से बचने के लिए भी था। जब मनुष्य की वसंत की नींद टूटेगी, तब तक परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही समाप्त हो गया होगा और वह पृथ्वी पर भटकने और अस्थायी निवास के अपने जीवन को समाप्त करते हुए चला जाएगा। क्योंकि परमेश्वर का कार्य परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से कार्य करना और बोलना आवश्यक बनाता है, और क्योंकि मनुष्य के लिए सहायता करने का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए परमेश्वर ने स्वयं कार्य करने हेतु पृथ्वी पर आने के लिए अत्यधिक पीड़ा सही है। मनुष्य परमेश्वर के कार्य का स्थान लेने में समर्थ है। इसलिए परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना स्वयं का कार्य करने, अपनी समस्त सोच और देखरेख को दरिद्र लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने पर रखने, खाद के ढेर से सने लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने हेतु, उस स्थान पर आने के लिए जहाँ बड़ा लाल अजगर निवास करता है, अनुग्रह के युग के दौरान के ख़तरों की अपेक्षा कई हजार गुना अधिक ख़तरों का जोखिम लिया है। यद्यपि कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में नहीं जानता है, तब भी परमेश्वर परेशान नहीं है क्योंकि इससे परमेश्वर के कार्य को काफी लाभ मिलता है। हर कोई नृशंस रूप से बुरा है, इसलिए कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? यही कारण है कि पृथ्वी पर परमेश्वर हमेशा चुप रहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य कितना अधिक क्रूर है, परमेश्वर इसमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता है, बल्कि उस कार्य को करता रहता है जिसे करने की उसे आवश्यकता है ताकि उस बड़े कार्यभार को पूरा किया जाए जो स्वर्गिक परमपिता ने उसे दिया। तुम लोगों में से किसने परमेश्वर की मनोरमता को पहचाना है? कौन परमपिता परमेश्वर के लिए उसके पुत्र की तुलना में अधिक महत्व दर्शाता है? कौन परमपिता परमेश्वर की इच्छा को समझने में सक्षम है? स्वर्ग में परमपिता का आत्मा अक्सर परेशान होता है, और पृथ्वी पर उसका पुत्र, उसके हृदय को चिंता से टुकड़े-टुकड़े करते हुए, परमपिता की इच्छा से बारंबार प्रार्थना करता है। क्या कोई है जो परमपिता परमेश्वर के अपने बेटे के लिए प्यार को जानता हो? क्या कोई है जो जानता हो कि कैसे प्यारा पुत्र परमपिता परमेश्वर को कैसे याद करता है? स्वर्ग और पृथ्वी के बीच विदीर्ण हुए, दोनों दूर से एक दूसरे की ओर, पवित्रात्मा में साथ-साथ, लगातार निहार रहे हैं। हे मानवजाति! तुम लोग परमेश्वर के हृदय के बारे में कब विचारशील बनोगे? कब तुम लोग परमेश्वर के अभिप्राय को समझोगे? परमपिता और पुत्र हमेशा एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं। फिर क्यों उन्हें पृथक किया जाना चाहिए, एक ऊपर स्वर्ग में और एक नीचे पृथ्वी पर? परमपिता अपने पुत्र को उतना ही प्यार करता है जितना पुत्र अपने पिता को प्यार करता है। तो फिर उसे इतनी उत्कंठा के साथ और इतने लंबे समय तक इतनी व्यग्रता के साथ प्रतीक्षा क्यों करनी चाहिए? यद्यपि वे लंबे समय से पृथक नहीं हुए हैं, क्या किसी को पता है कि परमपिता पहले से ही इतने दिनों और रातों से उद्वेग से तड़प रहा है और लंबे समय से अपने प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी की प्रतीक्षा कर रहा है? वह देखता है, वह मौन में बैठता है, वह प्रतीक्षा करता है। यह सब उनके प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी के लिए है। वह कब पुनः पुत्र के साथ होगा जो पृथ्वी पर भटक रहा है? यद्यपि एक बार एक साथ हो जाएँ, तो वे अनंत काल के लिए एक साथ होंगे, किन्तु वह हजारों दिनों और रातों के विरह को कैसे सहन कर सकता है, एक ऊपर स्वर्ग में एक और एक नीचे पृथ्वी पर? पृथ्वी पर दसियों वर्ष स्वर्ग में हजारों वर्षों के जैसे हैं। कैसे परमपिता परमेश्वर चिंता नहीं कर सकता है? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह मानव दुनिया के बहुत से उतार-चढ़ावों का वैसे ही अनुभव करता है जैसे मनुष्य करता है। परमेश्वर स्वयं भोला-भाला है, तो क्यों परमेश्वर वही दर्द सहे जो आदमी सहता है? कोई आश्चर्य नहीं कि परमपिता परमेश्वर अपने पुत्र के लिए इतनी तीव्र इच्छा से तरसता है; कौन परमेश्वर के हृदय को समझ सकता है? परमेश्वर मनुष्य को बहुत अधिक देता है; कैसे मनुष्य परमेश्वर के हृदय को पर्याप्त रूप से चुका सकता है? फिर भी मनुष्य परमेश्वर को बहुत कम देता है; परमेश्वर इसलिए चिंता क्यों नहीं कर सकता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (4)" से
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
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