15. पुरुषों के बीच में शायद ही कोई परमेश्वर के हृदय की तीव्र इच्छा को समझता है क्योंकि लोगों की क्षमता बहुत कम है और उनकी आध्यात्मिक संवेदनशीलता काफी सुस्त है, और क्योंकि वे सभी न तो देखते हैं और न ही ध्यान देते हैं कि परमेश्वर क्या कर रहा है। इसलिए परमेश्वर मनुष्य के बारे में चिंता करता रहता है, मानो कि मनुष्य की पाशविक प्रकृति किसी भी क्षण बाहर आ सकती हो। यह आगे दर्शाता है कि परमेश्वर का पृथ्वी पर आना बड़े प्रलोभनों के साथ-साथ है। किन्तु लोगों के एक समूह को पूरा करने के वास्ते, महिमा से लदे हुए, परमेश्वर ने मनुष्य को अपने हर अभिप्राय के बारे में, कुछ भी नहीं छिपाते हुए, बता दिया। उसने लोगों के इस समूह को पूरा करने के लिए दृढ़ता से संकल्प किया है। इसलिए, कठिनाई आए या प्रलोभन, वह नज़र फेर लेता है और इस सभी को अनदेखा करता है।वह केवल चुपचाप अपना स्वयं का कार्य करता है, और दृढ़ता से यह विश्वास करता है कि एक दिन जब परमेश्वर महिमा प्राप्त कर लेगा, तो आदमी परमेश्वर को जान लेगा, और यह विश्वास करता है कि जब मनुष्य परमेश्वर के द्वारा पूरा कर लिया जाएगा, तो वह परमेश्वर के हृदय को पूरी तरह से समझ जाएगा। अभी ऐसे लोग हो सकते हैं जो परमेश्वर को प्रलोभित कर सकते हैं या परमेश्वर को गलत समझ सकते हैं या परमेश्वर को दोष दे सकते हैं; परमेश्वर उसमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता है। जब परमेश्वर महिमा में अवरोहण करेगा, तो सभी लोग समझ जाएँगे कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह मानव जाति के कल्याण के लिए है, और सभी लोग समझ जाएँगे कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह इसलिए है ताकि मानव जाति बेहतर ढंग से जीवित रह सके। परमेश्वर का आगमन प्रलोभनों के साथ-साथ है, और परमेश्वर प्रताप और कोप के साथ भी आता है। जब तक परमेश्वर मनुष्यों को छोड़ कर जाएगा, तब तक उसने पहले ही महिमा प्राप्त कर ली होगी, और वह पूरी तरह से महिमा से भरा हुआ और वापसी की खुशी के साथ चला जाएगा। इस बात की परवाह किए बिना कि लोग उसे कैसे अस्वीकार करते हैं, पृथ्वी पर कार्य करते हुए परमेश्वर चीजों को गंभीरता से नहीं लेता है। वह केवल अपना कार्य कर रहा है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (4)" से
16. परमेश्वर का विश्व का सृजन हजारों वर्षों पहले से चल रहा है, वह पृथ्वी पर एक असीमित मात्रा में कार्य करने के लिए आया है, और उसने मानव दुनिया के अस्वीकरण और अपयश का पूरी तरह से अनुभव किया है। कोई भी परमेश्वर के आगमन का स्वागत नहीं करता है; हर कोई मात्र एक भावशून्य नज़र से उसका सम्मान करता है। इन हजारों वर्षों की कठिनाइयों के दौरान, मनुष्य के व्यवहार ने बहुत पहले से ही परमेश्वर के हृदय को चूर-चूर कर दिया है। वह लोगों के विद्रोह पर अब और ध्यान नहीं देता है, बल्कि इसके बजाय मनुष्य को रूपांतरित करने और स्वच्छ बनाने के लिए एक अलग योजना बना रहा है। उपहास, अपयश, उत्पीड़न, दारूण दुःख, सलीब पर चढ़ने की पीड़ा, मनुष्य द्वारा अपवर्जन इत्यादि जिसे परमेश्वर ने देह में अनुभव किया है-परमेश्वर ने इन्हें पर्याप्त रूप से झेला है। परमेश्वर ने देह में मानव दुनिया के दुःखों को पूरी तरह से भुगता है। स्वर्ग के परमपिता परमेश्वर के आत्मा ने बहुत समय पहले ही ऐसे दृश्यों का असहनीय होना जान लिया था और अपने प्यारे पुत्र की वापसी के लिए इंतजार करते हुए, अपना सिर पीछे कर लिया था और अपनी आँखें बंद कर लीं थी। वह केवल इतना ही चाहता है कि सभी लोग सुनें और पालन करें, उसकी देह के सामने अत्यधिक शर्मिंदगी महसूस करने में समर्थ हों, और उसके ख़िलाफ विद्रोह नहीं करें। वह केवल इतनी ही इच्छा करता है कि सभी लोग विश्वास करें कि परमेश्वर मौज़ूद है। उसने बहुत समय पहले ही मनुष्य से अधिक माँगे करनी बंद कर दी क्योंकि परमेश्वर ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, फिर भी परमेश्वर के कार्य को गंभीरता से नहीं लेते हुए मनुष्य चैन से सो रहा है।[5]
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (4)" से
17. आज तुम सब जानते हो कि परमेश्वर लोगों की अगुवाई जीवन के सही मार्ग पर कर रहा है, कि वह दूसरे युग में प्रवेश करने का अगला कदम उठाने में मनुष्य की अगुवाई कर रहा है, कि वह इस अंधकारमय पुराने समय से, शरीर से बाहर, अंधकारमय शक्तियों और शैतान के प्रभाव के अत्याचार से ऊपर बढ़ने में मनुष्य की अगुवाई कर रहा है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के संसार में जी सके। एक सुंदर कल के लिए, और इसलिए कि लोग अपने कल के कदमों में और अधिक साहसी हो जाएँ, परमेश्वर का आत्मा मनुष्य के लिए सब बातों की योजना बनाता है, और इसलिए कि मनुष्य और अधिक आनंद प्राप्त करे, परमेश्वर शरीर में मनुष्य के आगे के मार्ग को तैयार करने के लिये सभी प्रयास करता है, और उस दिन के आगमन को शीघ्रता से लाता है जिसकी मनुष्य इच्छा करता है। क्या तुम इस सुंदर पल का आनंद लोगे? परमेश्वर के साथ मिलकर आना कोई सरल उपलब्धि नहीं है। यद्यपि तुम लोगों ने कभी उसे नहीं जाना है, फिर भी बहुत लंबे समय से तुम उसके साथ रहे हो। यह तभी होगा यदि प्रत्येक जन इन सुंदर परंतु अस्थाई दिनों को हमेशा तक याद रख सके, और पृथ्वी पर उन्हें अपनी बहुमूल्य संपत्ति बना सके।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (5)" से
18. हजारों वर्षों से चीनी लोगों ने भी गुलामों का जीवन जीया है, और इसी ने उनके विचारों, धारणाओं, जीवन, भाषा, व्यवहार, और कार्यों को इतना सीमित कर दिया है कि उनके पास थोड़ी-सी भी स्वतंत्रता नहीं है। हजारों वर्षों के इतिहास ने महत्वपूर्ण लोगों को किसी आत्मा-विहीन शव के समान एक आत्मा के वश में कर दिया है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो वध करने वाली शैतान की छुरी के साये में अपना जीवन जीते हैं, बहुत से ऐसे हैं जो जंगली जानवरों की मांद सरीखे घरों में रहते हैं, ऐसे बहुत से लोग हैं जो बैलों और घोड़ों जैसा भोजन करते हैं, बहुत से ऐसे लोग हैं जो बेसुध और अव्यवस्थित ढंग से "छिपे हुए भयानक संसार" में पड़े रहते हैं। बाहरीतौर पर लोग आदिकालीन मनुष्य से अलग नहीं है, उनका रहने का स्थान नरक के समान है, और जहां तक उनके साथियों का सवाल है, वे हर तरह की गंदी दुष्टात्माओं और बुरी आत्माओं से घिरे रहते हैं। बाहर से मनुष्य उच्च-स्तर के "जानवरों" के समान प्रतीत होते हैं; वास्तव में, वे गंदी दुष्टात्माओं के साथ रहते और निवास करते हैं। लोग शैतान के आक्रमण का शिकार हो जाते हैं, उसके चंगुल से निकलने का कोई मार्ग नहीं होता और कोई उनकी ओर ध्यान भी नहीं दे पाता। यह कहने की अपेक्षा कि वे अपने प्रियजनों के साथ आरामदायक घरों में रहते हैं, प्रसन्न और संतुष्ट जीवन जीते हैं, यह कहना चाहिए कि मनुष्य नरक में रहते हैं, दुष्टात्माओं के साथ व्यवहार करते हैं, और शैतान के साथ मेलजोल करते हैं। वास्तव में, लोग अभी भी शैतान के द्वारा जकड़े हुए हैं, वे वहाँ रहते हैं जहाँ दुष्टात्माएँ एकत्रित होती हैं, और उन गंदी दुष्टात्माओं के द्वारा उनका गलत प्रयोग किया जाता है, जैसे कि उनके बिस्तर उनके शवों के सोने का स्थान हों, जैसे कि वे आरामदायक घोंसले हों।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (5)" से
19. मनुष्य जानवरों के साथ-साथ रहता है, और वे बिना झगड़ों और मौखिक असहमतियों के बड़े तालमेल के साथ आगे बढ़ते रहते हैं। मनुष्य जानवरों की देखभाल और चिंता करने में नकचढ़ा है और जानवरों का अस्तित्व उनके अपने किसी लाभ के बिना मनुष्य के जीवन और फायदे के लिए और मनुष्य के प्रति संपूर्ण और पूरी आज्ञाकारिता रखने के लिए है। सभी रूपों में मनुष्य और पशु के बीच एक निकट[4] और सद्भावनापूर्ण[5] संबंध है - और ऐसा प्रतीत होता है कि गंदी दुष्टात्माएँ मनुष्य और पशु का एक आदर्श संयोजन हैं। इस प्रकार, मनुष्य और पृथ्वी की गंदी दुष्टात्माएँ और भी अधिक घनिष्ठ और अवियोज्य हैं: यद्यपि गंदी दुष्टात्माओं के बिना ही मनुष्य उनसे जुड़ा रहता है; उसी दौरान गंदी दुष्टात्माएँ मनुष्य से कुछ भी छिपा कर नहीं रखतीं, और सब कुछ जो उनके पास होता है, वह उनके प्रति "समर्पित" कर देती हैं। लोग रोजाना "नरक के राजा के महल" में उछलते-कूदते हैं, "नरक के राजा" (अपने पूर्वज) की संगति में मस्ती करते हैं और उसके द्वारा गलत रूप से इस्तेमाल किए जाते हैं, जिससे आज लोग मल में ढक गए हैं, और अधोलोक में बहुत समय बिताने के बाद उन्होंने "जीवित लोगों के संसार" में लौटने की इच्छा रखना भी बहुत समय से छोड़ दिया है। अतः, जैसे ही वे रोशनी को देखते हैं, और परमेश्वर की अपेक्षाओं, परमेश्वर के चरित्र, और उसके कार्यों को देखते हैं, तो वे अपने आपको परेशान और व्याकुल महसूस करते हैं, और अब भी अधोलोक की ओर लौटने और भूत-प्रेतों के साथ वास करने की लालसा करते हैं। बहुत समय पहले वे परमेश्वर को भूल गए थे, और इसलिए वे हमेशा कब्रिस्तान में ही भटकते रहे हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (5)" से
20. कार्य और प्रवेश अंतर्निहित रूप से व्यावहारिक हैं और परमेश्वर के कार्य और आदमी की प्रविष्टि को संदर्भित करते हैं। मनुष्य का परमेश्वर के वास्तविक चेहरे और परमेश्वर के कार्य की समझ का पूर्ण अभाव उसके प्रवेश में बड़ी कठिनाइयाँ लाया है। आज तक, बहुत से लोग अब भी उस कार्य को नहीं जानते जो परमेश्वर अंत के दिनों में निष्पादित करता है या नहीं जानते हैं कि परमेश्वर देह में आने के लिए चरम अपमान क्यों सहन करता है और सुख और दुःख में मनुष्य के साथ खड़ा होता है। मनुष्य परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य के बारे में कुछ भी नहीं जानता है, न ही अंत के दिनों के लिए परमेश्वर की योजना के प्रयोजन को जानता है। विभिन्न कारणों से, लोग हमेशा उस प्रवेश के प्रति सदैव निरुत्साहित और अनिश्चित[1] रहते हैं जिसकी परमेश्वर माँग करता है, जो देह में परमेश्वर के कार्य के लिए बड़ी कठिनाइयाँ लाया है। सभी लोग बाधाएँ बन गए प्रतीत होते हैं, और आज तक, उनके पास कोई स्पष्ट समझ नहीं है। इसलिए मैं उस कार्य के बारे में बात करूँगा जो परमेश्वर मनुष्य पर करता है, और जो परमेश्वर का अत्यावश्यक अभिप्राय है, ताकि तुम सभी लोग परमेश्वर के वफ़ादार सेवक बन जाओ, जो अय्यूब की तरह, परमेश्वर को अस्वीकार करने के बजाय मर जाएँगे और हर अपमान को सहन करेंगे, और, जो पतरस की तरह, अपना समस्त अस्तित्व परमेश्वर को अर्पण करें देंगे और अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए गए अंतरंग बन जाएँगे। सभी भाई-बहन, परमेश्वर की स्वर्गिक इच्छा के प्रति अपने समस्त अस्तित्व को अर्पण करने के लिए अपनी सामर्थ्य के अंदर सब कुछ करें, परमेश्वर के घर में पवित्र सेवक बन जाएँ, और परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए अनंत वादों का आनंद लें, ताकि परमपिता परमेश्वर का हृदय शीघ्र ही शांतिपूर्ण आराम का आनंद ले सके। "परमपिता परमेश्वर की इच्छा को पूरा करो" उन सभी का आदर्श वाक्य होना चाहिए जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं। इन वचनों को प्रवेश के लिए मनुष्य की मार्गदर्शिका और उसके कार्यों का निर्देशन करने वाले कम्पास के रूप में कार्य करना चाहिए। मनुष्य में यही संकल्प होना चाहिए। पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य को पूरी तरह से निष्पन्न करना और देह में परमेश्वर के कार्य में सहयोग करना—यही मनुष्य का कर्तव्य है। एक दिन, जब परमेश्वर का कार्य हो जाएगा, तो मनुष्य उसे स्वर्ग में परमपिता के पास शीघ्र वापसी पर विदाई देगा। क्या मनुष्य को यह दायित्व पूरा नहीं करना चाहिए?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (6)" से
21. मनुष्य के लिए, परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने ने परमेश्वर के देहधारण के कार्य को संपन्न किया, समस्त मानव जाति को छुटकारा दिलाया, और परमेश्वर को अधोलोक की चाबी ज़ब्त करने की अनुमति दी। हर कोई सोचता है कि परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से निष्पादित हो चुका है। वास्तविकता में, परमेश्वर के लिए, उसके कार्य का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही निष्पादित हुआ है। उसने मानव जाति को केवल छुटकारा दिलाया है; उसने मानवजाति को जीता नहीं है, मनुष्य में शैतान की कुटिलता को बदलने की बात को तो छोड़ो। यही कारण है कि परमेश्वर कहता है, "यद्यपि मेरी देहधारी देह मृत्यु की पीड़ा से गुज़री है, किन्तु वह मेरे देहधारण का पूर्ण लक्ष्य नहीं था। यीशु मेरा प्यारा पुत्र है और उसे मेरे लिए सलीब पर चढ़ाया गया था, किन्तु उसने मेरे कार्य का पूरी तरह से समापन नहीं किया। उसने केवल इसका एक अंश पूरा किया।" इस प्रकार परमेश्वर ने देहधारण के कार्य को जारी रखने के लिए योजनाओं के दूसरे चक्र की शुरुआत की। परमेश्वर का अंतिम अभिप्राय शैतान के हाथों से बचाए गए हर एक को पूर्ण बनाना और प्राप्त करना है, यही वजह है कि परमेश्वर ने देह में आने के लिए फिर से विपत्तियों का जोख़िम लेने की तैयारी की।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (6)" से
22. कई जगहों पर, परमेश्वर ने सिनीम के देश में जीतने वालों के एक समूह को प्राप्त करने की भविष्यवाणी की है। दुनिया के पूर्व में जीतने वालों को प्राप्त किया जाता है, इसलिए परमेश्वर के दूसरे देहधारण के अवतरण का स्थान बिना किसी संदेह के, सिनीम का देश है, ठीक वहीं जहाँ बड़ा लाल अजगर कुण्डली मारे पड़ा है। वहाँ परमेश्वर बड़े लाल अजगर के वंशज को प्राप्त करेगा ताकि यह पूर्णतः पराजित और शर्मिंदा हो जाए। परमेश्वर इन गहन रूप से पीड़ित लोगों को जगाना चाहता है, उन्हें पूरी तरह से जगाना और उन्हें कोहरे से बाहर निकालना चाहता है और चाहता है कि वे उस बड़े लाल अजगर को ठुकरा दें। परमेश्वर उन्हें उनके सपने से जगाना, उन्हें बड़े लाल अजगर के सार से अवगत कराना, उनका संपूर्ण हृदय परमेश्वर को दिलवाना, अंधकार की ताक़तों के दमन से बाहर निकालना, दुनिया के पूर्व में खड़े होना, और परमेश्वर की जीत का सबूत बनाना चाहता है। केवल तभी परमेश्वर महिमा को प्राप्त करेगा। मात्र इसी कारण से, परमेश्वर उस कार्य को जो इस्राएल में समाप्त हुआ, उस देश में लाया जहाँ बड़ा लाल अजगर कुण्डली मारे पड़ा है और, प्रस्थान करने के करीब दो हजार वर्ष बाद, वह अनुग्रह के कार्य को जारी रखने के लिए पुनः देह में आ गया है। मनुष्य की खुली आँखों के लिए, परमेश्वर देह में नए कार्य का शुभारंभ कर रहा है। किन्तु परमेश्वर के लिए, केवल कुछ हजार वर्षों के अलगाव के साथ, और केवल कार्य स्थल और कार्य परियोजना में बदलाव के साथ, वह अनुग्रह के युग के कार्य को जारी रख रहा है। यद्यपि देह की छवि जो परमेश्वर ने आज के कार्य में ली है वह यीशु की अपेक्षा सर्वथा भिन्न व्यक्ति है, फिर भी वे एकही सार और मूल को साझा करते हैं, और ये एकही स्रोत से हैं। हो सकता है कि उनमें कई बाहरी अंतर हों, किन्तु उनके कार्य के आंतरिक सत्य पूरी तरह से समान हैं। लेकिन युगों में रात-दिन का अंतर है। परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तित कैसे रह सकता है? या कार्य एक-दूसरे को कैसे बाधित कर सकते हैं?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (6)" से
23. यीशु ने एक यहूदी का रूप-रंग धारण किया, यहूदियों की पोशाक के अनुरूप रहा, और यहूदी भोजन खाते हुए बड़ा हुआ। यह उसका सामान्य मानवीय पहलू है। किन्तु आज का देहधारी एशिया के लोगों का रूप धारण करता है और बड़े लाल अजगर के देश के भोजन पर बड़ा होता है। ये परमेश्वर के देहधारण के लक्ष्य के साथ टकराव नहीं करते हैं। बल्कि, परमेश्वर के देहधारण के वास्तविक महत्व को अधिक पूर्णता से पूरा करते हुए, वे एक दूसरे के अनुपूरक हैं। क्योंकि देहधारी को "मनुष्य का पुत्र" या "मसीह" के रूप में उल्लिखित किया जाता है, इसलिए आज के मसीहके बाह्य-स्वरूप की तुलना यीशु मसीह से नहीं की जा सकती। आख़िरकार, देह को "मनुष्य का पुत्र" कहा जाता है और यह देह की छवि में है। परमेश्वर के कार्य का हर चरण काफी गहरे अर्थ से युक्त है। पवित्र आत्मा द्वारा यीशु का गर्भ धारण करना इस कारण है क्योंकि उसे पापियों को छुटकारा दिलाना था। उसे बिना पाप वाला होना था। किन्तु केवल अंत में जब उसे पापी देह की समानता बनने के लिए बाध्य किया गया और उसने पापियों के पापों को धारण किया, तभी उसने उन्हें श्रापित सलीब से बचाया जिसे परमेश्वर ने लोगों को ताड़ित करने के लिए उपयोग किया था। (सलीब लोगों को श्राप देने और ताड़ित करने के लिए परमेश्वर का औजार है, श्राप देने और ताड़ित करने के उल्लेख विशेष रूप से पापियों को ताड़ना और दंड देने के बारे में है।) लक्ष्य था सभी पापियों से पश्चाताप करवाना और सलीब पर चढ़ने का उपयोग उनसे उनके पापों को स्वीकार करवाना। अर्थात्, समस्त मानव जाति को छुटकारा दिलाने के वास्ते, परमेश्वर ने स्वयं देहधारण किया जिसका गर्भधारण पवित्र आत्मा द्वारा किया गया था और जिसने समस्त मानव जाति के पापों को धारण कर लिया। इसके वर्णन करने का सामान्य तरीका, शैतान से उस समस्त निर्दोष मानवजाति को जिसे इसने कुचल दिया था परमेश्वर को वापस लौटाने की "विनती" करने के लिए, सभी पापियों के बदले एक पवित्र देह अर्पण करना है, यीशु के समकक्ष का शैतान के सामने रखी पाप बली होना है। इस तरह छुटकारे के कार्य के इस चरण को निष्पादित करने के लिए पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ धारण की आवश्यकता थी। परमपिता परमेश्वर और शैतान के बीच लड़ाई के दौरान यह एक आवश्यक शर्त, एक "संधि" थी। यही कारण है कि यीशु को शैतान को दिया गया था, और केवल तभी कार्य के इस चरण का समापन हुआ। हालाँकि, आज परमेश्वर का छुटकारे का कार्य पहले से ही अभूतपूर्व शान का है, और शैतान के पास माँगों को करने का कोई कारण नहीं है, इसलिए परमेश्वर के देहधारण के लिए पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमेश्वर अंतर्निहित रूप से पवित्र और निर्दोष है। इसलिए परमेश्वर का देहधारण अब की बार अनुग्रह के युग का यीशु नहीं है। किन्तु वह अभी भी परमपिता परमेश्वर की इच्छा के वास्ते है और परमपिता परमेश्वर की इच्छाओं को पूरा करने के वास्ते है। इसे एक अनुचित उक्ति कैसे माना जा सकता है? क्या परमेश्वर के देहधारण को एक नियम-समूह का पालन अवश्य करना चाहिए?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (6)" से
24. बहुत से लोग, परमेश्वर के देहधारण की किसी भविष्यवाणी को पाना चाहते हुए, साक्ष्य के लिए बाइबल में देखते है। मनुष्य की खंडित सोच कैसे जान सकती है कि परमेश्वर ने बहुत पहले, बाइबिल में "कार्य करना" बंद कर दिया है और उस कार्य को करने के लिए इससे बाहर "छलाँग लगा दी" है जिसकी उसने लंबे समय से योजना बनाई थी किन्तु जिसके बारे में उसने कभी भी मनुष्य को नहीं बताया था? लोगों में समझ का अत्यंत अभाव है। परमेश्वर के स्वभाव का केवल एक अनुभव लेने के बाद ही, वे अकस्मात एक ऊँचे मंच पर जागते हैं, और परमेश्वर के कार्य का निरीक्षण करते हुए, एक उच्च-श्रेणी वाली "व्हीलचेयर" में बैठ जाते हैं, यहाँ तक चले जाते हैं कि आडंबरपूर्ण, असंगत बातें करते हुए परमेश्वर को सिखाना शुरू कर देते हैं। कई "वृद्ध व्यक्ति", पढ़ने का चश्मा लगाए हुए और अपनी दाढ़ी को सहलाते हुए, अपने पीले रंग का "पुराना पोथा" (बाइबल) खोलते हैं जिसे वे जिन्दगीभर पढ़ते आ रहे हैं। वचनों को बुदबुदाते हुए और आँखों में प्रतीत होती चमक के साथ, कभी वह प्रकाशितवाक्य की पुस्तक की ओर और कभी दानिय्येल की पुस्तक की ओर, तो कभी यशायाह की सार्वभौमिक रूप से ज्ञात पुस्तक की ओर मुड़ता है। छोटे-छोटे वचनों से घनीभूत पृष्ठ पर घूरते हुए, वह शांत-भाव से पढ़ता है, उसका मन निरंतर घूम रहा है। अचानक दाढ़ी को सहलाने वाला हाथ रुक जाता है और दाढ़ी को खींचना शुरू कर देता है। यदा कदा दाढ़ी को तोड़े जाने की आवाज किसी को सुनाई देती है। इस तरह का असामान्य व्यवहार देखने वाले को हक्का-बक्का कर देता है। "इतनी ताक़त लगाने की क्या ज़रूरत है? वह किस चीज के बारे में इतना पागल है हो रहा है?" वापस वृद्ध व्यक्ति की ओर, उसकी भौहें अब खड़ी हो गई हैं। जब वृद्ध व्यक्ति अपनी आँखों को फफूँदग्रस्त-दिखाई देने वाले पृष्ठों पर गड़ाए रखता है, तो सफेद भौंहें हंस के पंखों की तरह इस वृद्ध व्यक्ति की पलकों से ठीक दो सेंटीमीटर पर, मानो अकस्मात ही लेकिन फिर भी सटीक रूप से, गिरती हैं। वह क्रियाओं के उपर्युक्त अनुक्रम को कई बार दोहराता है, और फिर अचानक ही उछल पड़ता है और बड़बड़ाना शुरु कर देता है मानो किसी के साथ गपशप[4] कर रहा हो, यद्यपि उसकी आँखों की दृष्टि ने पोथी को नहीं छोड़ा है। अचानक वह वर्तमान पृष्ठ को ढक देता है और "दूसरी दुनिया" की ओर मुड़ जाता है। उसकी हरकतें इतनी जल्दबाज़ीभरी और भयभीत कर देने वाली हैं कि लोगों को लगभग अप्रत्याशित ढंग से चौंका देती हैं। वर्तमान में, जो चूहा अपने बिल से बाहर आ गया था और जिसने उसके मौन के दौरान अभी-अभी "बंधनमुक्त महसूस करना" शुरू किया था, वह उसकी अस्वाभाविक हरकतों से इतना शंकित हो गया कि, फौरन अपने बिल में वापस चला गया। अब वृद्ध व्यक्ति के गतिहीन बाएँ हाथ ने फिर से अपनी दाढ़ी को ऊपर-नीचे सहलाना शुरू कर दिया। वह पुस्तक को मेज पर छोड़कर, आसन से दूर जाता है। अधखुले दरवाजे और खुली हुई खिड़की से, हवा का झोंका लापरवाह ढंग से पुस्तक को बंद करते हुए, फिर खोलते हुए, फिर दोबारा बंद करते हुए और खोलते हुए अंदर आता है। इस दृश्य के बारे में एक अकथनीय निराशा है, और हवा से खड़खड़ाहट करते हुए पुस्तक के पन्नों की आवाज़ को छोड़कर, सब कुछ मौन हो गया प्रतीत होता है। अपनी पीठ के पीछे हाथों को बाँधे हुए, कमरे में चलता है, कभी रुकता है, फिर शुरू हो जाता है, यह दोहराता हुआ प्रतीत होते हुए समय-समय पर अपना सिर हिला रहा है, "हे! परमेश्वर! क्या तू वास्तव में ऐसा करेगा?" बीच-बीच मेंवह सहमति में सिर भी हिलाता है, "हे परमेश्वर! कौन तेरे कार्य की थाह पा सकता है? क्या तेरे पदचिह्नों को खोजना कठिन नहीं है? मुझे विश्वास है कि तू अनावश्यक काम नहीं करता है।" शर्मिंदगी और एक अत्यंत दुःखी अभिव्यक्ति दर्शाते हुए, वृद्ध व्यक्ति की भौंहें सिकुड़ती हैं, उसकी आँखें भिंच कर बंद हो जाती हैं, मानो कि वह धीरे-धीरे विवेचन करना चाहता हो। यह वास्तव में इस "भव्य वृद्ध व्यक्ति" को चुनौती दे रहा है। अपने जीवन के इस बाद के चरण में, उसके पास "दुर्भाग्यवश" यह मामला आ पड़ा है। इस के बारे में क्या किया जा सकता है? मैं भी उलझन में और कुछ पाने में सामर्थ्यहीन हूँ। किसने उसके पुराने पोथी को पीला कर दिया? किसने उसकी समस्त दाढ़ी और भौहें को उसके चेहरे पर अलग-अलग जगहों में सफेद बर्फ की तरह निर्दयी ढंग से विकसित कर दिया? जैसे उसकी दाढ़ी उसकी पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करती हो। फिर भी, कौन जानता था कि पुरानी पोथी में परमेश्वर की उपस्थिति की तलाश करते हुए, मनुष्य इस स्थिति तक मूर्खतापूर्ण हो सकता है? पुरानी पोथी में कागज के कितने पन्ने हो सकते हैं? क्या इसमें वास्तव में परमेश्वर के सभी कर्मों को अभिलिखित किया जा सकता है? इस बात की गारंटी देने का साहस कौन करता है? मनुष्य वास्तव में परमेश्वर के प्रकटन की तलाश करता है और वचनों का अत्यधिक पदभंजन करके[5] परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने का प्रयास करता है। क्या इस तरह से जीवन प्रवेश करने का प्रयास करना उतना आसान है जितना यह प्रतीत होता है? क्या यह मूर्खतापूर्ण, ग़लत तर्क नहीं है? क्या तुम्हें यह हास्यास्पद नहीं लगता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (6)" से
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