7. देह में परमेश्वर के आत्मा के कार्य के भी अपने स्वयं के सिद्धान्त हैं। वह परमपिता के कार्य और उत्तरदायित्व को केवल इस आधार पर अपने ऊपर ले सकता था कि वह सामान्य मानवता को धारण किए हुए था। केवल तभी वह अपना काम प्रारम्भ कर सका था। अपने बचपन में, जो कुछ प्राचीन समयों में घटित हुआ था यीशु उन्हें बहुत ज़्यादा नहीं समझ सकता था, और केवल रब्बियों से पूछने के माध्यम से ही वह समझ पाता था। यदि जब उसने पहली बार बोलना सीखा था तब उसने अपने कार्य को आरम्भ किया होता, तो कोई ग़लती न करना कैसे सम्भव हो गया होता? परमेश्वर कैसे ग़लतियाँ कर सकता है? इसलिए, यह केवल उसके समर्थ होने के पश्चात् ही हुआ कि उसने अपना काम आरम्भ किया; उसने तब तक किसी भी कार्य को नहीं किया जब तक वह ऐसे कार्य को आरम्भ करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं हो गया। 29 वर्ष की आयु में, यीशु पहले से ही काफी परिपक्व हो चुका था और उसकी मानवता उस कार्य को आरम्भ करने के लिए पर्याप्त थी जो उसे करना था। यह केवल तभी हुआ कि पवित्र आत्मा, जो तीस वर्षों तक अदृष्ट था, उसने स्वयं को प्रकट करना आरम्भ किया, और परमेश्वर का आत्मा आधिकारिक रूप से उसमें कार्य करने लगा। उस समय, यूहन्ना ने उसके लिए मार्ग खोलने के लिए सात वर्षों तक तैयारी की थी, और अपने कार्य का समापन होने पर, यूहन्ना को बंदीगृह में डाल दिया गया था। तब पूरा बोझ यीशु पर आ गया। यदि उसने इस कार्य को 21 या 22 वर्ष की आयु में प्रारम्भ किया होता, जब उसमें मानवता का बहुत अभाव था और उसने बस अभी-अभी युवा वयस्कता में प्रवेश किया था, और उसमें बहुत सी चीज़ों की समझ का अभाव था, तो वह नियन्त्रण रख पाने में असमर्थ होता। उस समय, जब यीशु ने अपनी मध्य आयु में अपने कार्य को आरम्भ किया था उसके कुछ समय पूर्व ही यूहन्ना ने पहले से ही अपने कार्य को सम्पन्न कर लिया था। उस आयु में, उसकी सामान्य मानवता उस कार्य को आरम्भ करने के लिए पर्याप्त थी जो उसे करना चाहिए था।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (1)" से
8. शरीर में देहधारी परमेश्वर के कार्य के बहुत से सिद्धान्त हैं। ऐसा बहुत कुछ है जिसे मनुष्य साधारणतः नहीं समझता है, फिर भी मनुष्य उसे मापने के लिए या परमेश्वर से बहुत अधिक माँग करने के लिए लगातार अपनी स्वयं की अवधारणाओं का उपयोग करता है। और आज के दिन भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें बिलकुल भी पता नहीं है कि उनके ज्ञान में उनकी स्वयं की अवधारणाओं से अधिक और कुछ भी नहीं है। वह युग या स्थान जो भी हो जिसमें परमेश्वर ने देहधारण किया है, देह में उसके कार्य के सिद्धान्त अपरिवर्तनीय बने रहते हैं। वह देह नहीं बन सकता है फिर भी कार्य करने के लिए देह की सीमाओं से परे जाता है; इसके अतिरिक्त, वह देह नहीं बन सकता है फिर भी देह की साधारण मानवता के भीतर काम नहीं करता है। अन्यथा, परमेश्वर के देहधारण का महत्व घुलकर शून्य हो जाएगा, और वचन देह बनता है पूरी तरह से निरर्थक हो जाएगा। इसके अतिरिक्त, केवल स्वर्ग में परमपिता (पवित्रात्मा) ही परमेश्वर के देहधारण के बारे में जानता है, और दूसरा कोई नहीं, यहाँ तक कि स्वयं देह या स्वर्ग के संदेशवाहक भी नहीं जानते हैं। वैसे तो, देह में परमेश्वर का कार्य और भी अधिक सामान्य और बेहतर ढंग से यह प्रदर्शित करने में समर्थ है कि वास्तव में वचन देह बनता है; देह का अर्थ एक सामान्य और साधारण मनुष्य है।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (1)" से
9. कुछ लोग आश्चर्य कर सकते हैं, युग का सूत्रपात स्वयं परमेश्वर के द्वारा क्यों किया जाना चाहिए? क्या उसके स्थान पर कोई सृजित प्राणी नहीं खड़ा हो सकता है? तुम लोग अच्छी तरह से अवगत हो कि एक नए युग का सूत्रपात करने के उद्देश्य से स्पष्ट रूप से परमेश्वर देह बनता है, और, वास्तव में, जब वह नए युग का सूत्रपात करता है, तो वह उसके साथ-साथ ही पूर्व युग का समापन करता है। परमेश्वर आदि और अंत है; यही वह स्वयं है जो अपने कार्य को चलाता है और इसलिए यह अवश्य वह स्वयं होना चाहिए जो पहले के युग का समापन करता है। यही वह प्रमाण है कि वह शैतान को पराजित करता है और संसार को जीत लेता है। प्रत्येक बार जब वह स्वयं मनुष्य के बीच कार्य करता है, तो यह एक नए युद्ध की शुरुआत होती है। नए कार्य की शुरुआत के बिना, प्राकृतिक रूप से पुराने का कोई समापन नहीं होगा। और पुराने का समापन न होना इस बात का प्रमाण है कि शैतान के साथ युद्ध अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। यदि स्वयं परमेश्वर मनुष्यों के बीच में आता है और एक नया कार्य करता है केवल तभी मनुष्य शैतान के अधिकार क्षेत्र को तोड़कर पूरी तरह से स्वतन्त्र हो सकता है और एक नया जीवन एवं नई शुरुआत प्राप्त कर सकता है। अन्यथा, मनुष्य सदैव ही पुराने युग में जीएगा और हमेशा शैतान के पुराने प्रभाव के अधीन रहेगा। परमेश्वर के द्वारा अगुवाई किए गए प्रत्येक युग के साथ, मनुष्य के एक भाग को स्वतन्त्र किया जाता है, और इस प्रकार परमेश्वर के कार्य के साथ-साथ मनुष्य एक नए युग की ओर आगे बढ़ता है। परमेश्वर की विजय उन सबकी विजय है जो उसका अनुसरण करते हैं। यदि सृष्टि की मानवजाति को युग के समापन का कार्यभार दिया जाता, तब चाहे यह मनुष्य के दृष्टिकोण से हो या शैतान के, यह एक ऐसे कार्य से बढ़कर नहीं है जो परमेश्वर का विरोध या परमेश्वर के साथ विश्वासघात करता है, न कि परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का एक कार्य है, और इस प्रकार मनुष्य का कार्य शैतान को अवसर देगा। मनुष्य केवल परमेश्वर के द्वारा सूत्रपात किए गए एक युग में परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन और अनुसरण करता है केवल तभी शैतान पूरी तरह से आश्वस्त होगा, क्योंकि यह सृजित प्राणी का कर्तव्य है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोगों को केवल अनुसरण और आज्ञापालन कंरने की आवश्यकता है, और इससे अधिक तुम लोगों से नहीं कहा गया है। प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा अपने कर्तव्य का पालन करने और अपने कार्य को क्रियान्वित करने का अर्थ यही है। परमेश्वर स्वयं अपना काम करता है और उसे मनुष्य की कोई आवश्यकता नहीं है कि उसके स्थान पर काम करे, और न ही वह सृजित प्राणियों के काम में अपने आपको शामिल करता है। मनुष्य अपना स्वयं का कर्तव्य करता है और परमेश्वर के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता है, और यही सच्ची आज्ञाकारिता है और सबूत है कि शैतान पराजित है। जब परमेश्वर स्वयं ने नए युग का आरम्भ कर दिया उसके पश्चात्, वह मानवों के बीच अब और कार्य नहीं करता है। यह तभी है कि एक सृजित प्राणी के रूप में मनुष्य अपने कर्तव्य को करने और अपने ध्येय को सम्पन्न करने के लिए आधिकारिक रूप से नए युग में कदम रखता है। कार्य करने के सिद्धान्त ऐसे ही हैं जिनका उल्लंघन किसी के द्वारा नहीं किया जा सकता है। केवल इस तरह से कार्य करना ही विवेकपूर्ण और तर्कसंगत है। परमेश्वर का कार्य परमेश्वर स्वयं के द्वारा किया जाता है। यह वही है जो अपने कार्य को चलाता है, और साथ ही वही उसका समापन करता है। यह वही है जो कार्य की योजना बनाता है, और साथ ही वही है जो उसका प्रबंधन करता है, और उससे भी बढ़कर, यह वही है जो उस कार्य को सफल करता है। यह ऐसा ही है जैसा बाइबल में कहा गया है "मैं ही आदि और अंत हूँ; मैं ही बोनेवाला और काटनेवाला हूँ।" सब कुछ जो उसके प्रबंधन के कार्य से संबंधित है स्वयं उसी के द्वारा किया जाता है। वह छ:-हज़ार-वर्षों की प्रबंधन योजना का शासक है; कोई भी उसके स्थान पर उसका काम नहीं कर सकता है या उसके कार्य का समापन नहीं कर सकता है, क्योंकि यह वही है जो सबको नियन्त्रण में रखता है। चूँकि उसने संसार का सृजन किया है, वह संपूर्ण संसार की अगुवाई करेगा ताकि सब उसके प्रकाश में जीवन जीएँ, और वह अपनी सम्पूर्ण योजना को सफल करने के लिए संपूर्ण युग का समापन करेगा!
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (1)" से
10. उस समय जब यीशु यहूदिया में कार्य करता था, तब उसने खुलकर ऐसा किया, परन्तु अब, मैं तुम लोगों के बीच गुप्त रूप से काम करता और बोलता हूँ। अविश्वासी लोग इस बात से पूरी तरह से अनजान हैं। तुम लोगों के बीच मेरा कार्य दूसरों से अलग-थलग है। इन वचनों, इन ताड़नाओं और न्यायों को केवल तुम लोग ही जानते हो और कोई नहीं। यह सब कार्य तुम लोगों बीच में किया जाता है और केवल तुम लोगों के लिए प्रकट किया जाता है; उन अविश्वासियों में से कोई भी इसे नहीं जानता है, क्योंकि समय अभी तक नहीं आया है। ये मनुष्य ताड़नाओं को सहने के बाद पूर्ण किए जाने के समीप हैं, परन्तु जो लोग बाहर हैं वे इस बारे में कुछ नहीं जानते हैं। यह कार्य बहुत ही अधिक अप्रकट है! उनके लिए, परमेश्वर देह बन गया गोपनीय बात है, परन्तु जो इस धारा में हैं, उसके लिए यह स्पष्ट हुआ माना जाता है। यद्यपि परमेश्वर में सब कुछ स्पष्ट है, सब कुछ प्रकट है और सब कुछ मुक्त है, फिर भी यह केवल उनके लिए सही है जो उस में विश्वास करते हैं, और उन अविश्वासियों को कुछ भी ज्ञात नहीं करवाया जाता है। यहाँ अब किए जा रहे कार्य को उन्हें ज्ञात होने से सुरक्षित रखने के लिए कड़ाई से पृथक किया जाता है। उन्हें पता लग जाने पर, बस दण्ड और उत्पीड़न ही मिलता है। वे विश्वास नहीं करेंगे। उस बड़े लाल अजगर के देश में, जो सबसे अधिक पिछड़ा हुआ इलाका है, कार्य करना कोई आसान काम नहीं है। यदि इस कार्य की जानकारी हो गई होती, तब इसे जारी रखना असम्भव होता। कार्य का यह चरण मात्र इस स्थान में आगे नहीं बढ़ सकता है। यदि ऐसे कार्य को खुले तौर पर किया जाता, तो वे इसे कैसे सहन कर सकते थे? क्या यह और अधिक जोखिम नहीं लाता? यदि इस कार्य को गुप्त नहीं रखा जाता, और इसके बजाए यीशु के समय के समान ही निरन्तर जारी रखा जाता जब उसने असाधारण ढंग से बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को निकाला था, तो क्या इसे बहुत पहले ही दुष्टात्माओं के द्वारा "कब्ज़े" में नहीं कर लिया गया होता? क्या वे परमेश्वर के अस्तित्व को बर्दाश्त कर सकते थे? यदि मुझे मनुष्य को उपदेश एवं व्याख्यान देने के लिए अभी बड़े कक्षों में प्रवेश करना होता, तो क्या मुझे बहुत पहले ही टुकड़े-टुकड़े नहीं कर दिया गया होता? यदि ऐसा होता, तो मेरा कार्य किया जाना कैसे जारी रखा जा सकता था? चिन्हों और अद्भुत कामों को खुले तौर पर प्रदर्शित नहीं किया जाता है इसका कारण प्रच्छन्नता के वास्ते। अतः मेरे कार्य को अविश्वासियों के द्वारा देखा, जाना या खोजा नहीं जा सकता है। यदि कार्य के इस चरण को अनुग्रह के युग में यीशु के तरीके के समान किया जाना होता, तो यह इतना सुस्थिर नहीं हो सकता था। अतः, कार्य को इसी रीति से प्रच्छन्न रखा जाना तुम लोगों के और समस्त कार्य के हित के लिए है। जब पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य समाप्त होता है, अर्थात्, जब इस गुप्त कार्य का समापन हो जाता है, तब कार्य का यह चरण झटके से पूरी तरह से खुल जाएगा। सब जान जाएँगे कि चीन में विजेताओं का एक समूह है; सब जान जाएँगे कि परमेश्वर ने चीन में देहधारण किया है और यह कि उसका कार्य समाप्ति पर आ गया है। केवल तभी मनुष्य पर प्रकटन होगा: ऐसा क्यों है कि चीन ने अभी तक क्षय या पतन का प्रदर्शन नहीं किया है? इससे पता चलता है कि परमेश्वर चीन में व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य कर रहा है और उसने लोगों के एक समूह को विजाताओं के रूप में पूर्ण बना दिया है।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (2)" से
11. देहधारी हुआ परमेश्वर स्वयं को केवल कुछ लोगों पर ही प्रकट करता है जो उसका अनुसरण करते हैं जब वह व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है, और सभी प्राणियों पर प्रकट नहीं करता है। वह कार्य के एक चरण को पूरा करने के लिए देह बना, मनुष्य को अपनी छवि दिखाने के लिए नहीं। हालाँकि, उसके कार्य को स्वयं उसके द्वारा ही किया जाना चाहिए, इसलिए उसके लिए देह में ऐसा करना आवश्यक है। जब यह कार्य पूरा हो जाएगा, तो वह पृथ्वी से चला जाएगा; वह लम्बी अवधि तक मानवजाति के मध्य बना नहीं रह सकता है इस बात के भय से कि कहीं आने वाले कार्य के मार्ग में खड़ा न हो जाए। जो कुछ वह भीड़ पर प्रकट करता है वह केवल उसका धर्मी स्वभाव और उसके सभी कर्म हैं, और उसकी देह की छवि नहीं है जब वह दूसरी बार देहधारण करता है, क्योंकि परमेश्वर की छवि को केवल उसके स्वभाव के माध्यम से ही प्रदर्शित किया जा सकता है, और उसे उसके देहधारी देह की छवि के द्वारा बदला नहीं जा सकता है। उसके देह की छवि केवल एक सीमित संख्या के लोगों को ही दिखाई जाती है, केवल उन्हें जो उसका अनुसरण करते हैं जब वह देह में कार्य करता है। इसीलिए वह कार्य जिसे अभी किया जा रहा है उसे इस तरह गुप्त रूप में किया जाता है। यह बिलकुल ऐसा ही है जैसे यीशु ने अपना कार्य किया तो उसने स्वयं को केवल यहूदियों को ही दिखाया, और सार्वजनिक रूप में कभी भी दूसरी जातियों को नहीं दिखाया। इस प्रकार, जब एक बार उसने काम समाप्त कर लिया, तो वह तुरन्त ही मनुष्यों के बीच से चला गया और रुका नहीं; उसके बाद आने वाले समय में, उसने स्वयं की छवि को मनुष्य पर प्रकट नहीं किया, किन्तु उसके बजाए कार्य को सीधे तौर पर पवित्र आत्मा के द्वारा किया गया। एक बार जब देहधारी हुए परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाता है, तो वह नश्वर संसार से चला जाता है, और फिर कभी ऐसा कार्य नहीं करता है जो उस समय के समान होता है जब वह देह में था। उसके बाद का सभी कार्य पवित्र आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है। इस समय के दौरान, मनुष्य बमुश्किल ही देह में उसकी छवि को देखने में सक्षम होगा; वह स्वयं को मनुष्य पर बिलकुल भी प्रकट नहीं करता है, और हमेशा प्रच्छन्न बना रहता है। देहधारी हुए परमेश्वर के कार्य के लिए सीमित समय है, जिसे एक विशेष युग, समय, देश और विशेष लोगों के बीच अवश्य किया जाना चाहिए। ऐसा कार्य केवल देहधारी हुए परमेश्वर के समय के दौरान के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, और यह उस युग के लिए विशेष है, एक विशेष युग में परमेश्वर के आत्मा के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, और उसके कार्य की सम्पूर्णता का नहीं। इसलिए, देहधारी हुए परमेश्वर की छवि सभी लोगों पर प्रकट नहीं की जाएगी। जो कुछ भीड़ को दिखाया जाता है वह परमेश्वर की धार्मिकता और उसकी सम्पूर्णता में उसका स्वभाव है, उसके स्वरूप के बजाए जब वह दूसरी बार देह बनता है। यह न तो इकलौती छवि है जो मनुष्य को दिखायी जाती है, और न ही दो छवियों को संयुक्त किया गया है। इसलिए, यह अति महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर का देहधारी देह उस कार्य की समाप्ति पर पृथ्वी से चला जाए जिसे उसे करने की आवश्यकता है, क्योंकि वह केवल उस कार्य को करने आया है जिसे उसे अवश्य करना चाहिए, और वह लोगों को अपनी छवि दिखाने नहीं आया है। यद्यपि देहधारण के महत्व को परमेश्वर के द्वारा पहले से ही दो बार देहधारण करके पूरा किया जा चुका है, फिर भी वह किसी ऐसे देश पर अपने आपको खुलकर प्रकट नहीं करेगा जिसने उसे पहले कभी नहीं देखा है।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (2)" से
12. तुम लोगों को यह जानना चाहिए कि देहधारी हुए परमेश्वर का कार्य एक युग का मार्ग प्रशस्त करना है। यह कार्य कुछ वर्षों तक सीमित है, और वह परमेश्वर के आत्मा के सभी कार्यों को पूरा नहीं कर सकता है। यह बिलकुल इसके समान है कि एक यहूदी के रूप में यीशु की छवि कैसे केवल परमेश्वर की छवि का प्रतिनिधित्व कर सकती है जब वह यहूदिया में कार्य करता था, और वह केवल सलीब पर चढ़ने का काम ही कर सकता था। उस समय के दौरान जब यीशु देह में था, वह किसी युग का अंत करने या मानवजाति का विनाश करने का कार्य नहीं कर सकता था। इसलिए, जब उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और उसने अपना काम समाप्त कर लिया था तो उसके पश्चात्, वह स्वर्ग पर चढ़ गया और उसने सदा के लिए स्वयं को मनुष्य से छिपा लिया। उसके बाद से, अन्य जाति देशों के वे वफादार विश्वासी केवल उसकी तस्वीर को ही देख सकते थे जिसे उन्होंने दीवारों पर चिपकाया था, और प्रभु यीशु के प्रकटीकरण को नहीं देख सकते थे। यह तस्वीर सिर्फ एक ऐसी तस्वीर है जिसे मनुष्य के द्वारा बनाया गया है, और वह छवि नहीं है जिसे स्वयं परमेश्वर ने मनुष्य को दिखाया था। जब से परमेश्वर दो बार देह बना है वह अपने आपको उस छवि में भीड़ के सामने खुलकर प्रकट नहीं करेगा। जिस कार्य को वह मानवजाति के बीच करता है वह उन्हें अनुमति देने के लिए है कि वे उसके स्वभाव को समझें। यह सब कुछ, यीशु के प्रकटीकरण के माध्यम के बजाय, विभिन्न युगों के कार्य के माध्यम से मनुष्य को दिखाने के द्वारा, साथ ही साथ उस स्वभाव के माध्यम से जिसे उसने ज्ञात करवाया है और उस कार्य के माध्यम से जिसे उसने किया है, सम्पन्न किया जाता है। कहने का अभिप्राय है, कि परमेश्वर की छवि को देहधारी छवि के माध्यम से मनुष्य को ज्ञात नहीं करवाया जाता है, बल्कि छवि और स्वरूप के देहधारी परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य के माध्यम से ज्ञात करवाया जाता है; और उसके (स्त्री/पुरुष) कार्य के माध्यम से, उसकी छवि को दिखाया जाता है और उसके स्वभाव को ज्ञात करवाया जाता है। यही उस कार्य का महत्व है जिसे वह देह में करने की इच्छा करता है।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (2)" से
13. एक बार जब वह कार्य समाप्त हो जाता है जब वह दोबारा देह बना, तो वह अन्यजाति देशों को अपना धर्मी स्वभाव दिखाना शुरू कर देता है, और जनसमूह को अपना स्वरूप देखने की अनुमति देता है। वह अपने स्वभाव को प्रकट करने की इच्छा करता है, और इसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के मनुष्य के अंत को स्पष्ट कर देता है, और इसके द्वारा पुराने युग को पूरी तरह से समाप्त कर देता है। देह में उसका कार्य बड़ी सीमा तक विस्तृत नहीं होता है (ठीक वैसे ही जैसे यीशु ने केवल यहूदिया में काम किया था, और आज मैं केवल तुम लोगों बीच में काम करता हूँ) क्योंकि देह में उसके कार्य के घेरे और सीमाएँ हैं। वह इस देहधारी शरीर के माध्यम से शाश्वतता का कार्य करने, या अन्यजाति देशों के सभी लोगों पर प्रकट होने के कार्य को करने के बजाय, केवल एक साधारण एवं सामान्य देह में एक अल्प समयावधि का कार्य सम्पन्न कर रहा है। देह में यह कार्य सीमित दायरे में होना ही चाहिये (जैसे कि सिर्फ यहूदिया में या सिर्फ तुम लोगों के बीच में काम करना), तब इसकी सीमाओं के भीतर किए गए कार्य के जरिए इसे विस्तृत किया जाना चाहिए। वास्तव में, ऐसे विस्तार का कार्य पवित्र आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है और यह उसके देहधारी देह का कार्य नहीं होगा। क्योंकि शरीर में कार्य की सीमाएँ हैं और विश्व के सभी कोनों तक नहीं फैलती हैं। इसे, यह पूरा नहीं कर सकता है। देह में कार्य के माध्यम से, उसका आत्मा उस कार्य को करता है जो उसके बाद आता है। अतः, देह में किया गया कार्य शुरूआत का एक ऐसा कार्य है जिसे सीमाओं के भीतर किया गया है; उसका आत्मा इसके पश्चात् इस कार्य को करता है, और इसके आधार पर फैलता है।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (2)" से
14. परमेश्वर इस पृथ्वी पर केवल युग की अगुवाई के कार्य को करने; नए युग को आरम्भ करने और पुराने युग को समाप्त करने के लिए आता है। वह इस पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन के पथक्रम को जीने, एक मनुष्य के रूप में स्वयं के लिए जीवन के सुखों एवं दुःखों का अनुभव करने, या अपने हाथ के द्वारा किसी विशेष व्यक्ति को पूर्ण बनाने या जब कोई आगे बढ़ता है तो उसकी व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने के लिए नहीं आया है। यह उसका कार्य नहीं है; उसका काम केवल एक नए युग का मार्ग प्रशस्त करना, और पुराने युग को समाप्त करना है। अर्थात्, वह एक युग का मार्ग प्रश्सत करेगा, अन्य युग का अंत करेगा, और व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के द्वारा शैतान को पराजित करेगा। हर बार जब वह व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है, यह ऐसा है मानो कि वह युद्ध के मैदान में कदम रख रहा है। देह में, वह सर्वप्रथम संसार को पराजित करता है और शैतान की जीतता है; वह सारी महिमा प्राप्त करता है और पृथ्वी के सभी मनुष्यों को अनुसरण के लिए एक सही मार्ग, और शांति एवं आनन्द का जीवन प्रदान करते हुए, पूरे दो हज़ार वर्षों के कार्य पर से पर्दा उठाता है। हालाँकि, परमेश्वर लम्बे समय तक पृथ्वी पर मनुष्य के साथ नहीं रह सकता है, क्योंकि परमेश्वर तो परमेश्वर है, और आख़िरकार मनुष्य के समान नहीं है। वह एक सामान्य मनुष्य का जीवनकाल नहीं जी सकता है, अर्थात्, वह पृथ्वी पर एक ऐसे मनुष्य के रूप में नहीं रह सकता है जो साधारण मनुष्य के अलावा कुछ भी नहीं है, क्योंकि उसके पास उसी रूप में अपने जीवन को बनाए रखने के लिए साधारण मनुष्यों की सामान्य मानवता का केवल एक अल्पतम अंश ही है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर कैसे एक परिवार शुरू कर सकता है और पृथ्वी पर बच्चे पैदा कर सकता है? क्या यह एक कलंक नहीं होगा? वह सिर्फ सामान्य रूप से कार्य करने के उद्देश्य से सामान्य मानवता धारण करता है, न कि अपने आपको एक परिवार शुरु करने हेतु समर्थ बनाने के लिए जैसा एक सामान्य मनुष्य करेगा। उसकी सामान्य समझ, सामान्य मन, और सामान्य भोजन और उसकी देह के वस्त्र यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि उसमें एक सामान्य मानवता है; इस बात को साबित करने के लिए कि वह सामान्य मानवता से सुसज्जित है उसे एक परिवार शुरू करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह पूरी तरह से अनावश्यक है! परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, इसका अर्थ है वचन देह बनता है; वह मात्र अपने वचन को समझने और अपने वचन को देखने की मनुष्य को अनुमति देता है, अर्थात्, वह देह द्वारा किए गए कार्य को देखने की मनुष्य को अनुमति देता है। उसका अभिप्राय यह नहीं है कि लोग उसके देह के साथ एक विशेष तरीके से व्यवहार करें, बल्कि केवल मनुष्य के लिए है कि वह अंत तक आज्ञाकारी बना रहे, अर्थात्, वह सभी वचनों का पालन करे जो उसके मुँह से निकलते हैं, और समस्त कार्य के प्रति समर्पित हो जाए जिसे वह करता है। वह मात्र शरीर में काम कर रहा है, जानबूझ कर मनुष्य से यह नहीं कह रहा है कि वे उसकी देह की महानता या पवित्रता को बड़ा ठहराएँ। वह मात्र मनुष्यों को अपने कार्य की बुद्धिमत्ता और वह समस्त अधिकार दिखा रहा है जिसे वह उपयोग करता है। इसलिए, भले ही उसके पास उत्कृष्ट मानवता है, फिर भी वह कोई घोषणा नहीं करता है, और केवल उस कार्य पर ध्यान केन्द्रित करता है जो उसे करना चाहिए। तुम लोगों को जानना चाहिए कि ऐसा क्यों है कि परमेश्वर देह बनता है फिर भी उसकी शेखी नहीं बघारता है या अपनी सामान्य मानवता के प्रति गवाही नहीं देता है, और इसके बजाय मात्र उस कार्य को सम्पन्न करता है जिसे करने की उसकी इच्छा है। यही कारण है कि तुम लोग देहधारी हुए परमेश्वर में केवल दिव्यता के अस्तित्व को देखते हो, मात्र इसलिए क्योंकि वह मनुष्य के लिए स्पर्धा करने हेतु कभी भी मानवता के अपने अस्तित्व की घोषणा नहीं करता है। जब मनुष्य मनुष्य की अगुवाई करता है केवल तभी वह मानवता के अपने अस्तित्व की बात करता है, ताकि उन्हें प्रभावित और आश्वस्त करने के माध्यम से दूसरों की अगुआई प्राप्त कर सके। इसके विपरीत, परमेश्वर केवल अपने कार्य के माध्यम से ही मनुष्य पर विजय पाता है (अर्थात्, मनुष्य के लिए अप्राप्य कार्य)। वह मनुष्य को प्रभावित नहीं करता है या पूरी मानवजाति से अपनी "आराधना" नहीं करवाता है, किन्तु मात्र मनुष्य में आदर की भावना डालता है या मनुष्य को अपनी अभेद्यता से अवगत कराता है। मनुष्य को प्रभावित करने की परमेश्वर को कोई आवश्यकता नहीं है। वह तुम लोगों से बस इतना चाहता है कि जब एक बार तुम लोगों ने उसके स्वभाव को देख लिया है तो उसका आदर करो।
वचन देह में प्रकट होता है में "देहधारण का रहस्य (2)" से
स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
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