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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

3 वैसी प्रार्थना कैसे करें जो परमेश्वर सुनें

सूचीपत्र

पहला, क्या हम एक परमेश्वर से एक निष्कपट दिल से प्रार्थना करते हैं?
दूसरा, क्या हम परमेश्वर से तर्कसंगत तरीके से प्रार्थना करते हैं?
तीसरा, क्या हमारी कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य है?
पहला, हमें मन से प्रार्थना करनी चाहिए, निष्कपटता से प्रार्थना करनी चाहिए और ऐसी सच्ची बातें कहनी चाहिए जो दिल से निकलें।
दूसरा, हमें रचे गये प्राणियों के स्थान पर खड़ा होना चाहिए और परमेश्वर से कोई माँग नहीं करनी चाहिए; हमें एक ऐसे दिल से प्रार्थना करनी चाहिए जो परमेश्वर को समर्पित होता हो।
तीसरा, अगर हमारी कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, तो हमें तलाशने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
चेंग शी
भाइयो और बहनो:
प्रभु की शांति आपके साथ हो! प्रार्थना करना हम ईसाइयों का, परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। ऐसा विशेष रूप से सुबह और रात के समय किया जाता है। यही कारण है कि प्रार्थना करना सीखना बेहद जरूरी है।

मंगलवार, 18 जून 2019

“कार्य और प्रवेश” पर परमेश्वर के वचन के चार अंशों से संकलन भाग छे:



36. सृष्टि से लेकर अब तक, परमेश्वर ने इतनी पीड़ा सहन की है, और इतने सारे हमलों का सामना किया है। पर आज भी, मनुष्य परमेश्वर से अपनी माँगे कम नहीं करता है, वह आज भी परमेश्वर की जाँच करता है, आज भी उसमें उसके प्रति कोई सहिष्णुता नहीं है, और उसे सलाह देने, आलोचना करने और अनुशासित करने के अलावा मनुष्य और कुछ भी नहीं करता है, जैसे कि उसे गहरा भय हो कि परमेश्वर भटक जाएगा, कि पृथ्वी पर परमेश्वर पाशविक और अनुचित है, या दंगा कर रहा है, या वह कुछ भी काम का न रह जाएगा। मनुष्य का परमेश्वर के प्रति हमेशा इस तरह का रवैया रहा है। यह कैसे परमेश्वर को दुखी नहीं करता? देह धारण करने में, परमेश्वर ने जबरदस्त वेदना और अपमान को सहन किया है; मनुष्य की शिक्षाओं को स्वीकार करने के लिये परमेश्वर की और कितनी दुर्गति होगी? मनुष्य के बीच उसके आगमन ने उसकी सारी स्वतंत्रता छीन ली है, जैसे कि उसे अधोलोक में बंदी बना लिया गया हो, और उसने मनुष्य के विश्लेषण को थोड़े-से भी प्रतिरोध के बिना स्वीकार कर लिया है।

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन-तुम विश्वास के विषय में क्या जानते हो?

मनुष्य केवल विश्वास के अनिश्चित शब्द पर बना रहता है, फिर भी मनुष्य यह नहीं जानता है कि वह क्या है जो विश्वास का निर्माण करता है, और यह तो बिलकुल ही नहीं जानता है कि उसके पास विश्वास क्यों है। मनुष्य बहुत ही कम जानता है और स्वयं मनुष्य में बहुत सारी कमियाँ हैं; वह बस लापरवाही और अज्ञानता से मुझ पर विश्वास रखता है। यद्यपि वह नहीं जानता है कि विश्वास क्या है न ही वह यह जानता है कि वह क्यों मुझ पर विश्वास रखे हुए है, वह सनक के साथ निरन्तर ऐसा करता रहता है। जो मैं मनुष्य से चाहता हूँ वह मात्र यह नहीं है कि वह सनक के साथ मुझे इस तरह पुकारे या अव्यवस्थित रीति से मुझ पर विश्वास करे।

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

27. हम मानते हैं कि प्रभु के कीमती रक्त ने हमें पहले ही शुद्ध कर दिया है और हम पवित्र हो चुके हैं और पाप से संबंधित नहीं हैं, इसलिए हमें शुद्धिकरण के कार्य को प्राप्त करने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा कहना सही क्यों नहीं है?

उत्तर परमेश्वर के वचन से:
तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अन्तिम दिनों के दौरान आयेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे आयेगा? तुम जैसा पापी, जिसे बस अभी अभी छुड़ाया गया है, और परिवर्तित नहीं किया गया है, या परमेश्वर के द्वारा सिद् नहीं किया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो अभी भी पुराने मनुष्यत्व के हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और यह कि परमेश्वर के उद्धार के कारण तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो।

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